रविवार, 25 मार्च 2012

मंत्री हैं इन्हें कौन रोक सकता है...!

मंत्री हैं इन्हें कौन रोक सकता है...!
यह तो बाढ़ के ही खेत चरने की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना प्रदेश के कथित साफ सुथरी छवि के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के वनमंत्री विक्रम उसेंडी के परिवार वालों के द्वारा जंगल नहीं काटे जाते। सत्ता के मद में डुबे मंत्रियों के द्वारा जिस तरह से दबंगई दिखाया जा रहा है वह आने वाले दिनों की भयावह तस्वीर खींचने के लिए काफी है।
पहले ही साल बीज मामले में आरोपियों को बचाने पैसा खाने के आरोप लग चुके वन मंत्री विक्रम उसेंडी के परिवार वालों के द्वारा 15 हेक्येटर जंगल सफा चट करने के इस मामले ने नया मोड ले लिया है।
वनमंत्री के विधानसभा क्षेत्र कोयलीबेड़ा से लगे 15 हेक्टेयर से ज्यादा घने जंगल में जिस बेद्र्दी से कुल्हाड़ी चलाई गई है उसके बाद तो उन्हें वनमंत्री के पद पर बने रहने का कोई अधिकार हही नहीं रह जाता। लेकिन यहां सब चलता है। खासकर छत्तीसगढ़ में जो जितना बड़ा चोर उसे उतने ही बड़े पद पर नवाजे जाने की परंपरा के चलते जल जंगल और जमीन का भरपूर दोहन हो रहा है।
पहले ही वेदांता से लेकर कई उद्योगों ने यहां के जंगल को कम नुकसान नहीं पहुंचाया है, अवैध उत्खनन के चलते माफिया राज कायम हो रहा है और सरकार तमाशाबीन है ऐसे में परिवार वालों ने दबंगई दिखा दी तो इसे दूसरे अर्थों में लिया जाना चाहिए।
वन मंत्री के परिजनों की यह दबंगई भी दब जाती यदि कोयलीबेड़ा के ग्रामीण इस मामले में हाथ धोकर या यूं कहें कि नहा धोकर पीछे नहीं पड़े होते।
अब यहां शिकायतों की जांच के नाम पर लीपापोती होने लगी है वैसे भी जब पूरे मामले में वनमंत्री के रिश्तेदार शामिल हो तब वन विभाग के अधिकारियों की इतनी मजाल नहीं है कि वे सच्चाई  से रिपोर्ट तैयार करें।
इस मामले की शिकायत मुख्यमंत्री से भी की गई है लेकिन जब से मनोज डे व बाबूलाल अग्रवाल या पीआर नाईक को ऊंचे पदों पर बिठाने से परहेज नहीं करते तब भला वनमंत्री के खिलाफ कोई कार्रवाई कर पायेंगे।
मंत्रियों की हरकतों से आम लोग हैरान है। पवित्र मंदिर माने जाने वाली विधानसभा में जब उन्हें फटकारना पड़ता हो तब भला इस मामले में कोई क्या कर पायेगा।
पहले ही बस्तर के आदिवासी जल-जंगल और जमीन के मसले से परेशान है। ऐसे में जब वन मंत्री के परिवार वाले ही जंगल की बलि लेने लगे तो आम आदमी के पास सिवाय आंदोलन के क्या रास्ता बचता है।