शनिवार, 26 जून 2021

कश्मीर न नीयत न विश्वास

 

धारा 370 हटने के बाद केन्द्र की मोदी सत्ता ने जम्मू कश्मीर के नेताओं के साथ बैठक की। बैठक में जिस तरीके से कश्मीर के नेताओं ने केन्द्र की नियत पर सवाल उठाते हुए अविश्वास की लकीर खीची है उसका परिणाम क्या होगा अभी कहना जल्दबाजी होगी लेकिन इस बैठक  के बाद जो सवाल उठे हैं उसके बाद तो मोदी सरकार की नियत पर ही सवाल उठने लगे हैं। ये सवाल सिर्फ कश्मीर के नेता ही नहीं उठा रहे हैं बल्कि सालों भाजपा का साथ देने वाले कश्मीरी पंडित भी सवाल उठा रहे हैं।

सवाल यह नहीं है कि मोदी सत्ता ने बैठक उन लोगों के साथ क्यों की जिन्हें कैद करके रखा गया था या जिन्हें गलत कहते रही है। सवाल यह है कि क्या केन्द्र सरकार सचमुच कश्मीर की भलाई के लिए कार्य करना चाहती है तो फिर उसने कश्मीरी पंडितों के लिए धारा 370 हटने के बाद क्या किया, धारा 370 हटने के बाद कश्मीर के विकास के लिए क्या किया, और आगे वह क्या करना चाहती है। 

बैठक में जिस तरह से कश्मीरी नेताओं ने आक्रोश व्यक्त किया और मोदी सत्ता की नियत पर सवाल उठाये उसके बाद भी बैठक में मोदी सत्ता ने कश्मीर की शांति के लिए कोई योजना को सामने क्यों नहीं लाया। बैठक में केन्द्र ने क्यों नहीं बताया कि विस्थापित कश्मीरी पंडितों को किस तरह से पुर्नवास करेगी और चुनाव कब करायेगी। ऐसे में क्या यह नहीं माना जाए कि केन्द्र ने बैठक इसलिए बुलाई क्योंकि कश्मीर के हालात को लेकर अंतर्राष्ट्रीय मंच में सवाल उठने लगे थे, नेताओं को जेल में ढूंसने, इंटरनेट सेंवा बंद करने, रोजगार व्यवसाय ठप्प होने और लोगों का जीवन मुश्किल हो जाने का सवाल अमेरिका के उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने  उठाये थे जिससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की थू-थू होने लगी थी।

या फिर अगले साल होने वाले उत्तरप्रदेश के चुनाव को ध्यान में रखकर यह बैठक बुलाई गई थी। हो सकता है क्योंकि भाजपा की राजनीति में कश्मीर, पाकिस्तान और हिन्दू-मुस्लिम ही केन्द्र में रहा है तब सवाल यह है कि बैठक में कश्मीरी नेताओं के स्वर को उत्तरप्रदेश के चुनाव में इस्तेमाल किया जाए। तब सवाल यही है कि आखिर केन्द्र सरकार कश्मीर को लेकर कोई ठोस योजना क्यों नहीं बना रही है। जो कश्मीरी पंडित भाजपा पर इतना भरोसा करती है धारा 370 हटने के साल भर बाद भी उनके पुर्नवास के लिए केन्द्र ने कुछ भी पहल क्यों नहीं किया।

अब इस बैठक के बाद जो सबसे बड़ा सवाल है कि क्या भारतीय जनता पार्टी आगे भी कश्मीर को चुनाव मुद्दा बनाकर भुनाएगी। सवाल कई है लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि यदि भारत सरकार के प्रति कश्मीरियों में विश्वास नहीं जगेगा तो फिर ऐसे बैठकों का क्या मतलब है।