शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

कौड़ी के मोल जमीन...

लगता है छत्तीसगढ सरकार सिर्फ अमीरों की सरकार बन कर रह गई है। मंत्री से लेकर अफसर तक केवल जेब गरम करने का काम कर रहे हैं और भ्रष्टाचार उजागर होने के बाद भी कार्रवाई नहीं की जाती। यही वजह है कि आर्थिक अपराध ब्यूरों में कितने ही मामले लंबित है। यदि अमीरों के हितचिंतक सरकार के पीछे सिर्फ यही वजह होती तो नकारा भी जा सकता था। वजह यह भी है कि विकास के नाम पर उद्योगपतियों को कौड़ी के मोल जमीनें दी जा रही है। सिर्फ ये दो वजह नहीं है। असली वजह तो अमीरों को दी जाने वाली कौड़ियों के मोल सरकार जमीनें हैं जो सरकारी अंधेरगर्दी का जीता जागता उदाहरण है।
पता नहीं सरकार किस तरह से कार्य करती है और अमीरों को कौड़ी के मोल जमीन देने की क्या मजबूरी है यह तो वहीं जाने लेकिन सरकार ऐसे लोगों को सरकारी जमीनें लीज पर कौडियों के भाव देती है जो कहीं पर भी व्यवसायिक दर पर जमीन खरीद करते हैं। कांग्रेस पर यह आरोप लगता रहा है और कांग्रेस ने अपनी सरकार के दौरान इस तरह की मनमानी की भी है लेकिन भाजपा भी यही करे तो फिर आम आदमी किससे उम्मीद करे। डॉ. रमन सिंह की सरकार ने राजधानी के मंडी क्षेत्र की बेशकीमती जमीन ऐसे लोगों को कौड़ियों के मोल दे दी जो न केवल अमीर हैं बल्कि राजधानी में कहीं भी जमीन खरीदने का माहदा रखते हैं।
डॉ. कमलेश्वर अग्रवाल और डॉ. खेमका को कौड़ियों के मोल दी गई जमीनों को लेकर सरकार पर यह आरोप लगे कि इस सरकार ने गरीबों को 1 रुपया किलो चावल योजना सिर्फ इसलिए चलाया ताकि अमीरों को एक रुपया फीट जमीन देने का आरोप न लगे तो अतिशंयोक्ति नहीं होगी। डॉ. कमलेश्वर अग्रवाल को इस शहर में कौन नहीं जानता। भाजपा के नेता गौरीशंकर अग्रवाल के रिश्तेदार हैं इसी तरह डॉ. खेमका भी दमदार मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के भाई के रिश्तेदार हैं। शहर में अखबारों को भी बेशकीमती जमीनें राय सरकारों के द्वारा इसलिए कौड़ियों के मोल जमीनें दी जाती है ताकि स्वयं के पार्टी कार्यालय के लिए जमीनें ली जा सकें? और सरकारी जमीनों का बंदरबांट किया जा सके। शहर यातायात समस्या से जूझ रहा है। जीई रोड के पेट्रोल पम्प को हटाने जमीनें दी जा चुकी है लेकिन इन किमती जमीनों से कोई हटने तैयार नहीं है। सरेआम भू-उपयोग बदलकर पम्प की जमीन पर होटल बन गए और सरकार चोर-चोर मौसेरे भाई की तर्ज पर काम कर रही है। जबकि जनहित में ऐसे घने आबादी क्षेत्र की लीज रद्द कर पार्किंग की व्यवस्था की जा सकती है। लेकिन सरकार भी जानती है कि आम आदमी कभी नहीं बोलेगा और चोर-चोर मौसेरे भाई है इसलिए ऐसे मुद्दे कांग्रेस भी नहीं उठाएगी?