शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

अपराध से गठजोड़

छत्तीसगढ़ कभी शांत इलाका माना जाता था। तब यहां की पुलिस पर अपराधियों से गठजोड़ के आरोप नहीं लगते थे। कभी राजनैतिक दबाव में अपराधियों को छोड़ना पड़ जाए तो बात अलग थी लेकिन राय बनने के बाद जिस तरह से थानों की बोली लगने लगी है उसके बाद तो संगठित अपराध के क्षेत्र में ईजाफा हुआ है। एक तरफ थाने की भारी भरकम बोली और दूसरी ओर नक्सली जिले में पदस्थापना के खौफ ने यहां के कानून व्यवस्था की धाियां उड़ा दी है। अब राजधानी में ही पुलिस वाले अपराधियों से किस तरह से गलबट्टियां कर रहे हैं यह आम आदमी तक को मालूम हो गया है। हाल ही में शिव सेना प्रमुख धनंजय सिंह परिहार के होटल में हुई मारपीट के बाद तो स्पष्ट हो गया कि पुलिस किस तरह से राजधानी को अपराध का गढ़ बनाना चाहती है।
इस होटल में बगैर अनुमति के महिनों से डांस बार चल रहा था। शहर के हर व्यक्ति को मालूम था लेकिन पुलिस यह कहे कि उनकी जानकारी में नहीं थी तो यह कोई भरोसा नहीं करेगा। बल्कि यह डांस बार चलाने के एवज में जिस तरह से थाने से लेकर वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को पैसा दिया जाता था। इसके अलावा यहां आए दिन होने वाली मारपीट को निपटाने का काम भी पुलिस करते रही है। वह तो भाजपा अध्यक्ष प्रभाष झा के बेटे की करतूत थी जो मामला उपर तक जा पहुंचा और पुलिस को कार्रवाई करनी पड़ गई वरना पुलिस तो पहले ही पैसे के बोझ में इस अनैतिक कार्य को प्रोत्साहन कर रही थी। ऐसा नहीं है कि इस तरह का संरक्षण पहली बार दिया गया है। कभी अन्नू-नब्बू का मामला शहर को मालूम है कि किस तरह से पुलिस उनके खिलाफ कार्रवाई करती थी। देवेन्द्र नगर के एक अर्धशासकीय कर्मी की दादागिरी को भी शहर देख रहा है जमीन से होटल और केबल से सुपारी देने के आरोप किसी से छिपा नहीं है। थानों में जब रिपोर्ट ही नहीं लिखी जाए तो ऐसे लोगों के हौसले तो बढ़ेंगे ही।
राजधानी बनने के बाद अपराध बढ़ा है। शांत माने जाने वाले इस क्षेत्र में जमीन से लेकर अन्य क्षेत्रों में वर्चस्व की लड़ाई बढ़ी है और इन्हें नेताओं से लेकर पुलिस वालों की ओर से खाद-पानी दिया जा रहा है। खुलेआम रंगदारी के किस्से भी आने लगे हैं। पैसों के बल पर और राजनैतिक संरक्षण ने जिस तरह से राजधानी के शांत फिजां में आग लगाने का काम किया है वह आगे जाकर गंभीर हो जाएंगे। सबसे यादा बोली लगने वाले थानों पर क्या किसी ने निगाह डाला है कि यहां दूसरे प्रदेश से आए अपराधी किस तरह से फल-फूल रहे है। वहां से फिर ये शहर की ओर कूच करते हैं और शहर के नामचीन कहलाते हैं। राजनैतिक संरक्षण हो या पुलिसिया गठजोड़ कम से कम खुलासे के बाद तो कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन बेशर्मी की हदें पार हो चुकी है अपना उल्लू सीधा करना हो तो मामूली सट्टे की खबर पर थानेदार निलंबित कर दिए जाते हैं लेकिन यदि पैसे फेंके जाए तो डांस बार और जानलेवा हमले के बाद भी थाने वाले बख्श दिए जाते हैं। छत्तीसगढ़ में चल रहे इस अंधेरगर्दी की हालत यह है कि जब पुलिस अधिकारी ही दागदार हो तो आम आदमी अपनी सुरक्षा की गुहार किससे करे।