गुरुवार, 19 मार्च 2020

अंधेरा घना है कहना मना है!


मध्यप्रदेश के सियासी हमाम ने जिस तरह से होली के दिन सभी नेताओं को जिस तरह से नंगा किया है उससे एक बात तो तय है कि जनता की चिंता किसी को भी नहीं है हर पार्टी को हर हाल में सत्ता चाहिए और पार्टी ही क्यों हर विधायक और हर सांसद को सत्ता चाहिए। जनता किसी को भी जिताएं सत्ता उन्हीं के पास होगी जिसके पास पैसों की ताकत होगी। इसलिए राजस्थान हो महाराष्ट्र हो या छत्तीसगझढ़? सब जगह पूंजी की ताकत जनता के फैसले को समय आते ही पलट देगी।
इतिहास गवाह है कि अंग्रेजी सत्ता के बढ़ते अत्याचार के बाद भी उनके समर्थकों की कमी नहीं रही है। सत्ता की मलाई तब भी कुछ लोग मजे से खाते रहे और उन्हें जनता पर हो रहे अत्याचार की फिक्र नहीं रही। लेकिन लोकतंत्र की मजबूरी यह है कि हर पांच साल में सत्ता को जनता के पास जाना है, इसलिए अब जनता के फैसले को बदलने का नया रिवाज चल पड़ा है। सत्ता ने तय कर लिया है कि मर्जी उसकी चलेगी जनता जो भी फैसला देगा, सत्ता तो हर हाल में उसी की बनेगी। लेकिन यह पूरा सच नहीं है। 
याकिन मानिये पूरा सच इससे भी भयावह है। तब पूरा सच क्या यह नहीं है कि आज के विधायकों व सांसदों को हर हाल में सत्ता चाहिए! उनके लिए न पार्टी मायने रखते हैं और न ही नीति सिद्धांत। यही वजह है कि पूंजी का खेल चरम पर है। देशभर के सांसदों व विधायकों में 80 फीसदी से अधिक लोग करोड़ पति है और 60 फीसदी से अधिक पर आपराधिक प्रकरण दर्ज है।
जनता की हालत यह है कि वह वोट किसे दे क्योंकि राजनैतिक दलों के नेताओं में गठजोड़ इतना गहरा है कि वोट आप किसी को भी दे। अत्याचारियों या भ्रष्टाचारियों को कुछ नहीं होगा। मध्यप्रदेशथ हो या छत्तीसगढ़? दोनों ही जगह सत्ता बदली। कांग्रेस जब तक विपक्ष में रही शिवराज-रमन सरकार की करतूतों पर जोरदार लड़ाई लड़ी। सत्ता आते ही एक के बाद एक जांच कमेटी भी बनी लेकिन साल बीतने के बाद भी नतीजा क्या रहा? किसी भी मामले में कोई जेल नहीं गया। राज्यों की तो छोड़ दें मोदी सरकार ने ही किसे जेल भेज दिया। आप इसे न्यायालय की कमजोरी कहकर सत्ता का बजाव कर सकते हैं क्योंकि आपको यही यकीन दिलाया गया है कि भारतीय न्याय व्यवस्था कमजोर है। जबकि यह सच मानिये कि सरकार में बैठे लोग जिस तरह से एकजुट है उसे जनता का वोट भी अलग नहीं कर सकता।
इसलिए मध्यप्रदेश में सिंधिया का भाजपा में जाना फिर अन्य विधायकों का जाने पर जो लोग खुश हो रहे हैं या दुख जता रहे है उनका जनता से कोई लेना देना नहीं है। मीडिया की भूमिका भी इन दिनों नायाब हो चला है उसे भी हर हाल में पूंजी चाहिए इसलिए वह अपने को सत्ता के साथ खड़ा करते चले जा रही है तब यकीन मानिये आज यस बैंक गया है, कुछ सार्वजनिक कंपनियां बेची गई है। दो चार घपले घोटाले किये गये है कल पूरा देश घने अंधेरे में डूबा नजर आयेगा। लेकिन इस अंधेरे के खिलाफ कौन आवाज उठाये? विपक्ष? जी नहीं जब सत्ता की ताकत ही उद्देश्य हो तो आप उससे भी उम्मीद न करें क्योंकि वह भी पूंजी के ताकत के रास्ते सत्ता के साथ हो जायेगा। यहां नहीं मिलेगा तो वहां चला जायेगा और वहां के लोग न मिलने पर नई सत्ता के साथ आ जायेगे और जनता सिर्फ ताली बजायेगी अपने वोट का ताकत देख खुश होगी?