मंगलवार, 31 मार्च 2020

जीना है तो कैद हो जाइये...


राशन दुकान में टूट पड़ी भीड़ रामनगर 

आउटर में फँसे ट्रक वालों को भोजन वितरित करते हुए समाजसेवी अशोक गोलछा और  उनके साथी 

जब सरकार के स्तर पर गलतियों का अंबार हो तो आम लोगों के घरों में रहने का कितना फायदा मिलेगा। घरों में रहने के बाद भी वे कितने सुरक्षित है कहना कठिन है?
हम यहां मोदी सरकार की गलतियां नहीं गिनाने बैठे हैं बल्कि लोगों को सचेत कर रहे हैं कि वे सरकार की तरफ से हुई इतनी गलतियों के बाद भी गलती न करे। घर में स्वयं को कैद कर लें। जरूरत हो तभी घर से निकले और सामान खरीदने के बाद घर वापसी त चेहरों को हाथ न लगाये। सामानों को अच्छी तरह धोकर ही उपयोग करे। एक बार बाहर निकलने के बाद वापसी में कोशिश करें की हाथ को साफ करके ही घर में घुसे। क्योंकि जिस स्तर पर गलतियां हुई है हमारी छोटी सी लापरवाही हमें मौत के मुंह में ढकेल सकती है। 
हालाँकि यह वक़्त सरकार की ग़लतियाँ गिनाने का नहीं है लेकिन यक़ीन मानिए की इस देश के लोगों को लाठी का डर न होगा तो वे घर में ही न रहे लेकिन सरकार ने भी कब उनके लिए सोचा यही वजह है कि वे कुछ पा जाने के लालच में सड़कों पर हैं क्योंकि अब उनको रोज़गार कब मिलेगा इसका ठिकाना भी तो नहीं है ,हर तरफ़ जब अंधेरा नज़र आए सरकार से कोई उम्मीद न हो तो लोग क्या करे ,सच तो यह है कि ग्रामीण भारत ही असली भारत है लेकिन लाँकडाउन में इसकी ही अनदेखी की गई । सरकार ने तो कह दिया किसी का वेतन न काटे लेकिन क्या शिकायत आने पर वह वेतन नहीं देने वाले के ख़िलाफ़ कार्रवाई करेगी सच मानिए वह वेतन भी नहीं दिला पाएगी ।इस देश में मध्यम वर्ग भी है उनके लिए क्या किया गया , कुछ नहीं उनका भी रोज़गार गया पैसों की उन्हें भी दिक़्क़त है
पहले ही जनसंख्या विस्फोटक के कगार पर खड़े इस देश में कोरोना को लेकर सरकार की रीति नीति अक्षम्य है लेकिन जो गलतियां हुई है उससे आम लोगों को सबक लेकर कार्य करना है स्वयं को और देश को सुरक्षित रखने का इससे बेहतर कोई उपाय नहीं है।
चीनी और अमेरिकी वायरस से वैसे भी समूचा विश्व परेशान रहा है। वे कब क्या कर दे इनका कोई भरोसा नहीं है। ऐसे में इस देश के लोगों के साथ किस हद तक राजनीति हुई है यह बताने की जरूरत नहीं है। इन दिनों जब पूरे विश्व में कोरोना की त्रासदी से आम लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है तब यह जान ले कि ऐसी कौन-कौन सी गलतियां है जिसकी वजह से स्वयं को पूरी तरह कैद में रखने की जरूरत है।
30 जनवरी को इस देश में पहला केस सामने आता है लेकिन इसके 50 दिन बाद ही लॉक डाऊन किया जाता है। इसके पीछे अमेरिकी वायरस के स्वागत या मध्यप्रदेश में सरकार बनाने की छिपी मंशा के बजाय इसकी गंभीरता को सरकार के स्तर पर कम आंकना ही कहा जा सकता है।
पूरी दुनिया में जब कोरोना को लेकर चिंता जताई जा रही थी और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे महामारी घोषित कर दिया था तब सरकार ने विदेश से आने वालों की जांच में गंभीरता नहीं दिखलाई। लोग बीमारी लेकर अपने-अपने शहरों तक बेधड़क लौट गये। लॉक डाउन से पहले सरकार ने यह नहीं सोचा कि 15 से 20 करोड़ वे लोग जो रोजी-रोटी के चक्कर में शहरों में है उनकी वापस कैसे होगी। या उन्हें वापसी से कैसे रोका जायेगा। यही वजह है कि दिल्ली से लेकर हर राज्यों की सरहदों में भीड़ बढ़ गई और परेशान लोग सैकड़ों किलोमीटर पैदल ही निकल पड़े।
सरकार की सबसे बड़ी गलती तो यह भी है कि शुरु में इसकी गंभीरता नहीं समझने की वजह से अचानक लॉक डाउन की गलती करनी पड़ी। प्रधानमंत्री के संबोधन में दैनिक उपयोग को लेकर कोई बात नहीं करन से अफरा-तफरी का माहौल हो गया। कालाबाजारियों को मौका मिल गया।
सवाल यह नहीं है कि सरकार ने गरीबों के लिए एक लाख सत्तर हजार करोड़ का पैकेज दिया है सवाल यह है कि यह हर जरूरतमंद तक कैसे पहुंचेगा। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि तीस जनवरी को पहला केस आने के बाद लाक डाउन के 50 दिन तक जो लोग विदेशों से आकर  छुप गये उनमें से जिन्हें बीमारी थी वह कहां-कहां है यह भी किसी को पता नहीं है। ऐसे में स्वयं को कैद रखें। 
आश्चर्य की बात तो यह भी है कि अभी भी आयोजन हो रहे हैं। मस्जिदों व अन्य स्थानों से विदेशी पकड़ा रहे हैं और कुछ लोग अभी भी हिन्दू-मुस्लिम या राज्य सरकारों को बदनाम करने में लगे है लेकिन सच यही है कि गलतियां उपर से हुई है और स्वयं को कैद में रखने के अलावा कोई उपाय नहीें है।यक़ीन मानिए यदि तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने हल्ला न मचाया होता तो दिल्ली की दोनो ही सरकारें अभी भी सोते रहती इसलिए प्लीज़ स्वयं को क़ैद कर लें।