सोमवार, 24 जनवरी 2011

छत्तीसगढ़ में अब तक के सबसे बड़े शराब-बंदी आन्दोलन की तैयारी

अखंड धरना में बैठेंगे दाऊ आनंद कुमार, कई और मांग भी शामिल
छत्तीसगढ़ में शराब खोरी की वजह से बाद रहे अपराध को देखते हुए दाऊ आनंद कुमार ने चिंता जताई है और महंगाई व् भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन करने का निर्णय लिया गया है . दाऊ आनंद कुमार का कहना है कि राज्य बनाने के दस  वर्ष में अपराध ही नहीं भ्रष्टाचार भी बड़ा है हमने ऐसे राज्य कि कल्पना कतई नहीं कि थी इसलिए वे एक बार फिर राज्य के लोगों कि खुशहाली के लिए अखंड धरना पर बैठने का निर्णय लिया है.
इस आन्दोलन कि प्रमुख मांग छत्तीसगढ़ में पूर्ण शराब-बंदी लागु करने के आलावा विदेशों में कला धन जमा करने वालों का नाम उजागर करने , चुनाव में जमानत राशि १०० रुपये से अधिक नहीं रखने, छत्तीसगढ़ में सरकारी जमीनों का संरक्षण तथा घोटाले बज शासकीय सेवकों को तत्काल बर्खाश्त करने जैसी मांग शामिल है.
दाऊ आनंद कुमार वाही आन्दोलन करी हैं जिन्होंने राज्य निर्माण के लिए तब तक धरना जरी रखा था जब तक राज्य नहीं बन गया , शुरुवात में राज्य निर्माण के अखंड धरने का सब उपहास उड़ाते रहे लेकिन आन्दोलन विरोधी विद्या-चरण शुक्ला ने भी आन्दोलन किया वाही राज्य निर्माण कि मांग करने वाली भाजपा ने भी आन्दोलन का समर्थन किया.
मार्च-अप्रैल में शराब ठेका को देखते हुए आन्दोलन कि तिथि शीघ्र घोषित कि जाएगी और इसका विस्तार भी पुरे प्रदेश व् देश में करने कि तैयारी है.

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

सुब्रत साहू को सरकार का संरक्षण , कांग्रेसी फिर चुप

सुब्रत साहू वैसे तो कई मामले में विवादस्पद रहे है इसके बाद भी उन्हें हर बार महत्वपूर्ण पदों पर बिठाया जाता रहा है . धमतरी कांड में तो उनकी नौकरी तक जाने की बात कही जाते रही है एक बिमा कंपनी को लाखों का फायदा पहुचने के अलावा उनके खिलाफ दवा छिडकाव में एक करोड़  के घपले का मामला है कहा जाता है की विपणन संघ में उनके कार्यकाल में दवा छिद्काया ही नहीं गया और एक करोड़ का भुगतान तक हो गया छत्तीसगढ़ सरकार एक बार फिर घपला उजागर होने के बाद आई ए एस सुब्रत साहू को बचाने का प्रयास कर रही है और पुरे मामले की लीपापोती में कई आई ए एस भी लग गएँ हैं.आश्चर्य का विषय तो यह भी है की इस मामले में कांग्रेसी भी खामोश होकर अपना बेशर्मी का परिचय दे रहें हैं ? पुरे मामले की स्थिति स्पष्ट होने के बावजूद सुब्रत साहू पद पर बने हुए है और कांग्रेसी भी इतने बड़े घपले पर चुप है
इस   सम्पूर्ण मामले का सबसे दुर्भाग्य जनक पहलू यह है की जिस दवा खरीदी में घपला किया गया है वैसा दवा का छिडकाव इस घटम के न तो कभी पहले हुआ है और न कभी बाद में ही दवा का छिडकाव ही कभी हुआ हा है यानि कहा जा सकता है की पैसा खाने पहली बार यंहा नए तरीके का इस्तेमाल हुआ
जय बोलो बेईमान की !!!!

बुधवार, 19 जनवरी 2011

महंगाई रोकने का उपाय ?

महंगाई को लेकर इन दिनों पूरा देश चिंतित दिखाई पद रहा है.सरकार से लेकर आम आदमी तक चौक - चौराहों में महंगाई के खिलाफ भाषण देते दिखलाई पड़ जातें हैं.लोगों का गुस्सा भी कंही - कंही दिखलाई पड़ रहा है.लेकिन सिर्फ बातें ही हो रही है ?
इसे   रोकने का उपाय का उपाय पर कोई नहीं बोलता ?
हो सकता है मेरे इस उपाय से कोई भी आदमी सहमत न हो पर यही एकमात्र उपाय है ...
??????????????
हिम्मत के साथ ईमानदारी से सभी गलत कारनामों की खिलाफत करते हुए जोरदार ढंग से विरोध.जरुरत पड़े तो आमरण अनशन पर बैठ जाओ भले ही वह किसी के खिलाफ व्यक्तिगत क्यों न लगे.पर सच के लिए खड़े हो जावोगे तो महंगाई ही नहीं दूसरी समस्या भी दूर हो जाएगी .

मंगलवार, 18 जनवरी 2011

भ्रटाचार का जमाना , महाधिवक्ता है सुराना

सुराना परिवार पर मंदिर की जमीं हडपने का आरोप है हमने इसे छपा था याददाश्त के लिए फिर पढिये ... यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का संस्कार है या भारतीय जनता पार्टी का कारनामा है यह तो आम जनता तय करेगी लेकिन प्रदेश के महाधिवक्ता के पद पर जिस देवराज सुराना को बिठाया गया है उनके ही नहीं उनके परिवार जनों के खिलाफ लगभग दर्जनभर से अधिक मामले हैं। मंदिर की जमीन से लेकर आदिवासियों की जमीन हथियाने के अलावा अपने जनसंघी प्रभाव का उपयोग कर काम करवाने वाले व्यक्ति को सरकार कैसे महाधिवक्ता बना दी यह तो वही जाने लेकिन ऐसे व्यक्ति के महाधिवक्ता बनने से क्या कुछ हो रहा होगा सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। वैसे तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छाया में रहे देवराज सुराना राजधानीवासियों के लिए अपरिचित नाम नहीं है। राजधानी वासियों के बीच उनकी पहचान जनसंघी के अलावा एक वकील की भी है लेकिन अब हम अपने पाठकों को बताना चाहते हैं कि जनसंघ के सेवाभाव के पीछे देवराज सुराना और उनके परिजनों का कारनामा कितना भयावह है कि ऐसे व्यक्ति को महाधिवक्ता जैसे जिम्मेदार पद पर बिठाना कितना घातक हो सकता है। देवराज सुराना और उनके पुत्रद्वय आनंद सुराना, सुरेन्द्र सुराना, पुत्रवधु श्रीमती चेतना सुराना, दामाद विजयचंद सुराना यानी परिवार के अमूमन सभी लोगों पर मंदिर की जमीन, आदिवासियों की जमीन सहित अन्य आपराधिक प्रकरण दर्ज हैं। आश्चर्य का विषय तो यह है कि देवराज सुराना को महाधिवक्ता बनाने सरकार ने इस घपलेबाजी को नजरअंदाज तो किया ही है संवैधानिक नियमों की भी अनदेखी की गई है। संविधान के अनुच्छेद 165(1) के अनुसार प्रत्येक राय का रायपाल उसी व्यक्ति को महाधिवक्ता बनाता है जो उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए अर्हित होता है। ऐसे में 82 साल के व्यक्ति को महाधिवक्ता बनाना स्पष्ट करता है कि किस तरह से आरएसएस या भाजपा के प्रभाव में देवराज सुराना को महाधिवक्ता बनाया गया है। जबकि नियमानुसार 62 साल से अधिक उम्र का व्यक्ति उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होने का पात्र नहीं है। देवराज सुराना को महाधिवक्ता बनाने में आरएसएस या भाजपा की भूमिका की चर्चा बाद में की जाएगी। यहां हम उनके व उनके परिजनों के कृत्यों पर प्रकाश डालेंगे तथा हम अपने पाठकों को यह भी बताएंगे कि किस तरह से देवराज सुराना के परिवार की नानेश बिल्डर्स से अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया और कैसे कलेक्टर से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों ने उनके प्रभाव में अनैतिक कार्य किया। दरअसल देवराज सुराना और उनके परिवार तब विवाद में आए जब इनकी कंपनी नानेश बिल्डर्स से प्राईवेट लिमिटेड ने गोपियापारा स्थित श्री हनुमान मंदिर की भाठागांव स्थित बेशकिमती जमीन को खरीदा। कहा जाता है कि इस जमीन की फर्जी तरीके से दो रजिस्ट्री कराई गई। इसमें भारतभूषण नामक फर्जी सर्वराकार से दस्तखत कराए गए। इस फर्जी रजिस्ट्री की जानकारी होने पर जब हिन्दू महासभा ने आपत्ति की तो जोगी शासन काल में सन् 2001 में इस पर रोक लगा दी गई। इसके बाद जैसे ही भाजपा की सरकार सत्ता में आई देवराज सुराना पर अपने प्रभाव में इस विक्रय पत्रों को 17-3-04 को पंजीयन करा लिया। इस भूमि को क्रय करने के लिए देवराज सुराना के खाते से दो लाख देवराज सिंह सुराना एचयूएफ के खाते से दो लाख 51 हजार से निकालकर 8 मार्च 2001 को नानेश बिल्डर्स के खाते में जमा किए गए। आश्चर्य का विषय तो यह है कि 2001 में तत्कालीन कलेक्टर ने हिन्दू महासभा की शिकायत पर की गई जांच रपट में यह लिखा है कि यह भूमि श्री हनुमान मंदिर प्रबंधक कलेक्टर रायपुर के नाम दर्ज होने के कारण विक्रय योग्य नहीं है। जांच प्रतिवेदन में मुख्यालय उपपंजीयक एवं तत्कालीन तहसीलदार रायपुर के विरुध्द कार्यवाही किया जाना बताया गया है एवं जिला पंजीयक रायपुर को लिखा है कि भविष्य में अग्रिम आदेश तक कोई रजिस्ट्री ना किया जाए। बताया जाता है कि 2004 में अपने प्रभाव पर इस जमीन की रजिस्ट्री कराने के बाद जब विवाद बढ़ता दिखा तो नानेश बिल्डर्स ने यह जमीन रवि वासवानी और सुशील अग्रवाल रामसागरपारा को बेच दी। इस पर जब हिन्दू महासभा ने पुन: आपत्ति की तो तहसीलदार ने नामांतरण रोक दिया है और जब मामला उलझता दिखा तो विक्रय की गई जमीन का नानेश बिल्डर्स ने आश्चर्यजनक रुप से अपने नाम पर डायवर्सन करा लिया। यानी जमीन बेचने के बाद किस तरह से डायवर्सन की कार्रवाई की गई होगी समझा जा सकता है। जबकि अब भी भू-अभिलेखों में सुशील अग्रवाल एवं रवि वासवानी वगैरह का नाम भूमि स्वामी के रुप में दर्ज है। इतना सब कुछ होने के बाद भी इन्हें महाधिवक्ता कैसे बनाया गया यह समझा जा सकता है।

सोमवार, 17 जनवरी 2011

निगरानी समिति का सदस्य स्वामिनाथ जयसवाल

केंद्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय ने स्वामिनाथ जयसवाल [बिच में ] को निगरानी समिति का सदस्य बनाया है . वे छत्तीसगढ़ में केन्द्रीय फंड के दुरूपयोग की रिपोर्ट देंगे  

क्यों चुप हैं लोग ?

क्यों  चुप  हैं  लोग ? क्या  सरकारें  मनमर्जी चलने के लिए होती हैं ? मंहगाई चरम पर है, किसानो की जमीने उद्योगपतियों को बेचीं जा रही है , छत्तीसगढ़ में तो जमीन - जंगल-पानी और बांध तक बेचीं जा रही है , विरोध करने वालों पर लाठियां बरसी जा रही है और कांग्रेस बेशर्मी से तमाशा इसलिए देख रही है ताकि राजनैतिक फायदा उठाया जा सके .
क्या आम लोगों को अपने भविष्य की चिंता नहीं है ? या वे अब भी दो वक्त की रोटी के लिए ही स्वार्थी बन कर रह गए है , क्या फिर महात्मा गाँधी की तरह किसी को निकलने की जरुरत है ताकि सरकारों की मनमानी रोकी जा सके ?

शनिवार, 15 जनवरी 2011

बधाई हो

मकर संक्रांति की बधाई हो
अब आपका राशि क्या होगा क्योंकि अब १३ राशि हो गयी है मै अपना पता कर रहा हु ,पता चलते ही सूचना दूंगा

मंगलवार, 4 जनवरी 2011

नए सफ़र में ...

पत्रकारिता  को  लेकर  हमेशा  से  ही  मेरी  अपनी   सोच  रही  है  शायद  यही   वजह  है  की  मै  एक  संस्थान  में  कभी  भी  टिक  कर  नहीं  रह  सका .

ऐसा  एक  बार  फिर  हो  गया  और  इस  बार  बुलंद -छत्तीसगढ़    छुट  गया  .लक्ष  बड़ा  है  या  फिर  सफ़र  बड़ा  है  यह  मै  नहीं  जानता   लेकिन  ‘बुलंद ’ छुटने  पर  दुखी  भी  हूँ .सोचा  था  ‘बुलंद ’   के  माध्यम  से  नई  आज़ादी  की  लड़ाई  पूरी   कर  लूँगा  पर  इश्वर  को  शायद  कुछ  और   मंजूर  है .हालाँकि  न  तो  मैंने  कभी  कोई  काम  किसी  के  भोरेसे  पर  किया  और  न   उन  लोगों  में  से  हूँ  जो  भाग्य  के  भरोसे  सब  कुछ  छोड़   देते  है  .

अपने  काम  पर  जरुर  मुझे  भरोसा  रहा  है   और  आज  भी  भरोसा  है  की  सुचारू  व्यवस्था  बनाने  के  लिए  गलत  पर  प्रहार  करना  ही  होगो  , गलत  के  खिलाफ  खड़ा  होना  ही  होगा  , गलत  के  खिलाफ  खुलकर  बोलना  ही  होगा   भले  इसके  एवज  me  अपने  कुछ  लोगों  की  नाराजगी  मोल  क्यों  न  लेनी  पड़े  .

‘बुलंद ’के  लगभग  दो  साल  का  साफ आर  झंझावातों  से  गुजरा  खबरे  रोकने  का  दबाव  के  साथ  हार  बार  अखबार  छाप  सकने  के  अलावा  खबरों  पर  कारवाई  की  चिंता  भी  काम  नहीं  थी  लेकिन  कहा  जाता  है  की  अच्छा  सोचोगे  तो  अच्छा  होगा  शायद  इसकिये  सब  कुछ  अच्छा  हुआ 

नए  साल  के  सफ़र  में  अब  कौन  माध्यम  होगा  नहीं  कह  सकता  लेकिन  धर  और  पैनी  हो  और  जिस  तरह  से  मुझे  सबका  प्यार  ‘बुलंद ’में  लड़ाई  के  दौरान  मिला  और  नए  लोग  भी  जुड़े  वैसा  ही  आगे  भी  चले  नई  आज़ादी  की  इस  लड़ाई  में  और  भी  लोग  jude aur जो  जुड़े   है  उनके  प्यार  के  भरोसे  फिर  कुछ  कर  सकूँ  इसी  आशा  के  साथ  नए  माध्यम  की  तलाश  है .  ..