शनिवार, 3 अप्रैल 2010

घर के जोगी जोगड़ा , आन गांव के सिध्द

संवाद में भारी अव्यवस्था
सरकार और जनता के बीच सेतु का काम करने वाले जनसंपर्क और संवाद में इन दिनों भारी अव्यवस्था है। विभाग के पदाधिकारियों द्वारा पैसे खाकर दूसरे प्रांत के कर्मियों को नियमित करने और छत्तीसगढ़ के कर्मचारियों को नौकरी से निकाले जाने का मामला गरमाने लगा है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ संवाद के द्वारा शासन के नियमों को ताक में रख कर छत्तीसगढ़ के बाहर के ऐसे लोग जिनके पास संबंधित पद की शैक्षणिक योग्यताएं और रोजगार पंजीयन नहीं हैं उन्हें नियमित करने की कोशिशें लंबे समय से की जा रही है। समानता का संवैधानिक अधिकार छीने जाने के खिलाफ बोलने वाले कापी राईटर मोहन मिश्रा को सात साल बाद नौकरी से निकाल दिया गया है ताकि सुखदेव राम को लाखों रुपए कमीशन लाकर देने वाले छत्तीसगढ़ के बाहर के कर्मचारियों को नियमित करने में कोई बाधा नहीं आए।
करीबन तीन पहले छत्तीसगढ़ मूल के कर्मचारियों की संविदा अवधि तीन-तीन महीने और छत्तीसगढ़ के बाहर के ऐसे कर्मचारियों जिन्हें काम नहीं आने के कारण नौकरी से निकाले जाने का प्रस्ताव था उनसे पैसे लेकर उनके काम को सर्वश्रेष्ठ बताकर तीन-तीन साल के लिए संविदा अवधि बढ़ा दी गई थी। यहां के कापी राईटर मोहन मिश्रा ने इस अत्याचार के खिलाफ छत्तीसगढ क़े कर्मचारियों को खड़े करने की कोशिश की थी जिसके बाद छत्तीसगढ संवाद के अध्यक्ष डा. रमन सिंह के आदेश से छत्तीसगढ़ के कर्मचारियों की संविदा (तीन-तीन महीने संविदा वाले) एक-एक साल के लिए बढ़ाई गई। नियमित पदों पर भर्ती के लिए नए सिरे से भर्ती प्रक्रिया अपनानी पड़ती है विज्ञापन निकालकर आवेदन आमंत्रित करके लिखित परीक्षा और इंटरव्यू किए जाने का नियम है। उक्त नियम का पालन करते तो उन्हें कमीशन की कमाई देने वाले छत्तीसगढ़ के बाहर के कर्मचारी सव्यसांचीकर, शरदचंद्र पात्र, किशोर गनोदवाले, के.एम. ललिता वापस संवाद में नजर नहीं आएंगे। दिनांक 19-1-2005 को अध्यक्ष छत्तीसगढ़ संवाद डॉ. रमन सिंह के समक्ष आठ कर्मचारियों द्वारा प्रस्तुत आवेदन उल्लेख किया गया था कि छत्तीसगढ़ के बाहर के पांच लोगों सव्यसांचीकर (बंगाल), शरदचंद्र पात्र (उड़ीसा), किशोर गनोदवाले (महाराष्ट्र), के.एम. ललिता और जमीनल चौहान (राजस्थान) की संविदा अवधि तीन-तीन साल के लिए बढ़ा दी गई है। छत्तीसगढ़ के रहवासी मोहन मिश्रा, गोकुल ध्रुव, हेमंत मांजरे, अंजुरानी गोंडाने, सनत कुमार क्षत्री, चंद्रशेखर साहू, द्रोण कुमार कौशल और नीला ध्रुव की संविदा अवधि मात्र तीन-तीन महीने बढ़ाई गई है। उक्त आठ कर्मचारियों ने भी तीन-तीन साल संविदा बढ़ाने की मांग डॉ. सिंह से की थी लेकिन 1-1 साल के लिए उनकी संविदा बढ़ाई गई।
बताया जाता है कि बाहर के जिन पांच कर्मचारियों की संविदा कर्मचारियों की संविदा 3-3 साल बढ़ाई गई पहले उन्हें काम नहीं आने के कारण नौकरी से निकाले जाने का प्रस्ताव सुखदेवराम के वरिष्ठ अधिकारी ने रखा था लेकिन रातों-रात उनका काम सर्वश्रेष्ठ हो गया और संवाद के बोर्ड के सदस्यों को बिना जानकारी के ही इस बात से सहमत होना बताया गया। सुखदेवराम के इस कुकर्म को पुष्ट करने वाली बात यह भी है कि उक्त पांच कर्मचारियों में दो ऐसे हैं जो फाईलों को चढ़ाने उतारने के काम करते थे। बाकी के तीन लोग बड़े पदों से हैं इससे यह साबित होता है कि छोटे पद पर काम करने वाले अच्छे से काम करने वाले नहीं हो सकते हैं। छत्तीसगढ़ संवाद के कार्यालय आदेश के अनुसार दिनांक 4 अक्टूबर 2001 को भर्ती किए गए सभी संविदा कर्मियों को भर्ती के समय आरक्षण नियमों का पालन नहीं किए जाने के कारण दिनांक 16 सितंबर 2002 को (दिनांक एक अक्टूबर 2002 के संविदा अनुबंध की शर्त क्रमांक 18 का हवाला देते हुए) सेवामुक्त कर दिया गया था। इसके बाद दो पदों को छोड़कर बाकी के लिए विज्ञापन निकाला (सभी पदों के लिए निकाला जाना था)। प्रकाशन विशेषज्ञ और लेखाधिकारी पदों का विज्ञापन भी निकाला जाना था, क्योंकि इन पदों पर काम करने वालों सव्यसांचीकर और शरदचन्द्र पात्र को अन्य कर्मचारियों के साथ ही 19 सितम्बर 2002 को सेवामुक्त कर दिया गया था। दोबारा भर्ती में उक्त कर्मचारी (अनिवार्य शैक्षणिक योग्यता नहीं होने के कारण) वापस नहीं आ सकते थे। इसलिए सव्यसांचीकर और शरदचन्द्र पात्र से रिश्वत लिया और बिना भर्ती प्रक्रिया के दिनांक 12 अक्टूबर 2002 से संविदा नियुक्ति बढ़ा दी। बाकी कर्मचारियों को विज्ञापित पदों के लिए फिर से आवेदन करके भर्ती प्रक्रिया से गुजरना पड़ा जिससे कुछ कर्मचारी वापस संवाद में नियुक्त नहीं हो पाए। अनिवार्य योग्यता नहीं होने और फर्जी अनुभव प्रमाण पत्रों की जानकारी होने पर सी.के. खेताम तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने सुखदेवराम को उक्त कर्मचारियों के प्रमाण पत्रों की जांच पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय से कराने के लिए निर्देश किया था। लेकिन सुखदेवराम ने ऐसा नहीं किया क्योंकि वे उक्त कर्मचारियों से रिश्वत खा चुके थे। प्रकाशन विशेषज्ञ पद पर भर्ती के लिए निकाले गए विज्ञापन की छायाप्रति के अनुसार संबंधित पद के लिए प्रिंटिंग टेक्नालाजी में डिग्री या डिप्लोमा अनिवार्य है। सुखदेवराम द्वारा इस पद पर पदस्थ किए गए बंगाल निवासी सव्यसांचीकरण द्वारा प्रस्तुत आवेदन में प्रिंटिंग टेक्नालॉजी में कोई योग्यता हासिल करने का उल्लेख नहीं है। रोजगार पंजीयन भी प्रमाण के साथ संलग्न नहीं है। मतलब पढ़ाई ऐसे फर्जी विश्वविद्यालय से की गई थी उसका रोजगार कार्यालय में पंजीयन नहीं हो सकता था। अनुभव प्रमाण पत्र की छायाप्रति संलग्न है, जिस संस्था ने अनुभव प्रमाण पत्र बनाया है। उसे खुद को बने ही करीब 3 साल हुए थे। दरअसल इसमें भी एक सौदा हुआ था जिसके अनुसार यहां नियुक्ति के बाद उक्त संस्था को अनैतिक रुप से लाभ पहुंचाने के लिए सव्यसांची द्वारा अब तक शासन को लाखों का चूना लगाया जा रहा है।
बताया जा रहा है कि आज उक्त अनुभव प्रमाण पत्र देने वाली संस्था युगबोध प्रकाशन को भ्रष्ट तरीकों से लाभ पहुंचाया जा रहा है। फर्जी तरीके से नौकरी कर रहे उक्त कर्मचारियों के साथ मिलकर सुखदेवराम द्वारा संवाद से होने वाले कामों में क्वांटिटी और क्वालिटी की हेराफेरी करके और न जाने कितने तरीकों से शासन को लाखों-करोड़ों का चूना रोज लगाया जा रहा है।