रविवार, 10 अप्रैल 2011

डाक्टर साहब ! सत्य वचन ...

दक्षिन बस्तर के ताड़मेटला सहित तीन गांवों में 14 मार्च को छत्तीसगढ़ियों की हत्या , बलात्कार और घर जलाने की घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ग्राउंड रिपोर्ट लेने पहुंचे विशेष आयुक्त हर्ष मंदर ने जब कहा क़ि दंतेवाड़ा क्षेत्र में सरकार क़ि मौजूदगी का एहसास नहीं होता तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह फट पड़े क़ि छत्तीसगढ़ पर कोई भी कुछ भी कह देता है। उन्होंने साथ ही यह भी जोड़ा की अग्निवेश या क़िसी बाहरी व्यक्ति के सलाह या प्रमाण-पत्र लेने की जरुरत नहीं है।



एक बारगी तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का कहना जायज है? क़ि आखिर छ.ग. के बारे में कोई दूसरा क्यों बोले। और इस प्रदेश के बाहर के लोग या गैर छत्तीसगढ़िया कौन होते हैं प्रमाण-पत्र देने वाले।



हमारा प्रदेश है हम अपने ढंग से चलायेंगे? हमे लगता है की बस्तर में कानून व्यवस्था है तो है? कोई दूसरा कैसे कह सकता है? और जब हमारा बहुमत है तो हमारी ही मर्जी चलेगी? और जब यहां क़ि प्रमुख राजनैतिक पार्टियों के नेता कुछ नहीं बोल रहे हैं? तो अग्निवेश या दूसरे सामाजिक कार्यकर्ताओ को क्या पड़ी है।



प्रदेश में सब कुछ ठीक है कानुन व्यवस्था अच्छी है? भ्रष्टाचार हो भी रहा है तो प्रदेश के लोगों का ही ज़यदा हो रहा है। आखिर केद्रीय सरकार के पैसों का इससे अच्छा उपयोग और क्या हो सकता है कि सीधे नेता-अधिकारीयों की जेबों में पैसा जा रहा है।



बाहर के लोग बेवजह बोल रहे हैं। छत्तीसगढ़िया तो कुछ बोलते नहीं। बासी खाकर ठंडे हो गये हैं। और हम सरकारी जमीन चाहे डॉ. कमलेश्वर अग्रवाल को दें या डॉ. सुनील खेमका को दें। खेती की जमीन जिंदल को दें या मोनेट या डीबी पावर को , क़िसी को बोलने का अधिकार नहीं है।



हम कुल बजट का तीन चौथाई हिस्सा अमर अग्रवाल को दें या राजेश मूनत को जब बाक़ि छत्तीसगढ़िया मंत्रि कुछ नहीं बोल रहे हैं तो क़िसी दूसरे को बोलने का कोई हक नहीं है।



डॉ. रमन सिंह जी का यह कहना एकदम वाजिब है क़ि यह हमारा मामला है हम सुलझा लेंगे। छत्तीसगढ़ियों की मौत पर हल्ला मचाने वाले जवानों की मौत पर कहां रहते हैं। बस्तर का हालात काबू पर है और लोग बेवजह हल्ला मचा रहें हैं और नक्सली के खिलाफ हो रही कार्यवाई में 10-20 हजार छत्तीसगढ़िया आदिवासी मारे भी जाते है तो इसे स्वीकार करना चाहिए क़ि अच्छे कामों मे इस तरह की बातें हो जाती है। गांव वाले शिविर में रहना चाहते हैं और सरकार उन्हें रख रही है मरने के लिए थोड़ी न छोड़ दी जाए।



आखिर इतने बड़े नक्सली आंदोलन से निपटने पैसे चाहिए इसलिए पानी, बांध और सरकारी जमीन कौड़ी के मोल ही सही बेचकर राजस्व बढ़ाया जा रहा है। इसके बाद भी पैसे की जरुरत पड़ी तो गांव-गांव मे शराब बिकवाया जा रहा है। और जरुरत पड़ी तो बिजली और पानी के टैक्स में वृद्धि की गई है। छत्तीसगढ़िया समझदार है और यह सब देखकर भी चुप है लेक़िन बाहर से आने वाले नासमझ लोग जबरदस्ती हल्ला मचा रहे हैं। जबक़ि पैसों की जरुरत पड़ेगी तो हम टैक्स और बढ़ायेंगे। विपक्ष हमारे काम से खुश है इसलिए वे कुछ नहीं बोलते तो बाहरी लोग बेवजह उनके बिक जाने क़ि बात करते हैं। अरे हमारी सरकार जनता की सरकार है और काग्रेसी भी तो जनता है कुछ काम उनका कर दिया पैसों की मदद कर भी दी तो इसे अन्यथा नहीं लेना चाहिए। सरकार चलाना आसान नहीं है ये बाहरी लोग क्या जाने क्योंकि ये कभी सरकार में बैठे नहीं इसलिए बैठने वालों से जलते हैं और अनर्गल प्रलाप करते हैं।



हम क्या कर रहे हैं हमारी बुराई करने का हक क़िसी भी बाहरी व्यक्ति को नहीं है। हमारी प्रशंसा करो तो ठीक है। देखते नहीं हम हमारी बड़ाई करने वाले दूसरे प्रदेशों के अखबार वालों को हम हर माह लाखो करोड़ो के रुपये का विज्ञापन देते हैं भले ही उसकी औकात दो कौड़ी की न हो भले ही वह दो-पांच सौ छपते हो। हम तो बड़ाई करने वाले अखबारों को बुलाकर विज्ञापन देते हैं। लेक़िन बुराई बर्दाश्त नहीं करेंगे हमारा राज है ठीक चल रहा है सब गुड-गाड है।और बाहरी लोग भी गुड-गाड ही देखें अन्यथा छत्तीसगढ़ियों की तरह अपनी जुबान चुप रखें उनका भी दारु और भात का इंतजाम कर लिया जायेगा।