बुधवार, 3 मार्च 2021

किसान आतंकवादी?

 

किसान आंदोलन को लेकर जिस तरह से सत्ता पक्ष का रूख रहा है और किसानों को जिस तरह से भला बुरा कहते हुए आतंकवादी बताया गया, क्या यह सब आने वाले दिनों में भूला दिया जायेगा। सिर्फ असहमति के स्वर को दबाने किसी को राष्ट्रद्रोही या आतंकवादी करार देना क्या उचित है।

22 साल की दिशा को किस तरह से देशद्रोही करार देने की कोशिश हुई उसे भले ही लोग भूल जाये लेकिन दिशा उन्हें भी तब तक याद आयेगी जब सरकार की मनमानी के खिलाफ खड़ा होने वाला कोई लड़का या लड़की पर सरकार यही रूख अख्तियार करेगा।

ये देश न किसी धर्म विशेष का है और न ही किसी जाति विशेष का है। चुनाव जीतने धर्मों को बांटकर या जातियों को बिखेरकर सत्ता हासिल तो की जा सकती है लेकिन मनमानी बर्दाश्त नहीं की जायेगी।

ऐसे में दिल्ली बार्डर से शुरु हुआ किसान आंदोलन अब गांव-गांव में अपनी रफ्तार पकडऩे लगा है। जिन किसानों को सत्ता के मद में नेताओं और ट्रोल आर्मी ने आतंकवादी कहा है वह आने वाले समय में भाजपा को ही नहीं पूरे एनडीए को भारी पडऩे वाला है।

वैसे भी 2014 से असहमति के स्वर को देशद्रोही करार देने की ये परम्परा शुरु की गई है उसका दम किसान आंदोलन ने निकाल दिया है। असहमति के स्वर को नक्सली देशद्रोही बताने की परम्परा से सत्ता हासिल करने वाले यह भूल गये कि सत्ता किसी भी एक दल या व्यक्ति की जागीर नहीं है। लोकतंत्र में सरकारें आती जाती रहती है लेकिन यदि नफरत का पौधा बड़ा हो गया तो देश की तरक्की ही नहीं रुकेगी बल्कि विश्व में उसकी छवि भी खराब होगी।

पूरा इतिहास उठाकर देखा जाना चाहिए कि जिस भी शासक ने अपने धर्म या समाज को श्रेष्ठता की कसौटी में खरा उतारने नफरत का बीज बोया उन शासकों का इतिहास में नाम किस तरह लिया जाता है।

किसान आंदोलन अपने चरम पर पहुंचने वाला है। ऐसे में सरकार भले ही एमएसपी को लेकर यह कहने लगे कि एमएसपी रहेगा लेकिन सच तो यही है कि केन्द्रीय कृषि मंत्री ने किसानों की बैठक में स्पष्ट कह दिया है कि एमएसपी पर खरीदी करने की स्थिति में सरकार नहीं है। यानी दो तरह की बातें की जा रही है। हैरानी तो इस बात की है कि सत्ता संभालने के बाद मोदी सत्ता ने उद्योगपतियों को करोड़ों अरबों की छूट दी है लेकिन एमएसपी पर खरीदी से किसानों को होने वाले लाभ से वंचित रखा जा रहा है। चुनाव में स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट लागू करने के वादे के साथ सत्ता में आई मोदी सरकार अब रिपोर्ट को लागू नहीं कर पाने की मजबूरी बता रही है।

ऐसे में अब एक ही सवाल है कि क्या सत्ता ने असहमति के स्वर को दबाने राष्ट्रवाद का नया फार्मूला लागू कर दिया है कि जो भी किसान आंदोलन का समर्थन करेगा वह देशद्रोही है या आतंकवादी?