सोमवार, 15 नवंबर 2010

आजादी... सिर्फ बोलने की...!

इस देश में आजादी सिर्फ बोलने बस की रह गई है। अब तो लोग थोड़े से चर्चित होने के बाद कुछ भी बोलने लगे हैं। सच से दूर भागने की प्रवृत्ति बढ़ गई है और आम आदमी सिर्फ बोल ही पा रहा है। सरकारें सुन नहीं रही है।
पिछले दिनों मुंबई में एक भवन निर्माण सोसायटी के घपले सामने आए तो सब बोलने लग गए। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने अपना इस्तीफा अपने आका को सौंप दिया और मामला जांच में जा सिमटा। छत्तीसगढ़ में राज्य बनते ही चौतरफा लूट मची है। विकास के नाम पर जिस तरह से जल, जंगल और जमीन की बलि चढ़ाई जा रही है वह आने वाले दिनों के लिए खतरे का संकेत है। शहरी विकास ही सरकार की प्राथमिकता हो गई है। यही वजह है कि लोग थोड़ी सी सुविधा के लिए शहर की ओर पलायन करने लगे है। राजधानी रायपुर की आबादी राज्य बनने के बाद कई गुणा बढ़ गई। यातायात और प्रदूषण ने आम लोगों की तकलीफें बढ़ा दी है लेकिन एसी गाड़ी से लेकर बंगलों में रहने वाले मंत्री-विधायकों या शासकीय अफसरों को इसकी फ्रिक नहीं है।
वास्तव में देखा जाए तो सरकारी नीति ने असंतुलीत विकास को जन्म दिया है। लोग असंतोष में जी रहे हैं और यही स्थिति रही तो आने वाले दिनों में स्थिति भयावह होगी। सरकार के पास ग्रामीण विकास की कोई योजना नहीं है। आज भी छत्तीसगढ़ के अधिकांश गांवों में लोग उसी पानी में नहाने मजबूर हैं जहां जानवर नहाते हैं। नल का पानी तो छोड़ बिसलरी पीने वालों की जमात ने गांवों में पीने की साफ पानी की योजना भी नहीं बनाई है। कुछ बड़़े गांवों या कस्बों में नल हो गया है लेकिन आज भी दूषित पानी के सहारे जिन्दगी काटने को लोग मजबूर है। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा व स्वास्थ्य का सर्वाधिक बुरा हाल है। आज भी हाईस्कूल और स्वास्थ्य केन्द्र के लिए 10 से 20 किलोमीटर तक जाना पड़ता है। डाक्टर शहर छोडऩा नहीं चाहते और सरकार में इतनी ताकत नहीं है कि डाक्टरों को कस्बों तक भेज सके।
स्कूलों का तो भगवान मालिक है। कमीशन के चक्कर में बिल्डिंग तो बना दी गई लेकिन शिक्षकों का पता ही नहीं है। शिक्षा मंत्री से लेकर शिक्षा सचिवों में इतनी अक्ल ही नहीं है कि वे ग्रामीण शिक्षा के लिए कोई योजना बना सके। कहते हैं भारत गांवों में बसता है लेकिन सरकार को यह बात कभी समझ में आएगी यह कहना मुश्किल है। बुनियादी सुविधाओं के लालच में गांव का गांव शहर की ओर कूच कर रहा है और शहर बदहाल होता जा रहा है। सरकार शहरी पलायन की इस बढ़ती समस्या को रोकने का उपाय करे अन्यथा विकास का यह असंतुलन एक ऐसे समाज को जन्म देगा जहां शालिनता पीछे छूट जाएगी।