मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

कथनी और करनी...


सत्ता में आने के पहले नैतिकता की सारी बातें धरी की धरी रह जाती हैं। न पार्टी विद डिफरेंस रहता हैं। और न ही चाल चेहरा ऐर चरित्र ही दिखता हैं। राजनैतिक सुचिता तो कुड़ेदान में चला जाता हैं। और जनता का भ्रम फिर भी बना हुआ हैं।
भारतीय राजनीतिक का यह चेहरा है। हो सकता है कि बहुत लोग मुझसे इत्तेफाक नहीं रखते होंगे लेकिन राजनेताओं का पतन जिस तेजी से हूआ हैं, उसके बाद आम  आदमी के पास यह यज्ञ प्रश्न है कि इस देश का क्या होगा। बड़े-बड़े महात्मा सैनिक शासन की दुहाई देने लगे हैं। तो कोई अंगे्रजी राज को बेहतर बताते नहीं थक रहे हैं।
इन सब विषम परिस्थितियों के बावजूद हम बतादे कि लोकतांत्रिक व्ययस्था से अच्छी कोई और व्यवस्था नहीं हैं। यह बात और है कि इसमें सुधार गुंजाईस हैं। छत्तीसगढ़ में चौतरफा लूट खसोट में सरकार का कोई जवाब नहीं है लेकिन क्या कांगे्रस की खामोशी पर टिप्पणी नहीं हो रही है। लेकिन तीसरी पार्टी का विकल्प भी खुलने लगा हैं। जोर आजमाईश के बीच कांगे्रस ने तेवर कड़े कर लिए है और सत्ता छिने जाने का डर भाजपा में भी दिखने लगा हैं।
पिछले 7-8सालों के भाजपाई शासन में कुछ अच्छे निर्णय हुए हैं लेकिन इन निर्णयों पर कोयले की कालिख पूतने लगी है। आदिवासियों और हरिजनों का आह भी दिखने लगा है। बस्तर की समस्या सुलझाने। में सरकार पूरी तरह असफल रही हैं। यहां गांव के गांव उजड़ गये और आदिवासी दोनो तरफ से मारे जा रहे हैं। मैदाली इलाको में धंधेबाजों ने माफिया राज चला रखा हैं। जिसका फायदा कांगे्रस केो मिलते दिख रहा हैं।
ग्राम सुराज की नौटंकी फिर शुरु हो रही हैं। हम ऐसे किसी भी आंदोलन के खिलाफ हैं जिसमें पैसे पानी की तरह बहाकर  राजनैतिक लाभ लेने की सरकारी कोशिश हो रही हों।
दरअसल ग्राम सुराज जनता तक पहुंचने का सशक्त माध्यम बताया जाता हैं। वास्तव में जब-जब दर्शन जैसे कार्यक्र म हो रहा हो तब ग्राम सुराज का कोई मतलब नहीं रह जाता। ग्राम सुराज के औचित्य पर तो उसी दिन प्रश्न लग चूका था। जब यहा मिलने वाली शिकायतों के निराकरण का मतलब संबंधित विभाग तक पहुंचा देना बस रह गया।
क्या सरकार के पास इस बात का जवाब है कि छत्तीसगढ़ में निर्माण के बाद आप आदमी को उसकी मुलभूत सुविधाएं ठीक ढंग से क्यों नहीं पहुचाई गई। विकास के नाम पर केवल शंहरों का विकास की कोशिश हुई। जब राजधानी जैसे जगह पर सरकारी स्कूलों को हाल बहतर हो, पीने के पानी के लिए रतजगा करना पड़े और सरकारी अस्पताल का हाल बहतर हो तब वह किस तरह दावा करता हैं कि विकास हुआ हैं।
दरअसल विकास के मायने बदल गयेे हैं। सड़क,स्कुल भवन व पंचायत भवन को विकास मतलब मुलभूत सुविधाएं उपलब्ध  कराना होता हैं। वह छत्तीसगढ़ मे कहीं नहीं दिखता। बल्कि भ्रष्टाचार से लबरेज अधिकारियों की सलाह पर काम हो रहे हैं जिन्हें हर हाल में राजधानी या शहरों में रहना हैं।