गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

पत्रकारिता का नया अनुभव

 वैसे तो आदमी जीवन भर कुछ न कुछ सीखते रहता है। पत्रकारिता  में भी यही सब होता है। रोज नए तरह की  खबरों को  नए तरह से शब्दों  में पिरोना और कुछ न कुछ सीखना लगा रहता है।

वैसे मैंने पत्रकारिता को कभी भी जीविकोपार्जन का  साधन नहीं माना और न ही खबरों को  रोकने की  ही कोशिश  की  लेकिन शायद अब पत्रकारिता का  ढंग बदल चुका  है। यही वजह है की कभी भी दिक्कते  भी आ जाती है यह उन सभी लोगों के  साथ आती है जो पत्रकारिता को  दिल से लगाकर चलते हैं।

ताजा मामला रामकृष्ण  के  भरोसे केयर करने वाले इस अस्पताल का  है जहां विज्ञापन देने के  नाम पर बुलाया जाता है। जहां पहुंचने पर विज्ञापन की  वजाय इस अस्पताल के खिलाफ  छपने वाली खबरों पर इस तरह चर्चा की  जाती है जैसे खबर ही गलत हो। डा€टर की  बजाय उनकी  पत्नी का  व्यवहार अपमानजनक  तो था ही उनकी  भाव भंगिमा भी अपमानजनक  रही। रोकर अपनी बातें रखी गई इस दौरान वहां मौजूद एक  बुजुर्ग द्वारा मानहानि की  धमकी  भी दी गई।

वैसे तो मुझे मुंह फट कहा  जाता है लेकिन  एक  महिला को  रोते हुए चिल्लाना और अपनी मेहनत का  बखान करना सचमुच मुझेस्तब्ध कर  देने वाला था। कभी नहीं डरने का  दावा करने वाला मैं इस अचानक  आये परिस्थिति से डर भी गया। पूरी घटना  के  दौरान ठाकुरराम साहू जेसे वरिष्ठ पत्रकार  भी साथ में थे।

महिला का  विलाप और एक  तरह से दुव्र्यवहार व धमकी  ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया की मुझसे गलती कहां हो गई। विज्ञापन के  बहाने बुलाकर इस तरह का  दुव्र्यवहार कीतना उचित था यह तो पाठक  ही तय  रेंगे।

जबकी - खबर गलत थी तो वे सीधे मुझसे शलीन शब्दों  में बात कर सकते थे या मानहानि का दावा भी ठोंक सकते  थे।

मैंने उस महिला को  यह भी समझाने की  कोशिश की  मैं गलत नहीं हूँ मेरे पास जो सबूत थे और मृतक के  पिता का  कथन इलाज में खर्च की  गई और आपके  द्वारा लौटाई गई राशि ही खबर का  प्रमुख  आधार है पर वह तो सुनने को  तैयार ही नहीं थी।

इस घटना के   बाद डा€टर साहब आए। स्वभावतः वे शांत स्वभाव के  है और उनमें  शालीनता भी है उद्बहोंने अपना पक्ष रखते हुए कहा की  खबर छपने से पहले बात कर लेनी थी इस खबर से मेरे अस्पताल का  प्रचार ही हुआ है और मैं चेक  से पेमेंट करके फंसता थोड़ी न। लेकिन  संजीवनी योजना से  दो लाख 45 हजार मिले यदि नहीं मिले तो इतनी राशि क्यों  दी गई और मृतक के  पिता का कथन ऐसा क्यों  है, का  कोई जवाब नहीं रहा।

पत्रकारिता करते  इतने वर्षों में मेरा यह पहला अनुभव था। अपनी तरह का  अनोखा क्योकि  मुझ पर इस दौरान कई तरह के  आरोप भी लगाये गए  जबकि  मैं खबरें लिखता हूँ। सबूतों के  आधार पर। यदि मैं नहीं लिखता तो अखबार मालिक - दूसरों से लिखवा सकता हैं यह बात भी मैने समझाने --की --ोशिश की  पर वे सुनने -को  तैयार नहीं थे।

इस घटना  से मैं बेहद उद्देलित रहा और सोचने लगा की  सभी सबूतों के  बाद भी -कितना जरूरी है सभी पक्षों से चर्चा करना? मेरी गलती कहां थी? और €या विज्ञापन  का  मतलब खबरों से समझौता करना है।

सवाल का  जवाब ढूंढ रहा हूँ उम्मीद  है आप भी सुझाव देंगे।

सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

सच शराब का , झुठ सरकार का

 नगर निगम और नगर पालिका के चुनाव में जिस तरह से कुर्सी पाने शराब की गंगा बहाई गई वह कुर्मा डय पूर्ण तो  रहा हो उससे भी ज्यादा दुर्भाग्य और दुखद बात प्रशासन की भूमिका रही। शर्मिंन्दगी की सारी हदें तो तब पार हो गई जब प्रशासन यह दावा करता है कि कहीं शराब नही बंटी। प्रशासन की इस बयानी की पोल तो बीरगांव चुनाव में बंटी शराब पीकर अलखराम वर्मा नामक 32 साल का युवक मर गया। प्रशासन ने शराब दुकानें बंद करवा दी थी लेकिन यह युवक युक्त की शराब पीकर मर गया। प्रत्यक्षदर्शियों की माने तो वह तीन दिन से शराब पी रहा था। उसे शराब नेता लोग दे रहे थें ताकि अपने लिए वोट खरीद सके।
    इसके बाद भी प्रशासन की बेशर्मी नहीं गई है उसका दावा आज भी है कि चुनाव में शराब नहीं बांटी गई। सिर्फ शिकायत पर ही कार्यवाही करने की बात है तो हमें कुछ नही करना है लेकिन शायद ही ऐसा कोई चुनाव नहीं है जिसमें इस तरह क हथकंडे नहीं अपनाये जाते है और प्रशासन उन्ही पर कार्यवाही करती है जिसपर हल्ला होता है या फिर शिकायत। यहंा आकर उनके मुखबिर भी फेल हो जाते है और शराब से मौत का सिलसिला चलते रहता है।
    वे लोग भी खुलकर विरोध नहीं करते जो शराब नही पीते क्योंकि उन्हे दुसरों की जान की कोई परवाह नही है। जिस दौर से छत्तीसगढ़ गुजर रहा है और लोग गलत की तरफ से आंखें बंद कर समाज सेवा के माध्यम से अपनी लकीर बहाने में लगे है वे शायद यह भूल गए है कि इस अंधेरगर्दी की आंच कभी न कभी उन तक भी पहुंचेगी तब उनके लिए भी गलत का विरोध करने वाले खड़े नहीं होगें।
    पिछले सालों में दुर्घटना से मौत के आंकड़ो पर नजर डाले तो इन सबके पीछे कहीं न कहीं शराब ही कारण नजर आयेगें। लेकिन सरकार को तो सिर्फ और सिर्फ राजस्व की चिंता है ताकि अपने ऐशो-आराम की सुविधा में किसी तरह की कटौती न हो पाये।
    शराब से घर टुट जाते है गांव और मोहल्ले की शांति भंग हो रही है और अपराध भी बह रहे है। क्या इतनी सी बात सरकार को नहीं मालूम है या वह लोगों को नशे में डूबोकर कुर्सी पर बना रहना चाहती है।
    अधिसंख्य वर्ग या गरीब वर्ग को मुफत की बंटरबोर कर नशे में रखने की सियासत ने इस शांत छत्तीसगढ़ को अशांत कर दिया है। गांव हो या शहर अवैध शराब की गंगा बहाई जा रही है और शराब माफियाओं के इशारे पर शासन प्रशासन नाच रहा है क्या ऐसे ही छत्तीसगढ़ की कल्पना की गई थी।
    अब भी वक्त है छत्तीसगढ़ के हितचिंतकों के लिए कि वे सचेत हो जाए वरना आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ को बिहार या यूपी बनने से रोकना मुश्किल हो जायेगा। आप लोगों का दिन ढलते ही लौट पाने की चिंता में मां-बाप का खुन सूख जायेगा।
    शराब बेचने की सरकारी मजबूरी सिर्फ बहाना है। ऐसे में मौत के सिलसिले रोकने आम लोगों को इसके खिलाफ जमकर खड़ा होना होगा। वरना सरकारी अंधेरगर्दी पर पछताने के अलावा कुछ न बचेगा।

शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

रंगगेलियां मनाने वाले जीएम की छुट्टी

एक   अंग्रेजी अखबार के  जीएम जब गायत्री  नगर में रंगरेलिया मनाते पकडाया  तब -किसी  ने नहीं सोचा था कि मीडिया का  स्तर इस तरह से गिर जाएगा। दरअसल डांस क्लास चलाने वाली को अपना फोटो  छपवाने का  शौक कि  यह परिणिति  रही। इस मामले का  खुलासा जब वेदांत  भूमि डाट --काम में हुआ तो नागपुर में बैठे मालिक  नींद से जागे और  जीएम कि  नौकरी  गई। अब लोगों कि  नजर इसके  हिंदी संसकरण छपने वाले रंगा-बिल्ला पर है क्योंकि ब्लाक्मेलिंग से लेकर  शराब-शबाब के ये दोनों भी शौकिन है.

बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

दूसरे गांधी की अब जरूरत है।

पूरा देश मंहगाई और भ्रष्टाचार की चपेट में है मंहगाई की असली वजह भ्रष्टाचार है। अनाप -शनाप पैसे कमाने वालों की वजह से ही जरूरत की चीजों के दाम बढ़ रहे हैं। कांग्रेस से लेकर तमाम राजनेतिक दल भ्रष्टाचार और मंहगाई के खिलाफ बोल रहे है। यहां तक कि न्यायालय ने भी भ्रष्टाचार पर चिंता जाहिर की है लेकिन न तो भ्रष्टाचार ही रूक रहा है।

आम आदमी भी भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने के सिवाय कुछ नही कर पा रहा है। ऐसे में अब एक गांधी जी की जरूरत है जो भ्रष्टाचार और मंहगाई के खिलाफ अपना सब कुछ छोड़कर सड़क पर सिर्फ एक लाठी लेकर निकल पड़े। भ्रष्टाचारियो के खिलाफ सामाजिक बहिस्कार जैसे आंदोलन खड़े हो और ऐसे लोगों की संपत्ति राजपत्र करने का कानून बनाने सरकार को मजबूर करे।

गांधी जी की जरूरत इसलिए भी है क्योंकि मंहगाई के खिलाफ आंदोलन हो। क्या ऐसे व्यक्ति की अब जरूरत नही है जो पूरे देश के लोग एक आव्हान पर हफ्ता भर तक सब्जी खाना बंद कर दे। क्या इससे मंहगाई नही रूक जायेगी। या एक समय ही सब्जी खाने का प्रभावशील आव्हान किया जा सके।

दरअसल मंहगाई का विरोध की बजाय सरकार के विरोध वह भी राजनीतिक स्वार्थ के लिए किये जा रहे है इससे न तो मंहगाई कम हो रही है और न ही आप लोगों की पीड़ा। अनाप शनाप ढंग से पैसे कमाने वाले लोगों ने अनाप शनाप ढंग से खरीददारी कर मंहगाई बढ़ा दी है और सरकार से लेकर विपत्ति दल केवल हल्ला मचा रहे है क्योंकि उन्हें जनता से वोट चाहिए। यदि वोट की मजबूरी नहीं होती तो ये लोग कभी हल्ला ही नही मचाते।

क्या राजनैतिक दलों ने चुनाव में जीतने वाले को टिकिट देने की शर्त रखकर राजनैतिक दलों ने भ्रष्ट आचरण को बढ़ावा नही दिया है। सत्ता की भूख और सत्ता पाने अनाप शनाप कमाई अपराधियों को संरक्षण देने का खामियाजा आज पुरे देश को मंहगाई के रूप में भुगतना पड़ रहा है।

छत्तीसगढ़ तो लुटेरों के लिए पनाहगार होते जा रहा है। भ्रष्टाचार चरम पर है और सरकार ऐसे लोंगों पर कार्यवाही करने की बजाय उसे बचा रही है। आम आदमी में शराब का जहर खोला जा रहा है। महयपवर्ग चावल योजना से त्रस्त है और पूरा प्रदेश आजक की स्थिति पर पहूंच गया है।

क्या अब भी आप लोगों में से किसी की ईच्छा नही है कि वह इस अराजक के खिलाफ गांधी जी बनकर खड़ा हो सके। विदेशी वस्त्रों की होली जलाने की तर्ज पर सब्जी न खाने की घोषणा करें। भ्रष्टाचारियों को सार्वजनिक रूप से अपमानित करें।

पंडित सुन्दरलाल शर्मा, खूब चंद बघेल, शहीद वीर नारायण सिंह की धरती एक बार फिर लहुलुहान है और एक बार फिर गांधी जी कि जरूरत है तो आइये इस आंदोलन को सफल बनायें।

सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

अंग्रेजी अखबार का जी एम् रंगरेलियां मानते पकडाया , पुलिस के हाथ - पावं फुले बगैर कार्रवाई के छोड़ा


छत्तीसगढ़ राज्य बनते ही जिस तरह की पत्रकारिता चल रही है वह शर्मनाक है पत्रकार सरे राह मारे जा रहे हैं और अखबार मालिक कुत्तों की तरह रोटी के टुकड़ों पर ध्यान रख रहे हैं बेशर्मी तो यह है की अखबार का संपादक भी उसे अपना कर्मचारी मानाने से इंकार कर रहा है और पत्रकारों का हितचिन्तक बनाने वालों की बजाय ऑटो वाले आन्दोलन कर रहे हैं.मैनेजमेंट को तो अपनी अय्याशी से फुर्सत नहीं है चाहे अखबार का इमेज ख़राब हो जाये तजा मामला अंग्रेजी अखबार के जी एम् का रंगरेलियां मानाने का है नाम के अनरूप नीले फिल्मो के शौक़ीन ने वह सब कर दिया जो शर्मनाक ही नहीं अखबार जगत के लिए मुंह छुपाने जैसी है. इस नामी अंग्रेजी अखबार के जी एम् को पुलिस ने गायत्री नगर में पकड़ा और दबाव में छोड़ भी दिया krietivi संस्था के इस महिला को भी पुलिस ने छोड़ दिया . पिता लगाने वाली पुलिस ने क्यों छोड़ा यह सभी जानते है लेकिन इस अख़बार के रिपोर्टरों को जवाब देना मुश्किल हो रहा है हालाँकि इस अखबार के हिंदी एडिसन के रंग - बिल्ला की चर्चा भी कम नहीं है छत्तीसगढ़ राज्य बनते ही जिस तरह की पत्रकारिता चल रही है वह शर्मनाक है पत्रकार सरे राह मारे जा रहे हैं और अखबार मालिक कुत्तों की तरह रोटी के टुकड़ों पर ध्यान रख रहे हैं बेशर्मी तो यह है की अखबार का संपादक भी उसे अपना कर्मचारी मानाने से इंकार कर रहा है और पत्रकारों का हितचिन्तक बनाने वालों की बजाय ऑटो वाले आन्दोलन कर रहे हैं.मैनेजमेंट को तो अपनी अय्याशी से फुर्सत नहीं है चाहे अखबार का इमेज ख़राब हो जाये तजा मामला अंग्रेजी अखबार के जी एम् का रंगरेलियां मानाने का है नाम के अनरूप नीले फिल्मो के शौक़ीन ने वह सब कर दिया जो शर्मनाक ही नहीं अखबार जगत के लिए मुंह छुपाने जैसी है. इस नामी अंग्रेजी अखबार के जी एम् को पुलिस ने गायत्री नगर में पकड़ा और दबाव में छोड़ भी दिया krietivi संस्था के इस महिला को भी पुलिस ने छोड़ दिया . पिता लगाने वाली पुलिस ने क्यों छोड़ा यह सभी जानते है लेकिन इस अख़बार के रिपोर्टरों को जवाब देना मुश्किल हो रहा है हालाँकि इस अखबार के हिंदी एडिसन के रंग - बिल्ला की चर्चा भी कम नहीं है छत्तीसगढ़ राज्य बनते ही जिस तरह की पत्रकारिता चल रही है वह शर्मनाक है पत्रकार सरे राह मारे जा रहे हैं और अखबार मालिक कुत्तों की तरह रोटी के टुकड़ों पर ध्यान रख रहे हैं बेशर्मी तो यह है की अखबार का संपादक भी उसे अपना कर्मचारी मानाने से इंकार कर रहा है और पत्रकारों का हितचिन्तक बनाने वालों की बजाय ऑटो वाले आन्दोलन कर रहे हैं.मैनेजमेंट को तो अपनी अय्याशी से फुर्सत नहीं है चाहे अखबार का इमेज ख़राब हो जाये तजा मामला अंग्रेजी अखबार के जी एम् का रंगरेलियां मानाने का है नाम के अनरूप नीले फिल्मो के शौक़ीन ने वह सब कर दिया जो शर्मनाक ही नहीं अखबार जगत के लिए मुंह छुपाने जैसी है. इस नामी अंग्रेजी अखबार के जी एम् को पुलिस ने गायत्री नगर में पकड़ा और दबाव में छोड़ भी दिया krietivi संस्था के इस महिला को भी पुलिस ने छोड़ दिया . पिता लगाने वाली पुलिस ने क्यों छोड़ा यह सभी जानते है लेकिन इस अख़बार के रिपोर्टरों को जवाब देना मुश्किल हो रहा है हालाँकि इस अखबार के हिंदी एडिसन के रंग - बिल्ला की चर्चा भी कम नहीं है 

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

क्या छत्तीसगढ़ में शराब माफियाओं की चलती है ?

शराब-बंदी सहित विभिन्न मांगों को लेकर आज़ाद चौक स्थित गाँधी प्रतिमा के सामने धरना दे रहे लोगों को यह कहकर पुलिश ने हटा दिया की यह प्रतिबंधित छेत्र है जबकि धरना सिर्फ एक घंटे का है और यह रोज दिया जाना है . पुलिश का कहना था की धरना देना हो तो बुदापारा स्थित धरना स्थल में दो.
धरना देने वालों में दाऊ आनंद कुमार , गणपत सेन नवरतन गोलछा और कौशल तिवारी शामिल है
आज महात्मा गाँधी की प्रतिमा में माल्यार्पण के बाद जैसे ही माम्बत्ति जलाकर धरना पर बैठा गया पुलिश पहुँच गई और चले जाने का फरमान सुना दिया.
इस बात से दुखी आन्दोलन-कारियों ने कलेक्टर से मिलाने का निर्णय लिया है
सवाल यह है की क्या शराब के खिलाफ आन्दोलन दबाये जायेंगे और माफिया इस तरह से हावी हैं की एक घंटे का धरना बर्दाश्त नहीं किया जायेगा
आन्दोलन की अन्य मांग राजधानी निर्माण तब तक रोका जय जब तक छग के गावों में पानी शिक्छा व् स्वस्थ सुविधा न हो जाय, चुनाव की जमानत राशि १०० रुपये से ज्यादा न हो खेती की जमीनों का उपयोग न बदला जाय और सरकारी जमीनों का संरक्षण तथा विदेशो में जमा काले धन की वापसी शामिल हैं.

रविवार, 6 फ़रवरी 2011

पूर्ण शराब-बंदी को लेकर अखंड धरना ८ फरवरी से


छत्तीसगढ़ राज्य निर्माता दाऊ आनंद कुमार कल ८ फरवरी से पूर्ण शराब-बंदी सहित विभिन्न मांगो को लेकर आज़ाद चौक स्थित महात्मा गाँधी कि प्रतिमा के सामने शाम ५ बजे से अखंड धरना पर बैठेंगे . धरना प्रतिदिन एक घंटे का होगा.
धरने कि प्रमुख अन्य मांग विदेशो में जमा काले धन कि वापसी , खेती कि जमीनों का उपयोग नहीं बदलने, सरकारी जमीनों का संरक्षण व् बंदरबांट बंद करने और छग के गाँवो के विकास व् सुविधा संपन्न के बाद ही नई राजधानी का निर्माण जैसे mudde shamil hai

बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

भ्रष्ट, लालची, बेईमान और बेशरम ?

वैसे तो इन दिनों पुरे देश में जनप्रतिनिधियों की भूमिका को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं.सवाल इसलिए भी उठाये जा रहें हैं क्योकि उन्हें उनकी जसव के बदले न केवल वेतन दिया जाता है बल्कि भरपूर भत्ता भी दिया जाता है इसके बावजूद वे जनसेवा की बजे अपना पेट भरने में ज्यादा रूचि रख रहें हैं.छत्तीसगढ़ में भी जनसेवा के नाम पर लुट मची है जिसे जन्हा मौका मिल रहा है वह लुटने में कोई कसार बाकि नहीं रख रहा है, छत्तीसगढ़ में सबसे भ्रष्ट , बेईमान , लालची और बेशरम जनप्रतिनिधि बनाने की होड़ मची हुई है और इस कम में भाजपा और कांग्रेस नेतृत्व भी आगे है
वैसे तो इन दिनों पुरे देश में जनप्रतिनिधियों की भूमिका को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं.सवाल इसलिए भी उठाये जा रहें हैं क्योकि उन्हें उनकी जसव के बदले न केवल वेतन दिया जाता है बल्कि भरपूर भत्ता भी दिया जाता है इसके बावजूद वे जनसेवा की बजे अपना पेट भरने में ज्यादा रूचि रख रहें हैं.छत्तीसगढ़ में भी जनसेवा के नाम पर लुट मची है जिसे जन्हा मौका मिल रहा है वह लुटने में कोई कसार बाकि नहीं रख रहा है, छत्तीसगढ़ में सबसे भ्रष्ट , बेईमान , लालची और बेशरम जनप्रतिनिधि बनाने की होड़ मची हुई है और इस कम में भाजपा और कांग्रेस नेतृत्व भी आगे है.




छत्तीसगढ़ में इन दिनों किसानो के पैसों का गिफ्ट और उसमे भी भ्रष्टाचार का मामला सुर्ख़ियों में हैं लेकिन कोई भी नेता गिफ्ट लौटने तैयार नहीं हैं, लगता है जैसे मुफ्त-खोरी की आदत ने उनकी सारी नैतिकता को निष्ठुर बना दिया है उनमे इतनी भी शर्म नहीं बची है की वे मामले का खुलाशा होने के बाद गिफ्ट लौटा दे या उन्हें इस बात की चिंता भी नहीं है की लोग क्या कहेंगे वे शायद भूल गए हैं की जनता यदि इस मामले में सड़क पर आ गयी तो क्या होगा,उन्हें जनप्रतिनिधियों की पिटाई,चप्पल मरने की घटना भी यद् नहीं रहा यदि ऐसा ही चलता रहा तो जनता के पास क्या रास्ता होगा ? क्या बेशरम लिखाकर टांगने या जगह-जगह अपमान करने पर ही ये सुधरेंगे या इन्हें ठीक करने कोई और रास्ता निकला जायेगा . अब जनता ही तय करेगी की उसने किसे चुना है और छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा भ्रष्ट, लालची, बेईमान और बेशरम नेता कौन है ? वैसे हमने बता दिया है चावक-चौराहों पर भी नाम लिखे जायेंगे और यह कम जनता ही करेगी तभी शायद किसानो के पैसों का गिफ्ट लौटाया जायेगा या बड़े नेताओ को शर्म आएगी ?