शनिवार, 22 दिसंबर 2012

गृहमंत्री साहब ! अपराध तो बढ़ेंगे ही ...


जब प्रदेश के गृह मंत्री शराब ठेकेदारों के हाथों थाने बिकने की सिर्फ बात करता हो, पुलिस कप्तान को निकम्मा तो कहता हो लेकिन कार्रवाई नहीं कर पाता हो तब अपराध तो बढ़ेगे ही । अब  तो लोगों को सोच लेना चाहिए कि उनकी सुरक्षा उन्हें स्वयं करना है
क्योंकि वर्दी का सारा रौब तो यातायात सुधारने के बहाने की जाने वाली वसूली में निकल जाती है और थोड़ी बहुत ताकत बचती है वह वीआईपी ड्यूटी की भेंट चढ़ जाती है ।
भाजपा के इस दूसरे शासन काल में बढ़ते अपराध पर बेवजह कांग्रेसी हल्ला मचा रहे हैं । जब गृह मंत्री की बेबसी उनके शब्दों में बाहर आ रही हो तब भला पुलिस की मनमर्जी तो चलेगी ही । फिर कोई सरकार को कैसे दोष दिया जा सकता है ।
अब राजधानी की पुलिस को ही देख लीजीए ।  जो आई जी बने हंै उन पर एक आईपीएस राहूल शर्मा को लेकर गंभीर आरोप है लेकिन सरकार मुक्त में तनख्वाह देगी नहीं और काम लेना है तो भेज दिया रायपुर । फिर ऐसे अफसर की शायद सरकार को भी जरूरत है जो बेहद चालाक हो ।
इसके बाद पुलिस कप्तान दीपांशु काबरा को समझ ले । कहने को तो किसी भी आईपीएस को एक स्थान पर तीन साल से Óयादा नहीं रहना चाहिए लेकिन वे चार साल से कप्तानी संभाल रहे है । इस बीच कई गंभीर अपराध हुए । मन्नू नत्थानी से लेकर राजेश शर्मा जैसे अपराधी नहीं पकड़े जा सके । हत्या के कितने ही मामलों का पता नहीं चला । इस बीच कई थानेदार बदल गये । उनके नीचे के कई अधिकारी बदल गये । अपराधियों में दहशत पैदा करने वाले रत्नेश सिंह - शशिमोहन सिंह हो या मुकेश गुप्ता जैसे आई जी हो सब चले गए लेकिन काबरा साहब चार साल से जमें हुए हैं ।
राजधानी के थानों और यहां की थानेदारी के किस्से भी कम नहीं है । हर थाने के अपने किस्से है । मोटे तौर पर पीडि़तों को परेशान करने का आरोप के अलावा सटोरियों-जुआडिय़ों और अवैध शराब बेचने वालों से महिना वसूलने का आरोप साबित होने पर भी कुछ नहीं होता । खासकर पंडरी मोवा और टिकरापारा में तो थानेदारों के कारनामों से आम आदमी तक परेशान है । शिकायतें दर्ज करने की बजाय पीडि़तों को भगाकर थाने का आर सी सुधारने में ये माहिर है और यहि धोखे से मामला कप्तान तक चल दे तब भी कोइ्र फिक्र नहीं क्योंकि ऐसी शिकायतों को रद्दी की टोकरी में कैसे फेंकना हैे यह कप्तान साहब भी जानते हैं । और Óयादा हल्ला हुआ तो कुछ नहीं करना है बस एक आई आर लिख दो ।
भले ही राजधानी की पुलिस अपने यहां अपराध रोकने में फेल हो गई हो लेकिन पड़ोसी जिले में कुछ हुआ नहीं कि भरपूर नाकेबंदी की जाती है । अरे नाके बंदी करनी हो तो चौक चौराहों की बजाय प्रवेश स्थल पर कर लो लेकिन नहीं वहां जाने का झंझट कौन पाले । शहर में ही पकड़ लेंगे ।
ऐसा नहीं है कि दीपांशु काबरा जी चार साल से जमें है इसलिए रायपुर का यह हाल है । दूसरी जगह भी स्थिति अ'छी नहीं है ।
चांपा-जांजगीर, रायगढ़ में तो पुलिस अद्योग पतियों के इशारे पर काम कर रही है । जबकि अंबिकापुर सरगुजा में तो अब भी माफिया गिरी हो रही है । कोयला चोर हो या जंगल तस्कर सबसे पैसा मिल रहा है । जबकि बस्तर क्षेत्र में तो नक्सली दहशत उन्हें रोक रखी है । लेकिन वहां के पुलिस वालों के घरों के फर्नीचर किसी से छिपे नहीं है ।
पुलिस के दुश्मन मीडिया वाले है । नेता तो सेट हो जाते है । मामला बना दो नेता चुप । लेकिन मीडिया का तोड़ ढूंढना मुश्किल है ।
चलते - चलते ...
डाल्फिन स्कूल के संचालक राजेश शर्मा, वायदा कारोबारी मन्नू नत्थानी के अलावा शहर में ही दर्जन भर से Óयादा ईनामी अपराधी को पुलिस नहीं ढूढ़ पा रही है लेकिन सीबीआई जांच  की सिफारिश नहीं होगी ? आखिर पुलिस भी जानती है कि .इनके पीछे किसका हाथ है ?