शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

रावण सा भाई ...


इन दिनों दिल्ली रेप कांड के बाद पूरे देश में महिलाओं पर अत्याचार को लेकर वैचारिक क्रंाति चल रही है । महिला अत्याचार के खिलाफ चल रहे इस जंग से हर कोई अपने को जोड़ रखा है । और सोशल साईट्स ने इस वैचारिक क्रांति को संबल प्रदान किया है । जितने लोग उतनी बातें । और इन बातों में पुलिस-नेता के अलावा समाज के उस वर्ग के प्रति भी आक्रोश साफ दिखाई दिया जो लोग थोड़ी सी झंझट से बचने दूसरे की सहायता करने से स्वयं को किनारे कर लेते हैं ।
 सवाल सिर्फ दामिनी का नहीं है । सवाल बढ़ते यौन अपराधों का है । सवाल पुलिस की चूक का नहीं है सवाल स्वयं की जिम्मेदारी का है । सड़क पर तडफ़ते लोगों को क्या सिर्फ इसलिए पुलिस के भरोसे छोड़ा जाना चाहिए कि पुलिसिया पूछताछ में झंझट बहुत है ।
क्या कानून सख्त कर देने से अपराध रूक जायेगा ? बल्कि कानून की सहायता करने से अपराध रूकेगा । एक गुण्डा पुरे मोहल्ले पर इसलिए भारी पड़ता है क्योंकि हम तब तक आवाज नहीं उठाते जब तक हमारे साथ गलत न हो । दूसरे पर हो रहे अत्याचार की अनदेखी की वजह से ही अपराध बढ़े है । और यही सच है ।
हर घटना के बाद या घटना के दौरान जनता मौजूद होती है और जनता अपनी जिम्मेदारी निभा ले तो अपराधियों के हौसले पस्त हो जायेंगे । ये ठीक है कि पुलिसिया करतूत भी अपराध बढऩे की बड़ी वजह है लेकिन हमने कब अपनी जिम्मेदारी निभाई है ? यह स्वयं लोगों को अपने आप से पूछना चाहिए ।
संघ प्रमुख मोहन भागवत हो या भाजपाई मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, राष्ट्रपति के बेटे अमिजीत हो या फिर कोई और हो । इस मामले में उनके विचार हैरान कर देने वाले है । मर्यादा की पाठ पढ़ाना, पहनावे पर फब्तियां कसना, समर्पण की बात करना या भारत-इंडिया की दुहाई देना सत्य से मुंह मोडऩा है । शायद कैलाश विजयवर्गीय को यह जानकारी नहीं होगी कि सीता ने यदि लक्ष्मण रेखा पार की थी तो उसकी वजह एक साधु की सहायता करना हयेय था और बलात्कार सिर्फ शहरों में नहीं होते गांवो में भी बदस्तुर जारी है ।
इसलिए घटना की निंदा करने या फिर समाज को इस अपराध से मुक्त करने के प्रयास की बजाय महिलाओं के प्रति अपनी मानसिकता को प्रकट करना कतई उचित नहीं है । आज देश में तेजी से बदलाव आया है । बढ़ती मंहगाई के इस दौर में बेहतर जीवन के लिए महिलाएं रात तक काम कर रही है ऐसे में पुलिस के अलावा समाज की भी जिम्मेदारी बढ़ गई है ।
महिलाओं के प्रति सोच भी बदलने लगी है । आज हर व्यक्ति अपनी बेटियों को बेहतर शिक्षा देना चाहते है और इसके लिए बड़े शहरों में भी भेज रहे है । तब भला भारत-इंडिया या लक्ष्मण रेखा जैसी बात कहां से आ गई ।
क्या समय के साथ मानसिकता बदलने की जरूरत नहीं है । क्या रेस्टरो या एकांत जगह पर एक युवक-युवती सिर्फ यौन ? संबंधों की वजह से ही मिलते है । इस तरह से चर्चा करने वालों को देखने वाले ऐसे कितने लोग है जो पहली बार में ही यह सोचते होंगे कि ये दोनों पढ़ाई, बिजनेस पर ही चर्चा कर रहे हैं ।
यह सच है कि मां-बहन, चाची,मौसी नानी-दादी के रिश्तों की बुनियाद संबंध पर ही आधारित है लेकिन बदलते दौर में बहुत कुछ बदला है और हमें जिस तरह से अपनी बेटियों को पढऩे या नौकरी करने की आजादी दी है अपनी मानसिकता को भी आजादी देनी होगी ।
यही वजह है कि अब तक जिस रावण का हर साल बुराई के प्रतिक के रूप में दहन किया जाता था आज उसी रावण में अ'छाई ढूंढी जाने लगी है । पर स्त्री के हरण का दाग भी कमजोर पडऩे लगा है । तभी तो सोशल साईट्स पर रावण जैसे भाई की बात होनी लगी है । एक ऐसा भाई जो अपनी बहन सुर्पनखा के लिए दुश्मन की पत्नी का तो हरण कर लेता है लेकिन उसे छूता भी नहीं है
क्या सचमुच महिलाओं पर हो रहे यौन उपीडऩ के बाद रावण जैसे भाई की जरूरत है ?