मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

काट डालेंगे जुबां अब चुप भी रहो...


छत्तीसगढ़ में इन दिनों राजनैतिक गरमी उफान पर है। सीएजी की रिपोर्ट ने तो आग में घी का काम कर दिया है, सरकार अपनी मनमानी पर उतर आई है और भाजपा के नेताओं को गलत का विरोध करने से रोका जा रहा है। सरकार की वजह से पार्टी की छवि खराब हो रही है लेकिन अनुशासन के डंडे ने जुबान पर ताला जड़ दिया है। भाजपा के निष्ठावान नेताओं की बेचैनी देखते ही बन रही है और जिन्होंने बेशर्मी ओड़ रखी है उनसे कोई जब इस पर चर्चा करना चाहे तो वे यह कहकर अपनी बात रखते हैं कि आजकल तो सभी चोर हैं। या कांग्रेस ने कम लूटा है। या विरोधी कौन सा दूध का धूला है।
छत्तीसगढ़ में चल रहे इस राजनैतिक गरमी को लेकर एक वर्ग चिंतित है कि आखिर ये सब क्या हो रहा है। कल तक सरकार के जिस मुखिया की छवि को लेकर दुनिया भर के दावे किये जाते थे अचानक वह इतना बदरंग कैसे हो गया। विरोधी तो हमेशा ही बोलते रहते है फिर ननकी राम कंवर, दिलीप सिंह जूदेव रमेश बैस से लेकर करुणा शुक्ला भी क्यों बोलने लगे हैं और जब ये बोल चुके तब इनका मुंह क्यों बंद कराया गया। शब्द जब मुंह से बाहर आ जाते हैं तब उसे लौटाया नहीं जा सकता लेकिन भारतीय राजनीति में बेशर्मी इस हद तक बढ़ गई है कि अपने कहे पर लीपापोती करने मीडिया पर दोष मढ़ दिया जाता है।
छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी वर्तमान में जिस दौर से गुजर रही है वैसा  कभी नहीं हुआ। सत्ता के आगे संगठन नतमस्तक है और कुर्सी बचाने हाईकमान के नाजायज मांगे भी पूरी की जा रही है। आम कार्यकर्ता हताश होते जा रहे हैं और एक खास गुट को ही लाल बत्ती से लेकर दूसरे काम दिये जा रहे हैं। असंतोष हावी है लेकिन अनुशासन का डंडा इतना मजबूत कर दिया गया है कि आम कार्यकर्ता भी गलत को गलत नहीं कह पा रहा है। सरकार की मनमानी की वजह से शर्मिन्दगी भी तो कार्यकर्ताओं को ही उठानी पड़ती है।
छत्तीसगढ़ भाजपा में भीतर ही भीतर सुलग रहे इस आग को बुझाने सब बड़ी सर्जरी की जरूरत आ पड़ी है। इसे पार्टी नेतृत्व को गंभीरता से सोचना होगा कि आखिर बेलगाम नौकर शाह भ्रष्ट सरकार और हताश कार्यकर्ता के सहारे चुनाव जीतना तो दूर जमानत बचा पाना मुश्किल होता है।