बुधवार, 8 सितंबर 2010

राजधानी की खबरें



तस्वीर की नजर में आज राजधानी




स्वक्छता अभियान को लेकर प्रशासकीय  काम
साक्छरता के लिए बच्चो ने रैली निकाली
NSUI में चुनाव

पोला तिहार के सब ला बधाई हो

बिकी तो नहीं ठेके पर चला गया...

नवभारत के मालिकों में इन दिनों बंटवारे को लेकर मीडिया जगत में जबदस्त चर्चा है। कभी रायपुर संभाल रहे प्रफुल्ल माहेश्वरी का अब यहां से कोई लेना नहीं रहा तो चर्चा इस बात की है कि बंटवारे में मिले रायपुर नवभारत को समीर जी चलाना नहीं चाहते। जिंदल से जोगी तक खरीदने की चर्चा में अब यह चर्चा भी है कि रायपुर नवभारत ठेके पर चला गया है। ठेका कभी सूर्या में घपला करने वाले ने लिया है। मालिक को पैसे से मतलब है यह ठेकेदार सबको यही समझाकर विज्ञापन या नगद ले रहा है। सच्चाई तो समीर जी जाने। लेकिन जब बिल्डिंग की वैधता को लेकर ही तलवारें लटक रही हो तो बदनामी से काहे का डर वैसे भी एनबी प्लांटेशन के बाद भी क्या बिगड़ गया सरकार तो वैसे ही जेब में हैं।
भास्कर में भी बिहारी बाबू
इन दिनों भास्कर के बिहारी बाबू की जबरदस्त चर्चा है। डीजी बिहारी हैं तो डर काहे का की तर्ज पर जब तक गोली मारने की धमकी से यहां कई लोग परेशान हैं और जब मालिक की नीति ही फूट डालो राज करों की हो तो विवाद कैसा? फिर कब तक सिर्फ बातों का जमा खर्च है गोली चली भी नहीं है तो शिकायतों पर ध्यान देने की जरूरत भी नहीं है।
सौम्या की छलांग
जनसंपर्क में अधिकारी रहे मिश्रा जी की बिटिया ने अपने ताऊ के अखबार से छुट्टी ले ली है जब भास्कर जैसा बैनर हो और वेतन भी 60 हजार हो तो कौन पूछता है वैसे भी घर की मुर्गी दाल बराबर मानी जाती है और कभी ऊंच-नीच हो भी गया तो ताऊ-पापा तो हैं ही।
दिवाकर की पीड़ा
गजानन माधव मुक्तिबोध ने साहित्य व समाज को बहुत कुछ दिया लेकिन दिवाकर मुक्तिबोध की पीड़ा कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। भास्कर से जनधारा तक का सफर भारी पड़ रहा है। युगधर्म में चंगु-मंगु ने संपादकीय छुड़वा दी थी तो जनधारा में चहेती बिटिया ने अपमानित किया अब जब काम करना है तो इतना तो सहना ही पड़ेगा। भले ही कल का देवेन्द्र बड़ा पद ले ले।
देवेन्द्र खुश हुआ
नौकरी के लिए अच्छा पत्रकार होना जरूरी नहीं है। न ही खबरें लिखना ही जरूरी है। अधिकारियों से सेटिंग हो तो मालिक भी खुश रहता है। इस रणनीति पर चलने वाले खुश रहते हैं। हरिभूमि छोडक़र जनधारा पहुंचे देवेन्द्र कर अब अखबार का प्रकाशक-मुद्रक हो गया है तो खुश तो होगा ही।
यशवंत भास्कर में
कभी हरिभूमि रायपुर से हरिभूमि बिलासपुर पहुंचे यशवंत गोहिल इन दिनों बिलासपुर भास्कर पहुंच गए हैं। उनका सफर भास्कर तक ही है यह कहना कठिन है लेकिन सफर को लेकर बिलासपुर में जबरदस्त चर्चा है।
प्राण चड्डा और एसएमएस
भास्कर में सलाहकार संपादक रहे प्राण चड्डा अब यहां से रिटायर्ड हो गए हैं। ढलहा बनिया हलाये कन्हिया की तर्ज पर इन दिनों उनकी सुबह एसएमएस भेजने से शुरु होती है और रात गुडनाईट के एसएमएस से खत्म होती है। उनके एसएमएस भी निराले हैं पत्रकार तो डरने लगे है कि कहीं एसएमएस डिलिट नहीं हुआ तो क्या होगा इसलिए तत्काल डिलिट करते हैं ताकि घरवालों से तो बच सकें।
राजीव पहुंचे पत्रिका
सांध्य दैनिक छत्तीसगढ़ में अपनी फोटोग्राफी का रंग दिखा चुका बिहारी बाबू राजीव अब पत्रिका में चले गए हैं। वैसे भी छत्तीसगढ़ में वे परेशान थे। वजह तो मालिक जाने।
मधु बीमार
जनधारा और अग्रदूत की पत्रकारिता में नाम कमा चुके मधुसूदन शर्मा की तबियत इन दिनों बेहद खराब है। उनके स्वास्थ्य लाभ की हम सब कामना करते है। उन्हें पैरालिसिस अटैक के चलते नागपुर अस्पताल में शिफ्ट किया गया है।
और अंत में...
शहर में भास्कर को मात देने के लिए आ रहे एक अखबार को जिस तरह का पत्रकार चाहिए वह मिल नहीं रहा है। या फिर पत्रकार ढूंढने वाले का चेहरा देख लोग भाग रहे हैं। यह सवाल इन दिनों मीडिया जगत में चर्चा में हैं।