सोमवार, 16 अप्रैल 2012

ग्राम सुराज का सच...


हर साल की तरह इस साल भी रमन सरकार का ग्राम सुराज शुरू हो रहा है, करोड़ो रूपए फूंके जाएंगे, गांव-गांव में जाने की नौटंकी होगी और गांव वाले दमाशाबीन स्वयं को ठका सा महसूस करेंगे। लेकिन इस बार का अभियान थोड़ा अलग है, कांग्रेस वादा निभाने दबाव बनाएंगी तो सरकार कोयले की कालिख पोछने के अलावा अदिवासियों की पिटाई व हरिजनों के आरक्षण में कटौती की काट भी देखेगी।
पिछले साल की अभियान का कटु अनुभव रहा है अधिकारियों को कई जगह बंधक बनाए गए थे और इस बार कांग्रेस भी वादा निभाओं नारे के साथ कूद गई है। तब अभियान कैसे पूरा होगा, कहना कठिन है।
हर तरफ से गले तक भ्रष्टाचार में डूबी सरकार का यह अभियान तब चुनौतिपूर्ण हो जाता है जब सरकार के मुखिया डॉ रमन सिंह पर कोयले की कालिख पूती हो। सर्व आदिवासी समाज के पिटाई का मामला गर्म है जब सतनामी समाज भी बाह मोड़े खड़ा हो तब अधिकारियों के लिए गांव से चुपचाप लौट आना एक सुखद बात होगी।
वैसे हम इसी जगह पर कई बार यह बात कह चुके है कि ग्राम सुराज नौटंकी के अलावा कुछ और नहीं है। अधिकारियों के लिए पिकनिक और सैर करने का जरिया बन चुके इस अभियान से हमे तो नहीं लगता कि सरकार को भले ही राजनीतिक फायदा मिले, आम जनता का कुछ भला नहीं होने वाला है।
सालों से लंबित लोगों की दो-चार मांगें मान लेने और पटवारी, गुरूजी पर निलंबन की गाज गिराने वालों को सफलता कहने वालों को राजधानी में बैठे भ्रष्टाचार के मगरमच्छो की तरफ भी एक बार देख लेना चाहिए। मनोज डे से बाबूलाल अग्रवाल और न जाने कितने भ्रष्ट लोग मलाईदार पदों पर बैठे है। अपने करतूतो से बदनाम करने वाले संविदा में नौकरी कर रहे है। उनकी तरफ देखकर ही कोई निर्णय लिया जाना चाहिए।
सीएजी के रिपोर्ट ने सरकार के सच का जो खाल खिचा है। उसके बाद भी सरकार ग्राम सुराज के नाम पर संगीनों के साये में अपना राजनीतिक फायदा देख रही है तो इसे हम दिवालिया ही कहेंगे।