बुधवार, 25 दिसंबर 2013

सोचना पड़ेगा....


 दिल्ली में आई राजनैतिक विपदा से राजनैतिक दलों की चिंता बड़ा दी है। आम आदमी पार्टी को मिले 28 सीट ने पूरे देश में नई बहस छेड़ दी है कि क्या उन पार्टियों को सरकार बनाने ऐसे पार्टियों से समर्थन लेना चाहिए जो चुनाव में एक दूसरे के खिलाफ खड़े थे।  यह बहस का मौका इसलिए भी आया क्योंकि सामने लोकसभा चुनाव है और इस वजह से हर दल तेरी कमीज से मेरी कमीज ज्यादा सफेद के दिखावे पर काम कर रही है वरना पिछले दो दशक के राजनैतिक हालत ऐसे कभी नहीं रहे। जिसे जहां जैसे मौका मिला राज्यों से लेकर केन्द्र तक सरकारें बनाई बिगाड़ी गई और आज जब लोकसभा चुनाव सिर पर है तो केन्द्र की सत्ता का मोह उन्हें खरीद फरोख की राजनीति से अचानक दूर कर दिया है। राजनैतिक दलों की चिंता यही है कि लोकसभा चुनाव में भी यही स्थिति रही तो क्या होगा ? क्योंकि जिस राह पर आम आदमी पार्टी ने कदम बढ़ाया है और इसका परिणाम दिल्ली विधानसभा के चुनाव में आया है वहीं समर्थन लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को मिलने की संभावना से इंकार करना मुश्किल हो गया है। सड़ चुकी राजनैतिक व्यवस्था में आम आदमी पार्टी की सोच ने आम आदमी को यह सोचने मजबूर कर ही दिया है कि आखिर कांग्रेस और भाजपा में कितना अंतर रह गया है। राज्यों से लेकर केन्द्र तक के कांग्रेस और भाजपा नेताओं की न तो गलबहियां छुपी है और न ही वोट बैंक की राजनैति ही छिप सका है। एक दूसरे के खिलाफ भ्रष्ट्राचार को लेकर आवाज उठाने वाले सत्ता पाते ही कार्रवाई से कैसे दूर भागते है और जनता इस खेल में स्वयं को ठगा सा महसूस करने लगी है। यही वजह है कि जब आम आदमी पार्टी का गठन हुआ तो उसे नजर अंदाज वाले भी दिल्ली के चुनाव परिणाम से न केवल भौचक है बल्कि लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की संभावना से चिंतित है। पिछले दो दशकों की राजनीति में हम किसी से कम नहीं की तर्ज पर काम करने वाली कांग्रेस और भाजपा में आए इस तत्कालीन परिवर्तन का दूरगामी परिणाम अभी आना शेष्ज्ञ है लेकिन यह तो तय है  िकआम आदमी पार्टी ने अच्छे-अच्छे को आईना दिखा दिया है। लालवत्ती के धौस और सरकारी बंगलों के रूतबे से दूर रहने के फैसले से राज्यों में बैठी सरकारों के मंत्री चितिंत हो गए है यदि ऐसे में विधायक व सांसद निधि को लेकर आम आदमी की सोच को अमली जामा पहनाया गया तो राजनैतिक दादागिरी तो खत्म होगी ही भ्रष्टाचार और स्वेच्छाचारिता पर भी विराम लगेगा। जब-जब मंत्रियों के बंगलों पर होने वाले खर्चों की खबरें आएंगी आम आदमी पार्टी और भी मजबूत होगा। गाली देने वालों के साथ सत्ता सुख या सत्ता सुख के लिए मुद्दों की अनदेखी भी आम आदमी को हताश नहीं करेगा। आम आदमी पार्टी क्या भाजपा-कांग्रेस का विकल्प हो सकती है। लोगों को सोचना पड़ेगा।