बुधवार, 28 अप्रैल 2021

सिस्टम का मतलब...

 

क्या देश की जनता को सत्ता द्वारा इतना बेवकूफ समझा जाता है कि वह कुछ भी कहे मान ले। दरअसल बात सिस्टम के फेल हो जाने की हो रही है। सच तो यह है कि सिस्टम फेल नहीं बल्कि एक्सपोज हो गया। खुद को बचाने जिस बेशर्मी से सत्ता ने सिस्टम पर दोष मढ़ा है वह हैरान ही नहीं उन लोगों के मुंह में करार तमाचा है जो दिन-रात इस देश की तरक्की के लिए काम कर रहे हैं।

इस देश की वह पुलिस जो इस भीषण काल में भी अपनी नींद खराब कर, सड़कों पर पहरेदारी कर रही है, इस देश के डाक्टर, नर्स, नर्सिंग स्टॉप अपने परिवार की चिंता किये बगैर गरीबों की सेवा में लगे है, जाति धर्म का भेद भुलाकर इस महामारी में आम जन एक साथ खड़े हैं क्या ये सभी सिस्टम को कटघरे में खड़े करने का अधिकार सत्ता को है? दरअसल खराबी सिस्टम में नहीं सत्ता में बैठे लोगों में है। जब उसकी लापरवाही गैर जिम्मेदारी सबके सामने आने लगा तो वह सिस्टम को दोष देने लग गया। 

जो लोग आज अपनी जिम्मेदारी और लापरवाही के चलते इस देश की यह हालत की है वे लोग तब क्यों सिस्टम को दोष नहीं दे रहे थे जब गृहमंत्री के पुत्र जय शाह को पद दे रहे थे, तीन हजार करोड़ की मूर्ति बनवा रहे थे, सिस्टम खुद के लिए 8 हजार करोड़ का प्लेन खरीदता है। चुनाव प्रचार करने बंग्लादेश चला जाता है लेकिन अस्पताल नहीं जाता। देश की सम्पत्ति को यह सिस्टम निजी हाथों में सौपता है, किसान बिल लाता है, सीएए लाता है, नोटबंदी करता है, विधायक खरीदता है, नमस्ते ट्रम्प करता है तब सिस्टम ठीक था लेकिन जब लोग बिलखकर तड़पकर मरने लगे तो सिस्टम फेल हो गया।

दरअसल सिस्टम फेल ही नहीं हुआ है बल्कि एक्सपोज हो गया है। क्योंकि इस सिस्टम ने जिस तरह से बात-बात पर झूठ बोलकर नफरत की दीवार खड़ी की थी और अपनी सुविधानुसार सिस्टम तैयार किया था वह इस महामारी में पूरी तरह एक्सपोज हो गया। हमने पहले ही कहा है कि यह देश दुनिया के किसी भी देश से भिन्न है, इस देश को किसी धर्म या महजब का ही प्रयास है। यह देश बना है प्रेम और सत्य की राह पर चलकर बना है, यहां झूठ-नफरत, छल-प्रपंच का कोई स्थान नहीं है और जिसे भी सत्ता ने इसे अपने इशारे पर हांकने की कोशिश की उसे मुंह की खाना पड़ी है।

जो हिन्दू कुंठा से ग्रसित है वे खुद ही जान ले कि छोटे-छोटे राज्यों में बंटे इस देश को एक करने में क्या कुछ नहीं किया गया, तब भारत बना है। आजादी की लड़ाई में हिन्दु ही नहीं मुस्लिम-सिख सहित सब धर्म के लोगों ने अपना लहू बहाया है। इस देश पर जितना हिन्दुओं का अधिकार है, उतना ही अधिकार दूसरे धर्म के लोगों का है।

लेकिन पिछले सालों में सत्ता ने क्या किया, वह अपनी तरह का सिस्टम तैयार करने लगा, अपनी कुंठा, झूठ और नफरत को सिस्टम का अंग बनाने की कोशिस की गई। जब सत्ता में बैठे लोगों का समूचा ध्यान ही अपनी सत्ता को विस्तार देने में हो तो फिर वह आम लोगों के बारे में कैसे सोच सकता था, उसका सारा सिस्टम सत्ता के लिए था इसलिए महामारी की चेतावनी को नजरअंदाज कर पहली लापरवाही की गई, पहली लहर में हुई लापरवाही ने कितनी ही जाने ली।