गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

सरोवर हमारी धरोहर...!

पहले तीन विश्व युद्ध का कारण बताने वाले अम्सर कहते है कि चौथा विश्व युद्ध यदि हुआ तो इसकी वजह पानी होगा। जल ही जीवन है, पानी बगैर न उबरे मोती मानूस चून और न जाने जल की महत्ता को लेकर कितनी ही बाते प्रचलित है लेकिन छत्तीसगढ़ की राजधानी में जिस बेतरतीब से तालाबों को पाटा जा रहा है और उस पर आम लोगों की चुप्पी आश्चर्यजनक है। तालाबों के शहर के रूप में प्रचलित रायपुर में गिरते जल स्तर को लेकर बड़े-बड़े विद्वान चिंतित है। सरकार भी सरोवर हमारी धरोवर के नारे लगाती है हर साल शासन प्रशासन तालाबों की सफ ाई के लिए चिल्ल पौं मचाता है लेकिन इसके बावजूद शहर के तालाबों की जो दुर्दशा हो रही है वह प्रशासन की नियत पर तो सवाल उठाता ही है शहर की चिन्ता करने वालों की भूमिका पर भी सवाल उठाता है। तालाबों की बेशकीमती जमीनों पर जिस तरह से भूमिकाओं की नजर है वह किसी से छिपा नहीं है। नगर निगम की भूमिका भी कम संदेहास्पद नहीं है। कई बार तो यह लगने लगता है कि वह भूमिकाओं के ईशारे पर तालाबों को पाटने पर आमदा है।
तालाबों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट गाईड लाईन की जिस तरह से अनदेखी की जा रही है वह न केवल हैरान कर देने वाला है बल्कि इस तरफ  से समाज सेवी संस्थाओं की अनदेखी भी आश्चर्यजनक है। राजधानी के गिरते जल स्तर को लेकर चिंता जाहिर करने वालों को शहर की तालाबों को पाटने की साजिश भी यदि नजर नहीं आ रही है तो इसे क्या कहा जाए। एक तरफ  स्थानीय प्रशासन तालाबों के सौन्दर्यीकरण के नाम पर हर साल लाखों करोड़ों फू क रही है तो दूसरी तरफ  नालों का पानी तालाब में डाला जा रहा है इससे न केवल तालाबों की हालत खराब होने लगी है बल्कि वह धीरे-धीरे पटने भी लगा है।
    महंत लक्ष्मी नारायण दास वार्ड स्थित प्रहलदवा और खो-खो तालाब में नाले का पानी डाला जा रहा है। जबकि इन दोनों तालाब को निस्तारी केे रूप में हजारों लोग उपयोग करते हैं। बाताया जाता है कि पानी की कमी की वजह से लोग निस्तारी को मजबूर है जबकि तालाब में जलकुंभी भी अपना पैर पसार चुकी है। दूसरी तरफ  तालाब पर कई भूमाफि याओं की नजर है और वे इन तालाबों सुख रही जमीनों पर कब्जा करने की कवायद में लगे हैं।
    दूसरी तरफ  आमातालाब को पाटने की जो कोशिश हो रही है वह भी आश्चर्य जनक है। बाताया जाता है आमातालाब को पाटकर काम्प्लेक्स बनाने की योजना है और इसी योजना के तहत तालाब को पाटा जा रहा है। सूत्रों की माने तो शहर भर से निकलने वाली गंदगी और मलबे से तालाब को पाटा जा रहा है। हालांकि तालाब पाटे जाने का विरोध आसपास के लोग कर रहे हैं लेकिन मलबा डालने का काम गुपचुप तरीके से रात में किया जा रहा है।
    इसी तरह तेलीबांधा तालाब के एक हिस्से को सौन्दर्यीकरण के नाम पर पाटा जा रहा है इस पर कई लोगों ने आपत्ति तक जातई है लेकिन यहां भी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की सरे आम अनदेखी की जा रही है। ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने तालाबों को पाटकर काम्प्लेक्स बनाने की नीति के खिलाफ  कड़ा रूख अख्तियार किया है और तालाबों की यथास्थिति बनाये रखने का स्पष्ट निर्देश दिया है। सूत्रों की माने तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद तालाब पाटे जाने का काम तो सीधे तौर पर रूक गया है लेकिन साजिशपूर्वक इसे अंजाम दिया जा रहा है। कभी तालाबों का शहर कहलाने वाले रायपुर में कई तालाब पाटे गये। 
    लेंडी तालाब, रजबंधा तालाब को पाटकर जिस तरह से काम्प्लेक्स बनाये गये वह किसी से छिपा नहीं है। और विशेषज्ञों की माने तो रायपुर में गिरते जलस्तर की एक बड़ी वजह तालाबों का पटना है और इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले दिनों में इसके भीषण दुष्परिणाम भुगतने होंगे।