रविवार, 5 सितंबर 2010

बाबूलाल के बाद नारायण सिंह की बारी...

चोर-चोर मौसेरे भाई...
 आईएएस अधिकारी बाबूलाल अग्रवाल की बहाली की सुर्खियां अभी शांत भी नहीं हो पाई है कि मालिक मकबूजा कांड के आरोपी नारायण सिंह को पदोन्नति देने पूरा रमन सरकार आमदा है। क्या छत्तीसगढ़ भ्रष्ट अधिकारियों की शरण स्थली है?
छत्तीसगढ़ में अफसरों का शासन है या डॉ. रमन सिंह का। यह सवाल अब गली मोहल्ले में गूंजने लगा है। आयकर विभाग के छापे के बाद जिस आनन फानन में बाबूलाल अग्रवाल को सरकार ने बहाल किया था। उसके चर्चे अभी थमें ही नहीं है कि इन दिनों एक और आईएएस अफसर नारायण सिंह चर्चा में है।
इस बार चर्चा की वजह नारायण सिंह को पदोन्नति देने की है। यह वही नारायण सिंह है जिन पर बस्तर में कलेक्टर-कमिश्नर रहते गरीब आदिवासियों की कीमती लकडिय़ों को माफियाओं के साथ सांठ-गांठ करने का आरोप पाया गया था। तब इस चर्चित वन कटाई में नारायण सिंह की संलिप्तता के चलते उनके खिलाफ कार्रवाई भी हुई थी। 93-94 की इस चॢचत मालिक-मकबूजा कांड में नारायण सिंह पर तब सिर्फ तीन वेतनवृद्धि रोकने की कार्रवाई हुई थी।
आश्चर्य का विषय तो यह है कि जून 2010 के बाद से रमन सरकार की ओर से नारायण सिंह को पदोन्नति देने लगातार पत्र व्यवहार किया जाने लगा और पिछले दिनों मुख्य सचिव पी.जाय ओम्मेन की विभागीय पदोन्नति समिति ने नारायण सिंह को पदोन्नति भी दे दी।
अब मामला मंत्रिमंडल के पास है और जिस तरह से सरकार अधिकारियों के हाथों खेल रही है उससे आश्चर्य नहीं कि रमन मंत्रिमंडल भी नारायण सिंह को प्रमुख सचिव के पद पर पदोन्नति को हरी झंडी दे दे।
बहरहाल बाबूलाल अग्रवाल के बाद नारायण सिंह इन दिनों चर्चा में है और आम लोगों में इसकी तीखी प्रतिक्रिया है। ऐसे में सरकार को इस पर फैसला लेना भारी पड़ सकता है।

मंत्री ही नहीं मुख्यमंत्री के पीए से भी सेटिंग...

दंतेवाड़ा शिक्षा अधिकारी का कारनामा...
 मूल सेवा कही नहीं हो तब भी कोई व्यक्ति जिला शिक्षा अधिकारी के पद पर कैसे बना रह सकता है यह डॉ. एच.आर. शर्मा से सीखा जा सकता है? कहा जाता है कि सेटिंग में माहिर डॉ.शर्मा की विभागीय मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ही नहीं विक्रम सिसोदिया से भी जबरदस्त सेटिंग है और इसी वजह से वह पद पर बना हुआ है।
दमदार माने जाने वाले मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के विभागों में जिस दमदारी से भ्रष्टाचार हो रहा है और भ्रष्टाचारियों को संरक्षण मिल रहा है वह दांतों तले ऊंगली दबाने जैसा है। पीडब्ल्यूडी से लेकर पर्यटन और शिक्षा विभाग में भी जिस तरह से दागदार और विवादास्पद व्यक्तियों को प्रमुख पदों पर बिठाया गया है वह शासन की मंशा को भी स्पष्ट करता है।
कवर्धा में मामूली असिस्टेंट प्रोफेसर रहे डॉ. हरे राम शर्मा ने जिस षडय़ंत्र के तहत दंतेवाड़ा शिक्षा अधिकारी के साथ साथ जिला समन्वयक परियोजना अधिकारी का अतिरिक्त प्रभार लिया है वह अच्छे अच्छों का होश उड़ाने के लिए काफी है। बताया जाता है कि हाईकोर्ट द्वारा डॉ. शर्मा का संविलियन रद्द करने के बाद वे किसी भी विभाग में मूल सेवा में नहीं है लेकिन शासन स्तर पर उन्हें संविदा नियुक्ति दी गई। संविदा नियुक्ति किस आधार पर और जिस तरह से आनन-फानन में दी गई उसकी अलग ही कहानी है और कहा जाता है कि उच्च स्तर पर हुई सेटिंग से ही यह संभव हुआ है।
हमारे भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक संविलियन के लिए डॉ. शर्मा ने कवर्धा क्षेत्र के कांग्रेस विधायक के अलावा भाजपा की महिला सांसद का भी सहारा लिया था लेकिन मामला हाईकोर्ट जा पहुंचा और हाईकोर्ट ने उनके संविलियन को रद्द कर दिया। ऐसे में उन्होंने नौकरी से पृथक करने की बजाय उन्हें संविदा नियुक्ति देकर जिला शिक्षा अधिकारी के पद पर किस उद्देश्य से बिठाया गया यह आसानी से समझा जा सकता है।
हालांकि शिक्षा विभाग में विवादास्पद लोगों को महत्वपूर्ण पद पर बिठाना नया नहीं है। बृजमोहन अग्रवाल के शिक्षामंत्री बनते ही तवारिस मैडम की बहाली हुई तो मैडल आर. बाम्बरा को जिला शिक्षा अधिकारी से नवाजा गया। लेकिन ये दोनों शिक्षा विभाग की सेवा में हैं लेकिन डॉ. एच.आर. शर्मा तो शिक्षा विभाग की सेवा में ही नहीं है और ऐसे में उन्हें दंतेवाड़ा की जिम्मेदारी देने की जांच हुई तो सीएम हाऊस पर भी विवाद के छींटे उड़ेंगे।
बहरहाल डॉ. एच.आर.शर्मा के क्रियाकलापों को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं कहा जाता हैकि नक्सलियों की आड़ लेकर यहां बड़े पैमाने पर खपलेबाजी हो रही है खासकर परियोजना समन्वयक में तो भ्रष्टाचार के जबरदस्त चर्चे हैं।