गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

सात पीढ़ी तो मुगल नहीं चल पाये...


सत्ता पाते ही सात पुश्तों की व्यवस्था करने का जो खेल राजनीति में चलने लगा है वह नि:संदेह शर्मनाक है। एक तरफ जब आम आदमी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है तब हमारे जनप्रतिनिधियों की अय्याशी हमें लोकतंत्र में किस रास्ते पर ले जा रहे हैं? यह सवाल एक आम आदमी के सामने यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा है।
धरा बेच देंगे गगन बेच देंगे
कलम के सिपाही अगर सो गये
तो वतन के पुजारी वतन बेच देंगे।।

राजनेताओं की करतूतों पर यह सटीक बैठने लगी है आम जन मानस आज इस बात से हैरान और परेशान है कि जिसे सत्ता सौंपे वही लूटने और अपनी सात पुश्तों की व्यवस्था में लग जाता है लेकिन मीडिया की दखलंदाजी और लोकलाज का डर न होता तो ये लोग सब बेच खाते। नये नवेले छत्तीसगढ़ में कानून व्यवस्था की बात ही बेमानी है। बढ़ते नक्सली आतंक ने तो आम लोगों का जीना दूभर कर दिया है। रमन राज में बस्तर के पांच सौ से अधिक गांव खाली हुए और लोग शरणार्थी शिविरों में रह रहे है।
भ्रष्टाचार और नौकरशाहों की मनमानी का तो यह आलम रहा है कि जूदेव, बैस, ननकीराम कंवर तक प्रशासनिक आतंक, दलाल और निकम्मा जैसे शब्दों का प्रयोग करते नजर आये। दस साल में प्रदेश में मची लूट खसोट का यह आलम रहा कि चाहे उद्योग खोलने की बात हो या कमल विहार और नई राजधानी निर्माण की बात हो सब जगह नियम कानून को ताक पर रखकर किसानों की जमीनों का अधिग्रहण किया गया। नई राजधानी में तो खड़ी फसल तक में बुलडोजर चलाया गया। जबकि जनसुनवाई के नाम की नौटंकी कर किसानों की जमीन छिन ली गई। उद्योगों को फायदा पहुंचाने पानी, बिजली, बांध, खदान, सड़क तक बेच दी गई। ओपन एक्सेस घोटाले की बात हो या कोल ब्लाक घोटाले की बात हो डॉ. रमन सिंह पर सीधे आरोप मढ़े गए लेकिन कभी कुछ नहीं हुआ। रोगदा बांध बेचे जाने को लेकर जांच भी हुई तो वह बहुमत की ताकत से उचित बता दिया गया। लोग चीखते रहे कि बांध तक बेच दी गई लेकिन किसी भी नेता को कोई फर्क नहीं पड़ा। संस्कृति की दुहाई देने वालों ने प्रदेश में सलमान खान जैसे अपराधिक छवि को तो बुलाय ही कई जगह पर अश्लील डांस के कार्यक्रम आयोजित कर शिरकत भी की। लूटने के इस खेल में सरकार ही नहीं विपक्ष की भूमिका भी रही। नेता प्रतिपक्ष को लोग मजाक में ही सही 13वें मंत्री का दर्जा देने लगे हो तो यह शर्मनाक स्थिति नहीं तो और क्या है।  भाषणों में एक दूसरों के खिलाफ तल्ख टिप्पणी करने वाले निगम से लेकर विधानसभा तक एक दूसरे के हाथों लड्डू खाते नजर आये। ऐसे में आप अपनी हताशा और निराशा के गर्त में न जाए तो क्या हो। लोगों में बेहद गुस्सा है पर वे इसलिए अपने गुस्से का इजहार नहीं कर रहे है क्योंकि उन्हें लोकतंत्र पर भरोसा है उन्हें लगता है कि कभी तो उनके जनप्रतिनिधियों में लज्जा आयेगी।

बुधवार, 30 अक्तूबर 2013

आदिवासी हो या अग्रवाल सब हुए है माला-माल


सालों से सत्ता संभालने वाले पीछे छुटे


विशेष प्रतिनिधि
रायपुर। भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व लाख दावा करे कि छत्तीसगढ़ की सरकार भ्रष्टाचार से दूर रही है और उनके नेता राजनैतिक सुचिता का पालन करते हुए सादगी के साथ जनसेवा में लगे हैं। लेकिन पिछले पांच सालों में मुख्यमंत्री ीााजपाई मंत्रियों और विधायकों की संपत्तियों में कई गुणा वृद्धि साफ चुगली कर रही है कि हकीकत क्या है? और जनता भी समझ चुकी है।
छत्तीसगढ़ में हो रहे विधानसभा चुनाव को लेकर नामांकन फार्म भरने का दौर अंतिम चरण में है और चुनाव आयोग के कड़े निर्देश के बादी प्रत्येक प्रत्याशियों को अपनी संपत्ति की घोषणा करनी पड़ रही है। संपत्ति की घोषणा से जो चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं व न केवल आश्चर्यजनक हे बल्कि आम आदमी को हैसान कर देने वाला है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और उनके परिवार की संपत्ति 6 गुना तक बढ़ गई है। वो इसी तरह की बढ़ोतरी लता उसेण्डी, केदार कश्यप से लेकर प्रेमप्रकाश पाण्डे जैसे नेताओं की भी कई-कई गुणा बढ़ी है। रमन राज के प्राय: सभी मंत्रियों और दिग्गज भाजपाईयों की संपत्ति में हुई कई-कई गुणा वृद्धि किसी जादुई नुस्खे से कम नहीं है।
प्रत्याशियों की संपत्ति के मामले में कांग्रेस नेताओं की संपत्ति इस पैमाने पर नहीं बढ़ी। आखिर लंबे समय तक सत्ता सुख भोगने वाले कांग्रेसियों के मुकाबले भाजपाईयों की संपत्ति इस पैमाने पर क्यों और कैसे बढ़ गये यह जन चर्चा का विषय है। जबकि भाजपा नेता स्वयं को सादगी के साथ जन सेवा और भ्रष्टाचार विरोधी बताते नहीं थकते।
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की संपत्ति बढऩे को लेकर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह तक ने सवाल उठाये थे लेकिन डॉक्टर साह बने यह कहकर सवाल को टाल दिया कि दिग्विजय सिंह तो बोलते ही रहते हैं लेकिन अब यह सवाल जनमानस में तैरने लगा है।
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पाण्डेय को संपत्ति में हुए अप्रत्याशित इजाफे पर तो स्वाभिमान मंच ने भी बवाल खड़ा कर दिया है। प्रेमप्रकाश पाण्डेय, अमर अग्रवाल, गौरीशंकर अग्रवाल, बृजमोहन अग्रवाल, राजेश मूणत सहित कई गैर छत्तीसगढिय़ा नेताओं की संपत्ति में अप्रत्याशित बढ़त को लेकर स्वाभिमान मंच ने हमले भी तेज कर दिये हैं। हालांकि कई-कई गुणा संपत्ति बढ़ाने के मामले में भाजपा के आदिवासी मंत्री भी पीछे नहीं है। केदार कश्यप, विक्रम उसेण्डी, सुश्री लता उसेण्डी जैसे आदिवासी मंत्रियों की संपत्ति में ईजाफा भी जादुइ्र ढंग से हुई है।
कांग्रेस पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते नहीं थकने वाली भाजपा के नेताओं के सत्ता में आते ही संपत्ति अर्जन की गति पर अब तो दूसरों के पाप गिनाने से स्वयं के पाप नहीं धुलने की कहावत की चर्चा है।
सूत्रों की माने तो भाजपा सरकार यानी रमन सरकार के मंत्रियों व विधायकों की बढ़ती संपत्ति का मामला भी चुनावी मुद्दा बनता जा रहा है और विरोधी दल इसे सीधे भ्रष्टाचार से जोडऩे लगा है जो आने वाले दिनों में भाजपा के विशेष प्रतिनिधि
रायपुर। भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व लाख दावा करे कि छत्तीसगढ़ की सरकार भ्रष्टाचार से दूर रही है और उनके नेता राजनैतिक सुचिता का पालन करते हुए सादगी के साथ जनसेवा में लगे हैं। लेकिन पिछले पांच सालों में मुख्यमंत्री ीााजपाई मंत्रियों और विधायकों की संपत्तियों में कई गुणा वृद्धि साफ चुगली कर रही है कि हकीकत क्या है? और जनता भी समझ चुकी है।
छत्तीसगढ़ में हो रहे विधानसभा चुनाव को लेकर नामांकन फार्म भरने का दौर अंतिम चरण में है और चुनाव आयोग के कड़े निर्देश के बादी प्रत्येक प्रत्याशियों को अपनी संपत्ति की घोषणा करनी पड़ रही है। संपत्ति की घोषणा से जो चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं व न केवल आश्चर्यजनक हे बल्कि आम आदमी को हैसान कर देने वाला है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और उनके परिवार की संपत्ति 6 गुना तक बढ़ गई है। वो इसी तरह की बढ़ोतरी लता उसेण्डी, केदार कश्यप से लेकर प्रेमप्रकाश पाण्डे जैसे नेताओं की भी कई-कई गुणा बढ़ी है। रमन राज के प्राय: सभी मंत्रियों और दिग्गज भाजपाईयों की संपत्ति में हुई कई-कई गुणा वृद्धि किसी जादुई नुस्खे से कम नहीं है।
प्रत्याशियों की संपत्ति के मामले में कांग्रेस नेताओं की संपत्ति इस पैमाने पर नहीं बढ़ी। आखिर लंबे समय तक सत्ता सुख भोगने वाले कांग्रेसियों के मुकाबले भाजपाईयों की संपत्ति इस पैमाने पर क्यों और कैसे बढ़ गये यह जन चर्चा का विषय है। जबकि भाजपा नेता स्वयं को सादगी के साथ जन सेवा और भ्रष्टाचार विरोधी बताते नहीं थकते।
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की संपत्ति बढऩे को लेकर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह तक ने सवाल उठाये थे लेकिन डॉक्टर साह बने यह कहकर सवाल को टाल दिया कि दिग्विजय सिंह तो बोलते ही रहते हैं लेकिन अब यह सवाल जनमानस में तैरने लगा है।
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पाण्डेय को संपत्ति में हुए अप्रत्याशित इजाफे पर तो स्वाभिमान मंच ने भी बवाल खड़ा कर दिया है। प्रेमप्रकाश पाण्डेय, अमर अग्रवाल, गौरीशंकर अग्रवाल, सहित कई गैर छत्तीसगढिय़ा नेताओं की संपत्ति में अप्रत्याशित बढ़त को लेकर स्वाभिमान मंच ने हमले भी तेज कर दिये हैं। हालांकि कई-कई गुणा संपत्ति बढ़ाने के मामले में भाजपा के आदिवासी मंत्री भी पीछे नहीं है। केदार कश्यप, विक्रम उसेण्डी, सुश्री लता उसेण्डी जैसे आदिवासी मंत्रियों की संपत्ति में ईजाफा भी जादुइ्र ढंग से हुई है।
कांग्रेस पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते नहीं थकने वाली भाजपा के नेताओं के सत्ता में आते ही संपत्ति अर्जन की गति पर अब तो दूसरों के पाप गिनाने से स्वयं के पाप नहीं धुलने की कहावत की चर्चा है।
सूत्रों की माने तो भाजपा सरकार यानी रमन सरकार के मंत्रियों व विधायकों की बढ़ती संपत्ति का मामला भी चुनावी मुद्दा बनता जा रहा है और विरोधी दल इसे सीधे भ्रष्टाचार से जोडऩे लगा है जो आने वाले दिनों में भाजपा के लिए खतरनाक है।
बहरहाल मुख्यमंत्री सहित भाजपाई मंत्रियों की बढ़ती संपत्ति पर जनचर्चा तेज होने लगी है अब देखना है कि इसका जवाब भाजपा कैसे देती है या जनता जवाब तैयार करेगी।लिए खतरनाक है।
बहरहाल मुख्यमंत्री सहित भाजपाई मंत्रियों की बढ़ती संपत्ति पर जनचर्चा तेज होने लगी है अब देखना है कि इसका जवाब भाजपा कैसे देती है या जनता जवाब तैयार करेगी।

सोमवार, 28 अक्तूबर 2013

संगठन पर सत्ता कट न जाए पत्ता


मेरी मर्जी के आगे सब बेबस!
विशेष प्रतिनिधि
रायपुर। पार्टी विद डिफरेंट का नारा लगाने वाली भाजपा के छत्तीसगढ़ इकाई में वहीं सब कुछ हो रहा है जिसके लिए वे नेहरू गांधी परिवार और कांग्रेस को कोसते रहे हैं। भ्रष्ट्राचार से लेकर टिकिट वितरण में मनमानी का यह आलम है कि पारी के कई नेता किनारे कर दिए गए हैं। तो कार्यकर्ता घर बैठने लगे हैं। कोयले की कालिख पूते चेहरे से लेकर नार्को सीडी का दाग और शराब ठेकेदार के द्वारा चुनाव प्रचार सब कुछ साफ दिख रहा है लेकिन जब मेरी मर्जी चले तो किसी की नहीं चलती।
छत्तीसगढ़ में हैट्रिक की तैयारी में जुटी भाजपा में जिस पैमाने पर बगावत के झंडे बुलंद हुए है वैसा कमी नहीं हुआ है। करूणा शुक्ला को मनाने की बजाय मैं नहीं मनाउंगा जैसे शब्द भी किसी ने नहीं सुना होगा और न ही भाजपा के बड़े नेता इस पैमाने पर कभी एक साथ नाराज ही हुए हैं।
छत्तीसगढ़ भाजपा में मचे इस महाभारत में धृतराष्ट्र कौन है, भीष्म कौन है और दुर्योधन कौन है! यह सवाल महत्वपूर्ण नहीं है महत्वपूर्ण यह है कि राष्ट्रीय नेतृत्व ने यह मौका कैसे आने दिया और यह सब के पीछे वजह की तलाश क्यों नहीं की गई।
बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ भाजपा में कुर्सी की लड़ाई तो पहले ही कार्यकाल से ही शुरु हो गई थी। ननकीराम कवंर, रमेश बैस, रामविचार नेताम और बृजमोहन अग्रेवाल की निगाह मुख्यमंत्री की कुर्सी में रही है लेकिन कहा जाता है कि रमन सिंह के ताकतवर होने की वजह से असंतुष्टों को तवज्जों नहीं मिली।
दूसरी पारी में रमन ङ्क्षसह इतने ताकतवर हो गए और यही से भाजपा की अंदरूनी राजनीति में उबाल आना शुरू हो गया है। असंतुष्टों की फेहरिश्त में नंदकुमार साय, शिवप्रताप ङ्क्षसह से लेकर कई नाम जुडऩे लगे। लेकिन रमन ङ्क्षसह के ताकत की वजह से गलत कामों का भी विरोध होना बंद हो गया है।
बताया जाता है कि भटगांव कोल ब्लाक आबंटन की कालिख से रमेश बैस, करूणा शुक्ला ने जरूर अवाज उठाई लेकिन उन्हें भी खामोश कर दिया गया।
इसके बाद शराब ठेकेदार बल्देव सिंह भाटिया और पार्टी को बदनाम करने वाले प्रदीप गांधी को लेकर भी सवाल उठाये जाने गले। यहां तक कि असंतुष्टों ने एक दो नहीं बल्कि 5-6 पर्चे के माध्यम से डॉ रमन सिंह और उनके ...को लेकर हमला बोला लेकिन इन लोगों से चर्चा की जरुरत ही नहीं सझा गया।
ऐसे में झीरम घाटी कांड और नार्को सीडी के मामले को लेकर भी असंतुष्टों की आवाज दबा दी गई।
बताया जाता है कि टिकट वितरण को लेकर तो डा.रमन सिंह ने साफ कर दिया था कि हैट्रिक उन्हें लगानी है इसलिए केवल उन्हें ही टिकिट दी जायेगी जिन्हें वे जीतने योग्य प्रत्याशी समझते है। राजनाथ सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने और ठाकुर लांबी के प्रभाव के आगे यहां चल रहे गड़बड़साले को  कई लोगों ने नजर अंदाज दिया और इसका परिणाम यह है कि छत्तीसगढ़ भाजपा में बगावत शुरू हो चुका है। हालांकि करूणा शुल्का, गणेशराम भगत को छोड़ कोई बड़ा नाम सामने नहीं आया है लेकिन जिस तरह से बस्तर से लेकर अंबिकापुर और खुद मुख्यमंत्री के जिले राजनांदगांव में बगावत हुए है उसकी वजह मेरी मर्जी को ही बताया जा रहा है।
बहरहाल भाजपा में लड़ाई तेज हो गई है ऐसे में चुनाव परिणाम जो भी है हमारा असर तो साफ दिखेगा।
पूनम-अवधेश को फिर टिकिट...
पिछले चुनाव में पूनम चंद्राकर और अवधेश चंदेल की टिकट काट दी गई थी। कहा जाता है कि रमन को सत्ता से बेदखल करने के अभियान में शामिल पूनम की टिकिट रमन सिंह ने ही कटवाई थी लेकिन इस बार हैट्रिक का सपना पूरा करने पूनम चंद्रकार को फिर टिकट दी गई।
पप्पू भाटिया और प्रदीप गांधी परिवार...
डॉ. रमन सिंह की प्रदेश के सबसे बड़े शराब ठेकेदार पप्पू उर्फ बलदेव सिंह भाटिया और संसद में घूस कांड की वजह से सदस्यता खोने वाले प्रदीप गांधी के नजदीकी को लेकर भाजपा नेताओं में जबरदस्त आक्रोश है। भाजपाई दबे जुबान में कहने लगे हैं कि इन दोनों की वजह  से भाजपा की छवि पर असर पड़ रहा है। राजनांदगांव जिले में तो इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है।
हारने वालों को टिकिट
पिछला चुनाव हारने वाले कई नेताओं को सिर्फ इसलिए टिकिट दी गई क्योंकि वे मुखिया के करीब है, जबकि अजय चंद्राकर से लेकर कई ऐसा नेता है जिसकी बदनामी की वजह से कार्यकर्ताओं मेें आक्रोश है।

शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

लालच बुरी बला है...


हर व्यक्ति बचपन से सुन रहा है कि लालच बुरी बला है! सत्य पर आधारित कितनी ही कहानियां सुनी-सुनाई जाती है, पर आम लोगों में न तो लालच कम हो रहा है और न ही वे लालच के फेर में अपराध करने से ही हिचक रहे हैं।
खासकर इन दिनों राजनेताओं में बढ़ते लालच से आम आदमी क्षुब्द है। उनका गुस्सा बढ़ता ही जा रहा है। अरबो-खरबों के घोआले के बाद भी उनका लोकतंत्र पर भरोसा है तो इसके पीछे यह उम्मीद है कि देर सबेर ऐसे लोगों को उनके कर्मों की सजा जरुर मिलेगी...
देश भर में नेताओं के बढ़ते लालच ने नेताओं का जो विभत्स रूप जनता के जजेहन में स्थापित किया है हम यहां उसकी चर्चा फिर कभी करेंगे, लेकिन छत्तीसगढ़ निमा्रण के बाद यहां के नेताओं ने जो अकृत संपत्ति अर्जित की है वह शर्मसार कर देने वाला जरुर है।
हम यहां किसी लालची नेता की कथा सुनाने इच्छुक है और न ही सत्ता मद में डुबे नेताओं की करतुतों पर ही अभी कुछ कहने वाले हैं। क्योंकि हर कोई जानता है कि विधायक या मंत्री बनने के पहले इनकी हैसियत क्या थी और आज क्या हो गई है।
हम यहां कोयले की कमाई में मुख्यमंत्री के शामिल होने या भाई भतीजावाद पर ही कुछ लिखना चाहते हैं और न ही गर्भाशय कांड या आँख फोडऩे वाले डॉक्टरों की घटना को ही याद दिलाना चाहते हैं क्योंकि इइन सब घोटालों पर काफी कुछ लिखा जा युका है और शायद जनता ने भी तय कर लिया होगा कि वे इस बार किसे जिताना चाहते हैं।
पिछले चुनाव में भी जनता ने जिन्हें वह पसंद नहीं करती है लेकिन संविधानिक व्यवस्था के चलते वे लोग भी विधायक बन गए या उन लोगों की सरकार बन गई जो आधे से कम वोट पाये।
यह स्थिति पूरे देश भर के राज्यों की है। 50 फीसदी जनता के विरोध में मत डालने के बाद भी वे इसलिए विधायक बन जाते हैं क्योंकि वोटों के बंटवारे की वजह से उनका वोट सबसे अधिक होता है।
छत्तीसगढ़ में गिनती के विधायक हैं जिन्हें पचास फीसदी से अधिक लोग पसंद करते हैं और डॉ. रमन सिंह की दूसरी पारी तो सिर्फ 42 फीसदी वोटों के भरोसे बनी यानी 58 फीसदी लागों ने नकार दिया था।
हम तो यहां सिर्फ उन नेताओं को याद दिलाना चाहते हैं जो लालच में अंधे होकर सिर्फ पैसा कमाने में लगे हैं और जनता के हितों की ही अनदेखी कर रहे हैं बल्कि सरकारी धनों में सेंध लगाकर अपनी तिजौरी भर रहे हैं। हम ऐसे कृत्यों को देशद्रोह मानते हैं और हमें विश्वास है कि भले ही आज के कानून के दायरे से बाहर है लेकिन देर सबेर न केवल उनको इसकी सजा मिलेगी बल्कि उन पर आंसू बहाने वाला भी नहीं होगा।
हम यह बात उन नेताओं से फिर से कहना चाहेंगे उनकी लालच की वजह से ही छत्तीसगढ़ में विकास अभी  भी कोसो दूर हो गया है। उनकी लालच की वजह से ही महंगाई बढ़ रही है, आम आदमी को सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बुनियादी जरुरतों से मरहूम होना पड़ रहा है।
नेताओं को लोकतंत्र में नौकरशाह को सही रास्ते पर काम कराने के लिए चुना जाता है लेकिन नेताओं और नौकरशाह ने अपराधियों से गठजोड़ बनाकर आम लोगों के हितों पर डाका डालने का काम शुरु कर दिया है। नेताओं ने अकूृत संपत्ति अर्जित कर ली है लेकिन वे भूल जाते हैं कि देर सबेर जनता उन्हें उनके इस बढ़ते वैभव की सजा जरुर देगी और उन्हें जेल तक जाना पड़ेगा।  क्योंकि लालच बुरी बला है और जनता यह बात अच्छी तरह जानती है, और वह भूलती भी नहीं है...
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रविवार, 6 अक्तूबर 2013

पांच साल ले मारीन लात अब खिलावत हे कुकरा भात


कस रे बइठभाल ते हा आजकल अड़बड़ मुसकावत हस। का होगे रे। बिसौहा के गोठ ल सुन के बइठमाल ह अपन हांसी ल नई रोक पाइस। अऊ कीहिस। का कहीबे कका आज कल रोज कुकरा भात खाय बर मीतल हे। भगवा अऊ खादी वाला मन रोज सम्मेलन बुलावत हे। अऊ महु ह ए सम्मेलन म पहुंच जाथौ। मोला का करेबर हे के कोन समाज के सम्मेलन हे। मै हा त भइगे अतके जानथौं के कुरसी के सेती ये नेता मन ह कुकरा भात खवावत हे।
अब वो दिन मुसलमान मन ल भगवा वालामन ह बिरियानी खवाईन। अब वोट के सेती जम्मों झन ल जोरियाय रीहिन महु हा खुसर गेंव। भइगे झन पूछ कका गोसेच-गोस ल खांयव। बिसौहा कही पारिस कस रे टुरा जानस नहीं ए सरकार ह हमर समाज बर कतेक अतीयाचार को हावंय। अतका ल सुनीस तहां ले बइठमाल घलों बिफर गे। जानथव गा। अऊ मजा ल वोट दे के बेर निकालहूं। कुछुच ल नई भुलाय हो। फेर खाय बर घलो नई छोड़व ।
ये दुनों झन के गोठ ल अड़बड़ झन सुनीन। जम्मो झन जानथे के जीतीन वहां ले पांच साल ले सरकार म बइठईया मन ह आम आदमी ल कईसे भुलाथे अऊ अपन सगा-संगी मन क तिजोरी ल कइसे भरथे। तभे त बइठमाल ह काहत रीहिस कुछुच ल नई भुलाय हो।
आजकल हमर राज म इही चलत हे। जेन ल देखबे तउने ह वोट खातिर कुकुर असन पुछी ल डोलावत हे अऊ कुछु बोल देबे तभो दांत ल दिखावत हे। नई बोले रहीबे तउनों बात म रोस देखाने वाला मन आज कल दांत निपोरत घुमत हे।
तभे त वो दिन बिरयानी खवईया मन उपन हगरू ह भड़क रहाय। में अजकल के बुजा मन तीर मान अपमान नई बाचे हे। साले मन ह खाय बर मरत हावय।
अब हगरू के गोठ ल का कबे तिहारू ह नई बतावत रीहिस के अतेक नाक लगा गे करोड़ पति राधेश्याम के टुरा ह कइसे एक ठन लेपटाप बर बिन खाय पिये लाईन म जिछुट्टा बरोबर लगे रीहिस। कुछुच के कभी नई हे। चारो डहार ले पइसा आवत हे। अतको नई सोचीन के लेपटाप ल काय करहूँ। घर म पहिलिच ले चार-चार ठन लेपटॉप हे।
राधेश्याम के टुरा ल का कईबे रामजी लाल ल देख घर म दु-दु ठन डाक्टर हे तभो ले 35 हजार वाला स्मार्ट कार्ड बनवा डारिन।
अइसने मन के सेती त सरकारी खजाना हा बोहावत हे अऊ आम आदमी ह कुछ नई पावत हे।