सोमवार, 26 मार्च 2012

वाह रे राजधानी पुलिस

 कल ही विधानसभा में चित फंड कंपनी का मामला उठा है लेकिन राजधानी पुलिस को तो यह नजर नहीं आ रहा है जबकि इस कंपनी का कहना है हम पैसा देतें हैं

इन सवालों के जवाब?


छत्तीसगढ़ की राजधानी इन दिनों गर्म है। एक तरफ विधानसभा के चलते राजनैतिक लाभ की कवायद हो रही है तो दूसरी तरफ शासकीय कर्मचारी, आंगनबाड़ी से लेकर मितानिनों ने भी मोर्चा खोल दिया है। पहले ही सतनामी समाज के गुस्से पर मरहम लगाने की कोशिश में लगी सरकार के सामने आदिवासी समाज पर हुए लीठाचार्ज का कोई जवाब नहीं है। आईपीएस राहुल शर्मा की खुदकुशी पर सरकार  की भूमिका पर तो सवाल उठ ही रहे हैं। अब वन मंत्री के जंगल कटाई से लेकर भ्रष्ट अधिकारियों को संरक्षण देने में सरकार पर सवाल उठ रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस का हल्ला बोल से सरकार सांसत में है।
सत्ता में आने के बाद भाजपा से जिस तरह की उम्मीद की जा रही थी। वह पूरी नहीं होने के बाद भी भाजपा दूसरी बार सत्ता में आई तो मोटे तौर पर इसकी दो वजह थी। बस्तर सहित आदिवासी क्षेत्रों में कांग्रेस का सुपड़ा साफ होना और कांग्रेस के नेताओं की आपसी लड़ाई।  लेकिन दोनों ही मुद्दे पर भाजपा दूसरे कार्यकाल को भुना नहीं पा रही है।
वैसे तो हर पार्टियां भ्रष्टाचारियों से लबरेज है। मंत्री से लेकर अधिकारी लूट खसोट में  लगे है। यह हाल छत्तीसगढ़ में भी अलग नहीं है। इस सबके बाद यदि यूपी में मुलायम सिंह की पार्टियों  के लोग सत्ता  पर आ सकते हैं तो छत्तीसगढ़ में भी चुनाव परिणाम पर अचरज नहीं करना चाहिए।
इन दिनों छत्तीसगढ़ में जिस तरह की सरकार चल रही है कायदे से ऐसी सरकारों को बने रहने का कोई हक नहीं है लेकिन लोकतंत्र में संख्या बल ही महत्वपूर्ण है। हमने इसी जगह पर सैकड़ों सवाल उठाये है कि आखिर पीआर नाईक मनोज डे या फिर बाबूलाल अग्रवाल जैसों को क्यों बचाया जा रहा है। वनमंत्री के रिश्तेदारों की जंगल कटाई पर सरकार क्यों चुप है? अवैध प्लाटिंग व अवैध कालोनियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों रुक जाती है और एसपी राहूल शर्मा के मामले में सरकार प्रताडऩा का जुर्म दर्ज क्यों नहीं कर रही है। क्या कचहरी चौक स्थित राजीव गांधी कांप्लेक्स इसलिए नहीं तोड़े जायेंगे क्योंकि यहां मुख्यमंत्री के खास आदमी का दफ्तर है या व्यवसायिक काम्प्लेक्सों में पार्किंग के नाम पर आम आदमी सिर्फ इसलिए परेशान होंगे क्योंकि काम्प्लेक्स बनाने वाले सत्ता में दखल रखते हैं। कितने ही ऐसे सवाल हैं जिसके जवाब आम लोग ढूंढ रहे है। ऐसी ही सवालों का जवाब नेताओं के लिए गाली बनकर निकलता है। हालांकि हम इस तरह की हरकतों  के खिलाफ हैं और किसी भी तरह के ऐसे आंदोलन को समर्थन नहीं कर सकते जो कानून अपने हाथ में ले। लेकिन सरकार को भी सोचना होगा कि वह जन आक्रोश उपजने से पहले जनता के सवालों का जवाब दे।