मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

अंबानी-अदानी होंगे लोकसभा के मुद्दे!


जल जंगल और जमीन की चुनावी राजनीति

विशेष प्रतिनिधि
आगामी लोकसभा चुनाव में जल जंगल और जमीन के मुद्दे तो चुनावी राजनीति में अहम रोल तो अदा करेंगे ही अंबानी और अदानी प्रमुख चुनावी मुद्दे हो सकते हैं। भ्रष्टाचार को लेकर चुनावी राजनीति में उतरी आम आदमी ने आम चुनाव को न केवल दिलचस्प बना दिया है बल्कि क्षेत्रीय दलों की दादागिरी पर भी विराम लगाने की कोशिश की है। छत्तीसगढ़ में इस सबका कहां और कितना असर होगा एक रिपोर्ट...
आने वाले दिनों में होने वाले लोकसभा चुनाव की बिसात बिछना शुरू हो गया है। राहुल बनाम मोदी के प्रश्न पर हो रहे घमासान में अरविन्द केजरीवाल की मौजूदगी ने पूरे वातावरण को आक्रामक बना दिया है। एक तरफ कांग्रेस और भाजपा वोट बैंक की राजनीति को साधने में लगी है तो दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी ने भाजपा और कांग्रेस के सांठगांठ को लेकर दोनों के सत्ता के रास्ते पर खड़ी हो गई है। कांग्रेस और भाजपा की रणनीति युवा, किसान ग्रामीण और आदिवासियों को रिझाने की है और अचानक उपजे इस प्रेम से आम शहरी हैरान है। दोनों ही पार्टी इन मुद्दों से अलग नहीं होना चाहते और इन वर्गों के वोटरों को रिझाने की माकूल कोशिश हो रही है। इन सबके बीच भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ी हुई आम आदमी पार्टी दिशाहीन औद्योगीकरण, प्रदूषण और कार्पोरेट भ्रष्टाचार के साथ दोनों ही प्रमुख दलों के सांठगांठ को मुद्दा बना रही है। अरविन्द केजरीवाल ने अंबानी और अदानी को लेकर उठाये सवाल में अपनी मंशा जाहिर भी कर दी है। कांग्रेस और भाजपा जहां जल जंगल और जमीन को लेकर अपना प्रेम जाहिर कर रही तो पूंजीपतियों से उनके संबंधो को लेकर केजरीवाल ने प्रहार शुरु कर दिया है।
कांग्रेस और भाजपा भले ही विकास का जितना भी प्रचार कर ले पर जमीनी हकीकत भयावह दर्दनाक है और यह दर्दनाक स्थिति की वजह से ही मुफ्त में बांटने की परम्परा शुरु की गई है।  छत्तीसगढ़ में पिछले हो चुनावों में भाजपा को 11 में से 10 सीटें मिलती रही है। और इस बार भी कांग्रेस यहां सब कुछ पलट देगी कहना कठिन है। दिशाहीन और असंतुलित विकास ने इस नव निर्मित प्रदेश में सरकारी दावों के विपरीत स्थिति है। एक तरफ बस्तर में नक्सलियों की अघोषित सरकार चल रही है तो मैदानी क्षेत्र के एक बड़े हिस्से में माफिया राज है। शराब और जमीन माफियाओं ने इस शांत प्रदेश को अशांत कर दिया है तो बढ़ते अपराध और औद्योगिक आतंकवाद ने रही सही कसर पूरी कर दी है ऐसे में यहां के लोगों को तीसरे विकल्प की तलाश तो है पर वे बेहतर नेतृत्व के अभाव में मन मसोस कर रह गये है।
वर्तमान हालात तो कांग्रेस या भाजपा के बीच की ही है लेकिन आ आदमी पार्टी से आम शहरी लोगों की उम्मीद भी जगी है और यदि केजरीवाल का यहां दौरा होगा तभी वास्तविक स्थिति का आंकलन हो पायेगा।
वैसे शहरी क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी का प्रभाव दिखने लगा है और जिस तरह से बस्तर सीट से सोनी सोढ़ी का नाम उछाला गया है उसके बाद राजनीति में गर्मी भी महसूस की जा रही है। छत्तीसगढ़ में चुनावी मुद्दे क्या होंगे यह अभी से कहना जल्दबाजी होगी लेकिन यदि केजरीवाल की पार्टी आती है तो औद्योगिक घरानों से सांठगांठ यहां भी प्रमुख मुद्दा बन सकता है।