गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

धन्यवाद! अब गिरवी रखना ही होगा...


राष्ट्रपति के अभिभाषण पर जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कृषि सुधार की वकालत करते हुए जब कहा कि आर्थिक सुधार के लिए यही एक रास्ता है तो इसका मतलब साफ था कि अब सब कुछ निजी हाथों में गिरवी रखा जाना जरूरी हो गया है क्योंकि सरकार चलाने के लिए टेक्स यही निजी कंपी देती है और पार्टी चलाने के लिए भी चंदा जब यही कंपनी देती है तो फिर सरकार एमएसपी में फसल खरीदकर गोदाम में रख रखाव का झंझट क्यों पाले। और किसानों को जनधन या सम्मान निधि से लॉलीपाप या खैरात दी जाती रहेगी।

हैरानी की बात तो यह है कि प्रधानमंत्री ने किसानों को ईमानदार कहा जबकि दो दिन पहले ही वे इन्हें आंदोलनजीवी परजीवी बता चुके थे और इससे भी बड़ी हैरानी की बात तो यह है कि प्रधानमंत्री ने आर्थिक और सामाजिक सुधार को एक तराजू पर तौल दिया।

क्या सचमुच देश को निजी हाथों में गिरवी रखने की शुरुआत की जा चुकी है? ये सवाल हम यहां इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि इस सरकार ने जिस तरह से सार्वजनिक क्षेत्र  की 23 कंपनियों को बेचा है और लालकिले को भी रखरखाव के लिए निजी कंपनी को सौंपा है उसके बाद तीनों कृषि कानून के जो नियम है वह साफ कहता है कि इन तीनों कृषि कानून में सरकार ने निजी क्षेत्रों के हितों की रक्षा और उनके संरक्षण के उपाय किये है। लगातार किसानों की खुदकुशी के बढ़ते मामले से इतर सरकार जिस तरह से इन तीनों कानून को लेकर अपना रुख साफ किया है उससे एक बात तो तय है कि निजी क्षेत्रों के पूंजी से आगे सरकार नममस्तक हो चुकी है।

असीमित भंडारण का अधिकार देना क्या इस बात की ओर इशारा नहीं करता कि सरकार एफसीआई को खत्म कर देना चाहती है और जब एफसीआई खत्म हो जायेगी तो फिर सरकार एमएसपी पर खरीदी किस तरह खरीदेगी। वैसे भी सरकार जब 6 फीसदी उपज ही एमएसपी पर खरीदती है तब इसका क्या मतलब है।

मतलब साफ है कि नेताओं को चंदा पूंजीपति देते हैं इसलिए पूंजीपतियों के हित में फैसला हो। किसानों को खैरात दे दो बस!