मंगलवार, 17 मार्च 2020

निगम मंडल के लिए धड़कने तेज़


बजट सत्र समाप्ति की ओर है वैसे-वैसे निगम मंडल में नियुक्ति चाहने वाले कांग्रेसियों की धड़कने तेज होने लगी है। गणेश परिक्रमा के इस दौर में किसे लालबत्ती नसीब होती यह तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को ही पता है लेकिन इस नियुक्ति को लेकर अधिकारियों की भी रूचि देखने को मिल रही है।
छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन के साथ ही कांग्रेसियों में लालबत्ती पाने होड़ मची हुई है और सवा साल होते-होते कई कांग्रेसियों की नियुक्ति टलने की पीड़ा भी बाहर आने लगी है। लोकसभा चुनाव और नगरीय निकाय में चुनाव की वजह से नियुक्ति का मामला टलते रहा है और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की बजट सत्र के बाद नियुक्ति की घोषणा से कांग्रेसी खेमे में हलचल बढ़ गई है।
सूत्रों की माने तो संगठन से जुड़े नेताओं की रूचि इसमें अधिक है। संगठन से जुड़े एक नेता का कहना है कि संघर्ष करने के दिन अब खत्म हो गये है और संघर्ष के बाद मिली सत्ता का लाभ अब उन्हें मिलना चाहिए। बताया जाता है कि एक अनार सौ बीमार की तर्ज पर कई नेता लालबत्ती के लिए लग गये हैं। हालांकि वे जानते हैं कि नियुक्ति भूपेश बघेल को ही करना है इसके बावजूद वे दूसरे प्रभावशाली नेताओं की गणेश परिक्रमा से भी नहीं चुक रहे हैं। कांग्रेस के अदरूनी सूत्रों की माने तो संगठन के कई प्रभावशाली नेताओं की रूचि भी बड़े निगमों पर है। जिन निगमों को मलाईदार माना जाता है उसमें सबसे प्रमुख खनिज निगम, गृह निर्माण मंडल, बेवरेज कार्पोरेशन, पर्यटन मंडल के अलावा रायपुर विकास प्राधिकरण भी शामिल है और इन निगमों पर कांग्रेस के महामंत्री गिरिश देवांगन, कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल, प्रवक्ता शैलेष नीतिन त्रिवेदी, आरपी सिंह, अजय साहू के अलावा पुराने दिग्गज राजेन्द्र तिवारी, सुभाष धुप्पड़, गजराज पगारिया के अलावा दो दर्जन से अधिक दावेदार है। दौड़ में वैसे तो वे लोग भी शामिल है जो चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस में शामिल हुए है लेकिन इन्हें लेकर कांग्रेस के भीतर खाने में भी विरोध के स्वर तेज हो रहे हैं।
हमारे बेहद भरोसेमंद सूत्रों की माने तो निगम मंडलों में नियुक्ति को लेकर मुख्यमंत्री ने सूची को अंतिम रुप दे दिया है और सिर्फ घोषणा करना ही शेष है। हालांकि निगमों में नियुक्ति को लेकर चर्चा इस बात की भी है कि हाईकमान का हवाला देकर सूची को कुछ दिन और लटकाया जा सकता है। 
बहरहाल कांग्रेसियों की धड़कने तेज हो चुकी है और देखना है कि नियुक्ति के बाद इसकी प्रतिक्रिया क्या होगी।

बेरोजगारों को भी नहीं छोड़ रही मोदी सरकार, अरबों की वसूली

 

0 अकेले रेलवे ने वसूले हजार करोड़ से अधिक
0 न परीक्षा ली न नौकरी दी
कौशल तिवारी
नोटबंदी और जीएसटी के चलते देश की खराब होती आर्थिक हालत के बीच केन्द्र सरकार ने बेरोजगारों को भी ठगना शुरु कर दिया है। नौकरी देने के नाम पर बेरोजगारों से भी कमाई की जा रही है। अकेले रेलवे ने रिक्त पदों में भर्ती के नाम पर एक हजार करोड़ से अधिक की राशि बेरोजगारों से वसूल किये हैं और साल बीत जाने के बाद भी न परीक्षा हुई न भर्ती।
देश की जर्जर होती आर्थिक हालात को लेकर सरकार की रीति नीति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह अपनी हर योजना को गरीबों से जोड़ती तो है लेकिन इसकी आड़ में कुछ चहेते कार्पोरेट घरानों को ही फायदा पहुंचाती है। नोट बंदी करते समय भी इसे गरीबों के हित और बड़े लोगों के खिलाफ बताकर खूब प्रचार प्रसार किया था लेकिन इसका सर्वाधिक नुकसान किसे हुआ यह किसी से छिपा नहीं है। नोटबंदी के चलते देश के अर्थ तंत्र को जो झटका लगा जिससे रोजगार के क्षेत्र में नया संकट खड़ा हो गया।
इधर केन्द्र सरकार ने भर्ती परीक्षा के नाम पर जिस तरह से बेरोजगारों को भी लुटने का निर्णय लिया है वह हैरान कर देने वाला है। रोजगार का संकट चरम पर है और सरकार रोजगार देने की स्थिति में नहीं दिख रही है। ताजा मामला रेल्वे भर्ती बोर्ड का है। रेल मंत्री पियूष गोयल ने पिछले साल यानी 2019 में रेल्वे में रिक्त पदों में चार लाख भर्ती करने की घोषणा की थी। इसके बाद रेल्वे ने बेरोजगारों से कमाने का नया तरीका ईजाद किया।
रेल्वे भर्ती बोर्ड ने रिक्त पदों की भर्ती के लिए आवेदन मंगाये और कहा कि नान टेक्नीशियन वाले 35 हजार और ग्रुप डी के एक लाख पदों पर भर्ती की जानी है। इसके तहत पांच सौ रुपए का ड्राफ्ट भी आवेदकों यानी बेरोजगारों से मांगा गया। आवेदन आन लाईन भी किया जाना था। आप विश्वास करेंगे कि इन विभिन्न पदों के लिए लगभग 2 करोड़ 49 लाख आवेदन देशभर से आये और पांच सौ रुपये के हिसाब से रेल्वे को एक हजार करोड़ से भी अधिक राशि मिली।
मॉडल कन्डेक्ट नियम के तहत 9 माह में परीक्षा की सारी प्रक्रिया पूरी हो जानी था लेकिन सालभर बाद पिछले जनवरी से ये जनवरी आ गया लेकिन परीक्षा तक नहीं हुई। पैसा सरकार के पास पहुंच गया और इस एक हजार करोड़ रुपए का ब्याज क्या होता है जरा कल्पना करीए। खुले आम बेरोजगारों से कमाने का खेल यही खत्म नहीं हुआ है इस्टर्न रेल्वे ने भी कारपेंटर से लेकर मिी तक की भर्ती के लिए आवेदन मंगाना शुरु कर दिया है।
कुल मिलाकर बेरोजगारी के इस दौर में सरकार ने बेरोजगारों से कमाने का जो फार्मूला तैयार किया है वह हैरान कर देने वाला है। क्या इस पर सुप्रीम कोर्ट को संज्ञान नहीं लेना चाहिए? क्या युवाओं को इस पर संज्ञान नहीें लेना चाहिए। क्या यह सवाल संसद में नहीं उठने चाहिए? लेकिन सरकार के इस खेल पर सभी खामोश है क्योंकि उसने इससे ध्यान हटाने सीएए एनसीआर ले आई है ताकि देश में लोग हर समस्या को भूल कर हिन्दू मुस्लिम करते रहे। सबसे आश्चर्यजनक तो यह है कि इस मामले को लेकर मीडिया घरानों ने भी सरकार की मंशा की समीक्षा नहीं की वह भी हिन्दू मुस्लिम में उलझकर रह गई है। जब सरकार नोटबंदी से लेकर हर योजना को लागू करते समय गरीबों के लिए बताकर अपनी पीठ थपथपा रही है तब इन योजनाओं से गरीबों को कितना फायदा हो रहा है इस पर चर्चा क्यों नहीं होनी चाहिए?
बहरहाल बेरोजगारों को रोजगार देने के नाम पर सरकार किस तरह से युवाओं से कमाने का धंधा कर रही है वह भले ही चर्चा का विषय न बने लेकिन गरीबों के नाम पर अमीरों को दान की नई कहानियां रोज सुनने में आ रही है।