रविवार, 25 जुलाई 2010

लो खुद ही देख लो। रोम का जलना और नीरों का बांसुरी बजाना...

यह किस्सा बहुतों ने कईयों बार सुना होगा कि जब रोम जल रहा था तब नीरों जी चैन की बांसुरी बजा रहे थे। यह किस्सा फिर दोहराई जा रही है और छत्तीसगढ़ की राजधानी में यही सब हो रहा है। सफाई नहीं पानी नहीं बिजली नहीं और उपर से अधिकारियों के थोक में तबादले और एक तरफा कार्यभार छोड़ने के आदेश देकर बांसुरी बजाने मुरख विदेश चला गया। इन्होंने टिकरापारा से लेकर अवैध कालोनी में भी आग लगाई दवा बाजार भी इसकी आग से झुलस रहा है।
क्या मुरख को बांसुरी बजाने विदेश जाना जरूरी था जबकि बिरजू की बांसुरी का बेसुरा राग क्या कम पड़ गया था। बिरजू की बांसुरी के सुर में तो वैसे भी कांग्रेसी नाच रहे हैं। वे इस राग से इतने मतहोश है कि इस राग की कर्कशता इन्हें सुनाई नहीं पड़ रही है। वैसे भी बिरजू को बांसुरी बजाने में महारत हासिल है। भाव मंगिमा ऐसी कि कोई भी तारीफ कर ले और जब बांसुरी से नगदी भी निकले तो कान में कर्कशता कहां सुनाई पड़ने वाली है।
महापौर किरणमयी नायक खुश थी कि मुरख-बिरजू की बांसुरी के प्रभावशाली तान के बाद भी वह चुनाव जीत गई लेकिन पंद्रह दिन में ही उन्हें पता चल गया कि बिरजू की बांसुरी का प्रभाव कांग्रेसियों पर किस कदर हावी है। अभी सभापति के हार से महापौर उबर भी नहीं पाई थी कि सामान्य सभा की बैठक, निगम अधिकारियों की ड्रामेबाजी से वे दुखी हो गई। आदमी जब कुछ अच्छा करना चाहे और उस पर बेवजह अंड़गा हो तो दुखी होना स्वाभाविक है।
एक तो निगम के पास वैसे ही फंड की कमी है तभी तो तात्यापारा से लेकर शारदा चौक के चौड़ीकरण का काम रुका हुआ है। ऐसे में सरकार पर जब कांग्रेसी महापौर वाले निगमों के लिए फंड नहीं देने के आरोपोें के साथ अधिकारियों के सहयोग नहीं करने का आरोप हो तो मामला गंभीर हो जाता है। राजधानीवासियों को पहले ही कौन सा सुख दे दिया है सरकार ने जो अब नए ड्रामेबाजी व राजनीति की जा रही है। गंदगी और बजबजाती नालियों से वैसे ही त्रस्त है लोग। पीने का पानी तक ठीक से नसीब नहीं हो रहा है। निगम के कांक्रीट बिछाने वाली नीति ने यहां के पर्यावरण को पहले ही प्रदूषित कर दिया है अप्रैल में 45 का ताप भुगतना पड़ रहा है। बरसात में सड़कों-गलियों तक पानी भर जा रहा है। उल्टी दस्त जैसे मौसमी बीमारियां भुगतनी पड़ती है। क्या इसे शहर का जलना नहीं कहा जा सकता और ऐसे में जिम्मेदार लोग घुमने फिरने निकल जाए और अपना राग अलापे तो सम्राट नीरो की यादें ही ताज होगी।
भाजपा कांग्रेस बेशक राजनीति करें लेकिन अंधेरगर्दी न मचाये। शांत जनता को न कुरेदे। क्योंकि अब वो जमाना नहीं है कि नीरों चैन से बंशी बजा ले क्योंकि अब जनता भी पहले जैसी नहीं है वह बांसुरी बजाने वाले की बांसुरी तोड़ने की बजाय बजाने वाले को ही बजा देगी।

ग्राम कोटवार का हुक्का-पानी बंद

धमतरी। कुरुद तहसील के अंतर्गत ग्राम पंचायत सेमरा के आश्रित ग्राम खपरी (सिलौटी) के ग्राम कोटवार खोरबहरा राम कोसरे का हुक्का-पानी ग्राम के उपसरपंच नारद साहू के निर्देशन में बंद करा दिया गया है। ग्राम कोटवार का कसूर केवल इतना है वह सतनामी समाज से तालुक्कात रखता है। सतनामी समाज ग्राम खपरी के समस्त समाज के व्यक्तियों के द्वारा अपने आरध्य देव श्री गुरुघासीदास जी का प्रतीक चिन्ह जैतखम्भ का निर्माण आपसी सहमति से किया गया है।
किन्तु द्वेषवश ग्राम कोटवार का हुक्का-पानी बंद करना स्वतंत्र भारत में न्याय संगत नहीं है। वर्तमान में गांव के उपसरपंच नारद साहू के निर्देशन में अवैध वसूली कर अतिक्रमण कराया जा रहा है। उपसरपंच ने ग्रामवासियों से निम्न रकम की मांग की है। चंद्रहास से 31 सौ रुपए, पिताम्बर से 35 सौ, रेणु से 18 सौ, भगवानी से 18 सौ, उत्तर से 32 सौ, गौतम से 28 सौ, मनोहर से 18 सौ, पुनीत से 21 सौ, इंद्रकुमार से 26 सौ, रामू से 21 सौ, चैतराम से 43 सौ, अनुज से 41 सौ तथा नारायण से 4 सौ एवं ग्राम के कोटवार खोरबहरा राम कोसरे से 52 सौ रुपए की मांग की गई थी जिस पर ग्राम कोटवार ने ऐतराज करते हुए अपने मंत्रालय 13 वर्ष पूर्व बने तोड़ने से असमर्थता जाहिर कर दिया। जिसके कारण शासकीय सेवा से बर्खास्त करने का डर दिखा कर उनके मूत्रालय को तुड़वाना पड़ेगा अन्यथा तुम्हारी नौकरी नहीं रहेगी। ग्राम कोटवार के द्वारा ऐसे प्रकरणों पर समानतापूर्वक विचार करने की बात कहने पर उनको नौकरी से निकालने की धमकी बार-बार दिया जा रहा है। इसी बीच सतनामी समाज ग्राम खपरी के द्वारा अपने ईष्टदेव का प्रतीक चिन्ह जैतखम्भ निर्माण किया गया। निर्माणाधीन रहते हुए इस पर किसी ने भी विरोध प्रकट नहीं किया किन्तु जबपूर्णत: निर्माण पूरा हो जाने एवं उस पर झंडा चढ़ जाने के उपरांत वहां के उपसरपंच द्वारा ग्राम कोटवार का हुक्का-पानी बंद कर दिया गया। इस स्वतंत्र भारत में जो एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। जहां सभी धर्म के अनुइयों का आपने धर्म को मानने एवं पूजने का अधिकार दिया जाता है। इस प्रकार का कृत्य इस देश की धर्मनिरपेक्षता सामाजिक सौहाद्रता को बिगाड़ता है। उपसरपंच का यह कारनामा भेदभाव, छुआछूत, आप्रश्यिता की भावनाओं को जन्म देता है। सतनामी समाज उस गांव में आजादी के पूर्व से कई पीढियों से निवासरत है वहां के ग्रामीणों के दुख-सुख में कंधे से कंधा मिलाकर साथ देता आया है। किन्तु उपसरपंच नारद साहू के द्वारा विद्वेषवश अपने स्वार्थ सिध्दी के लिए किया गया कार्य अपनी पंचायत बाड़ी में एक छतर राज का सिक्का जमाने की पहल माना जा रहा है। इस परिप्रेक्ष्य पर सरपंच एवं पंचोगण ने अपनी अनिभिज्ञता जाहिर की है। जहां पर जैतखम्भ का निर्माण किया गया है। वह जगह 5 फीट-5 फीट का जगह है। वह पर ना किसी प्रकार का सरकारी योजना के तहत ना ही भवन निर्माण प्रस्तावित नहीं है ऐसे समाजद्रोही उपसरपंच नारद साहू पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जाए। अन्यथा सतनामी समाज महासंघ एवं अखिल भारतीय सतनामी कल्याण समिति के द्वारा उग्र आंदोलन की जाएगी। जिसकी जवाबदारी शासन की होगी इसी परिपेक्ष्य में सतनामी समाज महासंघ पाटन ब्लॉक के सचिव दिनेश कोसरे एवं अखिल भारतीय सतनामी कल्याण महासभा जिला धमतरी के सचिव लादूराम कुर्रे के संयुक्त बयान से जारी किया गया है।
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धनेन्द्र साहू पर बेबुनियाद आरोप
अभनपुर। जनपद सदस्य शशिप्रकाश साहू ने बताया कि उस दिन वस्तुस्थिति की जगह खुद उपस्थित था ऐसी कोई बात नहीं हुआ है। जिसमें धनेन्द्र साहू ने किसी प्रकार गांव वालों को धमकी दिया है। जबकि गांव के दो-चार महिलाओं के साथ मंत्रीजी के परिवारवाले मानिकचौरी प्रवेशद्वार पर नहर पुल के पास गाड़ी के सामने धरने पर बैठ गए और उसे अंदर जाने नहीं दे रहे थे। पुलिस के उच्चाधिकारी के समझाइश के बाद धनेन्द्र साहू के साथ केवल पांच व्यक्तियों को मिलने दिया गया। धनेन्द्र साहू केवल यही मांग कर रहे थे कि मृतक परिवारवालों से मिलकर उसे केवल सांत्वना देना चाहते थे। क्योंकि मृतक परिवार कांग्रेस से जुड़े हुए थे। जबकि वस्तुस्थिति में भाजपा के आसपास के सैकड़ों कार्यकर्ता पहुंच गए और धनेन्द्र साहू वापस जाओ के नारे लगाने लगे और उसके सभी कार्यकर्ता वहीं हंगामा करने लगे। चूंकि छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस का संगठन चुनाव नजदीक है और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में अभनपुर विधानसभा में अधिक से अधिक कांग्रेस से जुड़े हुए प्रतिनिधि चुनकर आए हैं। तो काग्रेस एवं धनेन्द्र साहू की साफ छवि में बढ़ती लोकप्रियता से घबराकर उसके ऊपर बेबुनियाद आरोप लगाए जा रहे हैं। भूपेश बघेल जी को गांव के अंदर प्रवेश करने ही नहीं दिया गया जिससे भूपेश बघेल मृतक परिवार से मिलने से पहले ही वहां से चले गए है।