मंगलवार, 10 अगस्त 2010

30-32 करोड़ का माल 5 लाख में...

लोकतंत्र की जय हो, लोकतंत्र अमर रहे। हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी को यह नारा जोर-शोर से लगाया जाता है। इस बार भी यह नारा लगेगा और झक सफेद कपड़े में मुख्यमंत्री से लेकर जनप्रतिनिधि शपथ भी लेंगे और इसके चंद मिनट बाद कई लोग उद्योगपतियों के साथ नजर आएंगे किसानों को कंगाल करने के फैसले होंगे। विकास के नाम पर आम लोगों की उपजाऊ जमीन छीन ली जाएगी और मुआवजे के नाम पर कुत्तों की तरह रोटी डाल दी जाएगी।
छत्तीसगढ़ खनिज संपदा से भरपूर राय है और यहां विकास के नाम पर सरकार जिस तरह से जमीनें अधिग्रहित कर रही है उससे आने वाले दिनों में विकास की गंगा बहनी तय है? नई राजधानी के नाम पर सैकड़ों एकड़ उपजाऊ जमीन पर कांक्रीट का जंगल बनाया जा रहा है। कितने लोग बेघर हो गए और उन्हें मुआवजे के नाम पर जबरिया हटा दिया गया। उद्योगों को जमीन बेचने सरकारी एजेंट घूम रहे हैं। यहां भी उपजाऊ जमीन बर्बाद किया जा रहा है। उद्योगों को लोहे की खदानें दी गई जंगल काटे जा रहे हैं। पानी तक बेची जा रही है जबकि किसानों के लिए सरकार के पास पानी नहीं है।
सबसे दुखद पहलू तो मनमाने ढंग से कोल ब्लॉक का बंदरबांट है। सरकारी के अलावा निजी जमीनों के नीचे भी कोल ब्लाक हैं और इन जमीनों को 4-5 लाख रुपए एकड़ में उद्योगपतियों को बेचने सरकारी षडयंत्र रचा जा रहा है। पूरी सरकार इन निजी जमीनों को उद्योगपतियों को दिलाने गांव वालों पर दबाव डाल रहे हैं और उद्योगपति कोयलेवाली निजी जमीन 4-5 लाख रुपए में खरीदने लाखों खर्च कर रही है। इसकी वजह न क्षेत्र का विकास है और न ही आम लोगों को फायदा देना है बल्कि इसकी वजह एक एकड़ जमीन के नीचे मौजूद 30-32 करोड़ का कोयला है। क्या दुनिया में इससे सस्ता सौदा हो सकता है कि 30-32 करोड़ के कोयले के बदले सिर्फ किसानों को 4-5 लाख रुपए दिए जाए। लेकिन उद्योगपतियों की इस करतूत को सरकार भी समझने तैयार नहीं है।
छत्तीसगढ़ में जिस पैमाने पर कोल ब्लाक दिए गए हैं उससे उद्योगपतियों को जो हर साल कमाई होनी है वह छत्तीसगढ़ सरकार के कुल बजट 22 हजार करोड़ रुपए से अधिक है। यह कैसे आम लोगों की सरकार है जो कोयले वाली जमीन 4-5 लाख रुपए में देने उद्योगपतियों के लिए बिचौलिये-दलाल की तरह काम कर रही है। क्या इन किसानों की स्थिति बस्तर के उस लूट के बराबर नहीं है जो आदिवासियों से चिरौजी के बदले नामक देते थे। क्या सरकार को नहीं मालूम है कि जिस कोयले वाली जमीन को 4-5 लाख रुपए एकड़ में जिंदल या दूसरे लोग ले रहे हैं उसके नीचे 30-32 करोड़ रुपए का कोयला है। प्रकाश इंडस्ट्रीज को कोल ब्लॉक गलत दी गई यह अजीत जोगी भी कह रहे है और वे इसे भूल मानते हुए रमन सरकार से सुधारने की बात कह रहे है लेकिन गलत आबंटन का विरोध करने वाली रमन सरकार भूल सुधारने तैयार नहीं है। लगातार उद्योग को लेकर विधानसभा में रमन सिंह कहते हैं कि जब सब लोग कह रहे हैं तो नए ईएमयू नहीं करेंगे। लेकिन जो लोग उद्योग लगा रहे हैं उनके अत्याचार, अवैध कब्जों पर सरकार खामोश है। इतनी सरकारी अंधेरगर्दी पर जनता खामोश है तो इसकी वजह सरकारी हठधर्मिता ही है। लेकिन सरकार को भी सोचना होगा कि कोई पैसे लेकर नहीं जाता है। यही छोड़ना है। आम लोगों की आह का असर होगा। यह ध्यान रहे।

मोहन-मूणत की लड़ाई हाईकमान तक

 छत्तीसगढ़ के दो मंत्रियों बृजमोहन अग्रवाल और राजेश मूणत के बीच चल रही लड़ाई थमने का नाम ही नहीं ले रहा है और अब यह मामला हाईकमान के पास जा पहुंचा है। कहा जाता है कि कभी भी दोनों मंत्रियों की दिल्ली या नागपुर में पेशी हो सकती है।
ज्ञात हो कि दोनों के बीच राजनैतिक लड़ाई की खबर राय बनने से पहले से है और पिछले कार्यकाल में तो जब राजेश मूणत पीडब्ल्यूडी मंत्री थे तब नए सर्किट हाउस से लेकर कई मामले उठे थे और राजेश मूणत को घेरने की जबरदस्त कोशिश भी हुई थी। कहा जाता है कि विधानसभा चुनाव में भी राजेश मूणत को हराने भाजपा के बागी प्रत्याशी वीरेन्द्र पाण्डेय की मदद की गई थी। बताया जाता है कि इस बार टिकरापारा में तोड़फोड़ के बाद दोनों में दूरी बढ़ गई है और इसका नजारा हरियर छत्तीसगढ़ के कार्यक्रम में स्पष्ट रुप से दिखलाई पड़ा।
सूत्रों के मुताबिक दोनों के बीच चल रही गुटबाजी से आम कार्यकर्ता बेहद नाराज है और गुटबाजी के चलते कार्यों में भी बाधा आई है। इस बढ़ती लडाई की शिकायत पहले प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और संगठन मंत्री से लेकर प्रदेश प्रभारी तक की जा चुकी है। लेकिन किसी ने भी इस ओर जब ध्यान नहीं दिया तो पूरे मामले की अखबारों के कटिंग के साथ हाईकमान को शिकायत भेजी गई है।
शिकायत कर्ताओं ने कहा है कि दोनों मंत्रियों की लड़ाई की वजह से ही निगम चुनाव में भाजपा को अपने ही गढ़ में हार का मुंह देखना पड़ा है। यही नहीं गुटबाजी बढ़ गई है तथा आने वाले दिनों में इसका घातक असर होगा। सूत्रों के मुताबिक प्रतिनिधिमंडल की शिकायत को हाईकमान ने गंभीरता से सुना है और 15 अगस्त के बाद कभी भी दोनों मंत्रियों की पेशी हो सकती है।