गुरुवार, 1 मार्च 2012

पूर्व सीएस का वीआरएस और सात करोड़ का इंजीनियर..



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 छत्तीसगढ़ में ये दोनों ही खबरें आप की सूर्खियां बनी। हालांकि प्रत्यक्ष तौर पर इन दोनों खबरों का आपस में कोई लेना देना नहीं है लेकिन इन दोनों ही खबरों के पीछे एक समानता है वह है भ्रष्टाचार और सरकार में बैठे लोगों का चाल चेेहरा और चरित्र।
पहली खबर राज्य के पूर्व मुख्य सचिव जॉय ओम्मेन के वीआर एस लेने  का मामला है। पहली नजर में तो यह सिर्फ सरकार की नाराजगी दिखलाई दे रही है। जाय ओम्मेन के अवकाश पर अचानक चले जाने को लेकर यह कयास लगाया ही जा रहा था कि रमन सरकार से उनकी पटरी नहीं बैठ रही है और सुनील कुमार जैसे ईमानदार अफसर कि मुख्य सचिव पद पर नियुक्ति होते ही जाय ओम्मेन के वीआरएस लेने की खबर आई।
वास्तव में जाय ओम्मेन से सरकार की पटरी तभी नहीं बैठ रही थी जब रमन सरकार रोगदा बांध बेचे जोने के मामले में पूरी तरह फंसते नजर आई । रोगदा बांध को रातो रात जिस तरह से एस के उद्योग को बेचा गया उससे रमन सरकार की मुसिबत बढ़ गई थी वहीं ओम्मेन के लिए भी जवाब देना मुश्किल हो रहा था। अभी इस मामले की जांच विधानसभा की कमेटी कर रही है और इसके परिणाम आने बाकी है।
अभी यह मामला ठंडा भी नहीं पड़ा था कि जाय ओम्मेन कि मुश्किलें भाजपा नेता बनवारी लाल अग्रवाल ने यह कह कर बढ़ा दी कि जाय ओम्मेन एक वर्ग विशेष को बढ़ावा देने को काम कर रहे हैं। यह मामला तूल पकड़ता इससे पहले उनका अवकाश में चले जाने को लेकर यह कयास स्वाभाविक था कि सरकार के लिए जाय ओम्मेन का पद पर बने रहना मुसिबतों को न्यौता दे सकता है।
 राज्य के मुख्यसचिव जैसे पद पर बैठे व्यक्ति पर यह दो आरोप सरकार को नागवार गुजरे और जिसका परिणाम सबके सामने है। लेकिन खबरें जिस तरह से आ रही है वह भी कम दुखदायी नहीं है। सुनील कुमार जैसे ईमानदार व स्वच्छ छवि को सामने लाकर अपना चाल चेहरा व चरित्र सुधारने का दावा करने वाली सरकार एक तरफ उन्हें पद पर बने रहने का आग्रह भी करती है और दूसरी तरफ उनके वीआरएस को स्वीकृति देती है। रोगदा बांध जैसे  गंभीर मामले के आरोपों से घिरे जाय ओम्मेन जैसे अफसरों को इतनी आसानी से वीआरएस देना उन्हें बचाने जैसा अपराध है और इसके फैसले तक वीआरएस की स्वीकृति भ्रष्ट अफसरों के लिए नए द्वारा खोलेगी। आरडीए के तत्कालीन सीईओं दाण्डेकर ने भी वीआरएस  लिया था देवेन्द्र नगर माल का ठेका देते ही, लेकिन तब चर्चा केवल लोगों के बीच ही रहा।
दूसरा मामला तो सीधाा-सीधा भ्रष्टाचार से जुड़ा है। एसीबी के रोम ने बलौदाबाजार के सिंचाई अभियंता के घर छापा मारकर सात करोड़ से अधिक की अनुपातहीन संपत्ति का पता लगाया। इससे पहले भी एसीबी ऐसी कार्रवाई करते रही है लेकिन उन अफसरों का क्या हुआ यह किसी  से दिया नहीं है बल्कि अधिकारी व मंत्री उनसे पैसा खाकर महत्वपूर्ण पदों पर बिठा रहे हैं। कोर्ट में चालान प्रस्तुत करने की अनुमति नहीं दे रहे हैं।
 सरकार की यह नीति से आप लोगों को क्या फर्क पड़ता है इससे सरकार को कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन अब जनता को सोचना है कि वे ऐसे भ्रष्ट अफसरों को अपने यहां बर्दास्त करेंगें या नहीं।