बुधवार, 14 अप्रैल 2021

ज्ञान पर नफरत का ध्वजारोहण-2

 

ज्ञान पर नफरत का ध्वजारोहण का इतिहास बहुत पुराना नहीं है, लेकिन यह जानना जरूरी है कि इसका इतिहास क्या है और कब से शुरु हुआ। इससे पहले ये जान ले कि इसकी शुरुआत कैसे हुई?

ऐतिहासिक तथ्य इसे हिटलर से शुरुआत होना बताते हैं। क्या इससे पहले भी शुरु हुआ? इतिहासकारों का अपना दावा है लेकिन एक बात तो तय है कि इसकी शुरुआत सत्ता और श्रेष्ठता पर आधारित है। सत्तासीन होने और स्वयं को श्रेष्ठ समझने-समझाने के साथ ही ज्ञान पर नफरत का ध्वजारोहण हुआ है। क्योंकि बगैर पढ़े-लिखों को तो आसानी से बेवकूफ बनाया जा सकता है लेकिन पढ़े-लिखाों में नफरत का ध्वजारोहण आसान नहीं होता क्योंकि वे पंचतंत्र के शेर आया शेर आया वाला चरवाहे की कहानी भी पढ़े लिखे होते है तो आदमखोर शेर के दलदल में सोने का कंगन दिखाकर शिकार करने की कहानी भी जानते हैं तब सवाल था ज्ञान पर नफरत का ध्वजारोहण कैसे किया जाए।

हमने पहले ही कहा है कि आदमी तोता नहीं है जो रटा रटाया वाक्य 'शिकारी आयेगा, जाल फैलायेगा, दाना डालेगा, दाना नहीं चुगना, जाल में फंस जाओगÓे को बोलकर जाल में फंस जायेगा! इसलिए दिल और दिमाग को अलग करना जरूरी था। और यह काम भारत में अंग्रेजों ने किया। अंग्रेजों ने भारतीय को टाई पहनाना शुरु किया। टाई दिल यानी हृदय और दिमाग यानी मस्तिष्क के बीच गले में पहना जाता है। यानी ज्ञान पर नफरत की ध्वजारोहण की शुरुआत भारत में अंग्रेजों ने शुरु की। वह आजादी की लड़ाई का दौर था, अंग्रेजों ने भले ही 1857 की क्रांति को विफल कर दिया था, लेकिन हिन्दू-मुस्लिम एकता को तोड़कर ही लंबे समय तक राज किया जा सकता था।

इतिहास चिख-चिख के कह रहा था कि शिवाजी से महाराणा प्रताप के लिए मुस्लिम और मुगलों की तरफ से हिन्दू युद्ध करते थे। कहीं धर्म को लेकर नफरत नहीं था। युद्ध केवल और केवल राजाओं की सत्ता प्राप्ति और सत्ता के विस्तार की वजह से होते थे। आम तौर पर हिन्दू-मुस्लिम सभी एक साथ रह रहे थे। जाति भेद तो था लेकिन वह जीवन जीने के तरीके को लेकर था। नफरत की दीवारें कैसे खड़ी की जाए ताकि जाति और धर्म की दीवार में जहर बोया जा सके यह काम अंग्रेजी सल्तनत का था। और इसी अंग्रेजी सल्तनत ने ही अपने स्वार्थ के लिए नफरत का जहर बोना शुरु किया। मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा और राष्ट्रीय सेवक संघ का उदय हुआ। और भी संगठन बनने लगे।

1857 की क्रांति से डरे अंग्रेजों ने हिन्दू और मुस्लिम एकता को कुठाराघात करने जहां बंग भंग जैसे कानून लाये तो दलितों को अलग करने पूना पेक्ट लाया गया। इस अंग्रेजी नीति में वे लोग फंसते चले गए, जिसमें स्वार्थ भरा था, या जिनमें संघर्ष का माद्दा नहीं था। उधर हिटलर की जर्मन नस्ल की श्रेष्ठता ने पूरी दुनिया को विश्व युद्ध में झोक दिया तो उसी तरह की श्रेष्ठता की लड़ाई यहां भी होने लगी। इतिहास कुरेदे गये जिनका वर्तमान से कोई संबंध नहीं रहा। राजाओं की लड़ाई में हिन्दू-मुस्लिम का मसाला लगाया गया जबकि वह केवल सत्ता की लड़ाई थी। राजाओं के फैसलों में हिन्दू मुस्लिम ढूंढा गया। यहां तक कि अफवाह, झूठ का सहारा लिया जाने लगा।  झूठ को अतिशयोक्ति तक ले जाकर नफरत के बीज बोए जाने लगे। 

लेकिन महात्मा गांधी दीवार बनकर खड़े हुए। नफरत के हर तीर पर ढाल बने रहे लेकिन अंग्रेजों की नीति को कामयाब होने से नहीं रोक पाये। देश का विभाजन नहीं रोक पाये। और विभाजन के बाद जब सत्ता नहीं मिली तो गांधी को ही मार डाला गया। (जारी...)