रविवार, 7 मार्च 2010

अब बाबा भारती क्या कहेंगे

प्रायमरी स्कूल की एक किताब में बाबा भारती की मशहूर कहानी है जिसमें गरीब बनकर उनके घोड़े को छीना जाता है तब बाबा भारती ने उस डकैत से कहा था कि बेटा! तुम घोड़े ले जा तो रहे हो लेकिन किसी से यह मत कहना कि गरीब बनकर तुमने लूटपाट की है वरना कोई गरीबों पर भरोसा नहीं करेगा। अंदर तक झिंझोर देने वाली यह कहानी इन दिनों साधु और समाजसेवी दोहरा रहे हैं। कहीं साधु सेक्स कांड में फंस रहे हैं तो कहीं समाजसेवा की आड़ में बच्चे तक बेचे जा रहे हैं।
राजधानी में भी शासकीय नौकरी के नियमित पगार से असंतुष्ट नारायण राव ने आश्रम खोल लिया और बच्चे बेचने का काम करने लगा। आश्रम की आड़ में वह और भी क्या कुछ करता रहा है यह तो वही जाने लेकिन समाजसेवा और धर्म सेवा की आड़ में क्या कुछ हो रहा है वह अंधेरगर्दी से कम नहीं है।
नारायण राव एक न्यूज चैनल सहारा के स्ट्रींग आपरेशन में धरा गया। खबर को सिर्फ इतनी ही मान लेने वालों के लिए हमें कुछ नहीं कहना है लेकिन उसे आश्रम के लिए जमीन देने वाली सरकार और नारायण राव से संबंध रखने वाले मंत्री उसके इस पाप से बच नहीं सकते। दो-तीन सालों से प्रदेश में एनजीओ के रुप में नए-नए समाज सेवक पैदा हुए हैं जो सरकारी धन लेकर समाजसेवा का ढोंग रचते हैं और आधे से ज्यादा रकम अपनी तनख्वाह और आफिस खर्च पर हजम कर जाते है लेकिन सरकार ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया। यह सरकारी अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है।
छत्तीसगढ़ में तो समाजसेवा के नाम पर एनजीओ ने लूट मचा रखी है यहां के अफसरों से लेकर मंत्रियों तक का एनजीओ को न केवल संरक्षण है बल्कि कई अधिकारियों के रिश्तेदार तक एनजीओ के नाम पर सरकार का खजाना लूट रहे हैं। एनजीओ को पैसा देने के बाद सरकार ने कभी पैसे के सदुपयोग की जांच नहीं कराई। रमन सरकार के दाल-भात केन्द्र हो या फिर निर्मल ग्राम योजना, स्कूलों को दी जाने वाली मध्यान्ह भोजन हो या फिर शहरों के यातायात के लिए हर क्षेत्र में एनजीओ ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया और सरकारी धनों का जी भर कर दुरुपयोग किया। ये पैसे कहां खर्च कर रहे हैं कोई पूछने वाला नहीं है।
सरकार के इसी रवैये के कारण ही सरकारी जमीनों को कौड़ी के मोल दी गई जहां नारायण राव जैसे लोगों का जन्म हुआ है या फिर सरकारी जमीनों पर बिजनेस काम्प्लेक्स बनाए गए। अखबारों के नाम पर दी गई जमीनों पर दुकानें बनाना या आवश्यक सेवा के नाम पर बैकों से किराया लेना अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है। नारायण राव तो सिर्फ एक उदाहरण है कि समाजसेवा की आड़ में यहां क्या कुछ हो रहा है ऐसे कितने ही नारायण राव हैं जो सरकार के संरक्षण में आम लोगों के पेट में लात मार रहे हैं और सरकारी खजानों का नीजि उपभोग कर रहे हैं।

सेक्स-बाला का पीएचक्यू में जलवा

छत्तीसगढ़ की राजधानी के करीब दर्जनभर अधिकारी इन दिनों सेक्स बाला के जुल्फों से खेलने मशगुल हैं खासकर पीएचक्यू में इस महिला की आवाजाही को लेकर जबरदस्त चर्चा है और जिस पत्रकार के जरिये इसने बिलासपुर से रायपुर का सफर किया है उसे लेकर भी यहां कभी भी गंभीर घटना की आशंका जताई जा रही है।
वैसे तो इन दिनों पूरे देश में साधुओं और समाजसेवियों की करतूतों को लेकर जबरदस्त चर्चा है इन चर्चाओं को लेकर राजधानी भी अछूता नहीं रह गया है। वैसे राज्य बनने के पहले भोपाल में भी शब्बो उर्फ शबनम की वजह से प्रशासनिक हल्कों में जबरदस्त चर्चा रही है और तब आधा दर्जन प्रशासनिक अधिकारियों के नाम सामने भी आए थे। इन दिनों राजधानी के पुलिस मुख्यालय में एक सेक्स बाला की आवाजाही चर्चा में है और कहा जाता है कि इस सेक्स बाला ने मंत्रालय के भी अफसरों को भी गिरफ्त में लिया है और होली के एक दो दिन पहले तो इस युवती की वजह से गोली चलने की भी चर्चा रही लेकिन पूरे मामले को उच्च स्तरीय प्रयास से दबाया गया।
इधर बताया जाता है कि बिलासपुर में अपने जलवे दिखला चुकी इस युवती को लेकर वहां अधिकारियों में ठन भी गई थी और एक पत्रकार की मध्यस्थता से मामले को सुलझाया गया जबकि मामला थाने तक भी जा पहुंचा था। बिलासपुर के बाद इसी पत्रकार के सहारे इस युवती ने राजधानी आना-जाना शुरु किया और देवेन्द्रनगर जैसे पॉश कालोनी में अपना आशियाना भी बनाया। बताया जाता है कि इस पत्रकार के सहारे इसने अधिकारियों से मेल मुलाकात शुरु की और शीघ्र ही अपने जलवे भी दिखाना शुरु कर दिया। यदि पुलिस मुख्यालय के हमारे सूत्रों पर भरोसा करें तो कहा जाता है कि इस युवती के जुल्फ में अब तक आधा दर्जन अधिकारी कैद हो चुके हैं। जबकि मंत्रालय में भी इसका जलवा है।
बहरहाल इस सेक्स बाला के चलते कभी भी गंभीर विवाद उत्पन्न हो सकता है और कहा जा रहा है कि उच्च स्तरीय जांच से कई अधिकारी भी बेनकाब होंगे।

सांसद प्रतिनिधि को लेकर सरोज पाण्डेय विवाद में...



वैसे तो राजनीति इन दिनों पूरी तरह व्यवसाय का रुप ले चुकी है जहां पार्टी के सिध्दांत कुर्सी तक आकर सिमट जाते हैं। ऐसा ही एक मामला दुर्ग की सांसद सरोज पाण्डेय का है जहां एक पूर्व कांग्रेसी को सांसद प्रतिनिधि बनाए जाने को लेकर बवाल मच गया है।
वैसे तो सरोज पाण्डे का विवादों से पुराना नाता है। छिंदवाड़ा चुनाव के समय से चर्चा में रही सरोज पाण्डे ने राजनीति में जिस तेजी से छलांग लगाई है उसे लेकर कई तरह की चर्चा है। ताजा विवाद उनके द्वारा सांसद प्रतिनिधि की नियुक्ति को लेकर है। इस बार उसने जामुल नगर निगम क्षेत्र से सांसद प्रतिनिधि रीतेश सेन को बनाया है। रीतेश सेन वर्तमान में वार्ड नं. 10 से निर्दलीय पार्षद है। बताया जाता है कि दूसरी बार पार्षद बनने वाले रीतेश सेन कांग्रेस से भी पार्षद रहे हैं और इस बार बागी होकर चुनाव लड़ने की वजह से कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से हटा दिया।
बवाल की वजह यही है कि सांसद सरोज पाण्डे ने निष्ठावान भाजपाईयों को छोड़ ऐसे व्यक्ति को सांसद प्रतिनिधि बना दिया जिसकी पृष्ठभूमि कांग्रेस की रही है। इस मामले की उच्चस्तरीय शिकायत भी की जा रही है। हालांकि शिकायत करने वाले खुद मानते हैं कि ऐसी शिकायतों से कुछ होना जाना नहीं है लेकिन निष्ठावान भाजपाईयों में इसे लेकर चर्चा गर्म है और विरोध के लिए मौके तलाशे जा रहे हैं।

रमन की होशियारी, गडकरी की गणितबाजी





ऊपर से शांत दिख रही भाजपा में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। पहले ही बगावत का झंडा उठा चुके आदिवासी नेता रामविचार नेताम ने आदिवासी एक्सप्रेस चलाना शुरु कर दिया है तो डॉ. रमन सिंह राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अपने दुश्मनों को भेजने होशियारी दिखा रहे है। प्रदेश अध्यक्ष पद पर मुरारी सिंह का नाम आदिवासी एक्सप्रेस के तोड़ के रुप में देखा जा रहा है तो राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह पर दबाव बनाए रखने गणितबाजी में उलझे हुए हैं।
छत्तीसगढ़ के भाजपाई राजनीति में उथल-पुथल की सुगबगाहट शुरु हो गई और कहा जा रहा है कि आदिवासी सांसदों, आदिवासी मंत्रियों सहित दर्जनभर विधायक मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से बेहद खफा है और वे कभी भी डॉ. रमन सिंह के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल सकते हैं। वैसे डॉ. रमन सिंह के खिलाफ असंतोष की खबरें नई नहीं है। राज्यसभा सदस्य नंदकुमार साय तो गाहे-बगाहे मौके की तलाश में रहते हैं जबकि रामविचार नेताम, ननकीराम कंवर और सोहन पोटाई का भी नाम सत्ता परिवर्तन में रुचि रखने वालों में शुमार है।
पिछले दिनों राजधानी में 32 प्रतिशत आरक्षण को लेकर हुई रैली में भाजपा के दिग्गज आदिवासी नेताओं की मौजूदगी में डॉ. रमन सिंह के खिलाफ हुई नारेबाजी को भी इसी रूप में देखा जा रहा है। इस रैली में रामविचार नेताम की सक्रियता को लेकर भी कई तरह के सवाल उठाये जा रहे हैं। दूसरी तरफ पिछड़े वर्ग में भी जबरदस्त आक्रोश है लेकिन रायपुर के सांसद रमेश बैस की चुप्पी की वजह से पिछड़ा वर्ग खामोश है और उन्हें नेतृत्व की तलाश है। हालांकि चन्द्रशेखर साहू की भूमिका को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं और सूत्रों का कहना है कि रायपुर में दशक पहले राज्य की मांग उठाकर अपना हाथ जला चुके चंपू साहू फिलहाल मौन है और दूध का जला... वाली कहावत पर चल रहे हैं।
इधर डा. रमन सिंह ने ब्राम्हण और बनिया से निपटने नई रणनीति बना ली है और कहा जा रहा है कि एक तीर से दो शिकार की तर्ज पर वे सरगुजा के आदिवासी सांसद मुरारी सिंह को प्रदेशाध्यक्ष बनवाकर जहां आदिवासी एक्सप्रेस की हवा निकालने में लगे हैं वहीं दूसरी तरफ राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अपने दुश्मनों को भेजने की रणनीति पर चल रहे हैं। कहा जाता है कि लगातार विवादों में रहने वाले राजधानी के विधायक बृजमोहन अग्रवाल को वे एक बार फिर महत्व देने लगे हैं ताकि विरोधियों को ताकत न मिले।
बताया जाता है कि डॉ. रमन सिंह की असली चिंता आदिवासी नेताओं की एकजुटता है और वे इस एकजुटता को तोड़ने मंत्रियों को जिम्मेदारी दे रखे हैं। इसके तहत अलग-अलग मंत्री दो तीन आदिवासी विधायकों को संभालने का काम कर रहे हैं। बहरहाल भाजपा में चल रहे इस अंदरूनी उठापटक की दबी जुबान पर चर्चा होने लगी है और कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा के बाद स्थिति साफ होगी।