शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

शराबखोरी की कीमत

 धरसींवा विकासखंड के गांव निमोरा में तीन मासूमों के कत्ल की गुत्थी पुलिस ने सुलझाने का दावा करते हुए किशोर युवकों को गिरफ्तार कर लिया लेकिन जिस तरह से किशोर युवकों ने नृशंस ढंग से मासूमों का कत्ल किया? उससे यह सवाल उठने लगा है कि छत्तीसगढ़ को हम किस दिशा में ले जा रहे हैं? सरकार क्या चाहती है? सिर्फ शराब से मिलने वाले राजस्व के लिए पूरी पीढ़ी को दांव पर लगाया जा सकता है?
यह सब ऐसे सवाल है जो निमोरा हत्याकांड के बाद आम लोगों को बेचैन करने के लिए काफी है। सिर्फ शराब पीने के लिए पैसों के लिए हत्या नई नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि सरकार को शराब की वजह से हो रही अशांति की खबर नहीं है लेकिन जब शराब माफियाओं के साथ अधिकारियों और नेताओं का सांठ-गांठ हो तो गांवों में शांति कैसे हो सकती है।
छत्तीसगढ़ का ऐसा कोई गांव नहीं है जहां वैध-अवैध शराब का कारोबार नहीं फल-फूल रहा है। क्षेत्रीय विधायकों से लेकर सरपंचों तक को ऐसे शराब ठिकानों से आए दिन पैसे भी मिलते रहते है इसलिए आम लोगों को हो रही दिक्कतों पर सरकार ध्यान नहीं देती। पुलिस थानों का रिकार्ड खंगालने की जरूरत नहीं है स्वयं प्रदेश के गृह मंत्री ननकीराम कंवर ने विधानसभा में यह बात स्वीकार किया है कि शराब माफियाओं के इशारे पर थानेदार चलते हैं। ऐसे गांव-गांव में परोसी जा रही जहर से युवा पीढ़ी हत्या नहीं क्या पढ़ाई-लिखाई करेंगे?
कितनी खबरें रोज छप रही है कि शराब दुकानों का विरोध हो रहा है लेकिन आम लोगों के विरोध का कहां असर होता है। राजधानी में ही आधा दर्जन से अधिक शराब दुकानों के सामने पंडाल ताने गए लेकिन सरकार ने कितनी दुकाने बंद की। लोग चिख रहे हैं खासकर महिलाएं सरकार की शराब नीति से त्रस्त हैं लोगों के घर उजड़ रहे हैं लेकिन सरकार को शराब से मिलने वाले राजस्व की चिंता है और राजस्व की चिंता से ज्यादा उस राशि की चिंता है जो शराब माफिया महीने में नेताओं और अधिकारियों को पहुंचाते है।
एक जमाना था जब छत्तीसगढ़ शांत प्रदेश कहलाता था। यहां दूसरे प्रदेश के लोग रहना बसना चाहते थे लेकिन अब शराब ने यहां की शांति भंग कर दी है। कभी गांवों के चौपालों पर दुनिया भर की चर्चा होती थी लेकिन सरकार की शराब नीति ने गांवों को अशांत कर दिया है और अब न चौपाल लगती है और न ही देश-दुनिया की चर्चा ही होती है। शराबी युवकों की टोली से आये दिन मारपीट की घटना जरूर हो रही है। कब शराब पीने के लिए किसका गला काट दिया जाएगा कोई नहीं जानता।
अब तो गांव-गांव में इसी तरह के नारे की धूम है -
कृष्ण राज में दूध मिले, राम राज में घी,
रमन राज में दारू मिले, चांउर बेच के पी।
या फिर -
तीन रूपया किलो चावल, नमक 25 पैसे
दारू गांव-गांव में बिकथे, मुड नहीं बनही कैसे
जब प्रदेश के गांवों में इस तरह के नारे लोगों के मनोमस्तिष्क पर बैठ रहा हो तो सरकार को भी राजस्व की चिंता किये बिना शराब नीति में कड़ाई बरतना चाहिए?
आश्चर्य का विषय तो यह है कि राजधानी जैसे जगह में जब शराब दुकान खोलने में नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है तब भला ग्रामीण क्षेत्रों में शराब माफिया किस हद तक हावी होंगे अंदाजा लगाना मुश्किल है। लाखे नगर हो या आश्रम, फूल चौक हो या शास्त्री बाजार कहां नियम कानून है? ऐसे में सिर्फ निमोरा का मामला सुलझ जाने की बात कहना नये खतरे को जन्म देने वाला ही होगा।

तहसीलदार ही लगा है जमीन बिकवाने में ....

मुख्यमंत्री से 8 बार मिल चुका दिनेश
 भूमाफियाओं से शासन का कितना जबरदस्त गठजोड़ है यह भाठापारा में चल रहे भूमाफियाओं के खेल से अंदाजा लगाया जा सकता है? अपनी जमीन दिनेश बेचना नहीं चाहता लेकिन कालोनी बनाने वाला नरेन्द्र भोजवानी बेचने दबाव डाल रहा है। तहसीलदार शांडिल्य भी दिनेश को मजबूर कर रहा है और मुख्यमंत्री से 8 बार मिलने के बाद भी दिनेश परेशान है।
दिनेश कुमार जायसवाल पिता लतेल जायसवाल निवासी नेहरू वार्ड भाटापारा, जिला रायपुर (छ.ग.)ने बताया कि मेरे साथ भूमाफिया, प्रशासन, पुलिस, राजस्व विभाग के अधिकारीगण अन्यायपूर्वक दबाव डालकर मेरी पैतृक जमीन पर नरेन्द्र पिता ईश्वरदास भोजवानी द्वारा अवैध रूप से कब्जा जमाकर कालोनी विकसित कर रहा है।
दिनेश की भू स्वामी हक की जमीन रकबा 0.081 हैक्टेयर खसरा नंबर 145/13 राजस्व रिकार्ड भाटापारा तहसील भाटापारा, जिला रायपुर (छ.ग.) में स्थित है, इस जमीन के सारे दस्तावेज है।
दिनेश ने बताया कि आज की तारीख में उक्त जमीन की कीमत लगभग बीस लाख रूपयों से अधिक है, मैं इस जमीन को बेचना नहीं चाहता हूं परंतु नरेन्द्र पिता ईश्वरदास भोजवानी षडय़ंत्रपूर्वक राजस्व अधिकारियों के साथ मिलकर येन-केन प्रकारेण जमीन विक्रय करने के लिए विवश कर रहा है। नरेन्द्र पिता ईश्वरदास भोजवानी द्वारा 10-11 असामाजिक तत्वों को साथ लेकर मुझसे सीमांकन आवेदन में दस्तखत करवाया, जिसकी शिकायत लेकर जब मैं भाटापारा थाना गया तो मेरी शिकायत नहीं लिखी गई। मुझे जमीन बेचने के लिए दबाव डाला गया, नरेन्द्र भोजवानी के अलावा देवेन्द्र पिता किशन सचदेव निवासी महासती रोड भाटापारा भी मेरे भाई को जिसे मैंने रहने के लिए भूखंड में घर दिया था, को बरगलाकर पूरी जमीन में कब्जा करके कालोनी बनाने के लिये प्रयासरत है। आर.आई. द्वारा इस जमीन का बार-बार सीमांकन किया जा चुका है। जिसमें रिपोर्ट अलग-अलग दी गई है।
दिनेश को राजस्व विभाग, पुलिस और प्रशासन से न्याय नहीं मिल रहा है, आवेदक का पूरा परिवार आतंक के साये में जी रहा है। भू-माफिया के लोग कभी भी आवेदक या उसके परिवार पर प्राणघातक हमला कर सकते हैं। आवेदक पर दबाव बनाने के लिये प्राणघातक हमला 24.4.2009 को किया गया था। जिसकी रिपोर्ट जब आवेदक थाने में लिखाने के लिये गया तो थोन में उक्त आशय की रिपोर्ट नहीं लिखी गई।
आवेदक को उल्टे ही 151 की धारा लगाकर जेल भेज दिया गया। निराशा और बदहाल की स्थिति में तहसीलदार से कई बार अवैध कब्जा हटाने के लिए कहा पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। अत्यधिक अवसाद के स्थिति में मैंने उक्त भूमि को किसी और को विक्रय करने के लिए नकल की मांग की तो तहसीलदार ने नकल देने के लिए मना कर दिया, जो कि नरेन्द्र भोजवानी एवं देवेन्द्र सचदेव के दबाव का ही परिणाम है।
आवेदक मुख्यमंत्री से आठ बार जनदर्शन कार्यक्रम में भी शिकायत किया मुख्यमंत्री ने आदेशित भी किया। दिनांक 10.9.2009, टोकन नं. 500509003212, दिनांक 01.10.09 टोकन नं. 500709310196, दिनांक 29.4.2010 टोकन नं. 500510000047, दिनांक 27.5.2010 टोकन नं. 500510000217, दिनांक 10.06.2010 टोकन नं. 500510000268, दिनांक 24.06.2010 टोकन नं. 500510000326, दिनांक 05.8.2010 टोकन नं. 500510000448 को मुख्यमंत्री को आवेदन दिया। कोई कार्यवाही नहीं हुई। शहर थाना भाटापार, तहसीलदार भाटापारा मुझे सहयोग ना करके भूमाफिया का मदद कर रहे है। भूमाफिया नरेन्द्र भोजवानी, ठेकेदार देवेन्द्र सचदेव दूसरों के जरिये जमीन को बेचने के लिए दबाव बना रहे हैं। तहसीलदार से मांग करने पर भी बिक्री नकल देने से मना किया जा रहा है। इससे जाहिर है कि राजस्व अमला आवेदक के साथ न्याय नहीं कर रहा है। मुझे प्रशासन से न्याय चाहिए।

विस उपचुनाव को लेकर भाजपा में बवाल, रमन पर सवाल



चावल योजना से मध्यम वर्ग त्रस्त
शराब से महिलाएं त्रस्त
मंत्रियों पर लूट-खसोट का आरोप
अधिकारी किसी की नहीं सुनते
चौतरफा अपराध से आम लोग त्रस्त
गरीबों का चावल अमीरों की दुकान पर
किसानों को वादा कर 270 रूपये बोनस नहीं दिया
 छत्तीसगढ़ में हुए पहले उपचुनाव वैशाली नगर के बाद महापौर चुनाव में झटका खा चुकी भाजपा ने इसके बाद भी सबक नहीं लिया तो संजरी-बालोद और भटगांव में होने वाले विधानसभा के उपचुनाव में उसे मुंह की खानी पड़ सकती है। बेलगाम होते अधिकारी और मंत्रियों पर लगातार लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों के अलावा किसानों को 270 रू. बोनस देने का चुनावी वादा भी भाजपा के लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है ऐसे में चावल योजना से त्रस्त मध्यम वर्ग और शराब नीति से नाराज महिलाओं ने भाजपा से मुंह मोड़ लिया तो डॉ. रमन सिंह की कुर्सी पर ही संकट के बादल घिर सकते हैं।
छत्तीसगढ़ में दलीय स्थिति में भाजपा-कांग्रेस में ज्यादा अंकों का फर्क नहीं है। दूसरी पारी के शुरूआत में ही डॉ. रमन सिंह की टीम को वैशालीनगर के उपचुनाव में कांग्रेस ने जबरदस्त पटकनी देकर भाजपा की सीट छिनने में कामयाब रही है। इसके बाद निगम-पंचायत के चुनाव में भी कांग्रेसने भाजपाई गढ़ माने जाने वाले राजधानी रायपुर, न्यायधानी बिलासपुर और संस्कारधानी राजनांदगांव में भी भाजपा को जमीन दिखा दी है एक और बड़ा निगम दुर्ग में भाजपा किस तरह से जीत हासिल की है, यह किसी से छिपा नहीं है ऐसे में प्रदेश के भटगांव और बालोद विधानसभा में होने वाले उपचुनाव में क्या होगा इसे सोचकर ही भाजपाईयों के हाथ-पांव फुलने लगे हैं।
बृजमोहन प्रभारी
भटगांव विधानसभा में उपचुनाव के लिए भाजपा ने जिस आनन फानन में दमदार मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को प्रभारी बनाया है उसे लेकर अभी से सवाल उठने लगे हैं स्वयं मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने सहानुभूति लहर की संभावना जताते हुए यहां से स्व. रविशंकर त्रिपाठी की पत्नी को प्रत्याशी बनाये जाने की बात कहकर भाजपा के एक वर्ग को नाराज कर दिया है। वहीं बृजमोहन अग्रवाल को प्रभारी बनाकर यह संकेत देने की कोशिश की गई है कि भाजपा हर हाल में चुनाव जीतना चाहता है चाहे इसके लिए पैसों की गंगा बहानी पड़े। उल्लेखनीय है कि बृजमोहन अग्रवाल प्रदेश के न केवल दमदार मंत्री माने जाते है बल्कि उनके विभागों पीडब्ल्यूडी, पयर्टन, संस्कृति और शिक्षा विभाग में दमदारी से घोटाले हुए है। दागदार और विवादास्पद लोगों को इन विभागों के कई प्रमुख पदों पर बिठाने के अलावा भी अग्रवाल पर राजधानी के निगम सभापति चुनाव में भी खरीद फरोख्त के आरोप लगे हैं।
बालोद का प्रभारी शीघ्र
जिस दिन भटगांव का प्रभारी बृजमोहन अग्रवाल को नियुक्त किया जा रहा था उसी दिन ही बालोद के विधायक मदन साहू का निधन हुआ इसलिए भाजपा ने अभी तक यहां प्रभारी नियुक्त नहीं किया है।
कांग्रेस की रणनीति
दोनों ही विधानसभा में होने वाले उपचुनाव को लेकर कांग्रेस ने भीतर ही भीतर रणनीति बना ली है। चुनाव कांग्रेस के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दोनों सीटें जीतकर वह रमन सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है और अपनी गरिमा भी वापस ला सकती है।
कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक रमन सरकार के कारनामों का प्रचार प्रसार कर चुनाव जीतने की रणनीति है जिसके तहत उद्योगपतियों और व्यापारी वर्ग को रमन सरकार द्वारा बढ़ावा देने, किसानों से वादाखिलाफी करने, किसानों की जमीन जबरिया अधिग्रहण करने के अलावा रमन सरकार की शराब नीति से त्रस्त होती जनता और गांवों की शांति छीनने का प्रचार प्रसार भी जोर शोर से किया जा सकता है।
यहीं नहीं बढ़ते नक्सली आतंक और चावल योजना से त्रस्त होते मध्यम वर्ग भी भाजपा के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है।
बहरहाल दोनों सीटों पर एक साथ होने वाले इस उपचुनाव में भले ही भाजपा की सत्ता न छिने लेकिन डॉ. रमन सिंह की कुर्सी पर दांव जरूर लग सकता है।