गुरुवार, 31 जनवरी 2013

कड़वा सच


छत्तीसगढ़ के विकास का दावा करने वाली सरकार इन दिनों रोड़ शो में व्यस्त है। तो विपक्षी कांग्रेस इस रोड़ शो के विरोध में काल झंडा लिए खड़ी है। रोड़ शो का ऐसा विरोध पहले कभी नहीं हुआ और न ही हर रोड़ शो के पहले ऐसी गिरफ़्तारियाँ की गई।
राजनैतिक दांव पेंच में छत्तीसगढ़ के संतुलित विकास की अवधारणा दब गई है। नई राजधानी की चमक जितनी चटक हुई है। गांवों में पसरा सन्नाटा उतना ही गहरा हुआ है। सरकार की इस अजीबो गरीब विकास की अवधारणा से गांव की स्थिति दिल दहला देने वाली है। भारतीय व्यवस्था की रीढ और धान का कटोरा कहलाने वाली छत्तीसगढ़ की कृषि की दुर्दशा खून के आंसू रोने पर मजबूर है। सरकार  की नीति के चलते हजारों एकड़ कृषि भूमि उद्योगों व नई राजधानी तथा विकास की भेंट चढ गयी है
 तो किसानों के लिए यह विकास फ़ांसी का फ़ंदा  बनने लगा है।
रमन सरकार लाख विकास का दावा करे लेकिन सच तो यह है कि कृषि क्षेत्र को नजर अंदाज करने की उसकी नीति ने गांवों की हालत बदतर कर दी है। भले ही आंकड़ों में उत्पादन बढाने की बात हो रही हो लेकिन सच का अंदाजा गांवों की हालत देख कर लगाया जा सकता है। बड़े शहरों में ही तमाम सुविधाएं जुटाई जा रही हैं। यहां तक की निजि क्षेत्र भी सारी सुविधाएं बड़े शहरों में ही कर रहे हैं और गांवो की तरफ़ किसी का ध्यान नहीं है। गांवों में रोजगार का संकट खड़ा है।
सरकार को भले ही यह बात कड़वी लगे लेकिन सच तो यह है कि यह सामंतशाही प्रवृत्ति है। एक तरफ़ शहरों में तमाम सुविधाएं हैं तो गांवों में पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं और  यहां तक की सड़कें तक ठीक से नहीं है। मूलभूत सुविधाओं के लिए तरसते गांवों को लेकर इस सरकार ने कोई नीति तैयार नहीं की।
सरकर ने जिलों का गठन तो कर दिया लेकिन क्या किसी जिले में मेकाहारा जैसे अस्पताल उसने खोले? या राजधानी रायपुर, बिलासपुर जैसी दूसरी सुविधांए उपलब्ध कराई हैं? नई राजधानी में स्वयं की सुविधाओं के लिए अरबों रुपए फ़ूंकने की योजना बनाने वाली सरकार और बड़े अधिकारियों ने क्या कभी सोचा है कि सभी विकासखंडों में मेकाहारा जैसे सर्व सुविधा युक्त अस्पताल खोला जाए या कालेज खोला जाए जिससे आम लोगों को उसके विकासखंड में उ'च शिक्षा मिल सके। उल्टे सरकार की नीतियों ने सरकारी स्कूलों एवं अस्पतालों को बरबाद करने का काम ही किया है।
रमन सिंह की सरकारी नीति पर गौर करें तो गांवों के लिए उदासी के अलावा कुछ नहीं है। गोदाम एवं कृषि बाजार का पता नहीं है। मोटर पंप के कनेक्शन की जटिलता से किसान परेशान हैं। सिंचाई सुविधाओं के विस्तार पर अघोषित रोक लगाई जा चुकी है और लोग पलायन करने को मजबूर हैं।
दरअसल समस्या सरकार की नियत की है। कृषि को लेकर अपनाई जाने वाली अधकचरी नीति के अलावा गांवों में सन्नाटा के लिए सरकार में बैठे मंत्रियों व अफ़सरों की सोच है। क्योंकि ये सभी लोग राजधानी में ही रहना पसंद करते हैं। इसलिए सभी विभागों के कार्यलय राजधानी में ही रखे जाते हैं। जिसकी वजह से सुविधा व रोजगार के लिए लोग शहरों की ओर आ रहे हैं। एक बार विधायक और सांसद बनने वाले जन प्रतिनिधि भी अपने विकासखंडा में सुविधा बढाकर रहने की बजाए वे अपने परिवार को शहरों में ही ले आते हैं जिसकी वजह से गांवों का विकास अवरुद्ध हैं। छत्तीसगढ़ बनने के बाद भी अधिकांश गांवों के हालातों में कोई बदलाव नहीं आया है।
कुल मिलाकर यह साफ़ है कि नई राजधानी की चमक के बीच से गांवों के सन्नाटे  की ओर जाता रास्ता तमाम दर्द अपने भीतर समेटे हुए है और इसकी परवाह न सरकार को है और नही निजी क्षेत्र के उन लोगों को ही है जो समाज सेवा का लंबा चौड़ा दावा करते नहीं थकते।

बुधवार, 30 जनवरी 2013

बढते अखबार फिऱ भी लाचार


छत्तीसगढ में होने जा रहे इस बार विधानसभा चुनाव की तैयारी  में सिफऱ् राजनैतिक दल ही नहीं मीडिया भी सक्रिय हो गया है। कई अखबार फिऱ से छपने लगे हैं तो हर माह नए नाम से अखबारों का पंजीयन भी होने लगा है। सरकारी विज्ञापन और नेताओं से विज्ञापन के लिए जोड़-तोड़ शुरु हो गई है।
एक आंकड़े के मुताबिक छत्तीसगढ़ में प्रकाशित होने वाले अखबारों की संख्या 2200 से अधिक है। इनमें से कई अखबार तो राष्ट्रीय या धार्मिक त्यौहारों पर ही भरपूर विज्ञापन के साथ प्रकाशित होते हैं।
कभी सर्वश्रेष्ठ पत्रकारिता के लिए पहचाने जाने वाले छत्तीसगढ़ में अब पेड न्यूज या तोड़-मरोड़ कर खबरें प्रकाशित करने का दौर शुरु हो गया है। यह कहानी सिफऱ् छोटे बैनरों की नहीं है बल्कि बड़े नामचीन बैनरों पर भी कई तरह के आरोप लग रहे हैं। कोई अपने नाम के अनुरुप मित्रता निभा रहा है तो कोइ कोयला खदान के लिए जिद पकड़े हुए है। कहने को तो नए तेवर और नए कलेवर की वकालात हो रही है तो कईयों का काम केवल दलाली करना रह गया है।
सरकार में बैठे लोग भी ऐसे अखबारों को उनकी औकात के अनुरुप रोटी फ़ेंक रहे हैं जबकि कलम की ताकत को नजर अंदाज करते हुए ठकुरसुहाती में लगने वालों की संख्या कम नहीं है।
इलेक्ट्रानिक वालों ने जोर दिखाया
प्रेस क्लब से अलग होकर पृथक संगठन बनाने वालों ने अपनी ताकत दिखानी शुरु कर दी है। इलेक्ट्रानिक मीडिया एसोसिएशन के कार्यालय में कैरम लग गया है और इसका उद्घाटन प्रेस क्लब के पूर्व पदाधिकारी और मानद सदस्य आसिफ़ इकबाल ने किया। कभी प्रेस क्लब की गरिमा के लिए लडऩे वाले आसिफ़ इकबाल पृथक बने संगठन में जाना चर्चा का विषय है।
वैसे इलेक्ट्रानिक वालों का दावा है कि अभी और भी कई नामचीन पत्रकार प्रेस क्लब छोडऩे वाले हैं। हालांकि अभी पूरी तरह इलेक्ट्रानिक वाले ही एक नहीं हो पाए हैं। ऐसे में वापसी चर्चा भी कम नहीं है।
और अंत में...
पत्रिका में पहले दिन मौदहापारा पुलिस की पिटाई की खबर छूट जाने की भरपाई दूसरे दिन की गई, लेकिन जनसम्पर्क अधिकारियों ने इस पर खूब चुटकी ली और कहने लगे कि जोश के साथ होश नहीं रखा गया तो खबरें छुटेंगी ही। किसी दिन भद्द भी पिट सकती है।

मंगलवार, 29 जनवरी 2013

नकटा के नाक ...


विधानसभा के चुनई इही साल होही, चुनई ल देख के फ़ेर खादी-भगवा वाले मन ल जनता के फि़कर होगे हे, कोनो रोड़ सो करत हे त कोनो परदरसन करत हे। रो सो हो चाहे परदरसन होय, अवइया जवइया मन के 12 बजत हे। पुलिस ह रद्दा ल घेर देवत हे अउ डंडा ल देखा-देखा के छेंकत हे अउ बपरा जनता ह कले चुप तमासा ल देखे बर मजबूर हे। नेतागिरी जम के होवत हे। हमर सरकार आही त ये करबो वो करबो के गोठ ल सुन डार। जेती देखबे तेती खाली एकेच ठन गोठ हे। कांग्रेसी मन ह 60 साल ले कुछु नइ करीन त भाजपाई मन 9 साल मा सबला बेच के अपन कोठी भरत हे।
जनता ह त रोटी असन होगे हे, कोनो बेलत हे, कोनो सेंकत हे, अउ कोनो खावत हे। जेखर जइसे मन होवत हे तइसे करत हे, फ़ेर जनता ल का मिलय तेखर फि़कर कोनो नई करत हे।
न गाँव म स्कूल हे, न अस्पताल। जिंहा स्कूल हे, तिंहा गुरुजी नई हे। अस्पताल हे त न डाक्टर के पता न दवई के पता हे। पीये के पानी के त नामेच झन ले। अउ नहर नाली के गोठ गोठियाबे त कोनो कारखाना ल लगा के खेतेच ल छीने के उदीम कर दीही। विकास के नाम झन लेबे। & रुपया किलो चांऊर म भुलाय रह। धान के बोनस बर झन कहिबे नही त लाठी बरस जाही। अऊ सरकार ह दस ठन काम गिना दीही के का का करे हन्।
अब ये रमन सरकार ल देख ले। किसान मन ल 270 रुपया बोनस देहे के बात करे रहिस। दिस नइ दिस। अब चार साल म त दिस नइ त आज का दीही। मांग करइया मन ल भितरा दिस। ते धरना परदरसन करत रहा। कुछुच फऱक नइ परय्। बेंझार के फ़ेर चुनई मा वोट ले लीही। गांव गांव म पलायन होतेच हे। काम बुता नइ हे। अऊ काम बुता नई रही त ठलहा मनखे करय काय। तेखर सेती गांव-गांव म दारु बेचइया मन ल ढील दे हे। दारु पी अऊ मस्त राह्। समस्या ल झन गोठिया। नशा म परे रह।
चुनई ल देख के फ़ेर बेंझारे के काम होवत हे। फ़ेर वादा करत हे। सड़क बना देबो, बिजली लगा देबो। अस्पताल-स्कूल खोलवा देबो कहात हे। फ़ेर पहली जेन अस्पताल अऊ स्कूल खुले हे तेन ल सुधरवाय के जांगर नइ चलत हे। राजधानी म नाच गाना देखे बर करोड़ों अरबो ल फ़ूंकत हे अउ गांव म स्कूल खोले बर पइसा नई हे।
छत्तीसगढ़ मा त अतियाचार होगे हे। नेता बनके पद पावत हे, अउ पोठ कमावत हे। गलत सलत काम म फ़ंस जथे तभो लाज नई आवत हे। तभे त गली-गली सब झन गोठियावत हे नकटा के नाक ह दिनो दिन बाढत हे।

रविवार, 27 जनवरी 2013

थानेदारों की करतूतों पर अधिकारी परेशान


यह तो कोइ करे भरे कोई की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना थानेदार की करतूतों पर न लोग न्यायालय जाते और न्यायालय से पुलिस अधिकारियों को नोटिस का सामना करना पड़ता।
छत्तीसगढ़ में थानेदारों की करतूतों के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं और उनकी करतूतों को नजर अंदाज करना भारी पड़ रहा है। थानेदारों की करतूतों से न केवल अपराध बढ़ रहे हैं बल्कि अपराधियों के हौसले भी इतनी बुलंदी पर है कि वे पुलिस वालों पर हमला करने से भी नहीं चूकते। 19 जनवरी की रात मौदहापारा के पुराने हिस्ट्रीशीटर को पकडऩे गए दो-दो थानेदारों की पिटाई हो गई। पुलिस को जैसे-तैसे जान बचाकर भागना पड़ा। यह अलग बात है कि घंटे भर के भीतर ही पूरे मौदहापारा को छावनी बनाकर आरोपियों को पकड़ लिया गया।
वास्तव में इसकी वजह पुलिस की अपनी करतूत है। अपराधियों को मंत्री अपनी गोद में बिठा रहे हों और पुलिस वाले गलबहियां डाल रहे हों तो अपराधी किसी से डरेगा ही क्यों?
अब्दुल अजीम भोंदू जैसे व्यक्ति को भारतीय जनता पार्टी अपनी गोद में बिठाती है तो इससे पार्टी के चरित्र को आसानी से समझा जा सकता है। पूरे प्रदेश में यही हाल है। सत्ताधारियों ने अपराधियों को संरक्षण दे रखा है। उन्हे जनता की प्रतिक्रिया की भी फि़क्र नहीं है। तभी तो एक तरफ़ डॉ रमन सिंह शराब के खिलाफ़ विष वमन करते हैं और दूसरी तरफ़ शराब ठेकेदार के साथ सार्वजनिक रुप से गलबहियां करते नजर आते हैं तब भला थाने के बिकने की चर्चा नहीं होगी तो क्या होगा?
यह सच है कि राजनैतिक दबाव की वजह से अपराधी छुट्टे घूम रहे हैं लेकिन यह भी इतना ही बड़ा सच है कि पैसा देकर थाना हासिल करने वाले थानेदार अपराधियों से ही इसकी भरपाई करते हैं और इन अपराधियों की शिकायत करने वालों पर ही अत्याचार करते हैं। तभी तो थानेदार की मनमानी पर एस पी व गृह सचिव तक चुप रहते हैं। भले ही न्यायालय से उन्हे कितनी भी फ़टकार मिले।
अभनपुर थानेदार की ऐसी ही करतूत की वजह से हाईकोर्ट को गृह सचिव, रायपुर आई जी व एस पी को नोटिस देना पड़ा। थानेदार पर शिकायत कर्ता हेमचंद यादव ने गंभीर आरोप लगाए हैं उनके आरोपों के अनुसार बिरोदा में एक स्टाप डेम की को तोडऩे की शिकायत सीईओ से की गई थी। शिकायत सही पाई गई। सरपंच को इसके लिए दोषी ठहराया गया। सरपंच ने शिकायत कर्ताओं को जान से मारने की धमकी दी तो हेमचंद साहु व अन्य शिकायत कर्ताओं ने थाने में पहुंच कर इसकी जानकारी थानेदार को दी। थानेदार ने हेमचंद की शिकायत पर कार्यवाही करने की बजाए सरपंच को बुलवा लिया और हेमचंद साहु व उनके साथियों के खिलाफ़ ही शांति भंग करने का आरोप लगा कर धारा 107/116 व 151 के तहत गिरफ़्तार कर लिया। यही नहीं जमानत लेने के दौरान अभी पुलिस ने उन्हे अपराधिक प्रवृत्ति का बताते हुए नहीं छोडऩे कहा। इसकी वजह से हेमचंद को तीन दिन जेल में काटने पड़े और जमानत पर रिहा होने के बाद हेमचंद ने अपने साथ हुए अन्याय की जानकारी हाईकोर्ट को दी, जहां हाईकोर्ट ने थानेदार सहित पुलिस अधिकारियों एवं गृह सचिव को नोटिस भेजा है।
यानी पुलिसिया करतूत थमने का नाम नहीं ले रही और अब जब अपराधी पुलिस पर सीधे ही हमला करने की हिम्मत कर रहे हैं। तब बवाल मचा हुआ है।
चलते-चलते
 राÓय मे प्रमोटी आईपीएस और सीधे आईपीएस में मनभेद थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। पीएचक्यु से लेकर मैदान में पोस्टिंग तक में प्रमोटी आईपीएस की महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति के पहले यह अहसास जरुर दिला दिया जाता है कि तुम्हारी औकात क्या है।

शनिवार, 26 जनवरी 2013

अपराधियों से भी नाता भ्रष्ट बेईमान इन्हे भाता


छत्तीसगढ के रमन राज में न केवल अपराध बढ रहे हैं बल्कि अपराधियों को सत्ता का भरपुर संरक्षण भी मिला है। भ्रष्ट बेईमान नौकरशाह हो या अपराध की दुनिया के बाहुबली सभी इस राÓय में फ़ल फ़ूल रहे हैं। अपराधियों और भ्रष्ट नौकरशाह के चलते आम लोगों का जीना तो दूभर हुआ ही है। राजनैतिक सूचिता की नई परिभाषा भी गढी गई। अपराधिक तत्वों के हौसले इतने बुलंद हैं कि पुलिस तक उन पर हाथ डालने से कतराती है और जिस पुलिस वाले ने ऐसी हिमाकत की या तो उसे प्रताडि़त किया गया या पिटाई तक हो गयी। शहर की सबसे नामी मस्जिद जामा मस्जिद के मुतव्ल्ली अब्दुल अजीम भोंदू को लेकर जो बवाल मचा है वह रमन राज की कार्यशैली पर तो सवाल उठाता ही है साथ ही सवाल यह भी उठ रहे हैं कि कल तक मुख्यमंत्री से सीधे संबंध रखने वाले शख्स पर हाथ डालने की वजह क्या है।
रमन राज की दूसरी पारी में अपराध एवं भ्रष्टाचार में दुगने से अधिक इजाफ़ा हुआ है तो इसकी वजह सत्ता में बैठी भाजपाईयों की कार्यशैली है। अकेले राजधानी में तीन हजार से उपर फऱार वारंटी घूम रहे हैं तो सैकड़ों की संख्या में भ्रष्ट और बेईमान नौकरशाह सत्ता की नाक के बाल बने हुए हैं। मिलावटखोरी में आरोपी रहे बद्री जैसे लोगों को भाजपा टिकिट देती है तो अब्दुल अजीम भोंदू जैसे बाहुबलियों को गोद में बिठाती है। संसद जैसे पवित्र स्थान में सवाल पूछने के लिए पैसे लेने वाले प्रदीप गाँधी जैसे लोग भाजपा और मुख्यमंत्री के रणनीतिकार बने हुए हैं तो बाबूलाल अग्रवाल जैसे लोग महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हैं।
सिफऱ् हवाला कांड में नाम आ जाने से संसद से इस्तीफ़ा देकर राजनैतिक सुचिता की परिभाषा गढऩे वाले लालकृष्ण आडवाणी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनके जीते जी भाजपा की राजनीति में वे लोग सत्ता में बने या बैठे रह सकते हैं जिन पर कोयले की कालिख से लेकर बांध, नदी एवं तालाब तक बरबाद करने के आरोप लगे हैं।
यह बात कोई नकार नहीं सकता कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की सत्ता में बैठने की कई वजहों में एक वजह कांग्रेस की कार्यशैली रही है। जहां अपराध से लेकर भ्रष्टाचार को फ़लने फ़ूलने का मौका लगा। लेकिन सत्ता में आते ही जिस तरह से भ्रष्टाचारियों और अपराधियों को संरक्षण दिया गया वह भाजपा को शर्मशार करने वाला साबित हो रहा है। आरोपों  को बहुमत के दम पर खारिज करने की कांग्रेसी शैली को भाजपा ने भी अपना लिया है और चुनावी चंदे के लिए या चुनावी फ़ायदे के लिए बेईमान और अपराधिक लोगों को खुले आम न केवल संरक्षण दिया गया बल्कि सत्ता से लेकर संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी दी गई।
आंकड़े बताते हैं कि सत्ता में आने से पहले जिन भ्रष्ट अफ़सरों पर उंगली उठाई गई वे आज महत्वपूर्ण पदों पर हैं। जिन अपराधियों पर कार्यवाई नही करने का आरोप लगा वे आज या तो पार्टी की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं या इन्हे संरक्षण दिया जा रहा है।
पूरे प्रदेश में भ्रष्टाचार और अपराध के आंकड़ों में जो तेजी आई है वह चौंकाने वाली है और यही हाल रह तो छत्तीसगढ को अपराधगढ़ के रुप में कुख्यात होने में समय नहीं लगेगा।
पुलिस सुत्रों की माने तो पूरे प्रदेश में फऱार आरोपियों की संख्या 15 हजार से उपर है। जिनमें से आधे Óयादा फऱार आरोपियों को राजनैतिक संरक्षण के चलते नहीं पकड़ा जा रहा है। ऐसे लोग न केवल सार्वजनिक सरकारी कार्यक्रमों में उपस्थित रहते हैं बल्कि पुलिस को आँख दिखाने से भी परहेज नहीं करते।
कमोबेश यही हाल भ्रष्ट नौकरशाहों का है। भ्रष्टाचार से लेकर दूसरी अनियमितता करने वाले अधिकारी कर्मचारी महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हैं ऐसे नौकरशाहों की संख्या भी सैकड़ों में है। जिनमें आईएस, आईपीएस से लेकर राÓय प्रशासनिक सेवा के अफ़सर भी शामिल हैं। इंजीनियरों के मामले में तो साफ़ होने लगा है कि जो जितना भ्रष्ट उसे उतने ही महत्वपूर्ण पद से नवाजा जाएगा।
प्रशासनिक सुत्रों का कहना है कि रमन राज में ईमानदार अधिकारियों को प्रताडि़त किया गया है और रिटायरमेंट के बाद उन अधिकारियों को संविदा पर Óयादा रखा गया है जो अपने कार्यकाल के दौरान भ्रष्ट या विवादित माने जाते हैं।
बहरहाल रमन सरकार के भ्रष्टाचार पर सवाल उठने लगे हैं और आने वाले चुनाव में इसके असर से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
रमन राज की दूसरी पारी में अपराध एवं भ्रष्टाचार में दुगने से अधिक इजाफ़ा हुआ है तो इसकी वजह सत्ता में बैठी भाजपाईयों की कार्यशैली है। अकेले राजधानी में तीन हजार से उपर फऱार वारंटी घूम रहे हैं तो सैकड़ों की संख्या में भ्रष्ट और बेईमान नौकरशाह सत्ता की नाक के बाल बने हुए हैं। मिलावटखोरी में आरोपी रहे बद्री जैसे लोगों को भाजपा टिकिट देती है तो अब्दुल अजीम भोंदू जैसे बाहुबलियों को गोद में बिठाती है। संसद जैसे पवित्र स्थान में सवाल पूछने के लिए पैसे लेने वाले प्रदीप गाँधी जैसे लोग भाजपा और मुख्यमंत्री के रणनीतिकार बने हुए हैं तो बाबूलाल अग्रवाल जैसे लोग महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हैं।
सिफऱ् हवाला कांड में नाम आ जाने से संसद से इस्तीफ़ा देकर राजनैतिक सुचिता की परिभाषा गढऩे वाले लालकृष्ण आडवाणी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनके जीते जी भाजपा की राजनीति में वे लोग सत्ता में बने या बैठे रह सकते हैं जिन पर कोयले की कालिख से लेकर बांध, नदी एवं तालाब तक बरबाद करने के आरोप लगे हैं।
यह बात कोई नकार नहीं सकता कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की सत्ता में बैठने की कई वजहों में एक वजह कांग्रेस की कार्यशैली रही है। जहां अपराध से लेकर भ्रष्टाचार को फ़लने फ़ूलने का मौका लगा। लेकिन सत्ता में आते ही जिस तरह से भ्रष्टाचारियों और अपराधियों को संरक्षण दिया गया वह भाजपा को शर्मशार करने वाला साबित हो रहा है। आरोपों  को बहुमत के दम पर खारिज करने की कांग्रेसी शैली को भाजपा ने भी अपना लिया है और चुनावी चंदे के लिए या चुनावी फ़ायदे के लिए बेईमान और अपराधिक लोगों को खुले आम न केवल संरक्षण दिया गया बल्कि सत्ता से लेकर संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी दी गई।
आंकड़े बताते हैं कि सत्ता में आने से पहले जिन भ्रष्ट अफ़सरों पर उंगली उठाई गई वे आज महत्वपूर्ण पदों पर हैं। जिन अपराधियों पर कार्यवाई नही करने का आरोप लगा वे आज या तो पार्टी की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं या इन्हे संरक्षण दिया जा रहा है।
पूरे प्रदेश में भ्रष्टाचार और अपराध के आंकड़ों में जो तेजी आई है वह चौंकाने वाली है और यही हाल रह तो छत्तीसगढ को अपराधगढ़ के रुप में कुख्यात होने में समय नहीं लगेगा।
पुलिस सुत्रों की माने तो पूरे प्रदेश में फऱार आरोपियों की संख्या 15 हजार से उपर है। जिनमें से आधे Óयादा फऱार आरोपियों को राजनैतिक संरक्षण के चलते नहीं पकड़ा जा रहा है। ऐसे लोग न केवल सार्वजनिक सरकारी कार्यक्रमों में उपस्थित रहते हैं बल्कि पुलिस को आँख दिखाने से भी परहेज नहीं करते।
कमोबेश यही हाल भ्रष्ट नौकरशाहों का है। भ्रष्टाचार से लेकर दूसरी अनियमितता करने वाले अधिकारी कर्मचारी महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हैं ऐसे नौकरशाहों की संख्या भी सैकड़ों में है। जिनमें आईएस, आईपीएस से लेकर राÓय प्रशासनिक सेवा के अफ़सर भी शामिल हैं। इंजीनियरों के मामले में तो साफ़ होने लगा है कि जो जितना भ्रष्ट उसे उतने ही महत्वपूर्ण पद से नवाजा जाएगा।
प्रशासनिक सुत्रों का कहना है कि रमन राज में ईमानदार अधिकारियों को प्रताडि़त किया गया है और रिटायरमेंट के बाद उन अधिकारियों को संविदा पर Óयादा रखा गया है जो अपने कार्यकाल के दौरान भ्रष्ट या विवादित माने जाते हैं। बहरहाल रमन सरकार के भ्रष्टाचार पर सवाल उठने लगे हैं और आने वाले चुनाव में इसके असर से भी इंकार नहीं किया जा सकता।

गुरुवार, 24 जनवरी 2013

स्निग्धा जैसी सबकी किस्मत नहीं होती...


रमन सरकार ने शायद यह तयही कर लिय अहै कि निजी स्कूल चाहे कितनी भी मनमानी करे उस पर कोई कार्यवाही नहीं होगी और सरकारी स्कूलों का स्तर इतना गिरा दिया जाए कि लोग अपने ब'चों को निजी स्कूलों में पढाने पर मजबूर हो जाएं।
तभी तो सरकारी स्कूलों में समय के अनुरुप न तो अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा ही शुरु की जा रही है और न ही शिक्षक रखे जा रहे हैं। न स्कूलों में ढंग से शौचालय बनाए जाते हैं और न ही पीने की पानी की व्यवस्था पर ध्यान दिया जा रहा है ऐसे में लोगों की मजबूरी का फ़ायदा निजी स्कूलों के द्वारा उठाया नहीं जाएगा तो क्या होगा।
छत्तीसगढ में निजी स्कूलों की मनमानी चरम पर है। मनमाने फ़ीस के अलावा जूता-मोजा, बेल्ट-टाई, कापी-किताब से लेकर लोगों की जेब पर डकैती डालने नए नए तरीके इस्तेमाल किए जा रहे हैं। लेकिन न तो यह सब अधिकारियों को ही दिख रहा है और न ही जनप्रतिनिधि कहलाने वाले मंत्रियों को ही दिख रहा है। उपर से इन निजी स्कूलों की करतूतों पर लीपा पोती की जा रही है।
सरकार के लिए तो सरकारी स्कूल घाटे का धंधा कहलाने लगा है। उन्हे लगता है कि सरकारी स्कूल को सुधारने में फिज़ूल खर्च है। जबकि उनकी सुविधा बढाने में फिज़ूल खर्ची उन्हे नहीं दिखता। सरकारी खजाने से जनता के लिए खर्च करने में उन्हे तकलीफ़ होती है। पता नहीं यह पैसा उन्की जेब से जाता तो क्या करते।
कहने को तो सरकार का काम जनता का हित देखना है लेकिन सरकार हर काम को धंधे की नजर से देखने लगी है। जबकि हर साल के परीक्षा परिणाम से स्पष्ट है कि निजी स्कूल के ब'चों से Óयादा होशियार अभाव ग्रस्त सरकारी स्कूल में पढ़ रहे ब'चे हैं।
निजी स्कूलों में सुविधाओं के नाम पर खुले आम डकैती की जा रही है। चौतरफ़ा लूट खसोट के अलावा नियम-कानून की धÓिजयाँ उड़ाई जा रही हैं। यदि सरकारी स्कूलों में सरकार नर्सरी से ही अंग्रेजी माध्यम शुरु कर दे तो अस्सी फ़ीसदी से अधिक लूटेरे अपने संस्थान बंद कर देगें। ये वे लोग हैं जो शिक्षा के माध्यम से समाज सेवा का दावा तो करते हैं लेकिन सरे आम लोगों की जेबों पर डकैती डाल रहे हैं।
यही वजह है कि निजी स्कूलों में चल रही बसों की हालत बदतर है। लेकिन अधिकारी से लेकर मंत्रियों तक पहुंच रही उपरी कमाई की वजह से ब'चों की ज आन से खिलवाड़ किया जा रहा है।
राजकुमार कालेज की चलती बस से स्निग्धा वर्मा नाम की मासूम ब'ची सड़क पर गिर जाती है और कालेज प्रबंधन से लेकर पूरी सरकार इस मामले पर कार्यवाई करने की बजाए लीपा-पोती में लग जाती है। बस चालक और परिचालक जैसे छोटे कर्मचारियों को गिरफ़्तार कर लिया जाता है लेकिन काले प्रबंधन के खिलाफ़ जुर्म तक दर्ज नहीं किया जाता।
इस मामले में तो सीधे राÓयपाल को हस्तक्षेप करना चाहिए क्योंकि निजी शिक्षण संस्थाओं की मनमानी पर सरकार कुछ नहीं करने वाली। उपर से लेकर नीचे तक के लोगों का मुंह पैसों से भर दिया गया है। वे बोलेगें भी नही और कभी भी कोई और बड़ी घटना हुई तो मासूमों की जान तक जा सकती है। हर कोइ स्निग्धा वर्मा जैसी किस्मत वाली नहीं होती।


हद हो गई...


छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव सुनील कुमार को न केवल हाईकोर्ट में अपनी आमद देनी पड़ी बल्कि लिखित में यह कहना पड़ा कि आईंदा ऐसा नहीं होगा। हाईकोर्ट ने प्रदेश के गृह सचिव तक को नोटिस दिया है। एस पी कलेक्टर आए दिन हाईकोर्ट तलब किए जा रहे हैं और सरकार अफ़सरों की करतूतों पर परदा डाल रही है।
कोयले की कालिख के साथ कंठ तक भ्रष्टाचार में डुबी सरकार से बहुत Óयादा उम्मीद तो बेमानी है लेकिन सरकार की  करतूतों की सजा कोई कोई दूसरा क्यों भुगते। सरकार की इसी करतूत का फ़ायदा अधिकारी उठा रहे हैं। बेलगाम नौकरशाहों की मनमानी से आम आदमी का जीना दूभर होता जा रहा है। लेकिन सरकार को इसकी जरा भी परवाह हो ऐसा आचरण में नहीं दिखता।
वैसे तो रमन सरकार में अफ़सरशाही और प्रशासनिक आतंक की कहानी नई नहीं है एवं प्रशासनिक आतंक जैसे शब्दों का प्रयोग करने वाले विपक्षी कांग्रेसी नहीं उनकी ही पार्टी के नेता दिलीप सिंह जूदेव हैं। प्रशासनिक आतंक की हालत यह है कि गिनती के 4 अफ़सर पूरे प्रदेश को संभाल रहे हैं और उनके आगे न मंत्रियों की चलती है और न ही किसी और की चलती है।

प्रदेश में ऐसा कोई विभाग नहीं होगा जहां भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी फ़ल-फ़ूल रहे हैं। सरकारी खजानों पर तो डकैती डाली जा रही है। ईमानदार अफ़सरों को इतना प्रताडि़त किया जा रहा है कि वे आत्महत्या करने तक मजबूर हो रहे हैं। भ्रष्ट अफ़सरों को मलाईदार पदों पर ही नहीं बिठाया जा रहा बल्कि उन्हे रिटायरमेंट के बाद भी संविदा में रखा जा रहा है। पदोन्नति से लेकर तबादले में ईमानदार अफ़सरों की उपेक्षा की जा रही है और सरकार के मंत्रियों के पास पहुंचने वाली ऐसी शिकायतें रद्दी की टोकरी में फ़ेंकी जा रही हैं। यही वजह है कि अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ़ हाईकोर्ट में दस्तक दी जा रही है। अगर सरकार ही न्याय करे तो लोग कोर्ट क्यों जाएगें।
विधानसभा हो या मंत्रालय, कलेक्टरेट हो या पुलिस मुख्यालय सब जगह अफ़सरों की मनमानी से आम जनता त्रस्त है। अब तो अफ़सरों की अय्याशी का मामला इतना बढ गया है कि उनके द्वारा निवेशकों को लुभाने के नाम पर अश्लील नाच का आयोजन भी किया जाने लगा है। करीना कपूर हो या मैनपाट कार्निवल की रशियन बालाएं सब अफ़सरों की करतूतों की कहानी है जिस पर सरकार की पूरी स्वीकृति है।
प्रदेश में बैठी भाजपा सरकार को अपनी जिम्मेदारी का कितना अहसास है यह तो वही जाने लेकिन संविधानिक व्यवस्था में अफ़सरों से काम लेना सरकार की जिम्मेदारी है। लोकतंत्र में  सरकार इसलिए बिठाई जाती है ताकि सरकारी खजाने का सही और जनहित में उपयोग हो। बेहतर सरकार वही मानी जाती है जहां अफ़सर बेलगाम न हो और लोगों की समस्यायो का निपटारा न्यायालय जाने से पहले हो जाए।
लेकिन जब सरकार पर ही कालिख पूती हो, सरकार के ही मंत्रियों की करतूतों पर सवाल उठ रहे हों और खुद मंत्री की भूख सिफऱ् पैसा कमाने की हो तो अफ़सरों की स्वे'छाचारिता को कैसे रोका जा सकता है। गंभीर अपराधों के बाद भी यदि कई अफ़सर महत्वपूर्ण मलाईदार पदों पर बैठे हैं तो इसकी प्रमुख वजह रमन सरकार और उसके मंत्री हैं। लोकतंत्र में सबसे बड़ी ताकत विधायिका होती है और उसकी जिम्मेदारी सिफऱ् सरकारी सुविधाओं का लाभ लेना या अपने हितों में फ़ैसला लेना बस नहीं है। बल्कि जनता के हित और चोरों को सजा मिले यह भी जिम्मेदारी है। लेकिन जिस तरह से उजार हुए भ्रष्टाचार के मामले में लीपापोती हो रही है वह उचित नहीं है। केवल बदनामी के डर से नरहरपुर कें आश्रम की आदिवासी मासूमों के बलात्कार की घटना पर लीपापोती करना शर्मनाक नहीं तो और क्या है। एक बात राजनेता जान लें कि लोकतंत्र में जनता का फ़ैसला सर्वोपरि होता है और हर बात हद में रहे तभी बेहतर है। अति सर्वत्र वर्जयेत।

बुधवार, 23 जनवरी 2013

सरकार ला झन कोसव...


आजकल जेती देखबे तेती एकेच ठन गोठ चलते हे। जगा जगा जनाकारी होवत हे। नान नान लईका मन ल घलो पापी मन नई छोड़त हे अऊ सरकार ह एमन ल फ़ांसी म चढातीस त बचाए म लगे हे। अऊ घटना के विरोध करईया मन ल मंत्री मन ह कुकुर कहत हे त घटना के साथ देवइया मन ल गोद मा बइठावत हे।
तभे त श्यामलाल ह कहत रीहिस घोर कलजुग आ गे हे बाबू, देख ताक के रहीबे। ते हा अब्बर गुस्सेलहा हस्। ईमान धरम ल गठिया के राख ले। ए मन त राम ल धोखा देवईया हे त तोला कब धोखा दीही तेन ला पार नई पाबे। अब्बर हिन्दू हिन्दू कहात रेहेस। लुटेरा निकल गेस। बांधा तरीया खेत खार दैइहान-गोठान कुछु नई बांचे हे।
सरकार के काम जनता के सेवा करना हे फ़ेर इंहा त धंधा करे लग गे हे। धरम-करम के त ठीकाना नई हे। धर परिवार ह त संभले नई संभलत हे त राज का संभाले सकही। तैं बुजा हिन्दु-हिन्दु करत मरत रहिथस। आदिवासी मन ह हिन्दु नो हे के सतनामी मन ह हिन्दु नो हे। सबके बारा ल बजा दे हे।
आजकल सियनहा मन के इहीच गोठ हे। ऊंखर मन तीरन कुछ कामेच नइ हे। कुछु लफड़़ा होईस सरकार के हाथ धो के पीछू पड़ जथे। कहे रहेवं न। देख वइसनेच होईस्। बताए रहेव न एमन ह खाली पइसा कमाए मा लगे हे।
अब सिअनहा मन ल कोन समझा के आश्रम म आदिवासी लइका मन संग जेन काम होए हे ओमा सरकार के कोनो गलती नइए। अब जनकारी सामने आए हे त कानून ह अपन काम करबेच करही। अउ आजकल मीडिया घलो ह तील के ताड़ बनाथे तेखर सेती त लईका मन ल लुकाए जात हे। अरे भई तुरते तुरत थोड़े फ़ांसी मा चढा दीही, लेकिन कोनो समझबे नई करय।
सियनहा मन ल त बस सरकार ल कोसे के बहाना चाही अतेक बर राज हे हर जगह किसिम किसिम के अपराध होवत हे। जम्मो डहार देखे ल पड़थे। फ़ेर घर परिवार कोती घलो त देखे ल पड़थे। फ़ेर घर परिवार कोती घलो त देखे ल पड़थे। कुछ कांही होत फ़ेर इहीच मन ह कही, ए दे घर ल नई संभाल सकत हे, अउ राज ल संभाले ल चले हे।   

मंगलवार, 22 जनवरी 2013

हद हो गई...


छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव सुनील कुमार को न केवल हाईकोर्ट में अपनी आमद देनी पड़ी बल्कि लिखित में यह कहना पड़ा कि आईंदा ऐसा नहीं होगा। हाईकोर्ट ने प्रदेश के गृह सचिव तक को नोटिस दिया है। एस पी कलेक्टर आए दिन हाईकोर्ट तलब किए जा रहे हैं और सरकार अफ़सरों की करतूतों पर परदा डाल रही है।
कोयले की कालिख के साथ कंठ तक भ्रष्टाचार में डुबी सरकार से बहुत Óयादा उम्मीद तो बेमानी है लेकिन सरकार की  करतूतों की सजा कोई कोई दूसरा क्यों भुगते। सरकार की इसी करतूत का फ़ायदा अधिकारी उठा रहे हैं। बेलगाम नौकरशाहों की मनमानी से आम आदमी का जीना दूभर होता जा रहा है। लेकिन सरकार को इसकी जरा भी परवाह हो ऐसा आचरण में नहीं दिखता।
वैसे तो रमन सरकार में अफ़सरशाही और प्रशासनिक आतंक की कहानी नई नहीं है एवं प्रशासनिक आतंक जैसे शब्दों का प्रयोग करने वाले विपक्षी कांग्रेसी नहीं उनकी ही पार्टी के नेता दिलीप सिंह जूदेव हैं। प्रशासनिक आतंक की हालत यह है कि गिनती के 4 अफ़सर पूरे प्रदेश को संभाल रहे हैं और उनके आगे न मंत्रियों की चलती है और न ही किसी और की चलती है।
प्रदेश में ऐसा कोई विभाग नहीं होगा जहां भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी फ़ल-फ़ूल रहे हैं। सरकारी खजानों पर तो डकैती डाली जा रही है। ईमानदार अफ़सरों को इतना प्रताडि़त किया जा रहा है कि वे आत्महत्या करने तक मजबूर हो रहे हैं। भ्रष्ट अफ़सरों को मलाईदार पदों पर ही नहीं बिठाया जा रहा बल्कि उन्हे रिटायरमेंट के बाद भी संविदा में रखा जा रहा है। पदोन्नति से लेकर तबादले में ईमानदार अफ़सरों की उपेक्षा की जा रही है और सरकार के मंत्रियों के पास पहुंचने वाली ऐसी शिकायतें रद्दी की टोकरी में फ़ेंकी जा रही हैं। यही वजह है कि अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ़ हाईकोर्ट में दस्तक दी जा रही है। अगर सरकार ही न्याय करे तो लोग कोर्ट क्यों जाएगें।
विधानसभा हो या मंत्रालय, कलेक्टरेट हो या पुलिस मुख्यालय सब जगह अफ़सरों की मनमानी से आम जनता त्रस्त है। अब तो अफ़सरों की अय्याशी का मामला इतना बढ गया है कि उनके द्वारा निवेशकों को लुभाने के नाम पर अश्लील नाच का आयोजन भी किया जाने लगा है। करीना कपूर हो या मैनपाट कार्निवल की रशियन बालाएं सब अफ़सरों की करतूतों की कहानी है जिस पर सरकार की पूरी स्वीकृति है।
प्रदेश में बैठी भाजपा सरकार को अपनी जिम्मेदारी का कितना अहसास है यह तो वही जाने लेकिन संविधानिक व्यवस्था में अफ़सरों से काम लेना सरकार की जिम्मेदारी है। लोकतंत्र में  सरकार इसलिए बिठाई जाती है ताकि सरकारी खजाने का सही और जनहित में उपयोग हो। बेहतर सरकार वही मानी जाती है जहां अफ़सर बेलगाम न हो और लोगों की समस्यायो का निपटारा न्यायालय जाने से पहले हो जाए।
लेकिन जब सरकार पर ही कालिख पूती हो, सरकार के ही मंत्रियों की करतूतों पर सवाल उठ रहे हों और खुद मंत्री की भूख सिफऱ् पैसा कमाने की हो तो अफ़सरों की स्वे'छाचारिता को कैसे रोका जा सकता है। गंभीर अपराधों के बाद भी यदि कई अफ़सर महत्वपूर्ण मलाईदार पदों पर बैठे हैं तो इसकी प्रमुख वजह रमन सरकार और उसके मंत्री हैं। लोकतंत्र में सबसे बड़ी ताकत विधायिका होती है और उसकी जिम्मेदारी सिफऱ् सरकारी सुविधाओं का लाभ लेना या अपने हितों में फ़ैसला लेना बस नहीं है। बल्कि जनता के हित और चोरों को सजा मिले यह भी जिम्मेदारी है। लेकिन जिस तरह से उजार हुए भ्रष्टाचार के मामले में लीपापोती हो रही है वह उचित नहीं है। केवल बदनामी के डर से नरहरपुर कें आश्रम की आदिवासी मासूमों के बलात्कार की घटना पर लीपापोती करना शर्मनाक नहीं तो और क्या है। एक बात राजनेता जान लें कि लोकतंत्र में जनता का फ़ैसला सर्वोपरि होता है और हर बात हद में रहे तभी बेहतर है। अति सर्वत्र वर्जयेत।

सोमवार, 21 जनवरी 2013

बस्तर फतह के लिए भाजपाई तिकड़म शुरू !


मसीही समाज पर दर्जन भर हमले ! राÓयपाल को ज्ञापन !
वैसे तो हिन्दुत्व का मुद्दा गरम कर चुनाव जीतने का भाजपा का पुराना शगल है । चुनाव जीतने के बलए वह कभी राम का सहारा लेती है तो कभी साम्प्रदायिकता की रोटी सेकती है । चूंकि पिछले दो बार से बस्तर फतह की वजह से ही सरकार बनी है इसलिए इस बार बस्तर फतह के लिए कई रणनीतियों में से एक धर्मान्तरण को भी मुद्दा बनाया जा रहा है ।
 इस रणनीति की वजह से ही बस्तर में हिन्दू व इसाई संगठन आमने सामने है । शासन के दबाव में प्रशासनिक करतूत से नाराज इसाई समुदाय ने हिन्दु संगठनों के अत्याचार के खिलाफ राÓयपाल को ज्ञापन सौंप सुरक्षा की मांग की है । छत्तीसगढ़ में बैठी रमन सरकार हैट्रिक के लिए साम दंड भेद सभी का सहारा लेने लगी है । चूंकि पिछले दो चुनाव में बस्तर से मिली ।।
सीटों की बदौलत ही वह सरकार में है इसलिए वह इस बार फिर बस्तर फतह की योजना बना रही है ।
सूत्रों की माने तो राजधानी में आदिवासियों पर हुए पुलिसिया लाटी चार्ज और कथित फर्जी मुठभेड़ के अलावा दबंग नेता बलिराम कश्यप के निधन के बाद भाजपा को बस्तर खोने का डर लगने लगा है । यही वजह है कि बस्तर फतह के लिए धर्मान्तरण व हिन्दुत्व के मुद्दे को जमकर उछाला जा रहा है । और प्रशासन भी तमाशाबीन बनी हुई है । मसीही समाज ने इस संबंध में राÓयपाल को ज्ञापन सौपंकर जान माल की सुरक्षा की मांग करते हुए रमन सरकार पर गंभीर आरोप लगाये हैं । राÓयपाल को सौपे ज्ञापन में हिन्दु संगठनों के द्वारा पिछले एक डेढ़ माह में मसीही समाज पर किये अत्याचार का विवरण हेते हुए प्रशासन पर राजनैतिक दबाव में कार्रवाई नहीं करने की बात कही गई है ।
राÓयपाल को सौपें ज्ञापन में मसीही महासंघ के अध्यक्ष शैलेन्द्र साह मनीष एण्ड्रूस व नवनीत चांद के कहा कि बस्तर मसीही समाज आपसे मसीही समाज पर हो रहे अत्याचारों के लिए सहयोगात्मक नजरयिे से मदद की उम्मीद व आशा करता है और आपको यह बताना चाहता है कि बस्तर में मसीही समाज के साथ सरकार के नुमाइंदे विश्व हिन्दु परिषद, आर.एस.एस. व बजरंग दल द्वारा प्रताडऩाए व अत्याचार लगातार किया जा रहा है जिससे मसीही समाज बहुत ही आक्रोशित है । आपको हमारी आवाज बनने के लिए इन घटनाओं का विवरण प्रेषित है :-
1.     माह जून 2012 में ग्राम-जाटम, ब्लॉक-जगदलपुर मसीही समुदाय द्वारा निजी जमीन कब्रिस्तान हेतु क्रय की गई है, जिसमें शासन द्वारा बाउण्ड्रीवाल हेतु राशि 20 लाख 40 हजार स्वीकृत किया गया वे ठेकेदार द्वारा कार्य प्रारंभ किये जाने पर विश्व हिन्दु परिषद द्वारा हंगामा मचाया गया । बाउण्ड्रीवाल को तोड़ा गया व गॉव में इसे ना बनने की नसीहत दी गई, जिसके रिपोर्ट मसीही द्वारा परपा थाने में दर्ज है, जिस पर कार्यवाही अब तक लंबित है ।
2.     दिनांक 29/09/2012 स्थान किंजोली गॉव, ब्लॉक बकावण्ड में घटना मसीही समुदाय द्वारा धार्मिक पत्रिका का वितरण उपरांत बजरंग दल व विश्व परिषद द्वारा प्रार्थियों के साथ जमकर मारपीट कर थाना कोतवाली में धारा 151 के तहत 07 मसीही लोगो को गिरफ्तार करवाना ।
&.     दिनांक &0/11/2012 स्थान जगदलपुर प्रेस क्लब - विश्व हिन्दु परिषद द्वारा पत्रकार वार्ता कर सार्वजनिक तौर पर मसीही समाज पर राÓयद्रोह का आरोप लगाकर शासन द्वारा मसीही समाज पर कार्यवाही की मांग करना ।
4.     दिनांक 01/12/2012 मसीही समाज के प्रतिनिधियों द्वारा इन विषयों को लेकर जिला अधीक्षक व जिला पुलिस अधीक्षक से वार्ता कर ज्ञापन सौंपा गया । जिस पर कार्यवाही अब भी लंबित है । कारण राजनैतिक दबाव ।
5.     दिनांक 05/12/2012 स्थान एच.पी.गैस एजेन्सी धरमपुरा जगदलपुर - पास्टर ईसहाक दास द्वारा धार्मिक पत्रिका का वितरण करने पर विश्व हिन्दु परिषद द्वारा सार्वजानिक तौर पर मारपीट कर बोधघाट थाने में केस दर्ज करवाना ।
6.     दिनांक 06/12/2012 स्थान जगदलपुर - विश्व हिन्दु परिषद द्वारा संवेदनशील दिनांक में शौर्य दिवस के नाम पर शहर में सार्वजनिक तौर पर जंगी रैली निकालकर मसीही समाज के ऊपर अशोभनीय नारेबाजी कर (चर्च चलाने वालो को जूता मारो सालो को, ईसाईयों को भगाओ देश को बचाओ) जैसे नारेबाजी कर मसीही समजा के राष्ट्रीय प्रेम एवं राष्ट्रीयता पर सवाल उठाना ।
7.     दिनांक 07/12/2012 मसीही समाज के प्रतिनिधियों द्वारा आपत्ति दर्ज कर जिला अधीक्षक व जिला पुलिस अघीक्षक को ज्ञापन देकर ऐसे माहौल से मुकातिफ कराया गया, व कार्यवाही की मांग की गई जो अब तक लंबित है । कारण राजनैतिक दवाब ।
8.     दिनांक 2&/12/2012 ग्राम आसना, ब्लॉक जगदलपुर - घटना विश्व हिन्दु परिषद द्वारा ग्राम पंचायत आसना में सार्वजनिक तौर पर माइक्रोफोन का उपयोग कर सभी मसीही समाज के अनुयायियों को ग्राम पंचायत व पंचायती सुविधाओं से बहिष्कृत करने का ऐलान कर फतवा जारी किया गया । जिसकी जानकारी तत्काल जिला अधीक्षक व जिला पुलिस अधीक्षक को मसीही समाज के प्रतिनिधियों द्वारा दी गई, जिस पर कार्यवाही अब तब लंबित है । कारण राजनैतिक दवाब ।
9.     दिनांक 02/01/201& स्थान साडग़ुड़, थाना-परपा (जगदलपुर) - घटना साडग़ुड़ में चर्च चलाने को लेकर पास्टर कमल कश्यप, दलसाय एवं उनके सार्थियों के साथ विश्व हिन्दु परिषद द्वारा मारपीट कर गौ हत्या का झूठा आरोप लगाकर प्रताडऩा देना ।
10.     दिनांक 05/01/201& स्थान जगदलपुर - विश्व हिन्दु परिषद द्वारा पत्रकार वार्ता कर हाटकचोरा (जगदलुर) के मसीही कब्रिस्तान को क्षतिग्रस्त करने का सार्वजनिक तौर पर ऐलान करना व कानून व्यवस्था को प्रशासन क ेना मानने पर अपने हाथ में ेने की धमकी देना ।
नोट:-     सभी समाचार पत्रों में         प्रकाशित ।
11.     दिनांक 08/01/201& स्थान हाटकचोरा (जगदलपुर) मसीही कब्रिस्तान घटना - विश्व हिन्दु परिषद व जगदलपुर नगर निगम महापौर, नगर निगम अध्यक्ष, नगर निगम आयुक्त द्वारा बिना कोई सूचना दिये व जिला अधीक्षक के बिना सहहमति लिए समाज को अंधेरे में रख हाटकचोरा मसीही कब्रिस्तान के दीवारो को जेसीबी उपयोग कर तोडऩा व कब्रों को क्षतिग्रस्त कर विश्व हिन्दु परिषद द्वारा मसीही समाज की आस्था के साथ खिलवाड़ कर समाज के पवित्र कब्र पर नाचकर अश£ील नारेबाजी करना व वहॉ पर उपस्थित मसीही समाज के सम्माननीय पास्टरों के साथ अभद्र व्यवहार कर मारने की धमकी देना ।
12.     दिनांक 08/01/201& स्थान जगदलपुर बोधघाट थाना - हाटकचोरा के कब्रिस्तान को क्षतिग्रस्त करने के बाद मसीही समाज के द्वारा आरोपियों के खिलाफ एफ.आई.आर. करने के लिए 08 घण्टे तक मशक्कत करना व राजनैतिक दवाब के कारण पुलिस प्रशासन का मसीही समाज के साथ अभद्र व्यवहार कर आरोपियों के खिलाफ सामान्य धारा लगाना, पुलिलस प्रशासन द्वारा पक्षपातपूर्ण रवैया दर्शाता है ।
1&.     भारतीय जनता पार्टी नगर मण्डल जगदलपुर हके पदाधिकारियों कद्वारा मसीही समाज पर हो रहे अत्याचार के विरूद्ध समाज द्वारा आवाज उठाये जाने पर मसीही समाज द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थानों के मान्यताओं को रद्द करने व माम्प्रदायिकता फैलाने का झूठा आरोप गढ़ शासन से कार्यवाही की मांग की गई है ।
14.     मसीही समाज को आशंका है कि उनके कानूनी अधिकारों का उल्लंघन फिरन से किया जा सकता है । मसीही समाज के पदाधिकारियों पर गलत तरीके से कानूनी प्रकरणों का इस्तेमाल कर दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है और उन पर जानलेवा हमला होने की भी आशंका है । इन पदाधिकारियों के नाम निम्नलिखित है :-
    1.     रेव्ह.अनीष एण्ड्रस (जिला अधीक्षक, मेथोडिस्ट         चर्च बस्तर जिला)
    2.     श्री शैलेन्द्र शाह (अध्यक्ष, बस्तर मसीही                 महासंघ)
    &.     श्री नवनीत चॉद  (सचिव, बस्तर मसीही                 महासंघ)
    4.     रेव्ह.राकेश दास (सलाहकार, बस्तर मसीही             महासंघ)
    5.     रेव्ह.जॉन डेनियल (अध्यक्ष, इंटर डिनामिनेशन             चर्च फेलोशीप)
    6.     रेव्ह.राजेश हाबिल (पास्टर ए.जी. चर्च)
     7.     रेव्ह.जीजी पॉल (पास्टर आई. पी.सी.चर्च)            8.     रेव्ह.अर्नेस्ट अब्राहम (पास्टर कर्मेल चर्च)
    9.     श्री मुन्ना पॉल  (अध्यक्ष, यूनाईटेड क्रिश्चयन             कब्रिस्तान कमेटी)
अत: महोदय आपसे मसीही समाज का विनम्र निवेदन है कि आप इन अत्याचारी घटनाओं को बड़ी गंभीरता से लेते हुए आप व आपकी पार्टी के जनप्रतिनिधियों के माध्यम से राÓय सभा व विधान सभा में मसीही समाज की तरफ से आवाज बन अपराधियों के विरूद्ध सक्त से सक्त कार्यवाही करवा कर समाज को न्याय दिलाये व हमारे सम्मान की पहचान बन हमारी राष्ट्रीयता की पहचान सरकार को समझाए ।

शराब से लेकर सट्टा का जोर...


नगर निगम मुख्यालय में न तो शराबखोरी नई बात है और न ही जुआं सट्टा । हर अधिकारी को मालूम है कि बेसमेंट से लेकर छत तक शराबियों के अपने-अपने अड्डे हैं । ऐसे में कमिश्रर को इसकी जानकारी नहीं है या महापौर को इसकी खबर नहीं होगी कहना कठिन है । यह तो सीए बंगाली के लोगो ने महिला कर्मचारी से बदसलूकी नहीं की होती तो कोई इसे संज्ञान में ही नहीं लेता । आखिर आडिर के काम में शराब और बिरयानी परोसे जाने का कतलब ही साफ है कि यहां के कई अधिकारी अपने काले-पीले कारनामें को सफेद करने में लगे है । हर विभाग में यही हो रहा है । पिछले महापौर के कार्यकल के दौरान भी हंगामा हुआ था लेकिन मामला दबा दिया गया ।
नगर निगम भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है जहां कई पार्षदों से लेकर अधिकारियों की शामें शराबखोरी में रंगीन होती है । और यह सब इतने खुलेआम चलता है कि इसकी गूंज सड़कों तक सुनाई देती है ।
निगम मुख्यालय हो या जोन यहां तक कि निगम के स्कूलों का भी यही हाल है । छूट्टी होने के पहले ही इंतजाम अली पहुंच जाते है और फिर इससे महफूज जगह भी क्या होगी । दावा तो इस बात का भी हो रहा हे कि यहां के कई कर्मचारी खुले आम सट्टा खेलते हैं और यदि परीक्षा दे रहे ब"ाों की तरह यहां के कर्मचारियों की जेबों की जांच हुई तो बोरी भर सट्टा पट्टी जब्त हो सकता है । नगर निगम के कर्मचारियों की ताकत का अंदाजा यहां के अधिकारियों को भी हे इसलिए यहां अकास्मिक निरीक्षण जैसी बात ही नहीं होती । जनप्रतिनिधि भी इन कर्मचारियों के साथ खड़े होते हैं ऐसे में यदि दिन में भी यहां शराब पीकर काम करते कोई कर्मचारी दिख जाये तब भी कार्रवाई नहीं होती ।
महापौर किरणमयी नायक ने तो शराब-बिरयानी कांड के बाद सारा ठीकरा कमिश्रर के सिर फोड़ दिया । उन्होंने कह दिया कि यदि कमिश्रर लगातार मानिटरिंग करते रहते तो यह घटना नहीं होती केवल आदेश निकालने से कुछ नहीं होता । लेकिन सवाल यह भी है कि नौकरशाह पर नकेल कसने की जिम्मेदारी शहर की जनता के महापौर को दिया है वे क्यों सश्प्राईज चैकिंग क्यों नहीं करती ।
आम आदमी निगम से कितना त्रस्त है यह किसी से छिपा नहीं है । सफाई कर्मी तक शराब के नशे में सुबह-सुबह दिख जाते हैं । मुख्यालय या जोन पहुंचने वालों को खासकर महिलाओं को कितनी दिक्कत होती है यह भी किसी से नहीं छिपा नहीं है ।
स्वे'छा चारिता की हदें पार हो चुकी है और पार्षदों का काम ही दूसरा हो चुका है । कई पार्षद तो अपने वार्डो को सुधारने की बजाय कमाई में Óयादा ध्यान है । ठेकेदारों से काम कराने की बजाय कमिशन का खेल चल रहा है । और जब जनप्रतिनिधि ही कमिशन खोरी में लग जाये तो कर्मचारियों की स्वे'छाचारिता तो बढ़ेगी ही ।
मूंदी
मुंदी आंख से
शहर के चचिते अवैध निर्माण से चंदा वसूलने गये एक पार्षद को जैसे ही पता चला कि उनके नाम का पैसा कोई ले गया है तो वह पहले तो आग बगुला हो गया लेकिन पैसा ले जाये वाले का नाम सुनते ही गिड़गिड़ाने लगा कि आप कुछ न कहना मैं ही बात कर लुंगा ।

रविवार, 20 जनवरी 2013

थाने से लेकर सड़क तक दुव्र्यवहार ...


छत्तीसगढ़ पुलिस के द्वारा आम लोगों से दुव्र्यहार की कोशिश सिर्फ थाने तक ही सीमित नहीं है वह सड़कों परभी बड़े ही अभद्र ढंग े पेश आती है । जनता से व्यवहार सुधारने के लिए अफसरों ने भाषण दिया अैर पुलिस को गुस्सा आ जाता है । आखिर वे गाली गलौज न करे तो फिर पुलिस से कौन डरेगा । और पुलिस से लोग डरेंगे नहीं तो फिर वर्दी पहनने का मतलब ही क्या रह गया है ।
सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाने निकले पुलिस वालों को तो अपने प्रदर्शन का बहाना चाहिए जब कानून का रखवाला ही कानून तोड़े तो तमाश देखने के अलावा क्या बचता है ।
हर साल सड़क सुरक्षा सप्ताह के नाम पर पुलिस का प्रदर्शन से सरकार को भी मतलब नहीं रह गया है । सुरक्षा सप्ताह क ेनाम पर सड़कों को घेर कर पंडाल लगाना और फिर यातायात के नियमों का बोर्ड लगाकर वसूली करना तो अब शगल बन चुका है । इस बार तो सुरक्षा सप्ताह के नाम पर लगाये गये पंडालों में फिल्मी गीत भी खूब बजाये गए । बस स्टैण्ड के पास लगे पंडाल में बज रहे फिल्मी धुन पर जब एक शराबी थिरकने लगा तो पुलिस वाले भी मजा लेने लगे ।
आखिर मजा लेने के लिए ही तो फिल्मी गीत बजाये जा रहे थे । अब लोग पुलिस पर हंसे या न हंसे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता वैसे भी पुलिस वाले जानते है कि उनकी छवि आम लोगों में इ तरह बैठ गई है कि लोग तो उन पर हंसेगे ही तब क्यों न हंसने वाला काम ही कर लिया जाए ।
और यातायात सुधार सप्ताह तो हर साल आता ही है । फिर लोगों को भी मालूम है कि सप्ताह भर में कोई सुधर नहीं सकता ह। जब खुद नहीं सुधर पा रहे हैं तो लोगों को उम्मीद करना ही बेमानी है ।
पुलिस जानती है कि यह चुनावी साल है और चुनावी में सरकार उनसे क्या चाहती है इसलिए सरकार के हिसाब से चलना है यानी सांप भी मर जाए और लाटी भी न टूटे । यही वजह है कि अपराधियों को पकड़ कर कौन मंत्रियों से पंगा ले । तभी तो डॉ. बाढिया हो या मन्नू नत्थानी सभ्ी मजे से शहर में घूम रहे हैं । जनता को बरडालाने संपत्ति $फुर्क करने की हवा फैलाते रहो । करना कुछ नहीं है ।
Óयादा हल्ला मचे तो पुलिस बल की कमी का रोना रो दो । वैसे भ पुलिस को बचाने का काम सरकार का हो गया है । तभी तो बढ़ते अपराध पर नेता ही कह देते हैं कि राजधानी में अपराध तो बढेंग़े ही । आखिर थानों में पोस्टिंग वैसे ही नहीं होती है । बगैर पैसों का कुछ नहीं होता ।
तभी तो थाने में बढ़ते दुव्र्यवहार पर कोईवाई नहीं होती । हर थानेदार अपनी मर्जी का मालिक हो गया है । चाहा तो रिपोर्ट लिखेंगे और रिपोर्ट लिखेंगे तो अपनी मनमर्जी का धारा लगाते रहेंगे ।
अब पीडि़त बोलता रहे उनके साथ लूट हुई है मोवा थाने में चोरी ही लिखी जायेगी आप अफसरों के चक्कर लगाते थक कर चुप बैठ ही जाओंगे ।
चलते-चलते
पुलिस ने जमीन विवाद को निपटाने अलग सेल बना रखा है । सेल में बैठे लोग आने वाली शिकायतों के लिए मेहनत भी कर रहे है लेकिन अस्सी फीसदी मामले में कार्रवाई करने से उनके हाथ पांव फूलने लगते हैं । अब तो वे सत्ता बदलने की राह ताक रहे हैं ताकि कार्रवाई में अडग़ा डालने वाले मंत्री के परिवार को मजा चखा सकें ।

शनिवार, 19 जनवरी 2013

आखिर इलेक्ट्रानिक वाले अलग हो ही गये ...


यह तो होना ही था । आखिर ग्लैमर से भरे इलेक्ट्रानिक मीडिया कब तक प्रिंट मीडिया के दबदबे पर चुप रहती । इलेक्ट्रानिक मीडिया इस बात पर लंबे समय से नाराज थे कि आजकल हर नेता - अधिकारी इलेक्ट्रानिक मीडिया के ग्लैमर के आगे नतमस्तक है तब भला प्रेस क्लब में पिं्रट मीडिया का दबदबा क्यों नहीं है ।
दरअसल प्रेस क्लब को प्रिंट मीडिा के वरिष्ठ पत्रकारों ने अपने खूब पसीना से सींचा है और सीनियरों की मेहहनत की वजह से ही रायपुर प्रेस क्लब का नाम सम्मान से लिया जाता है । ऐसे में प्रेस क्लब की गरिमा बनाये रखने की जिम्मेदारी भी कम नहीं है ।
ऐसा नहीं है कि प्रेस क्लब को तोडऩे की यह पहली कोशिश है पहले भी ऐसी कोशिश होते रही है लेकिन वरिष्ठों की प्रभावी भूमिका से तोडऩे का मसूंबा कभी पूरा नहीं हुआ ।
पुसदकर नेतागिरी की ओर
प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष अनिल पुसदकर ने पत्रकारिता छोड़ दिया है या नहीं यह तो तय नहीं है लेकिन इन दिनों बे फिरसे राजनीति करने लगे है और केजरीवाल की पार्टी आम आदमी पार्टी के रायपुर का मीडिय़ा संभाल रहे हैं । यानी लड़ाई चालू आहे ।
सिमटती दूनिया-छिटकती खबरें...
कांकेर जिले के नइहरपुर ब्लॉक के आदिवासी कन्या आश्रम में हुई बलात्कार ने समूचे छत्तीसगढ़ को झकझोर कर रख दिया । घटना के विरोध में चप्पा-चप्पा बंद रहा । पर इतनी बड़ी खबर का नेशनल मीडिया में स्थान हैरान कर देने वाला है ।
नेशनल मीडिया की इस तरह की भूमिका को लेकर कमोबेश सभी राÓयों में जनमानस में नाराजगी है । काहे का नेशनल ! दिल्ली में बैठने भर से कोई नेशनल मीडिया बन जाता है ? ऐसे कितने ही आक्रोश के स्वर सुनाई पड़ते हैं ।
दरअसल संचार क्रांति के इस दौर में जैसे-जैसे दुनिया मोबाईल और इंटरनेट में सिमटती जा रही है । वैसे-वैसे खबरों की जानकारी बढ़ते जा रही है । ऐसे में समाचार पत्र या खबरिया चैनल की भूमिका भी बदली है । और व्यापार बाद हावी हुआ है । और जब व्यापार की सोच के साथ खबरें परोसी जाती है तब उन खबरों को ही प्राथमिकता दी जाती है जहां से विज्ञापन अधिक मिलते है या जहां प्रसार अधिक होता है ।
नेशनल ही नहीं राÓयों की राजधानी में बैठे मीडिया का भी यही रवैया है । खबरों की अधिकता और जगह की कमी की वजह के अलावा व्यापारिक फायदे ने कई बार खबरों के साथ अन्याय तो किया ही है पाठकों की सोच को भी बदला है । जब पूरे मामले का दारोमदार वे राÓय सरकार के ऊपर छोड़ते है तो खुद क्षमा क्यों मांगते हैं और अगर वे यह साफ करने की कोशिश करते हे कि उन्हौंने माननीय आधार पर क्षमा मांगा है तो क्या मानवीय आधार का क्षेत्रफल उनके क्षमा मांगने तक विस्तारित है, या सिमित है ? बात यह भी है कि अगर वे मान लेते है कि इस आरपी एफ कार्यवाही दौरान निर्दोष मारे गए है तो क्या देश गृहमंत्री के पद पर सुशोशित चिदंबरम द्वारा एक भी निर्दोष के मौत बाद केवल क्षमा मांग लेना भी उचित प्रतीत होता है ? देखा जाए तो अपने तरह का यह पहला मामला है जब किसी निर्दोष सोचना है कि काश इस मुद्धे पर चिदंबरम खामोश ही रहते तो कितना अ'छा होता, पर चिदंबरम भी क्या करें ना बोले तो क्यूं और अब बोल दिए तो क्यों ?
दरअसल उक्त विषय में जाग्रत पार्टी के लामबंदी बाद चिदंबरम ने कहा है कि अगर इसमें निर्दोष लोग मारे गए है तो वह इसके लिए मानवीय आधार पर क्षमा मांगते है ! उन्हौंने यह भी कहा है कि कानून व्यवस्था राÓय का विषय है यह भी कहते है कि इस पर अन्तिम फैसला लेने का हक सरकार का है सवाल यह है कि राÓयों की बड़ी खबरों को लेकर आम पाठकों का नेशनल मीडिया के प्रति जो सोच है । कमाबेश वही सोच राÓयों की राजधानी की मीडिया के प्रति ब्लाक या जिला के पाठकों का है ।
यही वजह है कि नेशलन मीडिया पर राÓयों की राजधानी की मीडिया के प्रति लोगों का आक्रोश बढ़ा है । हालांकि यह भी सच है कि कई बार बड़ी खबरों की जानबुझकर उपेक्षा की जाती है ।
और अंत में ...
सूचना के अधिकार के तहत जूटाये गए साक्ष्य पर जब एक पत्रकार ने खबर बनाने की सोची तो अखबार के संपादक ने अपने स्लोगन सुनाते हुए पत्रकार को ही फटकार लगा दी । यानी स्लोगन में मित्र यूं ही नहीं है ।

शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

जब चमड़ी मोटी हो जाये ...


भले ही कादर खान ने एक फिल्म में राजनीति का मतलब राक्षस की तरह जनता को निगलने वाला तिकड़म बाज मजाक में कहा हो लेकिन इन दिनों राजनीति का यही मतलब निकलने लगा है । तभी तो नेता नाम से ही लोगों में गुस्सा दिखने लगता है । राजनीति में बढ़ती गंदगी और उसमें तैरते हुए मुस्कुराते नेताओं के चेहरे देखकर आम आदमी के मुंह से गालियां निकलने लगती है । भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले खुद भ्रष्ट हो गये हैं और भारतीय संस्कृति की हुहाई देने वाली पार्टी की सरकार और उनके नेताओं को अश£ील डांंस देखने में मजा आता है । छत्तीसगढ़ में सत्ता में बैठी रमन सरकार की करतूतों से हिन्दुत्व और संस्कृति की बात करने वाले भले ही हैरान न हो लेकिन आम आदमी हैरान हे ।
एक तरफ जब कांकेर में आदिवासी बालिकाओं के साथ हुए दुष्कर्म से लोगों में आक्रोश है तो दूसरी तरफ प्रदेश सरकार के मंत्री व प्रशासन के जिम्मेदार अफसर मैनपाट कार्निवाल के नाम पर अश£ील डांस का मजा ले रहे थे । भारतीय संस्कृति की दुहाई देने वाल ेभाजपाई नेताओं ने जिस तरह से विदेशी बालाओं के डांस पर तालियां बजाई वह शर्मनाक हे । भले ही कलेक्टर अपनी सफाई में इसे विदेशी पर्यटकों को लुभाने की कोशिश कह रहे हो लेकिन कार्यक्रम में मौजूद महिलाओं के लिए यह कतई सहज नहीं था । वैसे भी छत्तीसगढ़ की संस्कृति में ऐसी अश£ीलता का कहीं स्थान नहीं है लेकिन भारतीय संस्कृति की दुहाई देते नहीं थकने वाली भाजपा की सरकार को तो सत्ता में आने के बाद ऐसी ही अश£ीलता में मजा आता है तभी तो राÓयोत्सव में करीना कपुर के ठुमके लगवाये जाते है और परिवार सहित फोटो खिचवाये जाते हैं ।
नगर निगम में नेता प्रतिषक्ष सुभाष तिवारी और आरडीए उपाध्यक्ष प्रफुल्ल विश्वकर्मा की उपस्थिति में भी अश£ील डांस के कार्यक्रम पर भी पार्टी खामोश रहती है तो इसका मतलब साफ है ।
वैसे राजनीति का यह सिद्धांत है कि जो कहते हैं वह करते नहीं । शायद यही वजह है कि सत्ता में आने के पहले हल्ला मचाये जाने वाले मुद्दे सत्ता से आते ही भुला दिये गये । शिक्षा कर्मियों के संविलियन या किसानों को 270 रूपये बोनस देने की बात यदि छोड़ भी दिया जाए तो धर्मशास्त्र के विपरित पांचवा कुंभ राजिम बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ा गया । भारतीय धर्म को लेकर लंबा चौड़ा भाषण देने वालों के इस कृत्य का शंकराचार्य ने ीाी कड़ा प्रतिवाद किया लेकिन इससे सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ा । फर्क तो रोगदा बांध बेचने या कोयले की कालिख के बाद भी नहीं पड़ा इसलिए तो कहते हैं कि जब नेताओं की चमड़ी मोटी हो जाये तो उन्हें इस बात की कोइ्र परवाह नहीं होती कि उनके बारे में जनता क्या सोचेगी । सत्ता और पैसे के दंभ नेतो अ'छे-अ'छों को दुष्कर्म के दल-दल में धकेल दिया है
यही वजह है कि कांकेर में आदिवासीय ब"िायों के साथ हुए दुष्कर्म के बाद रमेश बैस जैसे वरिष्ठ सांसदों के बयान दुर्भाग्य पूर्ण आते हैं तो कई भाजपाई नेता अपना अपा खो देते है । प्रदेश के मुखिया को इस मामले के दोषी लोगों को जल्द सजा की मांग करने वालों में राजनीति दिखलाई देता है । जबकि स"ााई यह हे कि सरकार अपने आप कुछ करेगी यह भरोसा ही नहीं है तभी तो गर्भाशय कांड के जैसे जघन्य अपराध करने वालों का निलंबन समाप्त हो जाता है । उद्योगों को जमीन देने किसानों पर लाठियां बरसाई जाती है और मिलावट खोर को पकडऩे वाले पुलिस अफसर को छुट्टी पर भेज दिया जाता है ।
अब तो लोगों का यह भरोसा उठ ही गया है कि सरकार अपने मन से कुछ करेंगी । लोगों को लगने लगा है कि न्याय तभी मिलेगा जब लोग सड़क पर आयेंगे अन्यथा मोटी चमड़ी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा ।

गुरुवार, 17 जनवरी 2013

प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं आफ़त में अस्तित्व..


अपनी साफ़ सुथरी छवि और कांग्रेस की आपसी गुटबाजी की वजह से दूसरी बार सत्ता में आई रमन सरकार इन दिनों चौतरफ़ा विरोध के चलते अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। एक तरफ़ कोयले की कालिख का कलंक धुलने का नाम नही ले रहा है तो दूसरी तरफ़ उद्योगों के लिए खेती की जमीन बांध और सरकारी जमीन देने से लोगों में बेहद आक्रोश है।
इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी भाजपा को पहला झटका तो तभी लग गया था जब मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह पर राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गड़करी के करीबी माने जाने वाले संचेती बंधुओं को पानी के मोल भटगाँव कोल ब्लॉक ही नहीं दिया बल्कि 49 फ़ीसदी शेयर होने के बाद भी उन्हे एम डी बना दिया गया। कैग ने इस कोल ब्लॉक के आबंटन पर न केवल कड़ी आपत्ति की बल्कि 1052 करोड़ क नुकसान भी गिना दिया।
एक तरफ़ जब पूरी भाजपा भाजपा कोल ब्लॉक  आबंटन को लेकर मनमोहन सरकार को घेर रही थी, वहीं दूसरी तरफ़ रमन सरकार की वजह से उन्हे बैकफ़ुट पर आना पड़ा। कोयले की इस कालिख पर छत्तीसगढ के अन्य भाजपा नेता रमेश बैस करुणा शुक्ला ने भी सरकार को आड़े हाथों लिया लेकिन हाईकमान के दबाव पर विरोध के स्वर दबा दिए गए।
हांलाकि सरकार पर रोगदा बांध बेचने से लेकर उद्योगों के लिए खेती की जमीन बरबाद करने का आरोप भी है। उद्योगों को फ़ायदा पहुंचाने फर्ज़ी जनसुनवाई से लेकर बाल्को चिमनी कांड को लेकर भी रमन सरकार कटघरे में खड़ी दिखाई दी लेकिन बहुमत के दम पर मामले को दबा तो दिया गया लेकिन लोगों में अब भी आक्रोश है और यही हाल नई राजधानी और कमल विहार योजना से प्रभावितों का है।

रमन सरकार के लिए आदिवासी व सतनामी समाज का गुस्सा भी मुसीबत भरा है। सतनामी समाज के गुस्से के आगे तो सरकार घुटने टेकते नजर आ रही है।  कुतुब मिनार ऊंचा जैतखंभ का उद्घाटन भी नहीं हो पा रहा है। जबकि सर्व आदिवासी समाज अपने उपर हुए पुलिस लाठी चार्ज से नाराज है।  ऐसे में कांकेर आदिवासी आश्रम में हुए दुष्कर्म ने आग में घी का काम किया है।
समाज ही नहीं शिक्षाकर्मियों ने तो रमन सरकार से आर-पार की लड़ाई शुरु कर दी है। चुनावी घोषणा पत्र को संकल्प का नाम देकर शिक्षा कर्मियों के संविलियन को नकारने से भाजपा की ही मुसिबत बढी है और ऐसे में मिशन 201& मे हैट्रिक बनना तो दूर अस्तित्व पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
मिशन 1& में जुटी भाजपा के लिए सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि वह सत्ता के लिए राम को छोडऩे का आरोप पोंछ नहीं पा रही है। और अब भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात का आरोप लगने लगा है। संस्कृति की दुहाई देने वाले लाल बत्तीधारी कभी मैनपाट कार्निवल में विदेशी बालाओं के अश्लील डांस पर तालियाँ बजाते दिख रहे हैं तो कभी बिहार की संस्कृति की दुहाई देकर अश्लील डांस में ठुमके लगाते दिखते हैं। राÓयोत्सव में करीना कपूर को बुलाने को लेकर भी भाजपा निशाने पर है।
इन दिनों प्रदेश में रमन सरकार के इस चौतरफ़े विरोध में  मंत्रियों की दबी जुबान भी चर्चा में है। कोइ इसे सत्ता का दंभ कह रहा है तो कोई इसे बौखलाहट बता रहा है। लेकिन एक बात तो तय है कि मंत्रियों की बेलगाम होती जुबान ने भी भाजपा की किरकिरी करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। रामविचार नेताम जैसे मंत्री जहां विरोध पर कुत्ते कहते हैं तो  सांसद रमेश बैस को बड़े लोगों से बलात्कार समझ के लायक है। राजेश मूणत तो गुस्से में आपा खो कर गाली गलौज पर करने लगते हैं तो गृहमंत्री को ग्रह नक्षत्र का दोष दिखता है।
बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। अब तो बढते चौतरफ़ा विरोध के चलते सीएम रमन सिंह की सभा में काले कपड़े पहनकर जाने पर ही अघोषित प्रतिबंध लगा दिया गया है।  14 जनवरी को राजनांदगाँव में मुख्यमंत्री के कार्यक्रम तो काले कपड़े पहनकर आने वालों न केवल रोका गया बल्कि मोजे, टाई, स्वेटर, काले कोट तक उतरवाए गए।इमरजेंसी का विरोध करने व मीसाबंदियों को पेंशन देने वाली सरकार की क्या यह अघोषित इमरजेंसी नहीं है।
बहरहाल मिशन 1& में हैट्रिक का सपना संजोए रमन सरकार के4 खिलाफ़ चौतरफ़ा विरोध का जो माहौल तैयार हुआ है वह बना रहा तो भाजपाईयों के लिए मुश्किल हो जाएगी।

सोमवार, 14 जनवरी 2013

अपनी पीठ थपथपाने में मजा आता है..


.यह तो अपनी पीठ थपथपाने नहीं तो और क्या है । राजधानी सहित पूरे प्रदेश में बलात्कार हत्या लूट चोरी सहित अन्य अपराध बढ़े हैं । पुलिस वाले जगह-जगह पिटे जा रहे हैं । राजेश शर्मा, डॉ. बाठियां, मन्नू नत्थानी से लेकर कितने ही अपराधी पुलिस की पकड़ से दूर है । थानों में लूट की जगह चोरी की रपट लिखी जा रही है । बलात्कार पीडि़त की रिपोर्ट नहीं लिखी जा रही है । जुआ-सट्टा और छेडख़ानी से आम आदमी परेशान है? नक्सलियों की समानांतर सरकार चल रही है लेकिन पुलिस अपनी उपलब्धि बताने में लगी है ।
डीजीपी से लेकर पुलिस कप्तानों में होड़ मची है ।  कि नाकाम्याबी इस प्रचार के धुंध में दब जाये । और पूरे छत्तीसगढ़ पुलिस का यही रवैया है । अचानक पकड़ में आये मामले पर इतना हाय तौबा मचाया जा रहा है कि असफलता व पुलिसिया अत्याचार को लोग भूल जाये ।
यह सच है कि राजधानी में राजनैतिक दबाव पुलिस को झेलने पड़ रहे हैं । इसके अलावा बल की कमी और वीआईपी ड्यूटी से थानों में विवेचना का काम प्रभावित हुआ है लेकिन यह भी उतना ही बड़ा सच है कि पुलिस की छवि वसूली बाज के रूप में सामने आई है । इन दिनों पूरे प्रदेश भर में अपनी काम्याबी के झंडे गाडऩे का दौर चल रहा है । राÓय सरकार से लेकर महापौर तक अपनी उपलब्धियों गिनाते नहीं थक रहे हें ऐसे में भला चार साल से राजधानी की कप्तानी संभाल रहे एस एस पी दीपांशु काबंरा भी कहां चुकने वाले थे । इसलिए वे भी अपने जिले की पुलिसिया उपलब्धि बताने में जुट गए । जैसे की अक्सर होता है यदि किसी झूठ को बार-बार बोला जाये तो वह सच लगने लगता है । यही हाल छत्तीसगढ़ पुलिस का है ।
अचानक बिल्ली के भाग से छींका टूर जाये तो उसे इतना प्रचारित करो कि असफलता भूल जाये अपराधियों के पहुंच के आगे अधिकारी नतमस्तक हैं और माफिया राज जैसी स्थिति बनने लगी है ।
जिस क्राईम ब्रांच की काम्याबी के कसीदे गड़े जा रहे हैं उस पर तो गृहमंत्री तक को भरोसा नहीं है । राजधानी का ऐसा कोई मोहल्ला नहीं है जहां अवैध शराब नहीं बिक रहे है । जुआ-सट्टा खुले आम चल रहा है । अपराध की इस पहली सीढी की कमाई से ही पुलिस के कई थाने चल रहे है ।
अवैध शराब पकडऩे और उसके विवेचना में पुलिस फिसड्डी साबित हुई है । अवैध शराब  के मामले जरूर पकड़े गए लेकिन अवैध शराब कहां से आया इसका खुलासा कभी नहीं हुआ और यही आकर पुलिस का सारा कस बल समाप्त हो जाता है कहा जाय तो गलत नहीं होगा ।
ठेकेदारों से मिली भगत का यह खेल बदस्तुर जारी है चाहे अपने को कितना ही तुर्रभटवां बताने वाले पुलिस कप्तान आये लेकिन किसी अवैध शराब को सोर्स को नहीं हुआ । न ही शराब के खिलाफ खड़े होने वाले मंत्री व विधायकों ने ही कभी किसी पुलिस कप्तान से नहीं पूछा कि आखिर वे अवैध शराब सप्लाई करने वालों को क्यों नहीं पकड़ रहे है ।
चलते चलते...
स्मार्ट कार्ड मामले में सरकार को चुना लगाने वाले डॉ. बाठियां इन दिनों पुलिस पकड़ से बाहर हैं तो इसकी वजह पुलिस की असफलता नहीं बल्कि एक अफसर की उपलब्धि है जिसके दबाव के आगे बाकी बेबस है ।

रविवार, 13 जनवरी 2013

सब तरफ है हाहाकार अपने में मस्त सरकार


अब तो सब तरफ लोग एक ही बात बोल रहे हैं कि छत्तीसगढ़ में सरकार नाम की चीज हीन ही है । लचर कानून व्यवस्था, बढ़ते अपराध,प्रशासनिक आतंकवाद ने यहां जिसकी लाठी उसकी भैस के कहावत को ही चरितार्थ किया है । पहले कोयला घोटाला, ने जहां छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय स्तर पर शर्मसार किया था अब आदिवासी मासूम ब"ाों के साथ बलात्कार की घटना से छत्तीसगढ़ एक बार फिर शर्मसार हुआ है । सरकार के द्वारा भ्रष्टाचारियों और अपराधियों को सीधे संरक्षण मिलने की वजह से अवांछनीय तत्तों के जहां हौसले बुलंद हुए हैं वहीं आम लोगों का जीना दूभर होता जा रहा है ।
छत्तीसगढ़ में अपने 9 साल पूरा कर चुकी रमन सरकार का पूरा ध्यान इन दिनों हैट्रिक की है लेकिन यह रास्ता आसान नहीं है । इसकी वजह सरकार की वह कार्यशैली है जिसकी वजह से न केवल छत्तीसगढ़ को देशभर में शर्मनाक स्थिति से गुजरना पड़ रहा है बल्कि आम लोग सरकार से त्रस्त हो गए है । सरकार की नीति भले ही तिकड़म बाजी से चुनाव जीतने की हो लेकिन वास्तविकता तो यहीं है कि रमन राज में जहां भ्रष्टाचारियों को खुले आम संरक्षण मिला है । आपराध में बडतेतरी हुई है । उद्योगों की करतूतों पर कार्रवाई की बजाय परदा डाला गया है वहीं चुनाव पूर्व जनता से किये वादे को पूरा करने में भी सरकार पूरी तरफ से असफल रही है । जिस साफ छवि और चावंल योजना के सहारे भाजपा ने पिछला चुनाव जीता था । इस बार इसी साफ छवि पर कोयले की कालिख साफ दिखने लगी है ।
सीएजी की रिपोर्ट में सरकार के हजारों करोड़ों के भ्रष्टाचार ही उजागर नहीं हुए है बल्कि इस बात का भी खुलासा हुआ है कि भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों परभी सरकार ने ठोस कार्रवाई नहीं की है ।
अब तो नौकरशाहों में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि इस सरकार में जो सबसे Óयादा भ्रष्ट रहेगा उसे ही महत्वपूर्ण पद मिलेंगे । आर्थिक अपराध ब्यूरों ने जिस पैमाने पर भ्रष्ट अफसरों के मामले छापा मारकर सामने लाये हैं । उस मुकाबले में सरकार ने कार्रवाई नहीं की ।
बाबूलाल अग्रवाल का मामला हो या इंजीनियरों का मामला हो । स्वास्थ्य घोटाले का मामला हो या जंगल में व्याप्त भ्रष्टाचार का मामला हो । सरकार ने कभी भी कड़ी कार्रवाई नहीं की ।
सूत्रों का कहना हे कि रमन राज में अपराध बढऩे की एक बड़ी वजह अपराधियों के खिलाफ, भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करना है । सरकार के इस रवैये की वजह से अपराधिक प्रवृति के लोगों में यचह भावना घर कर गई है कि कुछ भ कर लो कार्रवाई तो होनी नहीं है और पैसों के दम पर इस सरकार में कुछ भी किया जा सकता हे ।  तभी तो बाबूलाल हो या ब्लाक शिक्षा अधिकारी चाडंक सभी महत्वपूर्ण पदों पर हैं। लोगों के गर्भाशय निकालने वाले भी मजे में है तो आंख फोडऩे वालों पर भी कुछ नहीं किया गया । न मन्नू नत्थानी पकड़ा जायेगा न डॉ. बाडियां को पकडऩे की कोशिश ही होगी । राजकुमार नायडू जैसे आरोपियों को पुलिस पकडऩे में दस साल लगा देती है जबकि वह इस दौरान ड्यूटी करता रहा ।
ब्रदी जैसे मिलावट खोरों को बचाने ईमानदार अधिकारियों को प्रताडि़त किया जाता है तो आत्महत्या के लिए मजबूर करने वाले मंत्री न पुलिस अधिकारी का भी कुछ नहीं बिगड़ता जबकि मृत्युपर्व लिखे पत्र में साफ वजह लिखी जाती है । जमीनों पर अवैध कब्जा, जंगल का जंगल साफ करने वाले उद्योगपतियों को बिजली-पानी और यहां तक कि टैक्सों में भी छूट दी जाती है जबकि गांव-गली में अवैध शराब बेचने वाले शराब माफियाओं के साथ गलबहियां की जाती है ।
ऐसे में अपराधिक तत्वों के हौसले बुलंद नहीं होंगे तो क्या होगा ।
चुनाव जीतने के लिए जारी घोषणा पत्र को संकल्प का नाम देने के बाद भी उसे पूरा नहीं किया जाता उपर से संकल्प याद दिलाने वाले किसानों व शिक्षा कर्मियों पर लाठियां भांजी गए तो हालात कहां पहुंच गए है आसानी से समझा जा सकता है ।
आदिवासी आश्रम में ब"िायों से बलात्कार के मामले में लीपा पोती होती है तब भी दिल्ली गैगरैप पर हल्ला मचाने वाली भाजपा खामोश रहती है ।
गरीब आदिवासी छात्राओं से सामूहिक गैंगरेप क े इस Óवंलतशील मामले ने पूरे देश को शर्मशार करते हुये सुर्खियाँ बटोर चुका आदिवासी बाहुल कांकेर जिले में इस घटना के विरोध में सामाजिक संगठन,छात्र-छात्राऐं सडकों पर उतरते हुये रमन सरकार के विरोध में मुखर होते नजर आने लगे है।

शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

रावण सा भाई ...


इन दिनों दिल्ली रेप कांड के बाद पूरे देश में महिलाओं पर अत्याचार को लेकर वैचारिक क्रंाति चल रही है । महिला अत्याचार के खिलाफ चल रहे इस जंग से हर कोई अपने को जोड़ रखा है । और सोशल साईट्स ने इस वैचारिक क्रांति को संबल प्रदान किया है । जितने लोग उतनी बातें । और इन बातों में पुलिस-नेता के अलावा समाज के उस वर्ग के प्रति भी आक्रोश साफ दिखाई दिया जो लोग थोड़ी सी झंझट से बचने दूसरे की सहायता करने से स्वयं को किनारे कर लेते हैं ।
 सवाल सिर्फ दामिनी का नहीं है । सवाल बढ़ते यौन अपराधों का है । सवाल पुलिस की चूक का नहीं है सवाल स्वयं की जिम्मेदारी का है । सड़क पर तडफ़ते लोगों को क्या सिर्फ इसलिए पुलिस के भरोसे छोड़ा जाना चाहिए कि पुलिसिया पूछताछ में झंझट बहुत है ।
क्या कानून सख्त कर देने से अपराध रूक जायेगा ? बल्कि कानून की सहायता करने से अपराध रूकेगा । एक गुण्डा पुरे मोहल्ले पर इसलिए भारी पड़ता है क्योंकि हम तब तक आवाज नहीं उठाते जब तक हमारे साथ गलत न हो । दूसरे पर हो रहे अत्याचार की अनदेखी की वजह से ही अपराध बढ़े है । और यही सच है ।
हर घटना के बाद या घटना के दौरान जनता मौजूद होती है और जनता अपनी जिम्मेदारी निभा ले तो अपराधियों के हौसले पस्त हो जायेंगे । ये ठीक है कि पुलिसिया करतूत भी अपराध बढऩे की बड़ी वजह है लेकिन हमने कब अपनी जिम्मेदारी निभाई है ? यह स्वयं लोगों को अपने आप से पूछना चाहिए ।
संघ प्रमुख मोहन भागवत हो या भाजपाई मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, राष्ट्रपति के बेटे अमिजीत हो या फिर कोई और हो । इस मामले में उनके विचार हैरान कर देने वाले है । मर्यादा की पाठ पढ़ाना, पहनावे पर फब्तियां कसना, समर्पण की बात करना या भारत-इंडिया की दुहाई देना सत्य से मुंह मोडऩा है । शायद कैलाश विजयवर्गीय को यह जानकारी नहीं होगी कि सीता ने यदि लक्ष्मण रेखा पार की थी तो उसकी वजह एक साधु की सहायता करना हयेय था और बलात्कार सिर्फ शहरों में नहीं होते गांवो में भी बदस्तुर जारी है ।
इसलिए घटना की निंदा करने या फिर समाज को इस अपराध से मुक्त करने के प्रयास की बजाय महिलाओं के प्रति अपनी मानसिकता को प्रकट करना कतई उचित नहीं है । आज देश में तेजी से बदलाव आया है । बढ़ती मंहगाई के इस दौर में बेहतर जीवन के लिए महिलाएं रात तक काम कर रही है ऐसे में पुलिस के अलावा समाज की भी जिम्मेदारी बढ़ गई है ।
महिलाओं के प्रति सोच भी बदलने लगी है । आज हर व्यक्ति अपनी बेटियों को बेहतर शिक्षा देना चाहते है और इसके लिए बड़े शहरों में भी भेज रहे है । तब भला भारत-इंडिया या लक्ष्मण रेखा जैसी बात कहां से आ गई ।
क्या समय के साथ मानसिकता बदलने की जरूरत नहीं है । क्या रेस्टरो या एकांत जगह पर एक युवक-युवती सिर्फ यौन ? संबंधों की वजह से ही मिलते है । इस तरह से चर्चा करने वालों को देखने वाले ऐसे कितने लोग है जो पहली बार में ही यह सोचते होंगे कि ये दोनों पढ़ाई, बिजनेस पर ही चर्चा कर रहे हैं ।
यह सच है कि मां-बहन, चाची,मौसी नानी-दादी के रिश्तों की बुनियाद संबंध पर ही आधारित है लेकिन बदलते दौर में बहुत कुछ बदला है और हमें जिस तरह से अपनी बेटियों को पढऩे या नौकरी करने की आजादी दी है अपनी मानसिकता को भी आजादी देनी होगी ।
यही वजह है कि अब तक जिस रावण का हर साल बुराई के प्रतिक के रूप में दहन किया जाता था आज उसी रावण में अ'छाई ढूंढी जाने लगी है । पर स्त्री के हरण का दाग भी कमजोर पडऩे लगा है । तभी तो सोशल साईट्स पर रावण जैसे भाई की बात होनी लगी है । एक ऐसा भाई जो अपनी बहन सुर्पनखा के लिए दुश्मन की पत्नी का तो हरण कर लेता है लेकिन उसे छूता भी नहीं है
क्या सचमुच महिलाओं पर हो रहे यौन उपीडऩ के बाद रावण जैसे भाई की जरूरत है ?

मंगलवार, 8 जनवरी 2013

टंगिया के बेट...


तहिया के एक ठन किस्सा हे। लकड़ी काटे बर जब टंगिया बनाए गीस त जंगल के रूख-राही मन ह डर के मारे बईठका करीन। जम्मो झन के एकेच गोठ रीहिस अब का होही। हमर जिनगी के का होही। जंगल ह कइसे बाचही। अऊ जंगल नई रही त ये दुनिया के का होही। जेखर बोले के पारी आय तउने ह टंगिया उपर अपन गुस्सा उतारय। अऊ टंगिया बनईया ल घलो पानी पी पी केे गारी देवय। टंगिया बनाय ल रोके के उदीम घलो सुना डरीन।
तब एक ठन डोकरा पेड़ ह जम्मों झन ल चुप कराके कहिन। जतका फिकर तुंहला हे वतका महु ल हे। मैं जानथव टंगिया ह जंगल के जंगल ल उजाड़ दिही। हमर मन के जिन्दगी ह खतरा म पड़ गे हे। मैं ह त अपन जिनगी जी डारेव फेर मोर एक बात ल गांठ बांध के रख लव के एं टंगिया ह हमर तब तक कुछु नई बिगाड़ सकय जब तक के हमरे बीच के कोनो ह ओखर बेट नई बनही। टंगिया के जेन दिन बेट बनंहु उही दिन तुंहर मुसिबत हो ही।  छत्तीसगढ़- छत्तीसगढ़ी अऊ छत्तीसगढिय़ा के बारा साल म जेन हाल होय हे ओखर असली वजह इही हे। परबुधिया मन ह टंगिया के बेट बन के अपने ल काटत हे अऊ मिठलबरा मन ह मजा करत हे। सरकार ह दिल्ली म जा के कतको इनाम पा लय लेकिन इहां चलत लूट खसोट ह सब ल दिखत हे। करीना कपुर ल नचाय खातिर करोड़ों रूपया फंू कत  हे लेकिन अस्पताल नई बनावत हे। उद्योग मन ल जमीन दे खातिर ख्ेाती ल बरबाद करत हे लेकिन शिक्षा के व्यवसाय बर उंखर तीर पइसा नई हे।
लोटा लेके अवइया मन ह रातो रात बंगला तान दिन सौ-दू-सौ एकड़ के किसान बन गीन, फेक्टरी खोल दिन अऊ मोटर गाड़ी म घूमत हे। शहर ल चकाचक करत हे अऊ गांव के गली ह आज ले पयडगरी ले नई उबर पाय हे।  ये सब काबर होवत हे। शहर म अपराध बाढ़ गे। कोन हे एखर जिम्मेदार। राज बनीस त सोचे रीहिन के अब तो छत्तीसगढिय़ा मन के भाग लहुटही, गांव-गांव म स्कूल अऊ अस्पताल खुलही। इहां के पढ़े लिखे लइका मन ल नौकरी मिलही। लेकिन बारा साल म बारा हाल होगे।
इहां के जंगल, खदान पानी तरीया नदिया गोठान सब ल बेचे के उदीम होय लागिस। एखर विरोध करईया मन उपर लाठी बरसत हे अऊ ए काम म टंगिया के बेट बने छत्तीसगढिय़ा मन ह सहयोग करत हे।  मिठलबरा मन के चक्कर म अतका मोहा गे हे के न त उनला कोईला पोताय चेहरा दिखत हे न बरबाद होवत खेती के जमीन दिखत हे। पद अऊ पईसा के लालच म आंखी तोप ले हे। न त उनला अपन पुरखा के बानी के सुरता हे अऊ न त उनला छत्तीसगढ़ महतारी के पीरा ले मतलब हे।  एक बात जम्मो झन कान खोल के अपन धियान म बईठा लेवय के माटी के काया माटी म मिल जथे लेकिन सुरता ओखरे करे जाथे जेन ह अपन माटी बर कुछु करथे। करनी के भरनी ल इही जनम म दिखथे। अऊ कईझन के दिखत घलो हे।

सोमवार, 7 जनवरी 2013

ये कैसी सूचना क्रांति का दौर है...


एक तरफ जब सूचना क्रांति के इस दौर में दुनिया भर की खबरे आसानी से मिल जाने का दावा किया जा रहा है वहीं दूसरी तरफ प्रिंट मीडिया के एडिशन के चक्कर में पड़ोसी जिले की खबरों से अनजान होने का खतरा बढ़ चुका है। जितना बड़ा अखबार उतना Óयादा एडिशन ने सूचना क्रांति के दावों की पोल खोल कर रख दी है।
छत्तीसगढ़ में स्थापित अखबारों को इससे कोई मतलब भी नहीं रह गया है नवभारत पत्रिका भास्कर हरि भूमि नई दुनिया जैसी अखबारों का राजधानी से प्रकाशन हो रहा है। कहने को ये छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक प्रसार वाले अखबारों का तमगा लिये बैठे हैं लेकिन एडिशन के चक्कर में खबरे सिमट कर रह गई है। रायपुर वालों को पड़ोसी जिले की खबरे ठीक से नहीं मिलती तो पड़ोसी जिले को राजधानी की खबरें ठीक से नहीं मिल पाती।
सूचना क्रांति के दौर में इस गड़बड़झाले से लोग हैरान है और वे अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं तो आश्चर्य नहीं है।
अब तो पत्रकार वार्ता लेने वाले लोग भी पत्रकारों से निवेदन करते हैं कि उनकी खबर ऐसी जगह लगाये जिसे पूरे छत्तीसगढ़ भर के लोग पढ़ सके। एडिशन के इस चक्कर की वजह से अ'छी बातें भी लोगों तक नहीं पहुंच पा रही है लेकिन इससे मीडिया जगत को कोई लेना देना नहीं है।
हर जिले या ब्लॉक के लिए अलग एडिशन की वजह सिर्फ और सिर्फ  विज्ञापन की भूख होकर रह गई है। और इस वजह से पाठकों को पता नहीं चल पाता कि पड़ोसी जिले में सरकार की क्या करतूत है या लोगों के साथ न्याय-अन्याय कैसा हो रहा है।
छत्तीसगढ़ के मीडिया जगत में एडिशन के इस चक्कर ने ग्रामीण रिपोटिंग को भी ध्वस्त कर दिया है इसकी वजह से गांवों के विकास में सहायक योजनाएं भी दम तोडऩे लगी है।
एडिशन को लेकर भले ही अखबार वाले खुश हो लेकिन इससे होने वाले नुकसान की भरपाई मुश्किल है।
और अंत में...
इन दिनों राजनैतिक गलियारें में एक चर्चा जोरों पर है कि जो बादल गरजते हैं वे बरसते नहीं लेकिन जो गरजते हैं वे जल्दी सेट जरूर हो जाते है।

रविवार, 6 जनवरी 2013

किरण की करतब फिर फेल...


नगर निगम के पार्षद उपचुनाव में कांगे्रस हार गई। बैजनाथ पारा में कांगे्रस पहली बार नहीं हारी है लेकिन यहां से भाजपा पहली बार जीती है और वह भी तब जब निगम में कांगे्रस का कब्जा है। पार्षद जैसे चुनाव में हार जीत भले ही राजनैतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण न हो लेकिन कांग्रेसी महापौर किरण मयी नायक के लिए यह महत्वपूर्ण था क्योंकि टिकिट से लेकर सारी रणनीति में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी रही है। और इस हार की वजह उनकी रणनीति को मानी जाय तो गलत नहीं होगा।
वैसे भी किरणमयी नायक जिस दिन से महापौर बनी है निगम में कई तरह के इतिहास रचे गए है। उनके कार्यकाल में बÓाट प्रस्ताव तक गिर गया वह भी कांगेे्रस के ही पार्षद की बगावत की वजह से गिरा था। इसके बाद स्टेज में उनके रौद्र रूप को लेकर भी नागरिक हैरान थे। और अब उपचुनाव में मिली हार ने उनकी कार्यशैली पर फिर से सवाल खड़ा कर दिया है।
यह अलग बात है कि भाजपा के दिग्गज मंत्रियों ने यहां पानी की तरह पैसा खर्च किया लेकिन हार की सिर्फ यही एक वजह बताना सच से दूर भागना होगा।
निगम के बजट प्रस्ताव गिर जाने के बाद भी संगठन ने जिस तरह से उपचुनाव में उन पर भरोसा किया था। अब नये सिरे से इस पर सोचने की Óारूरत पड़ सकती है।
वैसे भी शहर का विकास कांगे्रस और भाजपा की राजनीति में उलझ कर रह गई है। बड़ी योजनाएं तो शुरू नही हो पा रही है। रोजमर्रा के कार्य तक ठीक से नही हो रहे है। बजबजाती नालियां, धूल भरी सड़क और भयावह म'छर से लोग परेशान हैै।
और पार्षदों का काम तो जैसे तैसे पैसा कमाने का रह गया है। खासकार पार्षद पतियों की दखलंदाजी चरम पर है। Óयादातर काम पार्षदपति ही कर रहे है। यहां तक कि जोन कार्यालय से लेकर मुख्यालय तक पार्षद पतियों का ही दखल है। अब तो निगम के कर्मचारी भी इन पार्षद पतियों से तंग आ चुके है और वे पार्षद पतियों के हरकतों पर चुहल बाजी करते नहीं थकते।
एक निगम कर्मचारी ने बताया कि सफाई ठेकेदार को एक पार्षद पति ने किस तरह हर माह पैसा देने का फरमान सुना दिया तो एक पार्षद पति ने अपने  रिश्तेदार को ठेका दिलाने अधिकारियों से कैसे भीड़ गया था। यह अलग बात है कि उसे बाद में अपने पार्टी के आकाओं को सफाई तक देनी पड़ी थी।
निगम में सिर्फ साफ सफाई का ही मामला नहीं है अब राजस्व वसूली में भी खेल होने लगा है। कई पार्षद तो राजस्व वसूली में हस्तक्षेप करने लगे है और टैक्स कम  करवाने में लगे हैं। जबकि टैक्स को लेकर निगम कर्मचारी भी अपनी चला रहे है।
सीनेट्री इंस्पेक्टरों का काम तो सिर्फ  दस्तखत करना ही रह गया है। कुछ की तो सुबह होटलों में ही बीत जाती है। पार्षद उपचुनाव के साथ ही निगम कर्मचारी महासंघ का भी चुनाव हुआ और अरूण दुबे और सुरेन्द्र दुबे फिर काबिज हो गये। अरूण दुबे के साथ सुभाष सोहाने के नाम की चर्चा भी एक बार गर्म है। आखिर कमिश्नर साराभाई वाली घटना को लोग कैसे भूल सकते  है।
वैसे भी अरूण दुबे की Óाुझारू शैली किसी से छिपी नहीं है। उनके तेवर से भी सभी  परीचित है। ऐसे में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों से उनकी कितनी जमेगी देखना है।

मुंदी आंख से...

उपचुनाव में भाजपा की जीत से उत्साहित पार्षद दल ने महापौर से इस्तीफे की मांग कर डाली लेकिन यह मांग कुछ को भारी पड़ गई और चर्चा है कि उपर से इसके लिए फटकार भी लगाई गई। फटकार की वजह अब भी ढूंढा जा रहा है।

शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

अब भी नहीं सुधर रही पुलिस ...


यह तो कुत्ते की दुम को बारह साल पोंगली में रखने के बाद भी सीधी नहीं होने वाली कहावत को ही चरितार्थ करती है वरना छत्तीसगढ़ पुलिस का रवैया पीढि़तों को लेकर इतना नकारात्मक नहीं होता । जुआं सट्टा अवैध शराब बेचने वालों के अलावा अपराधियों से गठजोड़ में छत्तीसगढ़ पुलिस इतनी मशगुल हो गई है कि उनका मन बलात्कार जैसे मामले की पीढि़तों को देखकर भी नहीं पिघलता तभी तो गौरेला के टीआई सी एन सिंह ने बलात्कार की शिकार महिला को थाने से भगा दिया । पीडि़त महिला की शिकायत पुलिस कप्तान रतन लाल डांगी से की गई तब कहीं जाकर न केवल रिपोर्ट लिखी गई बल्कि टी आई सी एन  सिंह को निलंबित किया गया ।
पिछले हफ्ते जहां पूरा देश दामिनी के लिए न्याय मांग रहा था वहीं छत्तीसगढ़ की पुलिस बलात्कारियों के प्रति नरम रवैया रखे हुए थे । गौरेला की इस घटना के अलावा पिछले हफ्ते छत्तीसगढ् में आधा दर्जन से अधिक बलात्कार की वारदात हुई और प्राय: इन सभी मामलों में थाने का रवैया दुर्भाग्य पूर्ण रहा  । भानुप्रतापुर में तो महिला से सामूहिक बलात्कार के मामले में पुलिस ने तब कार्रवाई की जब मीडिया ने हल्ला मचाया । ईलाज के लिए उस मलिा को राजधानी से दूर इसलिए भी रखा कि कोई नई मुसिबत खड़ी न हो जाए । रातो रात जुर्म दर्ज कर आरोपियों को गिरफ्तार किया गया । लेकिन मजाल है कि इस मामले में कप्तान साहब कुछ कहते । इसलिए कुछ नहीं कर पाये क्योंकि थाना प्रभारी उपर तक पहुंच रखता है ।
पुलिस जानती है कि उनकी वर्दी के रौब के आगे सब डरते है और यदि मामले पर Óयादा हल्ला मचा तो भी तो कुछ दिन बाद सब शांत हो जायेगा ।
पुलिस जानती है कि उनके प्रति लोगों में बेह्द गुस्सा है लेकिन उन्हें उनकी परवाह भी नहीं है क्योंकि गुण्डागर्दी का लाइसेंस तो उन्ही के पास है और जब तक नेताओं व मंत्रियों के पैसों की भूख रहेगी उन्हें अ'छी जगह पोस्टिंग से कोई नहीं रोक सकता ।
तभी तो राजधानी में ऐसे ऐसे वर्दी वाले थाने में बैठे हैं जिनकी गलतियां उन्हें नौकरी में रखने के लायक नहीं है । पंडरी मोवा थना प्रभारी की शिकायत क्या कम है या लोहा कारोबारी पंकज की रिपोर्ट नहीं लिखने वाले का क्या हुआ ।
तभी तो लोगों का गुस्सा फट पड़ता है और यदि कोई पुलिसिया अत्याचार पर आवाज उठाये तो पुलिस उसकी पिटाई से भी  परहेज नहीं करती तभी तो पिछले दिनों राजधानी के शास्त्री चौक जैसे व्यस्ततम चौक में वर्दी वालों ने भाजपा नेता के रिश्तेदार की सरे आम पिटाई की लेकिन उपर से दबाव आया तो विभागीय जांच के निर्देश दे दिये गये । भाजपा के सांसद रमेश बैस के भतीजे ओंकार बैस की भी पुलिस वालों ने पिटाई की लेकिन मामला सांसद के भतीजे का था इसलिए मारने वाला पुलिस कर्मी को निलंबित कर दिया यानी आम आदमी की पिटाई पर यहां कुछ नहीं होना है ।
ुपुलिस अपनी मर्जी की मालिक है वह जो चाहे कम है तभी तो पंडरी कपड़ा मार्केट में तवेरा की लूट होती है और पुलिस चोरी का जुर्म दर्ज करती है मजाक है राजधानी के दो-दो मंत्री पुलिस से पूछने की हिम्मत कर सके कि ऐसा कैसे हो गया वे तो तभी बोलते है जब उनके परिजानों पर पुलिस का गुस्सा निकलता है ।
लोग गुस्से में है । लेकिन उनका गुस्सा कभी नहीं निकलता । वर्दी वाले का खौफ केवल शरीफों पर ही चलता है तभी तो अंबिकापुर में पुलिस कर्मी पर जानलेवा हमला होता है और हमलावर को पकडऩे जब पुलिस आरोपी के घर पहुंचती है तो वहां एक सब इस्पेंक्टर को कालर पकड़कर बंधक बना लिया जाता है और सीएसपी को दल बल के साथ जाना पड़ता है । और अपराधी पुलिस से डरे भी क्यों ? पैसा लेकर गलबहियां करने में पुलिस को भी मजा आता है ।
चलते चलते ...
अवैध शराब के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पाने व ठेकेदार के दबाव से निपटने पुलिस ने नया फार्मूला निकाला है । आलंपिक संघ के अध्यक्ष और महासचिव यानी रमन सिंह और बल्देव भाटिया के संबंधो को खूब प्रचारित करों लोग सीधे मुख्यमंत्री पर ही उंगली उठायेंगे ।

गुरुवार, 3 जनवरी 2013

न वादा न काम सिर्फ हुए बदनाम


खदानों की बंदर बांट, खेती की जमीनों की बरबादी, सरकारी खजानों को अरबों-खरबों का नुकसान, भयावह अपराध और शर्मनाक भ्रष्टाचार की वजह से छत्तीसगढ़ की बदनामी राष्ट्रीय स्तर पर हुई । राजनीति और सत्ता के लिए वादे तो किये गये लेकिन न तो शिक्षा कर्मियों से किये वादे पूरे हुए न ही किसानों से किये वादे ही पूरे हुए । आदिवासी वर्ग पुलिसिया बर्बरता से उद्वेलित है तो सतनामी समाज आरक्षण कम होने से आन्दोलित है । मंत्री परिवारों की ढाट-बाट जहां आम छत्तीसगढिय़ों के दिलों को छलती करने लगा है तो शराब ठेकेदार की मुख्यमंत्री से सीधे नजदीकी ने गांवों की शांति छिन ली है । सत्ता के दुस्पयोग को लेकर छत्तीसगढ़ के लिए 2012 हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गया है कहा जाय तो अतिशंयोक्ति नहीं होगी ।
छत्तीसगढ़ में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर भले ही भाजपा व कांग्रेस ने राजनीति शुरू कर दी हो लेकिन इस राजनीति के घनचक्कर में सभी वर्ग अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं । घोटाले-भ्रष्टाचार और कालिख से पूते चेहरे सत्ता के दुरूपयोग की जो कहानी कह रहे है वह किसी के लिए भी शर्मसार कर देने वाला है । 
छवि पर ही धब्बा ...
          पिछला चुनाव भाजपा ने डॉ. रमन सिंह की साफ छवि की वजह से जीता था और  इस बार इसी साफ छवि पर एक नहीं कई बार धब्बे लगे हैं । रतनजोत घोटाले या ओपन एक्सेस घोटाले को लोग भूल भी जाये लेकिन कोयले खदान की कालिख से छत्तीसगढ़ की बदनामी राष्ट्रीय स्तर पर हुई है न तो इस संचेती बंधु की वजह से हुई बदनामी भूलने लायक है और न ही राजसी तामझाम वाली पार्टी ही लोग भूल सकते है । लोग न तो सलमान के झटके भूलने वाले है और न ही करीना के ठुमके पर किये गए करोड़ों रूपये ही भूलने वाले हैं ।
प्रदेश के मुख्य के पास उर्जा और खनिज जैसे महत्वपूर्ण विभाग हैं और दोनों ही विभागों में जिस तरह से भ्रष्टाचार के किस्से सामने आये है वह सरकार के लिए आगामी दिनों में मुसिबत बढ़ाने वाली हो सकती है ।
सरपल्स स्टेट का दावा बिजली की बड़ती कीमतों के आगे दम तोडऩे लगी है । लगातार बढ़ रही बिजली की कीमत ने आम आदमी का जीना दूभर कर दिया है । उपर से आम आदमी को छूट देने की बजाय उद्योगों को जिस तरह से छूट दी गई वह व्यथित करने वाला  
 है ।
रतन जोत के नाम पर जिस तरह से करोड़ों फूंके गए वह भी अपने आप में एक इतिहास है । प्रचार-प्रसार में ही आरबों फूंके गए ।
ओपन एक्सेस घोटाला को लेकर तो सरकार के जिंदल प्रेस जगजाहिर हो गया जबकि हर गांव में बिजली पहुंचने का वादा पूरा होता कहीं नहीं दिख रहा है ।
ऊर्जा विभाग में ऊर्जासचिव अमन सिंह की नियुक्ति ही विवादास्पद है और यहां के अफसर शाही के किस्से तो दिल्ली तक सुनाई देते है ।
खनिज में तो बंदरबांट का जो खेल हुआ उसकी बदनामी राष्ट्रीय स्तर पर हुई । संचेती बंधुओं को कोल ब्लाक आबंटन में जिस तरह से नियम कानून की अनदेखी की गई वह सत्ता के दुरूपयोग का ऐसा मामला है जिसकी कालिख पूछते नही पूछ रही है । सरकार का संचेती प्रेम इस कदर है कि उससे संचेती बंधु को 49 फीसदी शेयर के बाद भी एम डी बना दिया है ।
खदानों की बंरबांट की कहानी यही खतम नहीं होती । पुस्य स्टील से लेकर न जाने कितने लोगों को खदानें दे दी गई जो नियम कानून के खिलाफ है । सरकार ने आवेदन कर्ताओं के आवेदन का परिक्षण तक नहीं किया ।
खेती की बरबादी और उद्योग प्रेम
विकास के नाम पर जिस तरह से खेती की जमीनों को बरबाद किया गया इसके दुस्परिणाम आने वाली पीढ़ी को भुगतना पड़ेगा ।
सरकार का उद्योग प्रेम इस कदर रहा कि उसने उद्योगों को जमीन दिलाने नियम-कायदे को ताक पर रखा । झूठे जन शिविर लगाये गए और जमीन नहीं देने वाली किसानों की पुलिसिया पिटाई तक हुई । औद्योगिक दादागिरी का यह आलम रहा कि खुद पार्टी के सांसदों को औद्योगिक आतंकवाद जैसे नारे बुलंद करने पड़े ।
नई राजधानी के नाम पर भ्रष्टाचार की नदिया बहाई गई और जबरिया जमीन अधिग्रहण के अलावा राÓयोत्सव के नाम पर खड़ी फसल तक में बुलडोजर चलाये गए ।
बालको चिमनी मामला हो या अन्य औद्योगिक दादागिरी सरकार साफ तौर पर इनके आगे नतमस्तक होते नजर आई ।

दमदार मंत्री की दमदारी...
ेप्रदेश के दमदार मंत्री माने जाने वाले बृजमोहन अग्रवाल की दमदारी के किस्से अब दिल्ली तक गुुजने लगे है । उखड़ती सड़कें दरकतीं पूल अपने आप में भ्रष्टाचार की कहानी बयां कर रही है ।
परिवार वालों के सत्ता में गुसपैठ की चर्चा तो दिल्ली तक गुंजने लगी है । संस्कृति विभाग हो या पयर्टन विभाग हर जगह भ्रष्टाचार की नदिया बहाई गई । बगैर नाम पते के रोप वे बनाने लाखों रूपये देने का मामला हो या विदेश से काम के एवज में पैसा मांगने के आरोप ने सरकार के लिए मुसिबत बड़ा दी । सरकार के लिए शर्मिन्दगी की बात तो 26/11 के जश्र का आयोजन भी रहा ।
जिसकी चर्चा अब भ्ीा चौक चौराहों पर सुनी जा सकती है ।
अफसरशाही, दलाल-निकम्मपा प्रशासनिक आतंकवाद
रमन सरकार के कार्यकाल में अफसरों की मेहरबानी और उनकी दादागिरी के किस्से यहां तक जा पहुंचे हैं कि दीलिप सिंह जुदेव को प्रशासनिक आतंक वाद की बात कहनी पडी तो गृहमंत्री ननकी राम कंवर को एसपी को निकम्मा और कलेक्टर को दलाल कहना पड़ा ।
अफसरों ने सरकार की उसी योजना में रूचि ली जिसमें उनका हित सधता दिखा ।
गुटबाजी के चलते कई बार सचिवों के झगड़े सामने आये तो डीजीपी स्तर के कई अधिकारी रिटायर्ड मेंट के पहले हटाये गये । मंत्रियों से टकराव चरम पर रहा और पार्टी से टकराव चरम पर रहा और पार्टी के विधायक से लकर कार्यकर्ता भी अफसरशाही से त्रस्त नजर आये ।
संकल्प तोड़ा गया ...
रमन सरकार के लिए भाजपा ने चुनावी घोषणा पत्र जारी करते हुए हिन्दुत्व की खूब दुहाई देते हुए कहा था कि वे जनता से वादा नहीं संकल्प कर रहे हैं लेकिन आज भी ऐसे दर्जनों संकल्प है जिससे सरकार दूर भाग रही है इनमें से कई संकल्प तो तब लिये गये थे जब मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिह स्वयं भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष थे ।
शिक्षाकर्मियों का संविलियन इसके से प्रमुख संकल्प रहा है । आम शिक्षा कर्मी आन्दोलित है और उनके आन्दोलन की सÓाा ब"ाों से लेकर आम आदमी तक को भुगतना पड़ रहा है । जब शिक्षा कर्मियों का संविलियन ही नहीं करना था तब ऐसे वादे किये ही क्यों गये ।
इसी तरह का मामला प्रदेश भर के लिपिकों का है । सरकार ने तिवारी कमेटी की अनुशंसा को लागु नहीं कर रही है और जब अनुशंसा लागु नहीं करना थ तो कमेटी क्यों बनाई गई ।
प्रदेश भर के किसानों को 270 रूपये बोनस का संकल्प भी सरकार ने पूरा नहीं किया उल्टा इस मामले में केन्द्र की सरकार से राजनीति की जाने लगी ।
युवाओं को बेरोजगारी भत्ता के नाम पर छला गया । तो नौकरी के दरवाजे भी ठीक ढंग से नहीं खोले गये ।

बुधवार, 2 जनवरी 2013

परिवर्तन के स्वर को धरातल पर लाने का संकल्प---


अन्ना का आन्दोलन, रामदेव का तामझामए प्रमुख राजनैतिक दल कांगेे्रस-भाजपा की करतूतों, उद्योगों की चालबाजी और छत्तीसगढ़ की रमन सरकार के कालिख पूते चेहरे, रोगदा बांध का बिकना, और महिला अत्याचार की दर्दभरी दास्तान के साथ 2012 भी बीत गया।
बीती ताही बिसार दे आगे की सुध ले। आखिर कब तक हम सच से अपने को दूर रखे। सच तो यह है कि अतीत को भूल जाने की सलाह वही देते हैं जो अतीत के काले सच से सराबोर होते है। जबकि अतीत का काला सच ही भविष्य के प्रकाश का रास्ता होता है। हर साल नये वर्ष में अतीत के स्याह पक्ष को भूलने की सलाह ने ही वर्तमान में भी अंधेरा फैलाने का काम किया है। और राजनैतिक दलों में समाजसेवा की बजाय पैसे की भूख बढ़ी है। इसलिए अब हम इस स्याह पक्ष को भूल जाने की बजाय इसकी खिलाफत की बात कर रहे है।
 बहुत हो चुका, रक्षक के भेष में भक्षकों की ताज पोशी। इसलिए हमें अब नये साल में बदलते तारीख के साथ समाज के  दुश्मनों को पहचान कर उसके खिलाफ खड़े होने का संकल्प लेना है। और इसकी शुरूआत अपने आसपास से ही की जानी चाहिए।
छत्तीसगढ़ राÓय निर्माण के समय क्या नहीं सोचा गया था। टैम्स फ्री राÓय की बात तक की जाती रही। बिजली के मामले में खूब प्रसार हुआ। और रतनजोत से नई क्रांति की बात कही जाने लगी। क्या हुआ? इन बातों का? क्यों सरकार अपने वादे से मुकर गई।
नई राजधानी पर करोड़ों-अरबों फंूकने वाली सरकार के पास शिक्षा-स्वास्थ्य प्राथमिकता क्यों नहीं है। जनप्रतिनिधि चुने जाने के बाद औकात से बढ़कर रहन सहन कैसे हो गया। जब किसानों को 270 रूपये बोनस देना ही नहीं था तब वादे क्यों हुए। जब शिक्षा कर्मियों का संविलियन होना ही नहीं था तब संकल्प का नाम क्यों दिया गया और जब तिवारी कमेटी की अनुशंसा माननी ही नही थी तब कमेटी क्यों बनाई गई। आन्दोलन करने वाले अपनी मांग पूरी होने पर अपने साथ हुए अन्याय को शायद भूल भी जाये लेकिन क्या उन लोगों को यह सब भूलना चाहिए जो सरकार के रवैये की वजह से हुए आन्दोलन के कारण आते जाते बेवजह परेशान हुए।  क्या लोगों को कोयले की कालिख भूल जानी चाहिए या बांध बेचना भूलना चाहिए? उद्योगों के लिए जबरिया खेती की जमीनों की बरबादी को कैसे भूला जा सकता है या करीना को नचाने खड़ी फसल पर बुलडोजर चलाने की तुगलकी फरमान भूला जा सकता है।
बढ़ते अपराध, लुटती बेटियां को कैसे भूला जा सकता है।
बारह साल में छत्तीसगढ़ में शिक्षा को दूकान बनाने में सरकार जिस तरह से सरकारी स्कूल कालेजों को बरबाद किया है वह कैसे भूला जा सकता है और न ही चिकि त्सा के अभाव में मरते लोगों को भूलना मानवता के लिए कितना ठीक होगा।
सत्ता की ऊंची दौड़ ने गाँवों के विकास को अवरूद्ध कर दिया है। सत्ता मे बैठे लोगों के अपराधिक गठजोड़ ने इस शांत प्रदेश को अपराध के आंकड़े में सबसे उपर ला दिया है। हर विभाग भ्रष्टाचार में गले तक डुब गया है और कुर्सी में बैठने वालों ने सात पीढ़ी की व्यवस्था कर ली है या करने में लगे है।
यदि कांग्रेस के छत्तीसगढ़ में हार की वजह से भी भाजपा ने सबक नहीं लिया है तो इसके परिणाम की चिंता जनता को करनी पड़ेगी ।
अब पिछली बातों को भूलने की बजाय इससे सबक लेने का समय ही नहीं है बल्कि इस पर प्रहार करने की जरूरत आ पड़ी है। हर अपराध के खिलाफ  खुल कर खड़े होने का समय है। अपराधी चाहे अपना ही क्यों न हो।
आओं वर्ष 201& का स्वागत इसी संकल्प के साथ करें।