और उसकी शक्ति जाती रही बचपन में दादी-नानी की गोद में रात को एक कहानी सुनी थी कि किसी व्यक्ति को ईश्वर से यह वरदान मिला था कि उसके हाथ लगाते ही बीमारियां दूर हो जाती। उसने इस शक्ति का प्रयोग करना शुरु कर दिया। धीरे-धीरे उसकी ख्याति फैलने लगी। जब ख्याति फैलने लगी तो उसकी जय-जयकार होने लगी। अपनी जय-जयकार सुन वह प्रसन्न होने लगा और इस प्रसन्नता के साथ उसके मन में लालच घर करने लगा अब वह इस वरदान के एवज में उपहार भी स्वीकार करने लगा और इसके बाद और लालच बढ़ी तो वह फीस तय कर दिया। फीस तय करने के बाद उसकी शक्ति ईश्वर ने छिन ली। क्योंकि उसे यह वरदान देते समय ही चेता दिया गया था कि वह लालच में न आए।
कहने का तात्पर्य है लालच एक ऐसा तृष्णा है जो बुझती नहीं है इन दिनों इसी तरह की विचित्रता पूरे देश में हैं। कोई भी सांधु-संत प्रसिध्द होता है वह अपराधियों के धन के आगे नतमस्तक हो जाता है। इनके आसपास काले धन वालों का जमावड़ा होने लगता है। पाप करने वाले तो इसलिए दान कर रहे है कि उनका पाप थोड़ा बहुत उतर जाए। पर यह पाप उतर कर इन्हीं साधु-संतों के ऊपर चढ़ने लगा है। वे ऐसे लोगों को समाजसेवी कहने लगे है और आम आदमी मूकदर्शक बना है। बाबा रामदेव हो या मुरारीबाबू या फिर और संतों को मदद करने वालों की लिस्ट में ऐसे अपराधिक लोगों के नाम देख सकते है। भले ही ये साधु संत घृणा पाप से करो पापियों से नहीं या सुधरने का मौका देना चाहिए जैसे चिंतन लोगों के सामने प्रस्तुत करे लेकिन वास्तविकता यह है कि इनसे मिलने वाली मोटी रकन का लोभ साधु-संत भी नहीं छोड़ पा रहे हैं। देखते ही देखते संतों की संपत्ति कई गुणा बढ़ जा रही है। काले धन साधु-संतों के पास खपाये जा रहे हैं और आयकर विभाग भी इस दान के काले धन पर कुछ नहीं कर पा रहा है। क्या आए दिन साधु-संतों का विवाद में फंसना इन काले धन का परिणाम नहीं है?
बुलंद ने अपने अभियान में इसे भी हिस्सेदार बनाया है कि अब अपराधियों का बहिष्कार का समय आ गया है और इनका साथ देने या अपने साथ बिठाने वालों की भी सार्वजनिक भर्त्सना होनी चाहिए। हिरण माकर या दारु पीकर गाड़ी चढ़ाने वाले या लड़कियों से छेड़छाड़ करने वालों का बहिष्कार होना ही चाहिए। युवाओं और आम लोगों को भी सोचना होगा कि जिसे नायक बनाकर पेश किया जा रहा है क्या वह वास्तविक जीवन में भी नायक है। ऐसे लोगों की करतूतों पर चुप बैठने की वजह या ऐसे लोगों को नायक बनाने का दुष्चक्र की वजह से ही आम आदमी का जीना दूभर हुआ है। आईये इस अभियान में आप भी हिस्सा ले और खलनायक को नायक बनाने की चेष्टा का प्रतिकार करें।
http://midiaparmidiaa.blogspot.in/
मंगलवार, 9 नवंबर 2010
गजब हैं गृहमंत्री
छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ननकीराम कंवर पूरे देश में मिसाल कायम कर रहे हैं। ऐसे गृहमंत्री को पाकर छत्तीसगढ़ के लोग खुश हैं। अपनी ईमानदारी का डंका बजा चुके गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने निजी स्क्वाड से अपराधियों में दहशत है। यही वजह है कि उन्हें पूरे देश का सर्वश्रेष्ठ गृहमंत्री माना जा रहा है। सरकार को भी चाहिए कि जिस तरह से गुजरात मॉडल और हैदराबाद को मॉडल बनाकर भ्रमण यात्रा किया जाता है उसी तरह से देश के दूसरे रायों के गृहमंत्रियों को भी बुलाया जाना चाहिए ताकि वे भी देख सकें कि किस तरह से गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने छत्तीसगढ़ में एक नया मिसाल कायम किया है।
गृहमंत्री ननकीराम कंवर के इस कार्यशैली से सबसे यादा दुखी डीजीपी विश्वरंजन जी है क्योंकि गृहमंत्री की ईमानदारी से वे परेशान है। परेशानी की प्रमुख वजह नक्सलियों के खिलाफ केन्द्र से आने वाली बड़ी रकम को माना जा रहा है। अब इसका बंदरबांट ठीक से न हो तो लड़ाई तो छिड़नी है। गृहमंत्री सिर्फ विश्वरंजन के पीछे ही नहीं पड़े हैं उन्होंने एसपी को निकम्मा और कलेक्टर को दलाल कहकर अपनी साफ गोई का परिचय दिया है। है किसी गृहमंत्री में दम जो इतनी बड़ी बात कह दे न किसी गृहमंत्री में ये दम है कि वह विधानसभा में सरकार की खिंचाई करते हुए कह दें कि शराब माफिया थाने चला रहे हैं। इतना सब कुछ देखते-सुनते कोई गृहमंत्री कैसे थानों पर भरोसा करे इसलिए तो वे अपना निजी स्क्वाड बना रखे हैं। आम आदमी को न्याय दिलाने के लिए?
अब थानों की कमाई बंद हो गई है। ढाबों में शराबखोरी तो छोड़िए अवैध शराब बेचने वाले भी भाग लिए है और थानों को सट्टा-जुआ या अपराधियों से मोटी रकम नहीं मिल रही है। इसलिए सब साजिश के तहत निजी स्क्वाड के पीछे पड़ गए हैं। आखिर प्रदेश को अपराध मुक्त करना हो तो अवैध रुप से पैसा कमाने वाले पुलिस पर अंकुश जरूरी है इसलिए निजी स्क्वाड खड़ा किया गया है। अपराधियों को पकड़ों तो दो चार दिन में वह छूट जाता है क्योंकि लातों के भूत बातों से नहीं मानते इसलिए पिटाई जरूर है।
निजी स्क्वाड की ईमानदारी से थाने से लेकर अपराधियों के होश उड़े हुए है इसलिए भी साजिश रच कर उन्हें बदनाम किया जा रहा है। चूंकि मुख्यमंत्री डा. साहब भी जानते हैं कि गृहमंत्री ईमानदार है और वे गलत नहीं करेंगे। इसलिए वे भी निजी स्क्वाड की शिकायतों को तवाों नहीं दे रहे हैं। गृहमंत्री की एक और आदत है वे जिस काम का बीड़ा उठाते हैं उसे पूरा करके ही दम लेते हैं अब देखिए डेढ़ साल हो गया दमदार मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के भाई कैलाश अग्रवाल का कबाड़ खरीदने का धंधा बंद हुए। है किसी में हिम्मत जो चालू करवा दे। अब दूसरे नए लोग धंधा कर रहे है। गृहमंत्री को पता नहीं है। पता चलेगा तो उनकी भी शामत आएगी। आखिर बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी।
गृहमंत्री ननकीराम कंवर के इस कार्यशैली से सबसे यादा दुखी डीजीपी विश्वरंजन जी है क्योंकि गृहमंत्री की ईमानदारी से वे परेशान है। परेशानी की प्रमुख वजह नक्सलियों के खिलाफ केन्द्र से आने वाली बड़ी रकम को माना जा रहा है। अब इसका बंदरबांट ठीक से न हो तो लड़ाई तो छिड़नी है। गृहमंत्री सिर्फ विश्वरंजन के पीछे ही नहीं पड़े हैं उन्होंने एसपी को निकम्मा और कलेक्टर को दलाल कहकर अपनी साफ गोई का परिचय दिया है। है किसी गृहमंत्री में दम जो इतनी बड़ी बात कह दे न किसी गृहमंत्री में ये दम है कि वह विधानसभा में सरकार की खिंचाई करते हुए कह दें कि शराब माफिया थाने चला रहे हैं। इतना सब कुछ देखते-सुनते कोई गृहमंत्री कैसे थानों पर भरोसा करे इसलिए तो वे अपना निजी स्क्वाड बना रखे हैं। आम आदमी को न्याय दिलाने के लिए?
अब थानों की कमाई बंद हो गई है। ढाबों में शराबखोरी तो छोड़िए अवैध शराब बेचने वाले भी भाग लिए है और थानों को सट्टा-जुआ या अपराधियों से मोटी रकम नहीं मिल रही है। इसलिए सब साजिश के तहत निजी स्क्वाड के पीछे पड़ गए हैं। आखिर प्रदेश को अपराध मुक्त करना हो तो अवैध रुप से पैसा कमाने वाले पुलिस पर अंकुश जरूरी है इसलिए निजी स्क्वाड खड़ा किया गया है। अपराधियों को पकड़ों तो दो चार दिन में वह छूट जाता है क्योंकि लातों के भूत बातों से नहीं मानते इसलिए पिटाई जरूर है।
निजी स्क्वाड की ईमानदारी से थाने से लेकर अपराधियों के होश उड़े हुए है इसलिए भी साजिश रच कर उन्हें बदनाम किया जा रहा है। चूंकि मुख्यमंत्री डा. साहब भी जानते हैं कि गृहमंत्री ईमानदार है और वे गलत नहीं करेंगे। इसलिए वे भी निजी स्क्वाड की शिकायतों को तवाों नहीं दे रहे हैं। गृहमंत्री की एक और आदत है वे जिस काम का बीड़ा उठाते हैं उसे पूरा करके ही दम लेते हैं अब देखिए डेढ़ साल हो गया दमदार मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के भाई कैलाश अग्रवाल का कबाड़ खरीदने का धंधा बंद हुए। है किसी में हिम्मत जो चालू करवा दे। अब दूसरे नए लोग धंधा कर रहे है। गृहमंत्री को पता नहीं है। पता चलेगा तो उनकी भी शामत आएगी। आखिर बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी।
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