बुधवार, 20 जनवरी 2021

तुमने देखी है सत्ता...


 

हमारा धर्म कहता है अपनी तरफ उठने वाले एक धोबी की उंगली पर न्याय देने भगवान राम ने अपनी पत्नी सीता को वन भेज दिया जबकि तब माता सीता गर्भवती थी। राम का पूरा जीवन न्याय के लिए समर्पित रहा, संस्कृति की रक्षा के लिए ही उन्होंने वनवा को स्वीकार किया जबकि अयोध्या की जनता उनके साथ खड़ी थी।

रावण का दंभ और अत्याचार के खिलाफ वे महलों की सुविधा त्याग कर वनवासी जीवन अपनाये क्योंकि वे जानते थे कि महलों की सुविधा उनके मार्ग में बाधा बन सकते थे।

इतिहास ने करवट लिया और इस देश में गांधी पैदा हुए। अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ उन्होंने राम के किन-किन बातों का अनुसरण किया यह शोध का विषय हो सकता है लेकिन यह सर्व सत्य है कि उन्होंने भी अंग्रेजी अत्याचार के खिलाफ एक आम आदमी की वेशभूषा लंगोट में देश को आजाद करने न केवल निकल पड़े बल्कि आजादी भी दिलाई।

आजादी के इस महायज्ञ में उनके साथ अनेक महापुरुष तो थे ही आम आदमी भी गांधी की विचारधारा, जीवन शैली, सादगी को अपनाकर स्वयं को गौरान्वित महसूस करने लगे।

ऐसे में लोकतंत्र के दुर्गुणों की संभावना पर भी उनका विचार आज भी प्रासंगिक नजर आता है। सत्ता का दंभ और पार्लियामेंट (संसद) के भीतर की कहानी पर भी उनका विचार सबके सामने है।

ब्रिटिश संसद में सांसदों के व्यवहार को लेकर उनके विचार पर भले ही तब की अंग्रेजी सत्ता ने घोर आपत्ति की थी लेकिन वर्तमान समय में भारतीय सांसदों का व्यवहार क्या  आपत्तिजनक नहीं है?

यह बात इसलिए आज समझने की जरूरत है क्योंकि मोदी सत्ता ने साफ कह दिया है कि वे तीनों कृषि कानून को वापस नहीं लेंगे जबकि किसानों ने पहले ही कह दिया है कि वे कानून वापसी के बगैर घर नहीं लौटने वाले हैं।

ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है तब क्या होगा? हम पहले भी कह चुके है कि सत्ता की अपनी रईसी है और वह कोई भी असहमति को बर्दाश्त नहीं करता है, और उस असहमति को तो कतई बर्दाश्त नहीं करता जिससे उसकी रईसी को दिक्कत हो।

यही वजह है कि पिछले 6 सालों में पेट्रोल-डीजल पर दस गुणा से ज्यादा टैक्स लगाये गये, नौकरी के आवेदन पर बेरोजगारों से हजारों करोड़ रुपये वसूले गये, सार्वजनिक उपक्रमों को बेचा गया, सरकारी संस्थाओं को निजी हाथों पर गिरवी रखा गया या उनके हिस्से बेचे गए।

और आज जब कर्ज लेने में मुश्किलें आ रही है तो विदेशी दबाव में जीवन सौपने ये तीनों कानून लाया गया है? ऐसे में भगवान राम के बताये मार्ग का ही कोई मतलब दिखाई देता है और न ही गांधी के अपनाये जीवन आधार ही सबक बन पा रहा है। 

लोकतंत्र और राम के नाम पर लूट इस देश ने पहले भी तो देखा है और इस लूट से मुक्ति का मार्ग भी खुलने की उम्मीद में किसान बैठे हैं?