शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

जन की बात-7


पहले भी कई बार इस देश के लोगों ने इस सत्ता की नासमझी, नालायकी से त्रस्त हुए हैं, इस बार कोरोना को लेकर सत्ता ने जिस तरह से लापरवाही की, उसका परिणाम सबके सामने है, मुफ्त ईलाज और घर पहुंच सेवा करने की बजाय वह अब भी राज्यों में सत्ता हासिल करने और बहुसंख्य हिन्दु को खुश करने कुंभ के आयोजन को प्रश्रय देने में लगी रही।

यह सत्ता का खेल था, उनकी इच्छा थी, उनकी आवश्यकता थी या एक तरह का रोग था, कहना कठिन है लेकिन नोटबंदी, पूर्व सूचना के लॉकडाउन, निजीकरण, किसान बिल, सीएए सहित अनेक उदाहरण है। कल के राष्ट्र के नाम संदेश के बाद अब तो आम लोग भी बोलने लगे हैं कि इस सत्ता के शिष्ट अथवा संस्कृत व्यवहार की अपेक्षा ही नहीं की जा सकती। वह लोगों को अकारण परेशान कर सकते है सकारण भी।

ऐसे में क्या पीड़ा और अपमान को चुपचाप पी जायें? क्या इस लोकतांत्रिक देश में काएई अपनी पीड़ा व्यक्त नहीं कर सकता? ऐसे लोगों को देशद्रोही कहने का अधिकार सत्ता को किसने दिया है? बलात्कारियों का, हत्यारों का सिर्फ हिन्दू होने पर संरक्षण का कैसा अधिकार चल रहा है। क्या इस देश के लोग टैक्स नहीं देते तब उन्हें इस आपदा में भी मुफ्त ईलाज कोई सरकार न दे तो इसका क्या मतलब है। क्या लोगों को सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार नहीं है, जब सब मनुष्य समान है तो फिर धर्म के आधार पर भेद क्यों? जब राज्य चलाने बराबर टैक्स भरत हैं तब इस आपदा में भी मुफ्त ईलाज क्यों नहीं।

दुख तो इस बात का है कि सत्ता के पास इस कोरोना के त्राहिमाम् का कोई समाधान नहीं है, और वह एक नये तरह का खेल दिखाकर (संदेश) चला जाता है। ये ठीक है कि इन दिनों देश को बदलने की कोशिश की गई? अपने हिसाब से सत्ता ने देश को हांका है लेकिन लोगों को पीड़ा पहुंचाकर, या पीडि़त को उसके हाल पर छोड़कर सत्ता चालने की परम्परा क्या उचित है। ऐसा नहीं है कि पूर्व के सरकारों ने लोगों को सर आंखों पर बिठा रखा था लेकिन इस सत्ता ने तो एक के बाद एक ऐसे निर्णय लिये  है या लापरवाही की है जिससे आप लोग ही ज्यादा प्रताडि़त हुए हैं।

डब्ल्यूएचओ की दिसम्बर से ही चेतावनी देने के बाद भी निर्णय लेने में मार्च बिता देना, फिर दूसरी लहर की चेतावनी के बाद भी लापरवाह रहना क्या सत्ता के लिए उचित था? क्या इस घोर लापरवाही की सजा आम जन नहीं भुगत रहे हैं, भुगत ही नहीं रहे अब तो लाशें गिरनी लगी हैं। ये ठीक है कि यह देश मर्यादा पुरुषोत्तम राम का देश है लेकिन यदि जनता अमर्यादित हो गई तब क्या होगा? किसान आंदोलन से गुस्साएं लोगों ने किस तरह से भाजपा विधायक को पिटा यह संकेत नहीं है कि मर्यादा की भी अपनी सीमा है, पीडि़त जन जब सड़कों पर उतरते हैं तो  फिर क्या होता है?

अब तो पूरी देवभूमि भगवान के भरोसे हो चली है, सत्ता अब भी राजनैतिक स्पर्धा में मस्त है, विपक्ष के सुझाव भी उन्हें देशद्रोह लगता है, हालात का चित्रण भी उन्हें बर्दाश्त नहीं है। वे  अब भी यह मानने को तैयार नहीं है कि आजादी के सत्तर साल के कठिन परिश्रम ने देश को उन्नति के नए शिखर तक पहुंचाया है, ये ठीक है कि इस दौरान सत्ता कहीं कहीं निर्दयी हुई है लेकिन इस परिश्रम को सिर्फ राजनैतिक स्वार्थ के लिए सिरे से नकार देना, कौन सी प्रवृत्ति है।

देश के अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से हो रही मौत के प्रति क्या सत्ता की कोई जवाबदेही नहीं बनती, क्या केन्द्र सरकार इतनी संवेदनाशून्य है कि वह अपनेे नागिरकों को मुफ्त में ईलाज तो छोड़ वैक्सीन तक नहीं लगा सकती। संघ तो अपने को संस्कारी और सेवाभावी कहकर अपनी पीठ ठोकता रहा है तब उसका डिग्रीधारी की निष्ठुरता, संवेदनहीनता, अमर्यादित बोल से संघ के कथित संस्कार पर उंगली नहीं उठना चाहिए। सब कुछ स्पष्ट दिख रहा था, खुली आंखों से महामारी के प्रकोप का तांडव सबके सामने है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लापरवाही स्पष्ट थी, बगैर मास्क की रैलियां, कुंभ स्नान मौत को आमंत्रित करने जैसा था। लेकिन, संघ के संस्कार, झूठ और नफरत की राजनीति से उन पढ़े लिखे लोगों का विवेक भी चला गया है जो इस देश की प्रगति में आगे रह सकते हैं, सत्ता के अन्याय का खिलाफत कर सकते है। पता नहीं हिन्दू-मुस्लिम के बीज ने उन्हें क्या बना दिया है कि वे सच को जानते हुए भी सत्य का समर्थन नहीं कर पा रहे हैं। क्या वे हिन्दुत्व के उस खतरे से डरे हुए हैं कायर हो गये हैं जो कभी संभव ही नहीं है। जिन्हें लगता है कि वह मर रहा है, मुझे क्या? मैं सुरक्षित हूं, तो वे जान ले जाति-धर्म देखकर आपदा प्रहार नहीं करता। यदि आप यह सोचते हैं कि अस्पताल में सिर्फ वे ही जायेंगे तो यह भी भूल है। और हां एक बात और समझ लो जिन लोग इसे नियति मान कर जी रहे हैं या खामोश है वे जान लें कि नियति मानकर अपने अधिकार के लिए नहीं लडऩा सत्ता की राक्षसी प्रवृत्ति को ही बढ़ावा देना है, नियति उन लोगों का गढ़ा शब्द है जो अपनी सत्ता की दुर्बलता को छुपाना चाहते हैं।