गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

म्यांमार से दिल्ली...

 

म्यांमार में अब रोहिंग्या नहीं है, लेकिन म्यांमार एक बार फिर जल रहा है, सेना की गोली से अब तक म्यांमार में पांच सौ लोग मारे जा चुके हैं। लेकिन इस नरसंहार के पहले बौद्ध भिक्षु अशीन विराथु ने जो नफरत फैलाई थई उसके चलते रोहिंग्या दर-बदर हंै। विराथु तब जीत गये थे और आज भी सेना के साथ खड़े विजयी मुस्कान लिए हुए हैं। म्यांमार में लोकतंत्र समाप्त हो गया है, सत्ता सेना के पास है।

क्या यह इस देश के लिए सबक नहीं होना चाहिए। कट्टरपंथई ताकतें जिस तरह से अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बना रहे हैं उसके बाद क्या कट्टरपंथियों को पालना उचित होगा? इन कट्टरपंथियों को जिस तरह से सत्ता का संरक्षण प्राप्त है वह किसी से छुपा नहीं है, सत्ता के संरक्षण में ही मॉब लिचिंग हो या बलात्कार के आरोपी हो सभी को सम्मानित किया जाना, और इस सम्मान का सार्वजनिक प्रदर्शन का मतलब क्या है।

हम संवैधानिक संस्थानों की वर्तमान में स्थिति को लेकर कोई टिप्पणी करने की बजाय कोरोना काल में तब्लिकी और किसान आंदोलन के समय सिख समुदाय के खालिस्तानी का उदाहरण ही पर्याप्त समझते हैं। और इसे ही चेतावनी मानते हैं। बहुसंख्यकवाद से ग्रस्त होकर मानवीय मूल्यों की अनदेखी करना या उसे नुकसान पहुंचाना किसी भी देश के लिए सैनिक शासन या तानाशाही शासन का मार्ग प्रशस्त करता है।

जो लोग टाईम मेग्जिन में अशीन विराथू को बौद्ध आतंकवाद का चेहरा घोषित करने पर अजान बने रहे या नजरअंदाज करते रहे वे जान ले कि अशीन विराथू अब अपने ही लोगों के लाशों पर चढ़कर सत्ता प्राप्त करने में लगे हैं? हम यह नहीं कहते कि अमेरिका के कुछ संस्थानों ने यहां के कुछ संस्थानों पर अशीन विराथू की तरह आतंकवाद का चेहरा चिपकाया है वह उचित अनुचित के तराजू में कहां है लेकिन यह एक तरह की चेतावनी है।

किसी भी देश में बहुसंख्यक समाज तभी तक लोकतांत्रिक व्यवस्था में फल-फूल सकता है जब तक उनके देश के अल्पसंख्यक वर्ग बगैर डर-भय के जीवन यापन करते हैं। हर देश ने अपने देश के अल्पसंख्यकों को विशेष सुविधा दी है, कमजोर वर्गों को आगे बढ़ाने का उपक्रम किया है और इस उपक्रम में बहुसंख्यक कट्टरपंथी बाधा डालते रहे हैं, हक मारे जाने का झूठा बवाल खड़ा करते रहे हैं और इस बवाल को जिसने भी सच मान ाउस देश में सत्ता तानाशाही हुई है और देश बर्बाद!