रविवार, 30 मई 2010

लूट या संतुष्टिकरण

छत्तीसगढ में लूट-खसोट की राजनीति ने यहां के सरकारी खजाने को खाली करना शुरु कर दिया है। तमाम विरोध के बाद भी डा. रमन सिंह ने आखिरकार निगम मंडलों में नियुक्ति कर अपने लोगों को उपकृत करना शुरु कर ही दिया।
निगम मंडलों में नियुक्तियां क्यों की जाती है यह किसी से छिपा नहीं है। राजनैतिक नियुक्तियां ने निगम-मंडलों को जिस तरह से लूटा है वह भी किसी से छिपा नहीं है। ऐसी नियुक्यिां का हर बार विरोध तो होता है लेकिन संतुष्टिकरण की राजनीति ने ऐसे विरोध को किनारे किया है। डॉ. रमन सिंह भी विरोध के चलते नियुक्तियां टालते रहे लेकिन पहली खेप में 9 ऐसे लोगों को पुन: निगम-मंडलों के अध्यक्ष बना दिए गए जिनकी छवि को लेकर सवाल उठाए जाते रहे हैं। निगम-मंडलों को लुटने की ऐसी कोशिश अखिर बार-बार क्यों किया जाता है।
छत्तीसगढ़ में जिस पैमाने पर भ्रष्टाचार की खबरें आ रही वह शर्मनाक है। रमन सरकार के पिछले कार्यकाल में भी निगम मंडलों में जमकर नियुक्तियां हुई थी और इनमें से दो-चार को छोड़ सभी ने खुलेआम डकैती डाली है। यही वजह है कि इस बार भी निगम-मंडल में की जा रही नियुक्तियां को लेकर भारी विरोध चल रहा था। सबसे यादा अंधेरगर्दी की कहानी तो ब्राम्हण विधायक बद्रीधर दीवान की नियुक्ति को लेकर हुई है। कहा जाता है कि मंत्री नहीं बनाने से नाराज ब्राम्हण समाज को खुश करने इस विधायक को औद्योगिक विकास निगम का अध्यक्ष बनाया गया है हालांकि चर्चा इस बात की भी रही कि उन्हें निगम मंडल में नियुक्ति करने को लेकर विरोध था। इसी तरह कुछ ऐसे लोगों को पुन: उसी पद पर बिठा दिया गया जिनके कार्यकाल का विवाद आज भी चर्चा में है। इनमें से कुछ ने तो सैकड़ों एकड़ जमीन बेनामी खरीदी है। निगम मंडलों की ऐसी नियुक्तियां जिसका उद्देश्य सिर्फ लूट-खसोट हो अंधेरगर्दी से कम नहीं है।