शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

भटगांव विजय में कोई कसर नहीं छोड़ेगी भाजपा...

कांग्रेसियों को जनता पे भरोसा...
छत्तीसगढ़ में हो रहे विधानसभा के दूसरे उपचुनाव को लेकर भाजपा कोई कसर नहीं छोड़ेगी। बृजमोहन अग्रवाल जैसे दमदार मंत्री को प्रभारी बनाकर भाजपा ने यह संकेत भी दिया है कि सत्ता और पैसे का उपयोग किस स्तर तक किया जाएगा दूसरी ओर कांग्रेसी भी भाजपा सरकार के कारनामों को जनता के समक्ष रखने कमर कस लिए है।
भटगांव में भाजपा विधायक रविशंकर त्रिपाठी के निधन की वजह से उपचुनाव हो रहा है। चुनाव आयोग ने तिथि की घोषणा भी कर दी है और यहां 1 अक्टूबर को मतदान होगा। सत्ताधारी पार्टी भाजपा ने यहां से स्व. त्रिपाठी की धर्मपत्नी को चुनाव में उतारने का निश्चय कर सहानुभूति वोट बटोरने के चक्कर में है तो दूसरी ओर सत्ता और पैसों का प्रभाव दिखाने प्रदेश सरकार के दमदार माने जाने वाले मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को यहां का प्रभारी बनाया गया है। कहा जाता है कि जोड़तोड़ में माहिर बृजमोहन अग्रवाल को प्रभारी बनाकर भाजपा ने यह संकेत देने की कोशिश की है कि वह किसी भी तरह से यह चुनाव जीतना चाहती है। सूत्रों के मुताबिक चुनाव में अभी समय है लेकिन पैसों की ताकत गांव-गांव में चर्चा का विषय है और लोगों को उम्मीद भी है कि इस बार प्रत्येक वोट पर लाल नोट मिलेंगे। इसके अलावा मुर्गा भात, शराब की भी रणनीति को लेकर यहां चर्चा चल रही है।
दूसरी तरफ कांग्रेस फूंक-फूंक कर कदम उठाना चाहती है। पैलेस समर्थक और विरोधियों में बंटी कांग्रेस को यहां जनता पर ही भरोसा है। कहा जाता है कि चावल योजना की वजह से मध्यम वर्ग यहां त्रस्त है। मजदूरों की दिक्कतों ने बड़े किसानों की हालत खराब कर दी है। वहीं घर में काम करने वालों का भाव भी बढ़ गया है। इसी तरह गांव-गांव में बिक रहे अवैध शराब और भाजपा नेताओं की दादागिरी भी यहां चुनावी मुद्दा बन सकता है। खासकर गांव-गांव में शराब बिकने से महिलाओं में जबरदस्त आक्रोश है इन्हीं मुद्दों को लेकर कांग्रेस चुनाव मैदान में होगी।
वैसे रमन सरकार के मंत्रियों के भ्रष्टाचार और बेलगाम होते अधिकारियों से हो रही आम लोगों की परेशानी का मामला भी भाजपा पर भारी पड़ सकता है। बहरहाल अभी तो उपचुनाव की घोषणा बस हुई है और भाजपा ने जिस तेजी से बिसात बिछाई है उसे लेकर कई तरह की चर्चा है और पैसा कमाने की चाहत में गांव-गांव में रणनीति बन रही है ऐसे में चुनाव लडऩे वालों को पानी की तरह पैसा बहाना पड़ सकता है।

ऐसी है छग सरकार

शिक्षक दिवस का बहिष्कार
 छत्तीसगढ़ में जिन लोगों पर भावी पीढ़ी के निर्माण की जिम्मेदारी है उन शिक्षकों ने शिक्षक दिवस का बहिष्कार कर दिया। प्रदेश के दमदार माने जाने वाले शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की इस मामले को लेकर न केवल थू-थू होने लगी है बल्कि इस सम्पूर्ण घटना को दुर्भाग्यजनक भी माना जा रहा है।
वैसे तो छत्तीसगढ़ में शिक्षक या गुरुजी को पहले ही सरकारी फरमानों की वजह से अपमानजनक स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में शिक्षक दिवस पर सम्मान को लेकर शिक्षा मंत्री के वादा खिलाफी से शिक्षक बेहद नाराज है। एक तरफ जब पूरे देश में शिक्षकों के सम्मान को लेकर आयोजन हो रहे थे तो दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के शिक्षक शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल पर वादा खिलाफी का आरोप लगाते हुए धरने पर बैठे थे। यह प्रदेश की विडम्बना ही है कि यहां शिक्षकों को शिक्षा कर्मी तो कहा है जाता है दिहाड़ी मजदूरों की स्थिति पर ला खड़ा किया गया है।
यह मामला कितना तूल पकड़ेगा अभी से कहना मुश्किल है लेकिन सरकारी नीतियों ने इस पवित्र कार्य को जिस तरह से बदनाम किया है वैसे उदाहरण अंयंत्र कहीं देखने को नहीं मिलेगा। इधर भाजपा अध्यक्ष भाजपा शासितत राज्यों में सकल घरेलु उत्पाद के दस फीसदी राशि शिक्षा के विकास में खर्च करने की बात कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर उनके मंत्रियों के कारनामों से शिक्षकों को शिक्षक दिवस का बहिष्कार करना पड़ रहा है।

ये तो सरकारी अत्याचार है

हांड़ी पारा में रहता है रविशंकर श्रीवास्तव , १९८४ में उसने कृषि मण्डी में देवेभो के तहत नौकरी शुरू की लेकिन आज तक वह नियमित नहीं हुआ , जबकि उसके साथ के सभी नियमित हो गए, न्यायलय का फैसला भी उसके फेवर में आया .अब वह सत्याग्रह करने मजबूर है

सिंगापुर में हुआ ज्योतिष सम्मलेन

 ज्योतिष सम्मलेन से लौटकर देवनारायण शर्मा ने बताया कि वंहा ज्योतिष का ज्यादा उपयोग बिजनेस के लिए करते है ,वहां की सरकार भवन निर्माण में वास्तु का ध्यान रखते है,सत्यविश्वास ने बताया रायपुर से २० ज्योतिष गए थे पुरे देश से १५० ज्योतिष गए थे

करे कोई... भरे कोई...

पिछले दिनों कश्मीर में वहां के नेता उमर अब्दुल्ला पर भीड़ में एक युवक ने जूता फेंक दिया। युवक तो पकड़ा ही गया साथ ही दो डीएसपी स्तर के अधिकारी भी निलंबित कर दिए गए। खबर इतनी ही नहीं है। इसके पहले भी देश-दुनिया में इस तरह की घटनाएं हुई है जब आम लोगों में से किसी ने इस तरह की हरकत की है। कानून कभी किसी को ईजाजत नहीं देता कि वह अपने साथ हो रहे अन्याय पर किसी जनप्रतिनिधि (वेतन भोगी) से इस तरह की हरकत करे। भारत में त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था है और अब तो गांव-गांव से नेता पैदा हो रहे है। राजनैतिक दलदल में वे स्वयं के लिए जुगाड़ में लगे हैं और आम आदमी लगातार नारकीय जीवन जीने मजबूर है। इसके बाद भी कोई जूता फेंक कर मार दे तो भी वह अपराध ही है।
छत्तीसगढ़ के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि आधे राज्य में शासन नहीं है। ईमानदारी से सर्वे किया जाए तो यह स्थिति बढ़ ही सकती है। क्या सिर्फ दो रुपए किलो चावल या रोजगार गारंटी योजना से आम लोगों का भला हो सकता है? गांवों में शिक्षा नहीं है, स्वास्थ्य सुविधा नहीं है पीने और सिंचाई के पानी की सुविधा नहीं है और मुख्यमंत्री-मंत्री ही नहीं विधायक भी एयरकंडीशन में रह रहे हैं तब आम आदमी अपना गुस्सा कहां जाहिर करे।
हर बात में राजनीति ने आम लोगों के जीवन को नारकीय बना दिया है। छत्तीसगढ़ राज्य नया-नया बन है। आर्थिक रुप से पिछड़े इस राज्य के आम लोगों को मूलभूत सुविधा दिलाने की बजाय सरकार वल्र्ड रिकार्ड बनाने आमदा है कि उसकी राजधानी पूरी दुनिया में नए ढंग की सबसे खूबसूरत होगी? क्या इससे आम लोगों को मूलभूत सुविधाएं मिल पाएंगी? बल्कि इन वेतनभोगी जनप्रतिनिधियों की एशगाह खूबसूरत हो जाएगी। किसानों को अपना गांव छोडऩा पड़ रहा है और वे नए सिरे से अपना जीवन शुरु करने मजबूर है। एक बसी-बसाई परिवार गांव को उजाडक़र कोई कैसे सुख से रह सकता है। इसकी कल्पना किसी ने की है।
गांधी के इस देश में सादा जीवन उच्च विचार की परंपरा रही है। धर्म की रक्षा के लिए यहां राम-कृष्ण का जन्म हुआ है। प्रभु ईशु, पैगम्बर से लेकर गुरुनानक महावीर और शंकराचार्य को मानने वालों के अलावा पत्थर भी पूजे जाते हैं तब भला कोई अपने जनप्रतिनिधि पर जूता क्यों उछाल रहा है? सब तरफ अपनी सुविधा बढ़ाने में लगे नौकरशाह और राजनेताओं के लिए सिर्फ एक व्यक्ति का जूता फेंकना उदाहरण हो सकता है? जब तमाम लोग अपनी पीड़ा को व्यक्त करने लगेंगे तो क्या होगा? क्या इसकी कल्पना की गई है? यह हमारे धर्म में ही कहा गया है कि राजा परीक्षित चाक चौबंद व्यवस्था के बाद भी सर्पदंश के श्राप से नहीं बच सके थे। ऐसे में क्या आम लोगों के खून-पसीने की कमाई से मिलने वाले टैक्सों का हम अपने नही आम लोगों के हितों में कार्य करें।
समय किसी के लिए नहीं रुकता? और न ही पैसों से सुख ही खरीदा जा सकता है? इस सच्चाई के बाद भी पैसों के प्रति बढ़ती भूख का कारण विस्मयकारी है। लोकतंत्र के तीन स्तंभों पर यह जवाबदारी है कि वह आम लोगों के प्रति न्याय करें। लेकिन अपने हितों के लिए जिस तरह से नेता कभी एक हो जाते हैं या कभी लडऩे लगते है उससे तो आम लोगों का ही नुकसान होना है और ऐसे में आम लोग चुनाव तक इंतजार करने की बजाय पहले ही सडक़ पर आ गए तो आप नौकरशाहों को निलंबित करते रहो, लोगों को जेल में ढूंसते रहो क्या फर्क पड़ेगा? आखिर अंग्रेज भी राज्य करने यही रणनीति अपना रहे थे।