सोमवार, 17 मई 2021

नैतिक सत्ता तो बची नहीं!

 

देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी क्या नैतिक सत्ता खो चुके हैं? हालांकि नरेन्द्र मोदी पर पार्टी का भरोसा अब भी कायम है इसलिए सत्ता जाने का सवाल ही नहीं है लेकिन सात साल में इस शख्स की छवि को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जितना पलीता लगा है उतना किसी भी प्रधानमंत्री पर नहीं लगा हैं।

बात-बात पर झूठ और अमर्यादित भाषा शैली और भाजपा के प्रचार में दिन-रात लगे रहने की शैली ने उनके हर काम पर संशय का बादल खड़ा कर दिया है। नेता की ताकत होती है जनता का विश्वास, सक्षमता और दूर दृष्टि पर। लेकिन जब नियत ही साफ न हो या शंकास्पद हो तो फिर वह लाख जतन कर ले इतिहास में वह दर्ज होने लायक नहीं बच सकता है। 

अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास केवल तीन साल बचे हैं लेकिन बीते बरस में अविश्वास की जो खाई बड़ी है उसके बाद यह कहना कठिन है कि वे कोई नया करिश्मा कर पायेंगे क्योंकि इस कोरोना काल में प्रधानमंत्री की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जितनी आलोचना हुई है उसकी भरपाई हो पाना असंभव सा है। पिछले सात साल के शासन में घोर पक्षपात, अपने पराए का भाव, स्वार्थी भाव और पूरी सरकारी मशीनरी को प्रोपोगेंडा चेम्बर में बदल दिया गया, असहमति के स्वर को ट्रोल करना और सरकार की इसी नीति के चलते बीते सात साल में इस देश की नागरिकता छोड़कर जाने वालों की संख्या सात लाख के पार होने लगी है। असुरक्षा और अशांति के इस दौर में पैसे वालों में जिस तरह की घबराहट बढ़ी है और देश छोडऩे का चलन बढ़ा है वह इस देश की आर्थिक ढांचे को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचा चुके हैं।

लोकतंत्र की सबसे बड़ी खासियत विपक्ष या अहसमति के स्वर को तवज्जों देना है। आप नेहरु से लाख चिढिय़े लेकिन याद रखिये कि इस देश को महान लोकतांत्रिक बनाने में उन्होंने अपना पूरा जीवन होम कर दिया था। जब संसद में जनसंघ की चार सीट थी और सेवियत नेता निकिता खुश्वेच भारत आए तो नेहरु ने उम्दा भाषण की वजह से अटल बिहारी वाजपेयी को खुश्वेच से मिलाने न केवल बुला लिये बल्कि वाजपेयी का परिचय देते हुए कहा कि ये हमारे भावी प्रधानमंत्री है, नेहरु जानते थे कि ये तभी होगा जब कांग्रेस हार जायेगी। लेकिन उनमें हीनभावना नहीं थी। परिचय सुनकर खुश्चेन तुरंत बोले फिर ये यहां क्या कर रहे है? हमारे देश में तो हम उन्हें गुलग (राजनैतिक विरोधियों की जेल) में भेज देते हैं।

नेहरु जानते थे कि लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए विपक्ष का होना जरुरी है इनके जैसे कांग्रेस मुक्त वाले नेहरु नहीं थे। असहमति के स्वर को बीते सात साल में प्रताडि़त करने के सैकड़ों उदाहरण है और हद तो तब हो गई जब कोरोना के इस भीषण आपदा में मदद करने वालों के हाथ काटने की कोशिश हुई। 

गुजरात में जारी हुए सवा लाख डेथ सर्टिफिकेट और गंगा में कुत्ते नोचते लाश का जवाब मोदी सत्ता को इसलिए भी देना चाहिए क्योंकि गुजरात, उत्तराखंड, बिहार और उत्तरप्रदेश में भाजपा की ही सरकार है। मोहन भागवत जब कहते हैं कि सत्ता से लापरवाही हुई है तब भी यदि हिन्दुस्तान में आएगा तो मोदी ही गूंज सुनाई देने लगे तो मान लीजिए कि इस देश को अभी और नीचे जाना है, और भी लाशें गिननी है और बौद्धिक और उद्यमशीनों का देश से पलायन जारी रहना है।