बुधवार, 30 जून 2021

अमरजीत की अकड़...

 

सत्ता का अपना चरित्र होता है, सत्ता का नशा भी सर चढ़कर बोलता है और कई बार तो सत्ता की कुर्सी में बैठते ही आदमी, अंधा, गूंगा और बहरा भी हो जाता है। लगता है छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने महात्मा गांधी के तीन बंदरों को कुछ ज्यादा ही पढ़ लिये है या उस सिद्धांत को कुछ ज्यादा ही आत्मसात कर चुके है इसलिए उन्हें अब पत्रकारों के वे सवाल सुनाई नहीं देते जो जनसरोकार से जुड़े होते हैं, हम तीन करोड़ की कहानी की बात को बाद में बतायेंगे अभी तो हम शराब बंदी के सवाल पर खाद्य मंत्री अमरजीत भगत के जवाब पर ही चर्चा करना चाहते हैं।

छत्तीसगढ़ में शराब बंदी का दावा कर सत्ता में आई कांग्रेस सरकार को अब शराब बंदी को लेकर उठ रहे सवाल अच्छे नहीं लगते जबकि शराब की वजह से बढ़ते अपराध के आकड़े नई तरह की चिंता पैदा करने वाली है। औसतन हर महीने 40 से पचास मामले सामने आ रहे हैं, पारिवारिक कलह से लेकर हत्या, बलात्कार के मामले बढ़ते जा रहे है और महासमुंद के रेल पट्टी में अपनी पांच बेटियों के साथ एक महिला का सामूहिक आत्महत्या कोई कैसे भूल सकता है।

हालांकि प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल ने जनजागरण चलाने और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष मोहन मरकाम ने शराब बंदी के सवाल पर कहा है कि अभी ढाई साल बचा है। ऐसे ही सवाल जब खाद्य मंत्री अमरजीत भगत से पूछा गया, कई बार पूछा गया लेकिन भगत को सुनाई नहीं दिया, उन्होंने सवाल सुनाई देने की बात कहकर अपने कदम आगे बढ़ा दिये। 

जब यह वीडियो वायरल हुआ तो भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने खाद्य मंत्री सहित पूरी सरकार पर हमला बोल दिया लेकिन सत्ता का अपनी चरित्र है। अमरजीत भगत ने जिस तरह से शराब बंदी के सवाल पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है उसमें हैरानी की बात नहीं है क्योंकि सत्ता में बैठे व्यक्ति का अपना अलग ही रवैया होता है, फिर अजीत जोगी के करीबी रहे अमरजीत भगत के बारे में कहा जाता है कि उनकी निगाह और महत्वाकांक्षा भी अलग तरह की है जोगी खेमे की राजनैतिक शैली का उन पर असर भी है और वे मौके का फायदा उठाने से चूकते भी नहीं है, यही वजह है कि उन्हें जब कांग्रेस अध्यक्ष की बजाय देर से मंत्री बनाया गया तो इसकी वजह टीएस बाबा का विरोधी बताया गया और कहा जाता है कि बाबा के खिलाफ कदम ताल करने में वे देर भी नहीं करते। अब गांवों में निजी अस्पताल के मामले में ही उनके बयान को देख लीजिए, उन्होंने किस तरह से मुख्यमंत्री को कमांडर बताते हुए बाबा को उसकी हैसियत समझाने की कोशिश की है यह सबके सामने है। तब देखना है कि सत्ता की अकड़ से अभी प्रदेश को और कितना और क्या-क्या देखना है।