सोमवार, 21 मई 2012

सरकार की सोच...


प्रदेश के राजा ने कह दिया कि वे नक्सलियों से कहीं भी बातचीत के लिए तैयार है लेकिन अभी बातचीत का महौल नहीं है। हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा  कि बगैर बातचीत के शांति संभव नहीं है।
इस बयान की आखिरी लाईन ही महत्वपूर्ण है और सरकार भी का बगैर बातचीत के शांति की बात उसकी कमजोरी को दर्शाता है या सरकार के नक्सलियों के प्रति पल-पल बदलते सोच को बताया है यह कहना कठिन है। एक तरफ सरकार शांति वार्ता की बात करती है  तो दूसरी ओर सेना की बात से गुरेज नहीं करती। मुखिया कुछ और कहते है। गृहमंत्री और पुलिस वाले भी अलग-अलग बात करते है ऐसे में नक्सली समस्या का हल कैसे होगा ।
नक्सली लगातार आम लोगों को मार रहे है, खुलेआम लाशें बिछाई जा रही है और आदिवासी गांव-घर छोड़ शिविरों में रहने मजबूर है और सरकार की सोच में बार-बार तब्दिल हो रही है। हर एक घटना के बाद सरकार की बदलती सोच ये साबित करती है कि इस समस्या के इलाज का न तो वे तरीका जानते है और न ही इसके  ईलाज के कोई ठोस योजना ही बनाते है!
छत्तीसगढ़ में करीब 17 जिलों में नक्सलियों की प्रभाव है और वे यहा मार-काट कर पैसे कमाने का काम कर रहे है या तो पुलिस वाले मारे जा रहे है या आम आदमी। सरकार अपने 7-8 साल के शासन में जर्दनों बार रणनीति बदली है। कभी वह सलवा जुडूम चलाती है तो कभी वह सेना की बात करती है। कभी वह शांति वार्ता की बात करती है तो कभी राष्ट्रीय समस्या के रूप में पेश करती है। कोई स्थाई सोच नहीं रख पाने का दूष्परिणाम आम आदमी को भूगतना पड़ रहा है।
कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन के मामले वह कुछ करती है तो ग्रामीणों के अपहरण पर कुछ और करती है। आतंक के साये में जीतें लोगों की दुविधा यह है कि वह कहां जाए। कब तक उपनों की मौत पर आंसू बहाये और सरकार से उम्मीद भी अब टूटने लगी है । कलेक्टर एलेक्स अपहरण कांड में सब कुछ साफ दिखाई दे रहा है सरकार के पास झुठ का खजाना है और वह इसे इस्तेमाल कर अपने राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति करना चाहती है। अब तो एक ही सवाल है कि यदि कलेक्टर की रिहाई हो सकती है तो शांति के लिए नक्सलियों से बातचीत क्यों नहीं हो सकती? नक्सलियों और सरकार के बीच क्या कुछ चल रहा है? क्यों नक्सली लूट-खसोट बंद नहीं कर रहे है? नक्सली क्या चाहते है जिसे सरकार पूरा नहीं कर रही है। बार-बार सरकार ब्यान क्यों बदल रही है।