बुधवार, 14 मार्च 2012

आर्शीवाद भवन ही नहीं रंगमंदिर को भी छूट...


. ऐसा नहीं है कि निगम के लोगों ने पैसा खाकर सिर्फ आर्शीवाद भवन के लोगों के पैसा खाकर सिर्फ आर्शीवाद भवन को ही संपत्तिकर में छूट दिया है। राजधानी में ऐसे दर्जनों भवन है जहां से लाखों में वसूली किया जाना है। इनमें भातखंडे ललित कला द्वारा संचालित रंग मंदिर है जहां भी रंग मंदिर स्थित आडोटोरियम को न केवल किराये से दिया जाता है बल्कि व्यवसायिक उपयोग भी हो रहा है।
छत्तीसगढ़ में चल रहे इस तरह की लूट से भले ही आम आदमी अनभिज्ञ हो लेकिन अधिकारी से लेकर सरकार में बैठे लोगों को न केवल इसी जानकारी है बल्कि वे ऐसे मामलों में अपनी जेब भी गरम कर रहे हैं। यहीं वजह है कि पंखा चोर, नाका चोर, पंचर बनाने वाले और सटोरिया नेतागिरी कर रातों-रात करोड़पति बन रहे है और आम आदमी को दो वक्त के खाने का इंतजाम भारी पड़ रहा है।
कान्यकुब्ज शिक्षण संस्थान ने जिस तरह से छात्रावास का नक्शा पास करवाकर आर्शीवाद भवन का व्यवसायिक उपयोग कर रहा है और निगम के अधिकारी व प्रतिनिधि पैसा खाकर इन्हें संपत्ति कर में छूट दे रहे हैं ऐसा ही मामला भातखंडे शिक्षक संस्थान का है। रंग मंदिर में लगने वाला स्कूल सन् 2007 से अंयंत्र संचालित किया जा रहा है लेकिन अभी भी निगम इन्हें संपत्तिकर में छूट दे रहा है।
हमारेभरोसेमंद सूत्रों की माने तो संपत्तिकर के छूट के एवज में दोनों संस्थानों से हर साल हजारों रूपये अधिकारियों व पार्षदों की जेब में जा रहा है।
एक तरफ नगर निगम छोटे बकायादारों से दादागिरी के साथ उगाही करता है दूसरी तरफ व्यवसायिकक उपयोग करने वालों को केवल संस्था बना लेने से संपत्तिकर  में छूट दे रहा है। ऐसे में जहां-जहां रसूखदार बकायादारों से वसूली नहीं हो रही है वहां के नागरिक इनसे वसूली नहीं होने की शर्त पर संपत्तिकर नहीं पटाने की घोषणा कर दे तब निगम का क्या हाल होगा यह समझ से परे है।
इस संबंध में नागरिक मंच के इंदरजीत सिंह छाबड़ा, राकेश चौबे, संजय सोलंकी और डॉ. राकेश गुप्ता ने कहा कि बड़े बकायादारों की सूची सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई है। आखिर सरकार कब तक रसूखदारों को बचाते रहेगी और केवल गरीबों से वसूली की जाती रहेगी। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में मोर्हरिर से लेकर वार्ड पार्षद के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।
इधर इस मामले को लेकर आम लोगों में जबरदस्त प्रतिक्रिया है। समीत शर्मा ने कहा कि नगर निगम के खाओ-पियो नीति के चलते ही अतिक्रमण व अवैध कब्जा बढ़ा है। ऐसे अर्कमण्य अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। इधर तुलसी पटेल ने प्रेस को विज्ञप्ति भेजकर कहा है कि वे शीघ्र ही आम लोगों में जागरूकता लायेंगे और निगम को रसूखदारों से वसूली के लिए मजबूर कर देंगे।
बहरहाल बिहिनिया संझा के इस अभियान से आम लोग उत्साहित है। ऐसे में ऐसे लोगों के नाम सार्वजनिक करना जरूरी है ताकि आम लोगों को यह पता चले कि उनके जनप्रतिनिधि व निगम के अधिकारी क्या गुल खिला रहे हैं।


सीबीआई जांच और सरकार...


छत्तीसगढ़ में जिस तरह से माफिया राज चलने लगा है उसके बाद तो पुलिस की भूमिका को लेकर अयनिगत सवाल आम लोगों के जेहन में उमड़ रहे हैं। ऐसे कितने मामले हैं जिनकी सीबीआई से जांच जरूरी है लेकिन जब सरकार और उनमें बैठे लोग ही अपराध करने में आमदा हो तो वह सीबीआई जांच कराने कैसे तैयार हो सकती है।
ये वहीं सरकार में बैठे लोग है जिन्होंने राम अवतार जग्गी हत्याकांड में सीबीआई जांच की मांग की थी और तब सत्ता में बैठी कांग्रेस सरकार ने इसे खारिज कर दिया था सत्ता में आते ही भाजपा सरकार ने मामला सीबीआई को सौंपा और रिजल्ट सामने है। अब कांग्रेसी सीबीआई की मांग कर रहे हैं लेकिन सत्ता में बैठी भाजपा इससे हिचक रही है। जिन मामलों की सीबीआई जांच होनी ही चाहिए उनमें आईपीएस राहुल शर्मा की मौत का मामला भी शामिल हो गया है। सरकार ने दबाव में सीबीआई जांच के लिए तैयार हो गई है।
राहुल शर्मा ने अपने सुसाइडल नोट में स्पष्ट किया है कि वे वरिष्ठ अधिकारियों के दबाव ममें यह कदम उठा रहे हैं। सब मृतक ने ही यह कह दिया है तब भला कोई पुलिसिया इसकी जांच कैसे ईमानदारी से कर पाता। चूंकि राहुल ने किसी का नाम नहीं लिखा है इसलिए इस बात की संभावना भी है कि जिससे जांच कराया जाता क्या वहीं प्रातडि़त करने वाला है?
छत्तीसगढ़ में ऐसे कई मामले हैं जिसमें सीधे-सीधे सत्ता से जुड़े लोग और वरिष्ठ अधिकारी शामिल है। डाल्फिन स्कूल के संचालक राजेश शर्मा के संबंध  किस मंत्री से नहीं थे। वायदा कारोबार के झगड़े में लिप्त मन्नू नत्थानी का संबंध किससे है? क्या इन मामले की सीबीआई जांच जरूरी नहीं है वह भी तब जब पुलिस इन्हें खोज पाने में असफल हो गई है।
ओपन एम्सेस घोटाला हो या रोगदा बांध को बेचने जाने का मामला क्या सीबीआई को नहीं सौंपा जाना चाहिए। आईपीएस राहुल शर्मा की मौत ने सिस्टम पर तो सवाल उठाया ही है साथ ही सरकार कैसे चल रही है इस पर सवाल खड़ा किया है।
भले ही राहुल शर्मा ने वरिष्ठ अधिकारियों के दबाव की बात कही हो लेकिन क्या यह यहीं हो सकता कि इस वरिष्ठ अधिकारी ने सरकार चलाने वाले मंंत्रियों के दबाव में राहुल शर्मा को प्रताडि़त किया हो?
ऐसे कितने ही सवाल है जो सरकार की तरफ उंगली उठा रही है और इसका खुलासा तभी होगा जब मामले की सीबीआई जांच होगी।
फेसबुक से लेकर कई सोशल वेबसाईट राहुल शर्मा की मौत की खबर  और सीबीआई जांच की मांग से भरा हुआ है। कब तक जग्गी हत्याकांड में सीबीआई की मांग करने वाले भाजपाई मुंह चुरा रहे हैं ये वहीं लोग है जो अन्ना व बाबा की सच और तप का बखान करते नहीं थकते लेकिन इस मामले में चुप हैं?