रविवार, 27 दिसंबर 2020

लोकतंत्र कहां हैं...!

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जम्मू कश्मीर के लोगों के लिए आयुष्मान भारत की घोषणा करते हुए जब कहते हैं कि कुछ लोग मुझे रोज लोकतंत्र का पाठ पढ़ा रहे हैं तब यह सवाल स्वाभाविक रुप से उठता है कि क्या देश का प्रधानमंत्री लोकतंत्र की परिभाषा भूल गये हैं या वे लोकतंत्र को सबसे ज्यादा जानते है।

हमने पहले भी इसी जगह पर लिखा है कि वर्तमान सत्ता के किसान आंदोलन को लेकर जो अडिय़ल रुख अख्तियार किया है वह किसी भी लिहाज से उचित नहीं है। लोकतंत्र में कानून बनाना या अपने एजेंडे को लागू करना सरकार का ही काम है लेकिन इसका यह कोई मतलब नहीं है कि विरोधियों को पाकिस्तानी या खालिस्तानी करार दिया जाए।

जब से तीनों कृषि कानून के खिलाफ किसानों ने आवाज बुलंद की है तभी से सत्ता और उनसे जुड़े लोगों ने आंदोलनरत किसानों के खिलाफ विषवमन किया है। यहां तक कि इस आंदोलन को विदेशी साजिश तक बता दिया गया। लेकिन सच तो यही है कि ये तीनों कानून को लेकर किसानों के मन में जो शंकाएं हैं उसे दूर करने की कोशिश नहीं की गई।

सरकार को अपनी दिक्कत हो सकती है लेकिन क्या यह सच नहीं है कि किसानों की हालत दिनों दिन बदतर होते जा रही है ऐसे में किसानों को लेकर गठित आयोग कि सिफारिश पर मोदी सत्ता ने पिछले 6 सालों में क्या किया? कुछ भी नहीं न भूमि सुधार न तकनीकी? ऐसे में जब किसानों के लिए मंडी और समर्थन मूल्य महत्वपूर्ण हो जाता है तब उस पर भी कानून नहीं बनाना क्या सरकार का अडिय़ल रुख नहीं है।

तब भला लोकतंत्र के पाठ को लेकर तंज कसना यह साबित नहीं करता कि प्रधानमंत्री को लोकतंत्र का सम्पूर्ण ज्ञान है और वे लोकतंत्र को लेकर कुछ भी नहीं समझना चाहते जबकि यह सर्व सत्य है कि जीवन के हर क्षेत्र में रोज सीखने का अवसर मिलता है चाहे आप उस क्षेत्र के कितने भी बड़े ज्ञानी हो। रोज कुछ कुछ सीखा जा सकता है।

जहां तक लोकतंत्र का सवाल है तो यह कौन नहीं जानता कि आज भी इस देश में लोकतंत्र सत्ता की ताकत और पूंजी के दबाव में पैरों तले रोज रौदा जाता है। जो व्यक्ति कानून के चक्कर में पड़ता है उससे पूछिये कि न्याय उसे कब मिलता है या तो वह टूट जाता है या जीवन का अंतिम सांस ले रहा होता है। इस न्याय को लोकतंत्र का विजय बताकर सत्ता भले ही खुश हो ले लेकिन सच तो यही है कि सत्ता का हर कदम उसके अपनी रईसी को बरकरार रखने में होता हैं।

ऐसे में आम आदमी का दर्द को लेकर मशहूर शायह राजेश रेड्डी के इस शेर की याद आती है-

शाम को जिस वक्त खाली हाथ घर जाता हूं मैं

मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूं मैं।।