मंगलवार, 12 जनवरी 2021

मी लार्ड... ये समर्पण ध्वनि है...!


 

किसान आंदोलन को लेकर जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने बीच का रास्ता निकालने की वकालत की वह हैरान कर देने वाला है। और कई तरह के सवाल भी खड़ा करने वाला है। आखिर सुप्रीम कोर्ट ने बीच का रास्ता निकालने की वकालत करने की बजाय आंदोलन को लेकर कोई बड़ा फैसला करने से क्यों हिचक रही है। सवाल यह नहीं है कि सरकार के रवैये को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी जब नाराज है तो वह सीधे कानून को गलत क्यों नहीं कह देती और न ही सवाल आंदोलन में शामिल बूढ़े-बच्चों या महिलाओं का है।

सवालतो यही है कि आखिर सुप्रीम कोर्ट को किस बात का इंतजार है। क्या संविधान में मिले आम आदमी के अधिकारों की रक्षा नहीं की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से महिलाओं और बच्चों की बात कही है, उससे सवाल यह उठता है कि सुप्रीम कोर्ट यह कैसे भूल सकती है कि किसानी के कार्य में घर का एक-एक सदस्यों का भागीदारी होती है, हल जोतने से लेकर कटाई में और खेत में खाना पहुंचाने की स्थिति में परिवार के बच्चे महिलाएं शरीक होती है।

सवाल यह नहीं है कि सरकार आंदोलन को खत्म करने के तरीके ढंूढ रही है जबकि सुप्रीम कोर्ट को इस सवाल को ध्यान में रखना चाहिए कि आखिर जो विपक्ष संसद में संशोधन की मांग कर रही थी उसे अनसुना कर चोर दरवाजे से कानून बनाने की कोशिश क्यों हुई फिर संसद में संशोधन से इंकार करने वाली सरकार आंदोलन के बाद संशोधन के लिए क्यों तैयार हो गई है।

यानी इस देश में बहुमत का दम्भ भरने वाली सरकार को आंदोलन से ही झुकाया जा सकता है।

ऐसे कितने ही सवाल है जो सुप्रीम कोर्ट को ही कटघरे में खड़ा कर रही है? आखिर सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं कह रही है कि कानून गलत है उसे लागू करने का तरीका गलत है। सवाल कई है, और यही हाल रहा तो सुप्रीम कोर्ट की विश्वसनियता पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगेगा।

यह समर्पण ध्वनि है

साफ दिख रहा है 

किसानों का दर्द

लेकिन सत्ता को इससे

क्या लेना देना

वर्तमान भूत और

भविष्य को कुचलने

की कोशिश का

एहसास उन्हें भी है

जो न्याय की वकालत करते है

लेकिन राजा के पीछे

खड़ी चतुरंगी सेना

को सत्ता से मोह है

और न्याय ठिठक सा गया है।

राजा के मन की बात

न समझ में आये

तब भी ताली बजानी पड़ती है

क्योंकि यह समर्पण ध्वनि है

दौर है, समर्पण ध्वनि है।