सोमवार, 7 मई 2012

क्या इसलिए राज बना...


छत्तीसगढ़ राज्य की मांग की मूल वजह ही यहां के लोगों की उपेक्षा रही है लेकिन लगता है कि सरकार ने यह तय कर रखा है कि वह यहां के लोगों की उपेक्षा करेगी। शिक्षाकर्मियों की भर्ती से लेकर अब पीएससी परीक्षा से यह तय हो गया है कि छत्तीसगढ़ राज तो बन गया है लेकिन यहां के लोगों की उपेक्षा जारी है।
वैसे तो पीएससी की परीक्षा तब विवाद में आ गई थी जब इसके अध्यक्ष डॉ. जोशी ने संघ कार्यालय में दस्तक दी थी तब यह कहा जाने लगा था कि इस बार पीएससी में उत्तीर्ण की सुची संघ कार्यालय से होगी और प्रश्नपत्र में जिस तरह के उत्तरप्रदेश के सवाल शामिल हुए है उसके बाद तो यह तय हो चुका है कि छत्तीसगढ़ की उपेक्षा जारी है।
सिर्फ नौकरी ही नहीं और भी उदाहरण है जहां छत्तीसगढिय़ों के साथ अन्यायपूर्ण निर्णय लिये जा रहे हैं। उद्योगों के नाम पर किसानों की जमीने छीनी जा रही है। सलवा जुडूम के नाम पर आदिवासियों के गांव उजाड़े गये। और राजनीति से लेकर प्रशासनिक जिम्मेदारियों में भी चुन-चुन कर छत्तीसगढिय़ों को किनारे किया गया।
सरकार बनाने किये गये वादे आज तक पूरे नहीं हुए और सिंचाई,बिजली,पानी ,स्वास्थ्य सुविधाओं को जानबुुझकर रोका गया। नौकरी में तो जिस तरह से उपेक्षा हुई है वह अंयंत्र कही देखने को नहीं मिलेगा।
मुख्यमंत्री निवास को लेकर मंत्रालय  तक छत्तीसगढिय़ों की घोर उपेक्षा के चलते आम छत्तीसगढि़य़ा ठगा महसूस कर रहा है। अपने ही राज में दोयम दर्जे की स्थिति बन गई है ।
हमने इसी जगह पर पहले भी कहा था कि सरकार में बैठे लोगों का यह षडयंत्र चल रहा तो आने वाले दिनों में यह शांत प्रदेश अपनी पहचान खो देगा। विकास के नाम पर लुट-खसोट अब बर्दास्त से बाहर होने लगी है। कानून सिर्फ गरीबों के लिए रह गया है। आम छत्तीसगढिय़ा दो जून के रोटी जद्दोजहद में लगा है ऐसे में सरकार यह जान ले कि यह स्थिति ठीक नहीं है। और इसका आने वाले दिनों में गंभीर दुष्परिणाम भुगतना पड़ सकता है।
इन सब बातों से हमारे कतई मतलब नहीं है कि दूसरे प्रदेश के लोगों को यहां काम करने का अधिकार नहीं है और न ही हम बालठाकरे या राजठाकरे जैसे स्थिति से इत्तफाक रखते हैं। हम सिर्फ यह चाहते है कि सरकार की प्राथमिकता यहां के लोगों के लिए होनी चाहिए ताकि विघन संतोषियों को सर उठाने का मौका न मिले।