गुरुवार, 11 मार्च 2021

सबसे बड़ा रुपैया !

 

सत्ता का अपना चरित्र है, तो पैसे वालों का भी अपना चरित्र है। फिर नामधारियों का चरित्र भी अपनी तरह का है? ये तीनों प्रजाति कितने भी गरीबी से उठे हो सबकुछ छिन्न भिन्न हो जाता है।

जिस भ्रष्टाचार, अपराध, कालाधन बेरोजगारी और महंगाई को लेकर सत्ता में जब मोदी सरकार आई तब देश को नई उम्मीद जगी थी! लेकिन पिछले 6 सालों में क्या हुआ? इसका जवाब किसी के पास नहीं है क्योंकि मोदी को लेकर भले ही कोई उम्मीद न हो लेकिन विपक्ष के प्रति नाउम्मीद कायम है!

तो क्या भारतीय समाज ने भ्रष्टाचार, अपराध, महंगाई और बेरोजगारी को अपनी नियति मान चुका है या उन्होंने यह स्वीकार कर लिया है कि सत्ता किसी की भी हो यह सब तो चलता ही रहता है? तब इसका अभिप्राय क्या समझा जाए!

पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, इन राज्यों में सत्ता किसकी होगी यह तो 2 मई को ही पता चलेगा लेकिन सबसे दिलचस्प चुनाव बंगाल में हो रहा है, प्रधानमंत्री बंगाल में लगभग दो दर्जन रैली करेंगे? दिलचस्प इसलिए है क्योंकि उनकी भाषण शैली में अब भी जोश बाकी है, बढ़ती बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई, बिकते सार्वजनिक उपक्रम, भाजपा में अपराध से जुड़े लोगों को शामिल करने और धनबल के तमाम प्रदर्शन के बाद भी कोई हुंकार भर सकता है तो यह काम प्रधानमंत्री मोदी ही कर सकते है।

ऐसे में जिन लोगों को मिथुन चक्रवर्ती के भाजपा प्रवेश से हैरानी हो रही है उन्हें शायद पता नहीं है कि मिथुन चक्रवर्ती के बेटे पर एक महिला ने बलात्कार का आरोप लगाया था? ब्रिगेडियर परेड ग्राउण्ड में जिस परिवर्तन रैली की बात प्रधानमंत्री ने की वह परिवर्तन तो पूरे देश की जरुरत है लेकिन चुनाव तो बंगाल में हो रहे है ऐसे में नक्सली से लेकर कई तरह के आरोप के बाद भी मिथुन चक्रवर्ती भाजपा को इसलिए प्रिय है क्योंकि मिथुन चक्रवर्ती भाजपा को वोट दिला सकते हैं और जब वोट दिला सकते हैं। और जब वोट हासिल करना ही असली मकसद हो तब न प्रधानमंत्री मोदी की नैतिकता को देखनी चाहिए और न ही मिथुन चक्रवर्ती की ही नैतिकता या नास्तिकता वाली बात पर ध्यान देना चाहिए?

सवाल सिर्फ इन पांच राज्यों के चुनाव का नहीं है, और न ही सवाल इसके परिणाम का ही है? सवाल तो आम लोगों का है जिसका वर्तमान दौर में कोई मतलब ही नहीं रह गया है? आप आंकड़े गिनाते रहिए कि मोदी सरकार के दौर में इस देश में बेरोजगारी दर 40 फीसदी से उपर हो गया, महंगाई भी चरम पर है और आर्थिक हालत इतने खस्ते हो चले हैं कि न केवल सार्वजनिक उपक्रम बेचे जा रहे हैं बल्कि रिजर्व बैंक ने रिजर्व फंड भी खर्च किये जा रहे है, ईडी, सीबीआई या आयकर का इस्तेमाल लोगों को चुप कराने या पार्टी में लाने किया जा रहा है, धनबल से सत्ता को खरीदा जा रहा है? आम लोगों को इन बातों से क्या लेना देना है क्योंकि सत्ता की ताकत के खिलाफ आम आदमी कैसे लड़े वह तो अपने परिवार के पालन पोषण में ही उलझा हुआ है और जिसे लडऩा है वे या तो देशद्रोह कहलाने के डर से चुप हैं या पैसों से खरीदे जा चुके है!