मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

पानी और धरती बचाने वाले अब कहां हैं...

आमापारा बाजार के पीछे का तालाब पाटा जा रहा
आर्ट ऑफ लिविंग हो या राजधानी में जल जमीन बचाने में लगी संस्था हो किसी की नजर अभी तक आमापारा बाजार के पीछे सरकारी स्तर पर पाटे जाने वाले तालाब की ओर नहीं है। आसपास के लोग दबी जुबान पर इसका विरोध जरूर कर रहे हैं लेकिन नेतृत्व का अभाव इसे आंदोलन का शक्ल नहीं दे पा रहा है। ऐसे में रजबंधा तालाब या लेडी तालाब की तरह यह कारी तालाब भी सरकार बलि चढ़ जाए तो आश्चर्य नहीं है।
एक तरफ पूरी दुनिया में जल, जमीन और जंगल बचाने का अभियान चल रहा है। छत्तीसगढ क़े मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह तक अपने को इस अभियान का हिस्सा मानते हैं लेकिन दूसरी तरफ इसी सरकार के अधिकारी कुछ भू-माफियाओं के ईशारे पर कारी तालाब को पाटा जा रहा है। आश्चर्य का विषय तो यह है कि पर्यावरण की चिंता में दुबले हो रहे लोगों का ध्यान अभी तक इस तरफ नहीं गया है और भू-माफिया अपना खेल खुले आम खेल रहा है।
आमापारा क्षेत्र में वैसे तो लाईन से पांच तालाब है और इन तालाबों से लगी बेशकीमती जमीनें पहले ही अवैध कब्जे का शिकार है। हांडी तालाब से लेकर करबला तक तालाबों पर निगाह रखने वालों ने अवैध कब्जों के लिए गरीबों का सहारा लिया और फिर खुद ही बिल्डिंग खड़ी कर बेच दी। आमापारा का ऐतिहासिक महत्व है। मंदिरों के अलावा सब्जी बाजार में रोज हजारों लोग आते हैं ऐसे में तालाब को सुन्दर बनाकर अन्य बगीचों में भीड़ कम की जा सकती है। इस मामले में पर्यावरण प्रेमी कब ध्यान देंगे यह देखा है।

महंगाई पर राजनीती

छत्तीसगढ ही नहीं पूरे देशभर के भाजपाईयों ने महंगाई के खिलाफ दिल्ली में जुट गए। उनकी इस कार्रवाई से महंगाई पर कितना लगाम लग पाया यह तो वही जाने लेकिन नए नवेले अध्यक्ष नीतिन गडकरी की वजह से रैली में जरूर व्यवधान आ गया। उद्योगपति से भाजपा के प्रमुख पद पर पहुंचे नीतिन गडकरी के लिए गर्मी की चिलचिलाती धूप में कुछ करने का पहला मौका था लेकिन उनकी किस्मत दगा दे गई। वैसे भी महंगाई को लेकर कांग्रेस और भाजपा केवल राजनीति कर रही है। उन्हें इस बात की कतई चिंता नहीं है कि महंगाई पर लगाम कसे।
यदि छत्तीसगढ़ की रमन सरकार महंगाई पर इतनी चिंतित है तो वह छत्तीसगढ़ के लोगों का कुछ तो भला कर ही सकती है। महंगाई बढ़ने की मूल वजह को तलाशने की बजाय इस पर डॉ. रमन सिंह सरकार की राजनीति अंधेरगर्दी से कम नहीं है। क्या भाजपा सरकार यह बात भूल गई है कि यहां के अकूत संपदा के चलते इस देश का पहला टैक्स फ्री राय बनाने की चर्चा हो चुकी है। लेकिन शासन में आते ही अंधाधुंध भ्रष्टाचार ने इस राय को भी देश के दूसरे रायों की तरह ही संक्रमण दौर पर खड़ा कर दिया है।
वास्तव में महंगाई बढ़ने का आर्थिक सिध्दांत सच है कि मांग के अनुरूप पूर्ति नहीं होने की वजह से महंगाई बढ़ रही है लेकिन क्या सरकारों ने कभी चिंता की कि मांग इतनी क्यों बढ़ने लगी। छत्तीसगढ़ के संदर्भ में तो कम से कम कहा जा सकता है कि काले धन ने मांग और पूर्ति के सिध्दांत को डगमगा दिया है। छत्तीसगढ सरकार चाहे तो कुछ नियम कानून बनाकर राय में बढती महंगाई को कंट्रोल कर सकती है।
1. कृषि जमीनों के दूसरे किसी भी उपयोग पर प्रतिबंध लगा दे।
2. भ्रष्टाचार में लिप्त मंत्रियों और अधिकारियों की संपत्ति राजसात कर ले।
3. नई राजधानी के नाम पर फूंके जा रहे करोड़ों-अरबों रुपए को आम लोगों के फायदे के लिए लगाये।
4. सरकारी भवनों व बंगलाें, आवासों में हो रहे बिजली के खर्चों पर कटौती करें।
5. अधिकारियों व मंत्रियों के फिजूलखर्ची पर रोक लगाये।
6. पहले की तरह राशन दुकानों से सामग्री बेचे।
7. कालाबाजारी करने वालों को कड़ी सजा दिलवाये उनकी संपत्ति राजसात करें।
इसके अलावा भी कई उपाय है जो सरकारी स्तर पर किए जा सकते हैं।