गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

सात पीढ़ी तो मुगल नहीं चल पाये...


सत्ता पाते ही सात पुश्तों की व्यवस्था करने का जो खेल राजनीति में चलने लगा है वह नि:संदेह शर्मनाक है। एक तरफ जब आम आदमी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है तब हमारे जनप्रतिनिधियों की अय्याशी हमें लोकतंत्र में किस रास्ते पर ले जा रहे हैं? यह सवाल एक आम आदमी के सामने यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा है।
धरा बेच देंगे गगन बेच देंगे
कलम के सिपाही अगर सो गये
तो वतन के पुजारी वतन बेच देंगे।।

राजनेताओं की करतूतों पर यह सटीक बैठने लगी है आम जन मानस आज इस बात से हैरान और परेशान है कि जिसे सत्ता सौंपे वही लूटने और अपनी सात पुश्तों की व्यवस्था में लग जाता है लेकिन मीडिया की दखलंदाजी और लोकलाज का डर न होता तो ये लोग सब बेच खाते। नये नवेले छत्तीसगढ़ में कानून व्यवस्था की बात ही बेमानी है। बढ़ते नक्सली आतंक ने तो आम लोगों का जीना दूभर कर दिया है। रमन राज में बस्तर के पांच सौ से अधिक गांव खाली हुए और लोग शरणार्थी शिविरों में रह रहे है।
भ्रष्टाचार और नौकरशाहों की मनमानी का तो यह आलम रहा है कि जूदेव, बैस, ननकीराम कंवर तक प्रशासनिक आतंक, दलाल और निकम्मा जैसे शब्दों का प्रयोग करते नजर आये। दस साल में प्रदेश में मची लूट खसोट का यह आलम रहा कि चाहे उद्योग खोलने की बात हो या कमल विहार और नई राजधानी निर्माण की बात हो सब जगह नियम कानून को ताक पर रखकर किसानों की जमीनों का अधिग्रहण किया गया। नई राजधानी में तो खड़ी फसल तक में बुलडोजर चलाया गया। जबकि जनसुनवाई के नाम की नौटंकी कर किसानों की जमीन छिन ली गई। उद्योगों को फायदा पहुंचाने पानी, बिजली, बांध, खदान, सड़क तक बेच दी गई। ओपन एक्सेस घोटाले की बात हो या कोल ब्लाक घोटाले की बात हो डॉ. रमन सिंह पर सीधे आरोप मढ़े गए लेकिन कभी कुछ नहीं हुआ। रोगदा बांध बेचे जाने को लेकर जांच भी हुई तो वह बहुमत की ताकत से उचित बता दिया गया। लोग चीखते रहे कि बांध तक बेच दी गई लेकिन किसी भी नेता को कोई फर्क नहीं पड़ा। संस्कृति की दुहाई देने वालों ने प्रदेश में सलमान खान जैसे अपराधिक छवि को तो बुलाय ही कई जगह पर अश्लील डांस के कार्यक्रम आयोजित कर शिरकत भी की। लूटने के इस खेल में सरकार ही नहीं विपक्ष की भूमिका भी रही। नेता प्रतिपक्ष को लोग मजाक में ही सही 13वें मंत्री का दर्जा देने लगे हो तो यह शर्मनाक स्थिति नहीं तो और क्या है।  भाषणों में एक दूसरों के खिलाफ तल्ख टिप्पणी करने वाले निगम से लेकर विधानसभा तक एक दूसरे के हाथों लड्डू खाते नजर आये। ऐसे में आप अपनी हताशा और निराशा के गर्त में न जाए तो क्या हो। लोगों में बेहद गुस्सा है पर वे इसलिए अपने गुस्से का इजहार नहीं कर रहे है क्योंकि उन्हें लोकतंत्र पर भरोसा है उन्हें लगता है कि कभी तो उनके जनप्रतिनिधियों में लज्जा आयेगी।